कनाडा के मशहूर पियानोवादक क्रिस्टोफर डॉनिसन ने कहा था- दुनिया को इतने मुल्कों की बजाय दो हिस्सों में बांटकर आराम से समझा जा सकता है, एक, जिनके हाथ बड़े हैं और दूसरे वे लोग, जिनके हाथ छोटे हैं! क्रिस्टोफर परेशान थे कि उनके छोटे हाथ पियानो पर उतनी तेजी से नहीं थिरकते, जितना वे चाहते हैं। संगीत की दुनिया में कई बड़े प्रयोग करने वाले इस पुरुष म्यूजिशियन को शिकायत थी कि उनकी बिरादरी हर चीज अपने हिसाब से बनाती है। पियानो, मोबाइल फोन से लेकर चेयर तक! इसे 'वन साइज फिट्स मेन' कहा जाता है।
ईसा पूर्व पांचवीं सदी में पहली बार चार पायों वाली कुर्सी तैयार हुई। पोलिश आर्किटेक्ट विटोल्ड रिचिंस्की की किताब नाऊ आई सिट मी डाउन (Now I Sit Me Down) में इसका जिक्र मिलता है। कुर्सियों पर रजवाड़ों में पुरुष बैठते थे और तस्वीरों में देवता। कुर्सी पुरुष देह के लिए बनी थी।
नक्काशीदार लकड़ी और धातुओं से बनी कुर्सी का आकार ऐसा था, जिसमें मर्दानी देह तो आसानी से धंस जाती, लेकिन स्त्री देह की कमनीयता के लिए उसमें जगह नहीं थी। स्त्रियां बागों की सैर करें, सरोवर में तैराकी करते हुए राजा को लुभाएं या फिर दासी बनें। कुर्सी का उनके लिए क्या काम! वो तो राजाओं और उनके पुरुष दरबारियों के लिए है।
हजारों सालों में कुर्सी का आकार तो बदल गया, लेकिन मर्दानी सोच की अकड़-फूं कुत्ते की पूंछ जितनी जिद्दी रही। कुर्सी से जनानियों का क्या मतलब! तभी तो दुनियाभर की कमोबेश सारी रौबदार कुर्सियां पुरुषों के पास हैं और अगर किसी मजबूत ओहदे पर कोई स्त्री दिख जाए तो लोग उसे औरत मानने से ही इनकार कर देते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट में हाल ही में ऐसा एक वाकया सामने आया। सुनवाई के दौरान एक महिला जज को सीनियर वकील ने ‘सर’ कह दिया। बार-बार ऐसा होने पर तंग आई जज ने टोका- ‘मैं सर नहीं हूं। उम्मीद है कि आप ये देख सकते हैं’। तिसपर वकील ने तपाक से माफी मांगी। किस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ, वकील ने आगे जोड़ा- ‘आप जिस कुर्सी पर बैठी हैं, उसके कारण मैं ऐसा कह गया’। ये घटना है साल 2022 की। दिल्ली की। और हाईकोर्ट की, जहां बराबरी के लिए जमीन तैयार होती है।
वैसे गलती न तो बेचारी कुर्सी की है, न ही मासूम वकील की। दरअसल मैडम शब्द में वो रुआब ही नहीं, जो भारी-भरकम चेयर के साथ मेल खा सके, वहीं सर शब्द 100 डॉलर के नोट की तरह करारापन लिए हुए है, जेब में लेकर ऐंठ से चलो और चाहे जिस दुकान में घुस जाओ।
भाषा के संसार में औरत की 'औकात' बड़े शहर के इतवारी बाजार जैसी है, सूनी और उजड़ी हुई। खरीदी खत्म हो चुकी। सड़कों पर आइसक्रीम की पन्नियां और कोल्ड ड्रिंक की बोतलें लोट रही हैं। लोग अपने घरों में सुस्ता रहे हैं। दुकानदार शटर गिराने की तैयारी में हैं। ठीक ऐसे ही भाषा में औरतें या तो हैं नहीं, या फिर हैं भी तो हल्के और भद्दे तरीके से।
पिछले साल की बात है, जब ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने औरत के पर्याय ‘बिच’ शब्द को अपने पन्नों से हटाया। बता दें कि डिक्शनरी में बिच और स्त्री समानार्थी थे। इसे हटाने के लिए 30 हजार से ज्यादा महिलाओं ने दरख्वास्त दी। इनमें कई मांएं थीं, जो अपने बच्चों को डिक्शनरी देखना सिखा रही थीं। उनकी परेशानी ये थी कि उनका बच्चा औरत का मतलब बिच समझने लगा।
