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ब्लैकबोर्ड:पंचायत के सामने मेरे कुंआरेपन की जांच हुई, लाल धब्बों वाली चादर दिखाई गई; पति बोला दुल्हन खरी है, खरी है, खरी है

पुणे के उपनगर यरवदा की भाटनगर बस्ती सेएक वर्ष पहलेलेखक: मृदुलिका झा
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ब्याह की अगली सुबह पंचायत बैठती है, जहां दूल्हा-दुल्हन भी होते हैं। पंच लड़के से पूछते हैं- रात में तुम्हें जो ‘माल’ मिला, वो खरा निकला, या खोटा? लड़की ‘कुंआरी’ हो, तो नया-नया पति शान से कहेगा- माल खरा था, लेकिन रुकिए! परीक्षा अभी अधूरी है। सोने के खरेपन की भी उतनी कड़ी परख नहीं होती, जितनी कुंआरेपन या वर्जिनिटी की। पंचायत में कुंआरेपन के ऐलान के बाद लोग एक सफेद चादर के इर्द-गिर्द जमा होते हैं। ये वो चादर है, जिस पर दुल्हन रात में सोई थी। इस पर लगा खून का धब्बा तय करता है कि लड़की बेदाग है।

मार्च, 2022! पुणे की खूबसूरत सड़कों से होते हुए यरवदा पहुंचेंगे तो दुनिया बदलने लगेगी। चौड़ी चमकीली सड़कें संवलाने लगती हैं। तने हुए कंधे झुक जाते हैं और गोल होंठ बनाकर अंग्रेजी बोलती जबान से एकदम मराठी झरने लगती है। यरवदा के भीतर छोटी-छोटी कई बस्तियां हैं, हरेक की अलग कहानी है।

ऐसी ही एक कहानी को तलाशते हुए हम पहुंचे भाटनगर! ये वो जगह है, जहां कंजरभाट समुदाय रहता है। कच्ची शराब बनाते इस समुदाय में वैसे तो बेहद खुलापन है, लेकिन शादी के वक्त लड़की अनछुई ही चाहिए। इसके लिए वर्जिनिटी टेस्ट होता है, जिसमें नाकामयाब लड़की सारी उम्र बदचलनी के ताने सुनती है या फिर शादी टूटने का दर्द सहती है।

‘17 साल की थी, जब अपने दूल्हे के साथ मुझे जबर्दस्ती सोना पड़ा। सबने बताया कि ये हर लड़की के साथ होता है, इसी में घर की इज्जत है। मैंने बात मान ली, लेकिन कुछ साल बाद तय कर लिया कि अपनी या दूसरी बेटियों के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी। मैं विरोध करने लगी। सफेद चादर देखने आए लोगों के बीच पहुंचकर बोलने लगी। इससे काम नहीं बना तो पुलिस को कॉल करने लगी।

लोग भड़क गए- सबको लगा कि मैं समाज को गंदा कर दूंगी। अब हमारा पूरा परिवार जात बाहर है। न कोई शादी में बुलाता है, न गमी में।’ ये बताते हुए लगभग 45 बरस की सुमन के चेहरे पर दर्द से ज्यादा गुस्सा था और थी एक जिद कि जो मेरे साथ हुआ, वो किसी दूसरे के साथ न हो।

कच्ची हल्दी के रंग की साड़ी और सुनहरे डायल की घड़ी पहने सुमन इंद्रेकर को देखकर शायद ही कोई अंदाजा लगा सके कि परंपरा के नाम पर उन्होंने वर्जिनिटी टेस्ट झेला होगा। खुलेपन से बोलती-बतियाती सुमन लगभग घंटेभर की बातचीत में कंजरभाट सोसायटी की एक-एक परत उधेड़कर रख देती हैं।

शादी के तुरंत बाद लड़की-लड़के को लॉज या होटल ले जाते हैं। वहां पहुंचते ही सबसे पहले चलता है सर्च अभियान। कमरे की अलमारी-दराजें खोलकर देखा जाता है कि वहां कोई पिन या दूसरी नुकीली चीज तो नहीं। लड़की के सारे गहने उतरवा दिए जाते हैं। बालों से क्लिप निकाल दी जाती है। यहां तक कि हाथ की चूड़ियां भी गिन ली जाती हैं ताकि चूड़ी से जख्म करके लड़की खून न निकाल सके। एक पोटली में ये सारी चीजें जमा की जाती हैं।

