महाराष्ट्र के धुलिया जिले के भटाणे गांव के रहने वाले जितेंद्र भोई खेती करते हैं। हाल ही में पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में इनका जिक्र किया था। पीएम ने बताया था कि नए कानून के तहत जितेंद्र को एसडीएम ने व्यापारी के पास फंसी हुई 3 लाख 32 हजार रु की रकम दिलवाई थी। इस काम के लिए जितेंद्र प्रधानमंत्री को धन्यवाद देते हैं। हालांकि MSP नहीं मिलने से उन्हें 2 लाख रु का घाटा भी हुआ है। जितेंद्र दिल्ली में जारी किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।
12 वीं पास जितेंद्र पिछले 10 साल से खेती कर रहे हैं। उन्होंने 15 एकड़ जमीन में मक्का, चना, प्याज और सब्जियां उगाते हैं। वो बताते हैं कि इस साल 340 क्विंटल मक्का की फसल हुई थी। वे 1800 रु. एमएसपी पर उपज बेचने के लिए फेडरेशन के सेंटर पर चक्कर काटते रहे, लेकिन कोटा खत्म होने की बात कहकर अधिकारियों ने खरीदी नहीं की। मजबूरन उन्हें व्यापारी को 1200 रुपए क्विंटल की दर पर फसल बेचनी पड़ी। मक्का 6 लाख का था, व्यापारी ने 3 लाख 25 हजार में सौदा किया। 25 हजार एडवांस देकर व्यापारी चला गया।
जितेंद्र भोई देश के पहले तथा एकमात्र किसान है| एम एस पी की माँग के लिए वे दिल्ली मे चले किसान आंदोलन का समर्थन करते है| विधेयक कहता है, उपज बेचने पर किसान को तीन दिनों ने भुगतान मिलना चाहिये, इन्हे तीन महीने लगे।
वो बताते हैं कि अकेले भटाणे गांव के 400 किसानों को मक्का बेचना था, लेकिन फेडरेशन ने अपने ही पहचान के सिर्फ सौ लोगों का मक्का खरीदा। इस दरम्यान, उनके रिश्तेदार खेतिया मंडी के पूर्व सदस्य रोहिदास सोलंकी के की सलाह के बाद उन्होंने इसकी शिकायत की। जिसको लेकर 30 सितंबर को सुनवाई हुई और व्यापारी को 15 दिन मे भुगतान देने का शपथ पत्र देना पड़ा। दिल्ली से कई अधिकारी इस केस का लगातार फॉलोअप करते रहे। आखिर में जितेंद्र को 3 लाख 25 हजार का भुगतान व्यापारी ने किया। रोहिदास सोलंकी इस केस के कानूनी गवाह है, जिनका कहना है की मंडी के नियमों से यह सुलह बोर्ड गठित किया गया था, केंद्र के इस कानून का उसपर सिर्फ लेबल लगाया गया।
'मन की बात' मे नाम आने के बाद जितेंद्र भाई का फोन काफी बिजी रहने लगा है। उन्हीं के गांव के नत्थू का 3 लाख के पपीते का पैसा राजस्थान के व्यापारी ने नहीं दिया। अब उन्होंने खेती छोड़ दी। गांव के कई किसानों से माल खरीदने के बाद उत्तरप्रदेश के व्यापारी भाग गये हैं। अब ये सभी लोग जितेंद्र को फोन कर रहे हैं और उनसे सलाह मांग रहे हैं। इन किसानों का कहना है कि उनकी उपज का कारोबार मंडी के अंदर हो या बाहर, MSP के तहत ही होनी चाहिए।
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