भास्कर एक्सक्लूसिवबिलकिस को ढूंढा तो भड़क गए कैंप के लोग:रिहा हुए दोषियों के परिवार बोले- हम भी बर्बाद हुए, हमारी कोई नहीं सुनता

8 महीने पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी
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गांधीनगर से 194 किमी दूर दाहोद के रंधीकपुर गांव की यह बस्ती फिर वीरान है। 20 साल पहले भी ऐसे ही हुआ था। तब शोर था, अब खामोशी है। तब मार-काट थी, अब फुसफुसाहट है। ये बिलकिस बानो का गांव है।

20 साल पहले 27 फरवरी 2002 को अयोध्या से गोधरा जा रही ट्रेन की दो बोगियां फूंक दी गईं। वहां 59 लोग मारे गए। फिर जो हुआ उसमें 1,044 लोगों की जान गई। ये आंकड़े सरकारी हैं।

रंधीकपुर की इस बस्ती में भी वही सब हुआ, जो उस वक्त हर कहीं हो रहा था। बिलकिस समेत 15 लोग जंगल के रास्ते भागे। भीड़ पीछे थी। दो बच्चों समेत 13 लोग मार दिए गए। एक अजन्मा बच्चा भी इनमें शामिल था। इस भीड़ ने छह औरतों का गैंगरेप किया।

बदहाल बिलकिस बच गई और सात साल का सद्दाम भी नहीं मरा। CBI जांच और 15 साल की कोर्ट-कचहरी के बाद मई 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बलात्कार और हत्या के 11 दोषियों को उम्रकैद दे दी।

सब जेल में थे, लेकिन इस साल 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने सबको आजादी बख्श दी। सभी 11 दोषी जेल से बाहर आ गए। मिठाई और फूलमालाओं से उनका स्वागत किया गया। इस रिहाई के खिलाफ कई संगठन सुप्रीम कोर्ट में हैं। सुनवाई जारी है।

दिल्ली से दूर रंधीकपुर की ये बस्ती फिर खाली है। अब ये कहानी उसी बस्ती के चौक-चौराहों, घरों-दीवारों, उस पर लगे दरवाजों और लटके तालों की जुबानी…

रंधीकपुर गांव की इस बस्ती में ज्यादातर घरों में ताले लगे हैं। बिलकिस केस के दोषियों की रिहाई के बाद से ही लोग गांव छोड़कर जाने लगे थे।
रंधीकपुर गांव की इस बस्ती में ज्यादातर घरों में ताले लगे हैं। बिलकिस केस के दोषियों की रिहाई के बाद से ही लोग गांव छोड़कर जाने लगे थे।

पहली दुनिया
बस्ती में 75 घर, लेकिन लोग सिर्फ चार-पांच घरों में

मैं अब इस बस्ती में दाखिल हूं। यहां करीब 75 घर हैं, लेकिन लोग बमुश्किल चार-पांच घरों में ही हैं। बाकी के दरवाजों पर लटकते ताले। रिहा किए गए गुनहगार भी अपने-अपने घरों से गायब हैं।

मैं रिहा किए गए सभी 11 लोगों से मिलना चाहती हूं। इनमें से 4 के नदारद होने की सूचना पहले से ही है। बाकी बचे 7, तो बारी-बारी उनके घर गई। रंधीकपुर में बिलकिस का मायका है। उनके घर से एक-दो किमी के दायरे में सभी दोषियों के घर हैं। रिहा लोगों में शामिल शैलेश, मितेश और श्यामसुंदर का घर तो बिलकिस के घर से महज 300 मीटर के भीतर ही है। यहां याकूब मिलते हैं।

मैंने पूछ लिया- घरों में ताले क्यों हैं?
जवाब मिला- मेरी भतीजी बिलकिस के दोषी बाहर आ गए हैं। उन्हीं से डरकर सब चले गए।