अब बिस्तर पर झक सफेद चादर बिछा दी जाती है। चादर कोरी हो, जिस पर कोई दाग न हो। यही सफेदी दुल्हन की परीक्षा लेगी। अब नए दूल्हा-दुल्हन अंदर बंद हैं और घड़ी की सुइयां घूम रही हैं। दरवाजे के बाहर दोनों तरफ के परिवार बैठे होते हैं, जो हर थोड़ी देर में दरवाजा खटखटाकर पूछते हैं- ‘काम हो गया!’ नया जोड़ा संकोच कर रहा हो तो उसे ‘डेमो’ देने का भी रिवाज है, यानी दूसरा जोड़ा उनके सामने संबंध बनाकर दिखाता है कि उन्हें भी इसी तरह करना है। ‘कार्यक्रम’ के बाद सफेद चादर को जस का तस समेटकर रख लिया जाता है। यही वो अमानत है, जो अगले रोज बैठक में पेश की जाएगी।

शाम के धुंधलके में सूखी हुई आंखों के सामने मानो एक-एक दृश्य चल रहा हो, सुमन कुछ इस तरह से बता रही हैं...वर्जिनिटी टेस्ट के बाद सड़क से सटे चौक पर ही पंचायत बैठती है। दुल्हन को सारे गहने पहनाकर लाया जाता है, जहां वो दूल्हे के पास बैठती है। पूरा समाज जमा है। इस बीच कड़कती हुई आवाज आती है- 'कल रात तुम्हें जो माल मिला, वो खरा निकला या खोटा'! अगर दूल्हे को कपड़े पर खून का ताजा धब्बा दिखा हो तो वो लड़की को खरा बताएगा। ये सवाल लगातार 3 बार पूछा जाता है, जिससे सब सुन सकें। बिरादरी वाले। सड़क से गुजरते लोग। शोहदे। गुंडे। हर कोई ये सुनता है कि लड़की बदचलन है या सच्ची।

दुल्हे ने लड़की को खोटी कह दिया तो उसकी शामत आ जाती है। वहीं पर पिटाई होने लगती है। लड़के वाले उसके परिवार को कोसने लगते हैं। बात शादी टूटने तक चली जाती है। कई बार शादियां खत्म हो जाती हैं, तो कई बार कुछ महीने या कुछ साल मायके में रहने की ‘सजा’ के बाद लड़की ससुराल लाई जाती है। रोज बदचलन कहलाने के लिए। उसके किसी से भी हंसने-बोलने पर मनाही रहती है। किसी पुरुष से बात नहीं कर सकती और घर के बाहर तो बिल्कुल नहीं जा सकती। खोटी लड़की सारी उम्र तानों और मारपीट के साथ जीती है।

मैंने बहुत कुछ झेला, लेकिन अपनी बेटी को बचा लिया। हमने रिश्ता तय होने से पहले ही बात कर ली कि उसका वर्जिनिटी टेस्ट नहीं होने देंगे। जिन्हें मंजूर नहीं था, वो रिश्ता ठुकराकर चले गए। जिनको बात जमी, वो आज मेरे जमाई (दामाद) हैं। ये बताते हुए सुमन की आवाज से ज्यादा, उनकी आंखें गर्व की गवाही दे रही थीं।

सुमन समेत कंजरभाट समुदाय के कई परिवार जात-बाहर हो चुके हैं। वजह? वे इंसानियत पर भरोसा करते हैं, और साइंस की भी उन्हें थोड़ी-बहुत समझ है। ऐसी कई महिलाओं से मुलाकात के बीच हमारी नजर एक खास चेहरे पर जा टिकी। पोपले मुंह के साथ खुली हंसी वाली जनाबाई पर।

