‘पंद्रह की थी, जब हाईवे पर खड़ी होकर कस्टमर बुलाने शुरू किए। आज सात साल बीते। कभी तबीयत ढीली हो और काम से मना करूं तो मां गुस्सा करती है। बाप मेरी फोटो दिखाकर ग्राहक बुला लाता है और मुझे घर के किनारे वाले कमरे में धकेल देता है। धंधा करना हमारी परंपरा है। पहले मां ने किया, अब मेरी बारी है।’
उदयपुर होते हुए जब हम नीमच पहुंचते हैं तो हाईवे पर इस ‘परंपरा’ के कई इशारे मिलते हैं। देश के किसी भी नेशनल हाईवे से अलग यहां सड़क किनारे ढेरों कच्चे-पक्के मकान हैं। हर मकान के आगे खाट। और हर खाट पर गुलदस्ते की तरह सजी-धजी लड़कियां। दोपहर की कड़ी धूप में भी इन्हें घर की छांव में सुस्ताने की मोहलत नहीं। जैसे ही हाईवे से कोई गाड़ी गुजरेगी, सब की सब मुस्तैद हो जाएंगी। कोई वहीं बैठी हुई तीखे इशारे करती हैं, तो कोई उठकर गाड़ी तक चली आती है।
ये पश्चिमी मध्यप्रदेश का बांछड़ा समुदाय है, जो वेश्यावृत्ति को रीत कहता है। बेटियां सेक्स वर्क से कमाकर लाती हैं, तब घर का चूल्हा जलता है। वे शादी नहीं करतीं। हां, कस्टमर से बच्चे हों, खासकर बेटियां, तो मलाल नहीं करतीं, बल्कि खुशियां मनाती हैं और देह में उभार आते ही उसे भी हाईवे पर खड़ा कर देती हैं। परंपरा के नाम पर कच्ची उम्र की बच्चियों के बाजार में हम कई चेहरों से मिले। हरेक की कहानी गहरे बादल से भी स्याह।
‘पंद्रह या उससे भी कम की उम्र रही होगी, जब पहली बार ये काम किया। मां ने कहा कि इसमें कोई शर्म नहीं, यही होता आया है। तब से यही कर रही हूं। मां-बाप चाहते तो शादी कर देते, लेकिन की नहीं।’ नीली खिड़की पर गहरे नीले रंग का दुपट्टा ओढ़े रजनी धीरे-धीरे बोल रही हैं। जिस कमरे में इंटरव्यू चल रहा है, उसके दरवाजे पर मां खड़ी हैं। बहुत बकझक के बाद भी जाने को राजी नहीं। रजनी जो कह सकेंगी, मुझे उतना ही सुनना है।
बेहद-बेहद खूबसूरत इस लड़की के घर के सामने जब हमारी गाड़ी रुकी, वो मुझे देख नहीं सकी थी और साथ आए शख्स को इशारे से बुलाने लगी। पीछे से मुझे आता देखकर ऊपर उठे हाथ एकदम से नीचे गिर गए। थोड़ी मनुहार के बाद इंटरव्यू के लिए राजी होती है, साथ में पूछती है- आप वीडियो वायरल तो नहीं कर दोगी!
रजनी साफ हिंदी बोलती हैं। घर की अकेली बेटी हैं और अकेली कमानेवाली भी। कहती हैं- अभी जैसे आपने देखा था न, मैं वैसे ही आने-जाने वालों को बुलाती हूं। गाड़ी में औरतें दिख जाएं तो रुक जाती हूं। दिन से लेकर देर रात तक यही करना होता है। कस्टमर आते हैं। मोलभाव होता है। कभी बात बनती है, कभी नहीं भी बनती। कोई साफ-सुथरा आता है, कोई नशे में चूर गंदी डिमांड करता भी आता है। हम किसी को मना नहीं करते।
ये काम छोड़कर कुछ और क्यों नहीं करतीं?
मेरे इस खाए-अघाए सवाल का उतना ही सीधा जवाब आता है- कोई लड़की शौक से ये नहीं करती। छोटी थी, जब मां-बाप ने इसमें डाल दिया। अब वे बूढ़े हो रहे हैं। मां से काम नहीं होता। मैं न पढ़ी-लिखी हूं, न कोई खेत-खलिहान है। ये नहीं, तो क्या करूं!
दुपट्टे को ऊंगलियों से मोड़ती-ऐंठती रजनी मानो खुद से बोल रही हों, ऐसे कहती हैं- मां से कई बार मना भी किया। वो नहीं मानती। पापा गुस्सा करते हैं। कहते हैं कि मुझमें में कौन-सी अलग बात है, जो रिवाज तोड़ने की बात करती हूं। फिर वो खुद जाकर ग्राहक बुला लाते हैं। चाहे मैं सो रही होती हूं, या बीमार रहूं, कोई फर्क नहीं पड़ता।
सजने की शौकीन रजनी के हाथों पर टैटू खुदा हुआ है, लेकिन मेरी नजर उनके बीच दिखती खरोंचों पर है। वे हंसते हुए कहती हैं- गुस्से में एक बार हाथ पर कट मार दिया था, लेकिन कुछ हुआ नहीं। खून रुकते ही काम करना पड़ा।
बेटी हुई तो क्या आप भी उसे इसमें लाएंगी?