तो मैं पूछ पड़ती हूं- आप क्यों नहीं गए?
जवाब- मेरा परिवार भी जा चुका है। रात को मैं भी चला जाता हूं। बस्ती में आजकल 8 से 10 लोग ही रहते हैं, वो भी सिर्फ दिन में।

सवाल- क्या किसी को कोई धमकी मिली है?
जवाब- धमकी क्या, उनसे डर बना ही रहता है, पता नहीं अब क्या करेंगे।

बातचीत के दरमियान याकूब 27 फरवरी 2002 की तारीख में पहुंच जाते हैं। कहने लगते हैं- ‘इन्हीं लोगों ने उस दिन रैली निकाली थी। हाथ में हथियार और जुबान पर मारो, काटो, जला दो।

हमने हाथ जोड़े और कहा कि गोधरा में जिसने ट्रेन फूंकी उन्हें मारो, हमें तो छोड़ दो। किसी ने एक न सुनी। हमारे घर जलाने लगे। जो जहां था, वहीं से भागा। बिलकिस का पति याकूब रसूल पटेल साथ ही था।

हम चुंदड़ी रोड से होते हुए गांव-गांव भटक रहे थे। तीन दिन बाद प्रोटेक्शन मिली और कैंप में आ गए। बिलकिस जंगल के रास्ते निकली। पत्थलपाणी के जंगल में इन्हीं लोगों ने घेर लिया। बाकी कहानी तो आप भी जानती ही हैं।’

जगह: बारिया गांव
डर लगता है, जो बिलकिस के साथ हुआ वो हमारी बच्चियों के साथ न हो

रंधीकपुर की बस्ती छोड़कर अब देवघर बारिया के रहीमाबाद कैंप में रह रही फातिमा बताती हैं- 5 दिन पहले ही हम यहां आए, जब तक गुनहगार फिर जेल नहीं जाएंगे, हम नहीं लौटेंगे। डर लगता है जो बिलकिस के साथ हुआ, वह हमारी बच्चियों के साथ न हो। काम-धंधा सब वहीं है, लेकिन अब हम यहीं रहेंगे।'

कैंप में एक बुजुर्ग महिला से भी मुलाकात होती है। 75 साल की ये महिला खुद को रिश्ते में बिलकिस की मामी बताती हैं। वे गोधरा हिंसा के बाद साल 2002 में ही यहां आई थीं और फिर वापस नहीं लौटीं। उनके पति की दंगाइयों ने हत्या कर दी थी, बूढ़ी आंखों में दर्द और खौफ लिए वे कहती हैं- मैं अब वहां (रंधीकपुर) कभी नहीं जाऊंगी।

देवघर बारिया में बिलकिस का ससुराल है। वे दंगों के दौरान यहीं के लिए निकली थीं। यहां अब भी दंगा पीड़ितों के लिए रिलीफ कैंप बना है।
देवघर बारिया में बिलकिस का ससुराल है। वे दंगों के दौरान यहीं के लिए निकली थीं। यहां अब भी दंगा पीड़ितों के लिए रिलीफ कैंप बना है।

फोटो लेना मना, रिलीफ कैंप का रास्ता पूछेंगे तो भटका दिए जाएंगे
मैं बिलकिस के ससुराल देवघर बारिया में हूं। 28 फरवरी 2002 की सुबह रंधीकपुर से बिलकिस यहीं के लिए निकली थी। दोषियों की रिहाई के बाद बारिया में लोग अलर्ट हैं और रिलीफ कैंप तक पहुंचना आसान नहीं। बिलकिस का नाम लेते ही आपको सीधा यहां से निकल जाने के लिए कह दिया जाता है।

मैं परमिशन लेकर रिलीफ कैंप पहुंची, वहां लोगों से बात की और फोटोज ली। इसके बाद हिदायत दी गई कि बिना रुके गांव से चली जाऊं, लेकिन मेरा मन बिलकिस का घर ढूंढ रहा था। कैंप से निकली और थोड़ा तलाश करने पर वहां तक पहुंच भी गई।

