हाथरस केस, जिसमें 14 सितंबर 2020 को एक दलित लड़की पर अटैक हुआ, सवर्ण जाति के 4 लड़कों पर गैंगरेप का आरोप लगा, लड़की की मौत हुई, शोर मचा, राहुल-प्रियंका गांधी समेत कई बड़े नेता पीड़ित परिवार से मिले, पीड़ितों को 25 लाख की सरकारी मदद मिली, इसके बाद लंबी शांति।
फिर ढाई साल में 35 गवाही और 70 सुनवाई के बाद 2 मार्च, 2023 को फैसला आया। केस कोर्ट में नहीं टिका। तीन आरोपी रिहा हुए, एक पर गैर इरादतन हत्या का दोष साबित। उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई। रेप या गैंगरेप का आरोप कोर्ट में साबित नहीं हो पाया।
इन दो तारीखों के बीच कई कहानियां हैं, किरदार हैं, परेशानियां हैं, पाबंदियां हैं और 3 सवाल।
पहला सवाल: कोर्ट ने लड़की का मरने से पहले दिया बयान क्यों नहीं माना?
दूसरा सवाल: क्या पीड़ित लड़की के साथ रेप या गैंगरेप हुआ था?
तीसरा सवाल: कोर्ट ने आरोपियों को हत्या के आरोप से क्यों बरी कर दिया?
इन सवालों के साथ मैं हाथरस के चंदपा थाना एरिया में आने वाले बूलगढ़ी गांव पहुंचा। ये गांव दिल्ली से करीब 200 किमी और यूपी की राजधानी लखनऊ से करीब 400 किमी दूर है। मैंने लड़की के परिवार, उनके वकील और आरोपियों के वकील से भी बात की। आरोपी लड़कों के घर गया। यहां जो भी मिला, उसे एक-एक कर बताता हूं।
आरोपियों के घर पर महिलाओं ने ताला लगाया, दूर से बोलीं- किसी से बात नहीं करेंगे
बूलगढ़ी गांव हाथरस से आगरा रोड पर चंदपा थाने से लगभग दो किमी दूर है। गांव में घुसते ही सबसे पहले आरोपियों यानी संदीप, रवि और रामू के घर हैं। यहां अभी उनका परिवार रहता है। सभी घर एक लाइन से बने हैं। इनका एक ही गेट है। उस पर जंजीर लटकी है, जिसमें ताला लगा है। घर के सामने खेत में चंदपा थाने की पुलिस बैठी है। जिला प्रशासन को लग रहा था कि कोर्ट का फैसला आने के बाद माहौल न बिगड़ जाए, इसलिए पुलिस लगाई गई है।
मैंने एक आरोपी के घर आवाज लगाकर किसी को बुलाना चाहा, एक महिला आई और दूर से ही कहा, ‘घर पर कोई नहीं है, और हम बात नहीं करेंगे।’
गांववालों से पता चला कि परिवारवाले मीडिया से नाराज हैं, इसलिए बाहर नहीं आ रहे। काफी इंतजार के बाद भी गेट बंद ही रहा, इसलिए मैं पीड़ित लड़की के घर की ओर चल दिया।
पीड़ित लड़की का घर आरोपियों के घर से सिर्फ 10 कदम दूर
आरोपियों के घर से लगभग 10 कदम की दूरी पर बड़ा सा हाता (दीवारों से घिरा खुला हिस्सा) है। इसी से लगा हुआ है पीड़ित परिवार का घर। हाते में CRPF के जवान तैनात हैं, जिनकी जिम्मेदारी परिवार को सिक्योरिटी देना है।
जवानों ने रजिस्टर में नाम, पता और मोबाइल नंबर दर्ज किया और पीड़ित परिवार को मेरे आने की सूचना भिजवाई। कुछ देर बाद पीड़िता का भाई मुझे लेने बाहर आया। मेटल डिटेक्टर से गुजरने के बाद एक संकरी गली से होते हुए मैं घर के सामने पहुंचा। दाहिने हाथ पर CRPF जवानों ने एक बंकर बनाया हुआ है। बाईं तरफ घूंघट डाले एक महिला भैंसों को चारा खिला रही थी।
घर में बड़ा सा आंगन है। एक हिस्से में बरामदा और उसके बाद कमरे बने हैं। परिवार के लोग लगातार फोन पर बात कर रहे हैं। छत पर भी CRPF ने एक बंकर बना रखा है। मेरे आते ही कुछ जवान बगल से खड़े हो गए। अब पीड़िता के छोटे भाई से मेरी बात शुरू होती है।
मायूसी भरी आवाज में वे कहते हैं, ‘हम इस फैसले से खुश नहीं हैं। फैसला उन लड़कों (आरोपियों) के पक्ष में सुनाया गया है। कोर्ट ने हमारा पक्ष नहीं सुना। हमारी वकील हर तारीख पर आती थीं, जजमेंट में उनका जिक्र तक नहीं है। आरोपी पक्ष के वकील और CBI वकील के आधार पर फैसला दिया गया है। मामले को साधने के लिए सिर्फ एक लड़के को दोषी बताया गया है। हम इसके खिलाफ आगे कोर्ट में अपील करेंगे।’
मैंने पूछा- ‘लेकिन, मेडिकल टेस्ट में तो रेप की पुष्टि नहीं हुई?