उम्र पूछने पर वे कहती हैं- नब्बे में 2 जोड़ की हूं। भरे-पूरे परिवार की जनाबाई के पास कोई दर्द नहीं। कच्ची उम्र में शादी हुई। पति लगभग दोगुनी उम्र का, जिसकी दो पत्नियां औलादें छोड़कर मर चुकीं थीं। शादी के बाद एक के बाद एक 12 बच्चे हुए, लेकिन जनाबाई के लिए ये सब तकलीफ नहीं! वे कहती हैं- पति गुजर गए, लेकिन साथ में भरापूरा परिवार है।

जना की मिचमिचाती आंखों में तसल्ली है। लगभग 92 बरस की ये महिला तनकर चलती है और बिना लाठी के सीढ़ियां चढ़ जाती है। किसी बड़े शहर में जन्मी होतीं, तो वे शायद पहलवान होतीं या फिर धावक, जिसके मजबूत पैर दुनिया नापते, लेकिन जना की दुनिया में ये ख्वाहिशें नहीं।

औरतों के जमावड़े से निकल हम भाटनगर की बस्ती में घूमने लगे। ज्यादातर मकान बिना पलस्तर के, जिन पर पक्की छत की बजाय टिन की चादरें डली थीं। तंग ऊंचे घरों में खिड़कियों की बजाय लोहे के जंगले लगे थे। दरवाजों पर पुरानी चादर से बने परदे डोलते हुए। टूटी सड़कें। घरों के आगे महिलाएं बर्तन मांज रही थीं, या फिर कपड़े धो रही थीं। कहीं पर भी तैयार होकर दफ्तर जाती या पढ़ती हुई लड़की नहीं दिखी। उम्मीद की पुड़िया थामे हम आगे बढ़ते हैं। कुछ लोगों से बातचीत भी करते हैं। सबके सब जैसे किसी सम्मोहन से बिंधे हुए कहते हैं- यहां कोई वर्जिनिटी टेस्ट अब नहीं होता। पहले होता था।

कुछ लोग डपटकर भगा देते हैं। कुछ आंखें मिचमिचाकर भाषा न समझने का बहाना करते हैं। फिर हमारी मुलाकात एक ऐसे शख्स से होती है, जो बिना कहे ही सब कह जाता है। करण भाट नाम का अधेड़ शख्स सरपंच का भाई है। कुर्सी पर पैर चढ़ाए हुए हमसे ID कार्ड मांगा जाता है। मैं पर्स टटोलते हुए खो जाने का बहाना करती हूं। मास्क से ढंके चेहरे पर पूरा भोलापन लाकर कहती हूं- दूर से आए हैं। अब आप ही मदद कीजिए! पुरुष-ईगो संतुष्ट होता है।

करण कहते हैं- जैसे आम की पेटी में एक सड़ा हुआ फल सब खराब कर देता है, वही हाल लड़कियों का है। समाज के बड़ों ने अगर ये नियम बनाया, तो सोचकर ही बनाया होगा न! इस बीच उनकी नजर कैमरे पर पड़ती है और उसे बंद करा दिया जाता है। इसके बाद ‘खराब आम बनाम खराब लड़की’ पर प्रवचन की गंगा दोबारा बह निकलती है। पूरे उफान से।

यरवदा की उस बस्ती में हमारे पहुंचने के साथ ही एक लड़की की खुदकुशी की खबर आई। 29 साल की लड़की किसी कंपनी में एचआर मैनेजर थी। डांस भी सिखाती थी। मृतका का जिक्र करते हुए करण फरमाते हैं- ‘माना कि उसके पिता दुख में थे, लेकिन पुलिस में शिकायत नहीं करनी थी। मामला पंचायत में ही सुलझ जाता और फिर आखिर जनाजा तो उसका ससुराल से ही उठेगा!’ हारी और मरी हुई लड़की का जिक्र करते उनके चेहरे पर घुटी हुई मुस्कान है।

हमारे बगल की कुर्सी पर पानी की बोतल रखी है। प्यास से गला सूख रहा है, लेकिन दिल नहीं मानता। बैग संभालते हुए हम चुपचाप उठ जाते हैं।

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