अचानक मेरा फोन बजा, उधर से आवाज आई- आपसे मना किया था, वापस कैंप आइए। मैं कैंप लौट आई। सामने खड़ा शख्स काफी गुस्से में था और गाड़ी को भीड़ ने घेर लिया था। मैंने कहा, 'इतनी दूर आई हूं, सिर्फ बिलकिस का घर देखना था, वो चाहें तो बात न करें। लोगों का गुस्सा बढ़ता देख हम वहां से चल दिए। मोटरसाइकिल पर दो लोग हमें गांव से बाहर तक छोड़ने आए, या कहें तो निगरानी के लिए आए।

हम आपसे नाराज नहीं, खौफ में हैं; आपने चेहरे दिखा दिए तो सब खतरे में आ जाएंगे
अगले दिन मैं बिलकिस के पति याकूब से मिलने पहुंची। कल जो शख्स गुस्सा कर रहे थे, आज शांत दिखे। बोले- बिलकिस के घर वालों पर अभी भी खतरा है। हम नहीं चाहते कि घर या रिलीफ कैंप की लोकेशन लीक हो। हंसते हुए कहा, अगर आप कैंप का पता गांव में पूछेंगे तो भटका दिए जाएंगे।'

यह सच था, दोनों दिन हमने जब रिलीफ कैंप का पता पूछा तो गांव में भटकते रह गए। उस शख्स ने आगे कहा- 'हम आपसे नाराज नहीं, खौफ में हैं। आपने सबके चेहरे दिखा दिए तो सब खतरे में आ जाएंगे। बिलकिस कहां हैं, ये हम आपको नहीं बता सकते। बिलकिस बात करेंगीं, लेकिन जब दोषी वापस जेल चले जाएंगे तब।'

कैंप में ही मौजूद इम्तियाज घांची ने बताया, 'गोविंद भाई नई पैरोल पर आया था तो उसने हमारे बच्चों को धमकाया और गाली गलौज की। मुझे भी धमकाया। मैंने थाने में शिकायत दी, कई चक्कर काटे, पर कुछ नहीं हुआ।' मैंने पूछा, कितनी बार पैरोल पर आए थे? जवाब मिला- जेल में कम, गांव में ही ज्यादा रहते थे।

दूसरी दुनिया
रिहाई के बाद जश्न मना, अब मन्नतें पूरी कर रहे गुनहगार

रंधीकपुर में खाली पड़ी उस बस्ती के समानांतर एक और दुनिया भी मौजूद थी। यहां के लोगों के लिए 15 अगस्त 2022 खुशियां लेकर आया। इस दुनिया में उन 11 दोषियों के घर थे, जिनके लौट के आने पर जश्न मना। बारिया से वापस रंधीकपुर लौटने के दौरान एक बाइक फिर हमारा पीछा करने लगी।

हमने गाड़ी रोकी तो बाइकसवारों ने पूछा- आप लोग कौन हैं, कहां जा रहे? मेरे ड्राइवर ने जवाब दिया- पत्रकार हैं। गांव की हालत पर रिपोर्ट करने आए हैं। हम चल दिए और बाइक लगातार पीछा करती रही।

रंधीकपुर में मैंने उन 11 घरों का रुख किया, जहां रिहा हो चुके लोगों के मिलने की उम्मीद थी। रिहाई के बाद एक दोषी राधेश्याम भगवान दास शाह के घर जश्न हुआ था। मुझे उम्मीद थी कि वह घर पर मिलेंगे, सबसे पहले मैं वहीं पहुंची।

मन्नत पूरी करने गए भट्ट बंधु और राधेश्याम भगवान दास शाह!
बिलकिस के घर से करीब 300 मीटर की दूरी पर दो-दो मंजिला इमारत। बिल्कुल अगल-बगल। सफेद रंग का घर, शैलेश और मितेश भट्ट बंधुओं का। उससे लगा हल्के हरे रंग पर ऑरेंज पट्टी वाला घर राधेश्याम भगवान दास शाह का। शाह के घर के नीचे मेकअप की एक बड़ी दुकान।