भाई ने जवाब दिया- ‘घटना 14 सितंबर को हुई थी, मेडिकल 22 सितंबर को हुआ। ऐसे में कैसे पुष्टि होती। यह तो पुलिस-प्रशासन की लापरवाही रही है। बहन ने जब बयान दिया, तो उसका मेडिकल क्यों नहीं कराया।’
मरने से पहले दिया बयान बदलने की वजह से कोर्ट ने उसे नहीं माना, इस पर भाई ने कहा- ‘जब बहन पूरे होश में थी, तब उसने बयान दिया और चारों आरोपियों का नाम भी लिया। इसके बावजूद उसका बयान नहीं माना गया। अब जो फैसला आया है, वह तो चार्जशीट से हटकर आया है। यह कैसा न्याय है, जहां पीड़ित की कोई बात ही नहीं की गई।’
‘हमें पहले भी डराया गया, आगे भी धमकाएंगे'
लड़की के भाई ने कहा कि ‘इस फैसले के बाद से दबंगों की हिम्मत बढ़ गई है। वे कल को किसी की बहन-बेटी के साथ कुछ भी कर सकते हैं। तीनों लोग छूट गए हैं, अब माहौल खराब करेंगे। डराएंगे, धमकाएंगे। पहले भी हम लोगों को धमकाया था। दिल्ली से आने वाली हमारी वकील को भी डराया गया। शुरू से दबाया है, आगे भी दबाएंगे, क्योंकि उन्हें शह मिल रही है। हम तो आखिरी दम तक लड़ेंगे।’
भाई आगे कहते हैं ‘घटना के बाद मामले को संभालने के लिए सरकार ने हमें मुआवजा दिया था। नौकरी और घर देने का भी वादा किया था, लेकिन घर मिला न नौकरी।’
‘शुरुआत में बहुत नेता आए, फिर किसी ने बात तक नहीं की’
पीड़ित लड़की के भाई बताते हैं- ‘जब घटना हुई थी, तो कई नेता हमारे घर आए थे। फैसले के बाद अब तक किसी ने हमसे बात तक नहीं की है। घटना के वक्त जो सपोर्ट था, वही मिला। मैं तो यही कहूंगा कि जो लोग तब हमारे साथ थे, वे आज भी खड़े हों। गांव के लोग भी हमारे साथ नहीं हैं।’
‘बहन की अस्थियां अब भी घर में रखी हैं, हम पहले भी कहते रहे हैं कि जब तक इंसाफ नहीं मिलेगा, हम अस्थियां विसर्जित नहीं करेंगे। ढाई साल से हम झेल रहे हैं, लेकिन कोई देखने वाला नहीं है। कमाई वगैरह सब बंद है। जो मुआवजा मिला था, उसी से घर और कोर्ट का खर्च चल रहा है।’
गांव में ज्यादातर लोग कुछ बोलने को तैयार नहीं
भाई से बात करने के बाद मैंने पीड़ित लड़की की भाभी या परिवार के दूसरे सदस्यों से बात कराने को कहा, पर उन्होंने बात नहीं की। तब मैं वहां से निकलकर गांव का माहौल जानने निकला। लगभग 100 मीटर दूर गांव में एक परिवार घर के बाहर बैठा था। मैंने उनसे पूछा कि इस मामले में उनका क्या कहना है, वे बोले, कुछ नहीं कहेंगे, आप तो चले जाओगे, हमें यहीं रहना है। हमें क्या जरूरत, इसमें पड़ने की।
थोड़ा सा आगे बढ़ा तो चबूतरे पर कुछ लोग खड़े मिले। इनमें जितेंद्र पचौरी भी थे। उनसे फैसले के बारे में पूछा तो बोले ‘कोर्ट का फैसला एकदम सही आया है। यह पूरे गांव को मालूम था कि लड़की के साथ रेप नहीं हुआ था।’