वे तेजी से सिर हिलाती हुई कहती हैं- नहीं, कभी नहीं! मुझसे जबर्दस्ती हुई, लेकिन अपनी बेटी के साथ ये नहीं होने दूंगी। उसे इस गंदी लाइन में कभी नहीं लाऊंगी। अपने जीते-जी तो नहीं। सुनते हुए मैं सोच रही हूं, शायद रजनी की मां ने भी यही सोचा हो, लेकिन अब वही बाज-सी दरवाजे पर खड़ी है कि बेटी की जुबान फिसले और वो झपट्टा मार दे।
कमरे से निकलते हैं तो दालान में हाथ से पीसने वाली चक्की नजर आती है। मैं पास जाती हूं तो हंसकर वे कहती हैं- देख लो मैडम, जैसे इसमें दाल पिसती है, वैसे हम लड़कियां भी पिसती हैं! उनकी हंसी नश्तर बनकर भेदती है। हम तेजी से निकल जाते हैं।
हमारा अगला पड़ाव था जेतपुरा गांव। गाड़ी हाईवे पर ही रोककर, हम पैदल थोड़ा भीतर की ओर जाते हैं। जिस घर के सामने रुके, वो मिट्टी और टिन से बना हुआ था। छोटी-बड़ी उम्र के कई बच्चे दिख रहे थे, साथ में थीं एक अम्मा। अपनी बेटी के लिए पूछने पर वे कहती हैं- सुमन तो तालाब गई है। दो-तीन घंटे बाद आएगी। मैं जाने को हूं। तभी भीतर का दरवाजा खुला और उनकी बेटी आई। साथ निकला शख्स तेजी से चला जाता है। अम्मा खिसियाई हुई कहती हैं- अरे, तू घर में थी, मैं देख नहीं सकी!
पीली सलवार-कमीज पहने सुमन खुद को 21 का बताती हैं, लेकिन अपनी उम्र से काफी बड़ी लगती हैं। उनका असल नाम काफी प्यारा-सा है, तारीफ पर खिल उठती हैं और मतलब बताने लगती हैं। इंटरव्यू की कहने पर मुझे उसी अंदर के कमरे में ले जाती हैं, जहां से कुछ मिनट पहले वो निकली थीं।
इस कमरे को साथ वाले रूम से जोड़ने के लिए खिड़की है। एक और खिड़की घर के पिछवाड़े पर खुलती है। दोनों ही इतनी चौड़ी कि अच्छी [डीलडौल वाला आदमी भी आराम से आ-जा सके। पुलिस का छापा पड़ने पर इसी खिड़की से ग्राहक निकल भागते हैं। ये सारी बातें बांछड़ा समुदाय के ही एक युवक ने बाद में मुझे बताईं।
कस्टमर को निबटाकर आई सुमन लगभग हर सवाल का जवाब गोलमोल तरीके से देती हैं। वे कहती हैं- मेरे पति ट्रक ड्राइवर हैं। यही काम करते-करते उनसे मुलाकात हुई। हाईवे से आते-जाते वे मेरे पास रुकने लगे, फिर एक रोज शादी के लिए पूछा। मैंने हां कर दी। अब हमारे पांच बच्चे हैं। मेरी मां भी साथ रहती है। पति ही हमारा सारा खर्चा उठाते हैं। राशन-पानी लाकर रख देते हैं। मैं उस धंधे से निकल चुकी।
बिल्कुल ही छोड़ दिया? मैं कुरेदती हूं।
वे बोलती हैं- ट्रक लेकर जाते हैं तो 10-12 दिन बाद लौटते हैं। कभी कोई कमी पड़ जाती है, कोई जरूरत आ जाती है, तब 'गलती' से हो जाता है। वैसे यहां सब 'फैमिली टाइप' लोग ही हैं।
इसी बीच दूसरा कस्टमर आ जाता है और घर्र-घर्र करते पंखे के बीच पसीने में नहाई सुमन को छोड़कर मैं बाहर निकल आती हूं, जहां उनकी मां पांच बच्चों को संभाल रही हैं। इतनी देर में वे समझ चुकीं कि मैं मीडिया से हूं। बांछड़ाओं की परंपरा का जिक्र छेड़ने पर तपाक से कहती हैं- मेरी तो कोई बेटी ही नहीं (इस बात से अनजान कि अंदर उनकी ही बेटी मुझे कई बातें बता चुकी)! अगर लड़की होती तो क्या हम कच्चे मकान में रहते। तब हमारा भी पक्का घर होता, कूलर-एसी होता।
वैसे भी हमारा मकान सड़क से इतनी दूर है। हाईवे पार करके इतनी दूर भला कौन कस्टमर आएगा- मलाल-भरे लहजे में वे आगे जोड़ती हैं। मैं अपने होमवर्क के बस्ते से सवाल निकालती हूं। सुना है, आपके समुदाय में लड़कों की शादी नहीं हो पाती। क्यों?
