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भास्कर एक्सक्लूसिवबिलकिस से गैंगरेप के दोषी रिहा:पति बोले- उनकी वजह से हम खौफ में जीते रहे, 15 घर बदले; अब कहां जाएं

10 महीने पहलेलेखक: पूनम कौशल
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‘हमें यकीन ही नहीं हो रहा कि बिलकिस से गैंगरेप करने वाले, मेरी 3 साल की बेटी को पटक-पटककर मार देने वाले, मेरे परिवार के सात लोगों की हत्या करने वालों को सरकार ने कैसे छोड़ दिया। ये सोचकर ही हमें डर लग रहा है। इस फैसले ने बिलकिस को तोड़ दिया है।’ ये बातें बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल ने दैनिक भास्कर से कही हैं।

2002 में गुजरात दंगों के दौरान 5 महीने की प्रेग्नेंट बिलकिस बानो से गैंगरेप के मामले में दोषी 11 लोगों को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया है। ये सभी 2004 से जेल में बंद थे। CBI की स्पेशल कोर्ट ने दोषियों को 2008 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

दोषियों की रिहाई के फैसले से बिलकिस बानो का परिवार जितना हैरत में है, उतना ही डरा हुआ भी। याकूब रसूल कहते हैं कि इस बारे में पता चलने के बाद से बिलकिस मायूस है। किसी से बात नहीं कर रही है। वह कुछ भी कहने की हालत में नही है।

याकूब ने बताया कि उन्हें दोषियों को रिहा करने के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। मीडिया से पता चला कि ऐसा हुआ है। फिर हमने इस खबर की तस्दीक की। इससे हमें बहुत झटका और सदमा लगा है। बिलकिस भी इस बात से परेशान हैं कि आगे क्या होगा। दिल में बहुत डर पैदा हो गया है। इस तरह हम कैसे जिएंगे। हमने कभी सोचा नहीं था कि ऐसा होगा। न ही इसका अंदाजा था।

याकूब कहते हैं कि उन लोगों को किस आधार पर छोड़ा गया, इसकी अभी हमारे पास ऑफिशियल जानकारी नहीं है। सरकार ने क्या और कैसे किया है, इस बारे में हमें कुछ नहीं पता। हम पहले दस्तावेज देखेंगे, फिर तय करेंगे कि आगे हमें क्या करना है।

याकूब ने कहा कि इतने बड़े केस में, जिसमें हमारे परिवार के लोगों को इतनी बेरहमी से मारा गया। मेरी बेटी को मार डाला। हम यही सोच रहे हैं कि इतने बड़े अपराध के दोषियों को सरकार कैसे छोड़ सकती है।

दंगों के बाद से ही परिवार खौफ में जी रहा था। हमने 15 से ज्यादा बार घर बदला। हमने ये बार-बार बताया है कि हम डर में जी रहे है। पहले वे (सभी दोषी) पैरोल पर छूटकर आते थे तो डर लगता था। अब तो सरकार ने उन्हें रिहा ही कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में गुजरात सरकार को बिलकिस बानो को 50 लाख रुपए मुआवजा, सरकारी नौकरी और घर देने का आदेश दिया था। इस पर याकूब ने कहा कि सरकार से हमें कोई मदद नहीं मिली। अदालत के आदेश पर मुआवजा मिला था।

सियासी पार्टियों से भी परिवार को कोई मदद नहीं मिली, न ही कोई उनके पास आया। मेरे परिवार ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर और दोषियों को सजा दिलाई। हम देश को, संविधान को मानने वाले हैं। संविधान ने हमें न्याय भी दिया। सरकार के फैसले ने एक झटके में सब खत्म कर दिया।

PM मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से कहा था कि नारी का अपमान नहीं होना चाहिए। उसी दिन दोषियों को छोड़ दिया गया। मैं लोगों से कहना चाहता हूं कि जो रेपिस्टों के साथ हैं, ऐसा अपराध करने वालों को छोड़ रहे हैं, उनसे सवाल करें। उन महिलाओं का साथ दें, जिन पर अत्याचार हुआ है। उन्हें उनके हक की आवाज उठानी चाहिए।

बिलकिस ने वकील के जरिए कहा- इंसाफ को कैसे खत्म किया जा सकता है
बिलकिस बानो ने अपनी वकील शोभा गुप्ता के जरिए एक स्टेटमेंट जारी किया है। इसमें कहा गया है कि किसी भी महिला के लिए इंसाफ को इस तरह कैसे खत्म किया जा सकता है। मुझे अपने देश की अदालतों पर भरोसा था। मुझे सिस्टम पर भरोसा था। मैं धीरे-धीरे उस सदमे के साथ जीना सीख रही थी। दोषियों की रिहाई ने मेरी शांति छीन ली और न्याय में मेरे भरोसे को हिला दिया है।

गुजरात दंगों में मारे गए थे 750 मुसलमान
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच में भीड़ ने आग लगा दी थी। इसमें अयोध्या से लौट रहे 57 कारसेवकों की मौत के बाद दंगे भड़क गए थे। दंगों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। इनमें ज्यादातर मुसलमान थे। केंद्र सरकार ने मई 2005 में राज्यसभा में बताया था कि गुजरात दंगो में 254 हिंदू और 750 मुसलमान मारे गए थे।

बिलकिस का परिवार खेत में छिपा था, तभी हमला हुआ
3 मार्च 2002 को दाहोद जिले के रणधीकपुर गांव में बिलकिस बानो के परिवार पर हमला हुआ था। दंगों की वजह से वे अपने परिवार के साथ एक खेत में छिपी थीं। तब बिलकिस की उम्र 21 साल थी और वे 5 महीने की गर्भवती थीं। दंगाइयों ने बिलकिस का गैंगरेप किया। उनकी मां और तीन और महिलाओं का भी रेप किया गया। परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी। इस हमले में 17 में से 14 लोग मारे गए। इनमें 6 का पता नहीं चला। हमले में सिर्फ बिलकिस, एक शख्स और तीन साल का बच्चा ही बचे थे।

CBI की स्पेशल कोर्ट ने सुनाई थी उम्रकैद की सजा
2008 में CBI की स्पेशल कोर्ट ने सभी दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मई 2017 में फैसले को बरकरार रखा था और उन सात लोगों को भी दोषी करार दिया, जिन्हें सबूत न होने की वजह से पहले छोड़ दिया गया था। इस मामले में 5 पुलिसकर्मियों और दो डॉक्टरों को भी लापरवाही का दोषी पाया गया था।

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