ये राधेश्याम भगवानदास शाह का घर है। राधेश्याम की रिहाई पर उनके घर जश्न मना था। अभी घर में ताला लगा है।
ये राधेश्याम भगवानदास शाह का घर है। राधेश्याम की रिहाई पर उनके घर जश्न मना था। अभी घर में ताला लगा है।

दुकानदार से मैंने पूछा, राधेश्याम का घर यही है?
जवाब- हां

सवाल- घर का रास्ता कहां से है?
जवाब- दुकान के भीतर से। मगर आप जा नहीं सकतीं।

सवाल- क्यों?
जवाब- उनके घर पर ताला है। वहां कोई नहीं। हम आपको जाने नहीं दे सकते।

सवाल- सब कहां गए?
जवाब- मन्नत पूरी करने। रिहाई के लिए परिवार ने मन्नत मांगी थी। उज्जैन, उसके बाद और भी कई मंदिर जाएंगे। दो हफ्ते बाद लौटेंगे।

सवाल- मैंने फिर पूछा पड़ोसी भट्ट बंधु कहां गए?
जवाब- मन्नत पूरी करने गए हैं। तीनों परिवार साथ गए हैं।

सवाल- आप लोग कौन हैं उनके?
जवाब- परिवार के।

सवाल- आपसे कुछ बातें करनी हैं।
जवाब- जो कहना था कह दिया। अब इसके आगे माफ कीजिए।

शैलेश भट्ट और मितेश भट्ट दोनों भाई हैं। उनके घर अगल-बगल में ही बने हैं। दोनों राधेश्याम के साथ ही मन्नत मांगने उज्जैन गए हैं।
शैलेश भट्ट और मितेश भट्ट दोनों भाई हैं। उनके घर अगल-बगल में ही बने हैं। दोनों राधेश्याम के साथ ही मन्नत मांगने उज्जैन गए हैं।

बाका-केसर खीमा बंधु भी घर से गायब
इसके बाद मैं आदिवासी मुहल्ले पहुंची। दूसरे दो गुनहगार- केसर भाई खीमा वोहानिया और बाकाभाई खीमा वोहानिया का घर यहां है। बिलकिस के घर से करीब एक किलोमीटर दूर। यहां भी एक छोटी सी दुकान है। रोजमर्रा का कुछ सामान और चिप्स, बिस्किट, टॉफी, कोल्ड ड्रिंक रखीं थी।

बाकाभाई खीमा का घर बिलकिस के घर से महज एक किलोमीटर दूर है। बाकाभाई के बारे में पूछने पर बताया गया कि वे खेत गए हैं, जबकि उन्हें खेत पर गए कई दिन हो चुके हैं।
बाकाभाई खीमा का घर बिलकिस के घर से महज एक किलोमीटर दूर है। बाकाभाई के बारे में पूछने पर बताया गया कि वे खेत गए हैं, जबकि उन्हें खेत पर गए कई दिन हो चुके हैं।

घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो दुकान में मौजूद लड़कों ने रोक दिया। घर पर कोई नहीं है।

पूछा- बाका भाई खीमा कहां हैं?
जवाब- बाहर

फिर पूछा- कहां बाहर?
जवाब- खेत पर।

सवाल- खेत कहां हैं?