बहुतेरी प्रेमिकाएं थीं, जिनके भोले प्रेमी डिक्शनरी ट्रेनिंग के चलते प्यार में उन्हें बिच पुकारा करते। औरतें इकट्ठा हुईं और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से भूल सुधार को कहा, तब जाकर प्रेस ने माना कि उससे ‘थोड़ी’ गलती हो गई। गौर कीजिएगा, ये गलती पुरुष के समानार्थी रचते हुए नहीं हुई।
औरत वो रपटीली जमीन है, जिस पर ऑक्सफोर्ड प्रेस जैसों के पांव भी फिसल पड़े।
मैं खुद को एक खुशदिल औरत मानती हूं। घूमने की शौकीन। कहानियां सुनने-सुनाने की शौकीन। मुझसे पूछा जाए तो ये मेरी खूबियां हैं, लेकिन यही बातें अगर मर्दाना आंखों से देखी जाएं तो ये सारे लक्षण चरित्रहीन औरत के हैं। वो सज-धजकर बगीचे की सैर को निकलती है और रास्ते में जितने भी पुरुष टकराएं, किसी के साथ हंसने-बोलने और हमबिस्तर होने से भी उसे परहेज नहीं। घूमने और किस्से सुनने-सुनाने जैसा शौक पालना भला औरत का काम है!
औरत हंसे, लेकिन तोंदुल पति के रोंदुल चुटकुलों पर। सजे, लेकिन पति के लिए। घूमे, जब पति साथ हो। जो कोई भी इस फ्रेम से जरा अलग हुई, चट से उसका नामकरण हो जाता है। औरतों को वेश्या बताने के लिए हमारे पास 500 से ज्यादा शब्द हैं, वहीं पुरुष वेश्या के लिए पूरी दुनिया में केवल 65 शब्द हैं।
चलिए, इस बात में थोड़ा और मसाला डालते हैं। टीवी पर जैसे ही रेप की खबर आए, आंखें ऐसे चौकोर होती हैं मानो कोई खुफिया चुटकुला चल रहा हो। पोर्न की रसीली वादियों का भी यही हाल है। द जर्नल ऑफ सेक्स रिसर्च में छपे एक पेपर 'इज मेनस्ट्रीम पोर्नोग्राफी बिकमिंग इन्क्रीजिंगली वॉयलेंट' के मुताबिक सबसे ज्यादा परफॉर्म वही पोर्न करता है, जिसमें औरत के साथ जबर्दस्ती होती दिख रही हो। यानी 'सॉफ्ट' रेप।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का डेटा बताता है कि कितनी महिलाओं-बच्चियों का रेप हुआ, जबकि बताया ये जाना चाहिए कि कितने मर्दों ने रेप किया। बताया जाता है कि कितनी स्कूली लड़कियों के साथ छेड़खानी हुई, जबकि बताया ये जाना चाहिए कि किन मर्दों की हरकतों ने उन्हें घर बैठा दिया। ये भाषा की वो कबड्डी है, जिसमें औरतें शिकार तो हैं, लेकिन शिकारी का चेहरा हमेशा मुखौटे में रहता है।
कहीं-कहीं ये मुखौटा हटता भी है तो एक मासूम चेहरा दिखता है, जिसने गलती से रेप कर डाला और फिर मासूमियत में ही विक्टिम का मुंह कुचलकर हत्या कर दी। जापानी में यौन हिंसा करने वाले के लिए जो शब्द है, वो दो शब्दों (痴漢 = 痴+漢) से मिलकर बना है, जिसके मायने हैं- मूर्ख मर्द! भाषा के जरिए साबित कर दिया गया कि रेपिस्ट दरअसल अपराधी नहीं, बल्कि बेवकूफी में जुर्म कर जाता है।
भाषा की दुनिया भले पानी पड़े सीमेंट की तरह सख्त हो, लेकिन बदलाव हो रहा है। औरतों के लिए कुर्सियां बन रही हैं- वैसी, जिनमें उनकी देह समा सके। वैसी, जिनपर बैठकर वे पीठ और गर्दन सीधी रख सकें। वैसी कुर्सियां, जो औरत को औरत ही रहने दें- मर्द न दिखाएं। घोंघे की रफ्तार से ही सही, औरतें खोज की दुनिया में घुसकर वो चीजें बना रही हैं, जो कभी पुरुष हाथों के लिए थीं। फिर चाहे वो कुर्सी हो, या फिर पियानो।
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