शादी कैसे हो! लड़के वालों को लड़की के घरवालों को 10 से 12 लाख रुपए देने होते हैं। इतने पैसे कहां से आएंगे, जब हमारे पास घर-बार ही नहीं। पैसा नहीं है तो कितने ल़ड़के बिना शादी बूढ़े हो रहे हैं।
पैसे क्यों देने होते हैं?
लाडी (बेटी) लेकर आते हैं तो कुछ न कुछ तो चुकाना होगा- अम्मा का तर्क है।
जो वो नहीं कह सकीं, उसका जवाब मुझे इसी समुदाय के एक युवक आकाश चौहान से मिलता है। वे बताते हैं- बांछड़ा कम्युनिटी में लड़की ही कमाती है, फिर चाहे वो सालोंसाल सेक्स वर्क करके कमाए, या फिर शादी करके एक साथ 10-15 लाख रुपए ला दे। इसके बाद मां-बाप का उस पर बस नहीं चलता। हां, पति चाहे तो उसे हाईवे पर खड़ा कर सकता है।
बीते कई सालों से देह व्यापार बंद कराने की मुहिम छेड़े हुए आकाश प्याज की तरह बेरहमी से अपने ही समुदाय की परतें उघेड़ते हैं। वे बताते हैं- मैंने अपने सामने सब कुछ होता देखा। किसी को एड्स से मरते। किसी को बुढ़ापे में छाई गरीबी से मरते। छोटी-छोटी बच्चियों को पूरी उमर की औरतों जैसे अपने ही जिस्म का सौदा करते।
नीमच-मंदसौर से लेकर रतलाम तक हाईवे किनारे 68 गांव हैं, जहां हमारी बस्ती है। वहां 2 हजार से भी ज्यादा नाबालिग लड़कियां सेक्स वर्क में एक्टिव हैं। ये डेटा कहां से मिला? इस पर आकाश कहते हैं, मैंने खुद याचिका दायर कर-करके सब इकट्ठा किया। वकील जुटाने में मुश्किल होती थी तो खुद ही लॉ कर लिया।
पिता बाहर बैठा रहता है और बेटी अंदर कस्टमर के साथ होती है। रात 12 बजे कोई गाड़ी हॉर्न दे तो मां-बाप सोती हुई बच्ची को जगा देते हैं। एक ही मकान में, एक ही छत के नीचे ये सब हो रहा होता है। कई बार घरवाले ही ना-नुकुर करती अपनी बच्ची का रेप करवाते हैं ताकि उसकी 'आदत' हो जाए।
रौ में बताते हुए आकाश कहते हैं- शुक्र है कि मेरी बहन नहीं, वरना शायद मुझे भी बैठकर खाने की बीमारी लग जाती। फिर कुछ सौ रुपयों के लिए मैं भी उसके लिए क्लाइंट लाता, और कमरे के बाहर बैठकर काम पूरा होने का इंतजार करता।
(नोट: रिपोर्ट के लिए हमने नीमच के नेवड, जेतपुरा और चलदू गांव के अलावा मंदसौर का मुरली गांव विजिट किया। जाहिर वजहों से लड़कियों का चेहरा और नाम छिपाया जा रहा है।)
ब्लैकबोर्ड सीरीज की ये तीन कहानियां भी पढ़िए...
1. नब्बे के दशक में कश्मीर में दहशतगर्दी का माहौल था, जब मस्जिदों से एलान हुआ और कश्मीरी पंडितों को चुन-चुनकर मारा जाने लगा। डर के माहौल में अपनी घर-जमीन और भरोसा तक छोड़कर भागे हुए ये पंडित देश के अलग-अलग हिस्सों में बस गए। इनकी बड़ी आबादी दिल्ली की तंग गलियों में भी रहती है। कश्मीर फाइल्स फिल्म के आने पर हमने उनसे बातचीत की और हालात समझने की कोशिश की। (पढ़े पूरी खबर)
2. महाराष्ट्र के बीड जिले में सूखे के कारण गरीबी है। हालात इतने खराब हैं कि वहां की महिलाएं कम उम्र में गर्भाशय निकलवा रही हैं ताकि मजदूरी के दौरान पीरियड्स आने पर उन्हें छुट्टी न लेनी पड़े, या फिर ठेकेदारों के रेप करने पर गर्भ ठहरने का डर न रहे। (पढ़ें पूरी खबर)
3. ऐसे कश्मीरी मुस्लिम की कहानी, जिसके घर में आतंकी घुस आए और रातोंरात सबकुछ बदल गया। बंदूक की नोंक पर आतंकी उनके एक भाई को साथ ले गए। डॉक्टर बनने के सपने बुनता वो बच्चा अब जेल में है। मां गहरे डिप्रेशन में और बाकी सदस्य आतंक के साये में। (पढ़ें पूरी खबर)
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.