इशारे से बताया। खेत की तलाश में पहुंचे तो पता चला, वह तो कई दिनों से खेत आए ही नहीं। हम फिर घर पहुंचे। उनके घर का कोई हो तो मिला दीजिए। पीछे से एक लड़के ने इशारा किया। उनका बेटा सामने खड़ा था।

मैं तो सिर्फ 2 साल का था, मेरी तो जिंदगी बर्बाद हो गई
बाका भाई खीमा का बेटा सवाल पूछते ही भड़क गया। चेतावनी दी कि अगर रिकॉर्ड किया तो मैं यहां से चला जाऊंगा।

जवाब दिया- मैं तो तब 2 साल का था। मुझे कुछ याद भी नहीं। मेरी तो जिंदगी बर्बाद हो गई। मीडिया ने तब से पीछा ही नहीं छोड़ा। हमसे ऐसे मिलने आते हैं, जैसे हम कोई अजूबा हों। मेरी पढ़ाई भी रुक गई, सिर्फ दसवीं तक पढ़ सका। पढ़ता तो दुकान कौन संभालता।

सवाल- आपके पिता ने जो किया, वह ठीक था?
जवाब- क्या जब मेरे पिता ने यह किया था, आप वहां थीं, दाहोद में जो उससे पहले हो रहा था क्या आप तब थीं?

सवाल- रिहाई के बाद उस जश्न में आप भी गए थे?
जवाब- नहीं, सिर्फ मां गईं थीं।

अब उसने पलट कर मुझसे पूछा- क्या गुनहगारों का परिवार नहीं होता?

आपको सिर्फ उन्हीं की बात करनी है तो हमसे मिलने ही क्यों आते हैं
सामने केसर भाई खीमा भाई वोहनिया का घर था। बाका और केसर सगे भाई हैं। घर का दरवाजा खुला तो मैं सीधा घर में घुसने लगी, आवाज आई-

- आप ऐसे किसी के घर में नहीं जा सकतीं। केसर भाई हैं नहीं, जब आएं तब आइएगा।

मेरा सवाल- आप कौन?
जवाब- रिश्ते की बहन।

मैंने फिर कहा- कुछ बात करनी है।

जवाब- आप लोगों को सिर्फ उनका पक्ष रखना है तो फिर आप हमसे बात करने ही क्यों आते हैं? जाइए उसी बस्ती में घूम आइए, आपको न्यूज वहीं मिलेगी।

मेरी नजर फिर बाका के घर के खुले दरवाजे पर पड़ी। करीब 3 साल की एक छोटी बच्ची झांकती दिखी। एक औरत दिखी। उन्होंने मेरी तरफ पानी का लोटा बढ़ा दिया- पी लीजिए, आप थक गई होंगी। मैं उनकी बहू हूं। टीचर हूं। 3 साल पहले शादी हुई। शादी में पति के पिता जी आए थे।

मैंने पूछा- हत्या- गैंगरेप के दोषी के बेटे से शादी के लिए आपका परिवार मान गया?
जवाब- हमारी लव मैरिज है। उनके बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगी। इतना जरूर है कि आपको उन कई और हादसों से भी परदा उठाना चाहिए जिन पर किसी ने बात ही नहीं की।

मैंने घर के अंदर आने की इजाजत मांगी

जवाब- आप औरत हैं और हमारे घर में औरतों की इज्जत होती है। आइए। अंदर दाखिल हुई तो दो कमरों का एक छोटा सा घर था, बच्चों के खिलौने बिस्तर पर बिखरे पड़े थे।

केसरभाई खीमा और बाका सगे भाई हैं। दोनों के घर आमने-सामने ही बने हैं।
केसरभाई खीमा और बाका सगे भाई हैं। दोनों के घर आमने-सामने ही बने हैं।

छठे दोषी रमेश चंदना भी मन्नत पूरी करने गए
मैंने छठे दोषी रमेश चंदना के घर का रुख किया। बिलकिस के घर से करीब दो किलोमीटर दूर। तीन मंजिला आलीशान घर। पक्का, खूबसूरत डिजाइन और पेंट वाला। दरवाजा खुला था, अंदर 52 इंच का स्मार्ट टीवी चल रहा था।

रमेश चंदना अभी गुजरात से बाहर हैं। घर पर उनका बेटा मिला। बेटे ने कहा- जब वह घटना हुई थी, तब मैं 5-6 साल का था। मुझे कुछ नहीं पता।
रमेश चंदना अभी गुजरात से बाहर हैं। घर पर उनका बेटा मिला। बेटे ने कहा- जब वह घटना हुई थी, तब मैं 5-6 साल का था। मुझे कुछ नहीं पता।