वहीं कुछ महिलाएं भी थीं, मैं जैसे ही उनकी ओर घूमा, उन्होंने सिर हिला दिया, जिसका मतलब था कि वे बात नहीं करेंगी।
आगे एक मोड़ पर मुझे ओमकार सिंह सिसोदिया मिले। बोले, ‘बिल्कुल सही फैसला आया है। तीन आरोपी जो थे, वे तो निर्दोष ही थे। ये केस कुछ नहीं था। हमारे गांव में दलित-ठाकुर नहीं होता। सबकी बहन बेटियों को एक जैसी इज्जत मिलती है।’
पास ही घर के दरवाजे पर बैठे जितेंद्र कुमार कहते हैं- ‘जो एक लड़का फंसा है, वह गलत फंस गया है, लेकिन ठीक है, वह भी छूट जाएगा। पीड़ित परिवार की सुरक्षा में CRPF लगाकर सरकार ने बहुत अच्छा किया। इससे दंगा फसाद नहीं हो पाया। कुछ नेता आकर दंगा-फसाद करवाना चाह रहे थे। इसमें वह कामयाब नहीं हो सके।’
पीड़ित परिवार की ओर से दिल्ली की वकील सीमा कुशवाहा और महिपाल सिंह निमोत्रा ने केस लड़ा था। दोनों कोर्ट के फैसले से निराश हैं। सीमा कुशवाहा कहती हैं, ‘शुरुआत में पुलिस ने जांच ठीक से नहीं की, इसी वजह से ट्रायल कोर्ट में आरोपी दोषी साबित नहीं हो सके।’ मैंने अपने तीनों सवाल पीड़ित और आरोपी पक्ष के वकील से पूछे, पढ़िए उन्होंने जो कहा…
पहला सवाल- कोर्ट ने लड़की का मरने से पहले दिया बयान क्यों नहीं माना?
पीड़ित पक्ष की ओर से सीमा कुशवाहा कहती हैं, ‘इस मामले में पीड़ित ने कई बार बयान दर्ज करवाया था। मरने से पहले भी बयान दिया था, जिसमें 4 लड़कों पर रेप का आरोप था। अदालत में इसे डाइंग डिक्लेरेशन (मौत से पहले दिया बयान) नहीं माना।'
'पीड़ित की डाइंग डिक्लेरेशन को जिस तरह से शामिल किया जाना चाहिए था, उस तरह से नहीं किया गया। पीड़िता ने इसमें चारों लड़कों के नाम लिए थे। डाइंग डिक्लेरेशन को स्वीकार न किए जाने की वजह से ही अदालत ने गैंगरेप के आरोप को खारिज कर दिया।’
कोर्ट ने इस मामले पर 5 अलग-अलग केस का हवाला देकर अपने फैसले में कहा- ‘जांच में पीड़ित के साथ रेप होना साबित नहीं हुआ है। इसलिए आरोपी रवि, रामू और लवकुश को धारा 376, 376ए, 376डी, 302 और SC-ST एक्ट से आरोप मुक्त किया जाता है। वहीं, मुख्य आरोपी संदीप को धारा 376, 376ए, 376डी से आरोप मुक्त किया जाता है।’
इस मामले पर आरोपी पक्ष के वकील मुन्ना सिंह पुंडीर कहते हैं, ‘14 सितंबर से 22 सितंबर 2020 तक पीड़ित ने कई बार बयान बदले हैं। डाइंग डिक्लेरशन भी संदिग्ध है। जिस कागज पर बयान लिया गया है, उसकी भाषा शैली पर भी शक है। उसकी लिखावट भी शक के दायरे में है। बयान दर्ज करने वाले कोल तहसील के नायब तहसीलदार मनीष कुमार ने भी कोर्ट में कहा कि पीड़िता ने बयान में रेप का जिक्र नहीं किया था।’
दूसरा सवाल: क्या पीड़ित लड़की के साथ रेप या गैंगरेप हुआ था?
पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा कहती हैं, ‘डाइंग डिक्लेरेशन स्वीकार न करने की वजह से ही अदालत ने गैंगरेप के आरोप को खारिज कर दिया। मेडिकल रिपोर्ट और फोरेंसिक रिपोर्ट में ये संकेत मिल रहे थे कि पीड़ित के साथ रेप भी हुआ होगा, पर अदालत ने नहीं माना है कि रेप हुआ है। पीड़ित ने डाइंग डिक्लेरेशन में आरोपियों के नाम लिए हैं, इससे बड़ा सबूत क्या चाहिए। अदालत ने इसे ही स्वीकार नहीं किया है।’
कोर्ट ने इस मामले पर कहा है कि रेप का आरोप साबित नहीं हुआ है, इस वजह से चारों आरोपियों को रेप और गैंगरेप के आरोप से दोषमुक्त किया जाता है।
आरोपी पक्ष के वकील मुन्ना सिंह पुंडीर जजमेंट में अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज के डॉ. एमएफ हुदा, प्रोफेसर एंड चेयरमैन का बयान सामने रखते हैं। वे कहते हैं ‘मान लेते है कि मेडिकल लेट हुआ, लेकिन जब पीड़ित को यूरिन के लिए नली लगाई गई, तब भी रेप की पुष्टि हो जाती।’
इसका जवाब तलाशने के लिए 167 पेज का जजमेंट हमने पढ़ा। उसमें डॉ. एमएफ हुदा ने कहा है, ‘पीड़ित काे 14 सितंबर 2020 काे नली लगाई गई थी। यह सही है कि यूरेथा के जरिए जब नली लगाई गई होगी, तो उसके प्राइवेट पार्ट को देखा गया होगा। उसके बगैर नली लगाना मुमकिन नहीं है। तब प्राइवेट पार्ट में कोई चोट या सेक्शुअल असॉल्ट का कोई निशान नहीं मिला। अगर इस तरह का सेक्शुअल असॉल्ट का कोई लक्षण देखा गया होता, तो निश्चित ही दर्ज किया जाता।’
तीसरा सवाल: आखिर कोर्ट ने हत्या के आरोप से आरोपियों को क्यों बरी कर दिया?
पीड़ित पक्ष के वकील महिपाल सिंह निमोत्रा कहते हैं कि केस में कई सारे परिस्थितिजन्य साक्ष्य थे। इन्हें कोर्ट ने नहीं माना। इस वजह से आरोपियों को कोर्ट ने हत्या के मामले में भी बरी कर दिया। वहीं, सीमा कुशवाहा कहती हैं, ‘CBI ने पर्याप्त सबूत जुटाए थे, लेकिन शुरुआत से ही इस केस में पुलिस की लापरवाही रही। तथ्यों से छेड़छाड़ हुई है। यही वजह है कि इस मामले में पुलिस के खिलाफ भी CBI ने चार्जशीट दाखिल की है। शुरुआत में जांच करने वाले सब-इंस्पेक्टर के खिलाफ CBI ने चार्जशीट दी है।'
कोर्ट ने इस फैसले में कहा है, घटना के 8 दिन बाद तक पीड़ित बात करती रही। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी का मकसद पीड़ित की हत्या का ही रहा था। इसलिये आरोपी संदीप का अपराध धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) की श्रेणी में आता है, न कि धारा 302 (हत्या) के तहत। यही वजह है कि हत्या के आरोप से चारों आरोपियों को बरी कर दिया गया है।
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