घंटी बजाई, दरवाजा खटखटाया। कोई बाहर नहीं आया, 20 मिनट तक हम आवाज देते रहे, फिर वहीं बैठ गए।

तभी एक लड़का बाहर आया- जी बताइए।

मैंने कहा- रमेश चंदना से मिलना है।
जवाब- पापा बाहर गए हैं।

सवाल- कहां?
जवाब- गुजरात से बाहर। परिवार के साथ मन्नत पूरी करने। उज्जैन, और भी कई जगहों पर जाएंगे।

सवाल- कब लौटेंगे?
जवाब- वक्त लगेगा। शायद दो हफ्ते बाद।

सवाल- आप कौन हैं?
जवाब- उनका बेटा। होम्योपैथी का डॉक्टर हूं।

मैंने कहा- आपसे बात करनी है
जवाब- नहीं कर सकता।

मैंने फिर पूछा- घटना के वक्त आपकी उम्र क्या होगी?
जवाब- 5-6 साल। मुझे कुछ पता नहीं।

सवाल- आपके पिता के ऊपर जो दोष लगा है, कभी आपने उनसे बात नहीं की?
जवाब- चुप्पी।

सवाल- क्या एक औरत के साथ ऐसा करने वाले आपके पिता पर आपको गुस्सा आता है?
जवाब- मीडिया केवल एक पक्ष दिखाती है, दूसरा पक्ष कभी नहीं।

मैंने कहा- हम पक्ष जानने ही आए हैं। जो बताना चाहते हैं बताएं।
जवाब- सब लोग सामने आएंगे, एक साथ। आप अपना नंबर दीजिए। आपको भी बुलाएंगे।

राजू भाई सोनी भी मन्नत पूरी करने गए, मीडिया हमारी बात नहीं छापता
इसके बाद मैं एक अन्य दोषी राजू भाई सोनी के घर पहुंची। बिलकिस के घर से करीब ढाई किलोमीटर दूर। तीन मंजिला मकान। मकान के आगे के हिस्से में सुनार की दुकान। दुकान पर पहुंचे तो उनके बेटे से मुलाकात हुई।

सवाल- राजू सोनी कहां हैं?
जवाब- बाहर, मन्नत पूरी करने।

सवाल- आप बात करेंगे?
जवाब- नहीं। ऑन द रिकॉर्ड बिल्कुल भी नहीं। राधेश्याम भगवान दास शाह ने 40 मीडिया वालों को अपना वर्जन दिया। किसी ने छापा नहीं। उनके घर के बाहर का सीसीटीवी फुटेज हम आपको दिखा सकते हैं। मीडिया उनके लिए है, उन्हें सुनने आती है। हमारा पक्ष सामने आए, यह मीडिया नहीं चाहती।

मैंने कहा- आप बताएं, हम लिखने को तैयार हैं
जवाब- शायद आप लिखना चाहें, पर आपके अधिकारी उस बाइट को उड़ा देंगे। अपना नंबर दीजिए। जब सब सामने आएंगे, हम आपको बुला लेंगे। मीडिया को खबर लिखते वक्त दोनों पक्षों के वर्जन लेने चाहिए। जनता तक आरोपी और दोषियों की बात पहुंचाना भी मीडिया का काम है। आप और घरों पर जाएंगी तो वक्त बर्बाद करेंगीं। कोई नहीं मिलेगा।

फिर चुनाव आने वाले हैं…
अंधेरा हो रहा था। गांव से हमें निकलना था। सुबह से इस गांव में मेरी गाड़ी कई चक्कर काट चुकी थी। लोगों की नजरें हम पर टिकीं थीं। गांव में कई लोगों ने हमें रोका-टोका। बिलकिस पर बात करने से यहां हर कोई बचता नजर आ रहा था। बिलकिस की बस्ती के 8 लोगों ने 13 सितंबर को भारतीय चुनाव आयोग, राज्य चुनाव आयोग और दाहोद के जिला अधिकारी को एक एप्लिकेशन दी है।

ये 8 लोग भी 2002 में रंधीकपुर में रहते थे। इनके घर भी जलाए गए और इन्हें बस्ती छोड़नी पड़ी। एप्लिकेशन में लिखा है, रिहाई के बाद दोषियों ने जिस तरह से जश्न मनाया, उससे इलाके में डर का माहौल है।

बिलकिस की बस्ती खाली थी, 11 दोषी अपने घरों से गायब थे। बस्ती में दंगों की आहट का डर था, तो उन 11 घरों में दोबारा जेल जाने का खौफ। इस केस के इकलौते गवाह सद्दाम के मामा मुख्तार मोहम्मद की एक बात याद जाती है। उन्होंने कहा था- लोग इसलिए भी डरे हैं, क्योंकि तब (2002) भी चुनाव आने वाले थे और अब भी चुनाव आने वाले हैं।

अहमदाबाद के रहने वाले मुख्तार मोहम्मद शुरुआत से बिलकिस के मददगार रहे। केस के इकलौते चश्मदीद सद्दाम को भी उन्होंने ही सहारा दिया था।
अहमदाबाद के रहने वाले मुख्तार मोहम्मद शुरुआत से बिलकिस के मददगार रहे। केस के इकलौते चश्मदीद सद्दाम को भी उन्होंने ही सहारा दिया था।

इनपुट: राजू सोलंकी

बिलकिस के दोषियों के खिलाफ पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट क्यों दी, फिर सजा कैसे मिली, रिहाई कैसे हो गई? इन सब सवालों के जवाब के लिए हम आखिरी कड़ी में इस मामले में एडवोकेट शोभा गुप्ता से जानेंगे इस दर्दनाक कहानी में आए उतार-चढ़ाव...

बिलकिस बानो केस से जुड़ी ये दो एक्सक्लूसिव स्टोरी भी पढ़िए...
1. दंगाइयों के हमले के इकलौते चश्मदीद सद्दाम ने बताया- उस दिन क्या हुआ था

ये 3 मार्च 2002, संडे का दिन था। हमें कुछ लोग हमारी तरफ आते दिखे। उनके हाथ में तलवार, हंसिया, कुल्हाड़ी और लोहे के पाइप थे। वह आकर मारने-काटने लगे। मेरी अम्मी हाथ पकड़कर मुझे दूसरी तरफ लेकर भागीं। तभी किसी ने मुझे अम्मी से छुड़ाकर एक गड्ढे में फेंक दिया। मेरे ऊपर एक पत्थर रख दिया। इसके बाद मैं बेहोश हो गया। तब 7 साल के रहे सद्दाम को ये सब याद है। इस बारे में बताते हुए सद्दाम उसी बच्चे की तरह नजर आते हैं, जिसके सामने उसकी अम्मी की लाश पड़ी है।
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2. सुलेमान-अबेसी नहीं भूले वह दिन, बिलकिस को रोक लेते तो 13 जिंदगियां बच जातीं

28 फरवरी 2002 की सुबह दाहोद के रंधीकपुर गांव की एक बस्ती खाली हो चुकी थी। बूढ़े-बच्चे, औरत-मर्द सब बदहवासी और डर की हालत में खेतों-जंगलों के रास्ते भाग रहे थे। पीछे एक भीड़ थी। हाथों में कुल्हाड़ी, हंसिया और तलवारें लिए। उनसे बचकर बिलकिस की टोली कुआंजर और पत्थनपुर में रुकी थी। यहां तब सरपंच रहे सुलेमान और अबेसी के यहां उन्हें पनाह मिली। दोनों को अब भी अफसोस है कि वे उन लोगों को गांव में नहीं रोक पाए। ऐसा किया होता तो 13 लोग जिंदा होते।
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