भास्कर रिसर्चघरों में रखे पुराने फोन 46 बार लपेट लें धरती:पुराने फोन रिसाइकिल न किए तो 20 साल में नहीं मिलेंगे नए फोन

8 महीने पहले
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आपने नया फोन कब लिया? कंपनियों के नित नए फीचर्स वाले फोन्स की लॉन्चिंग और उतनी ही तेजी से अपडेट होते सॉफ्टवेयर के बीच फोन बदलना अब आम बात है। औसतन 50% भारतीय हर दो साल में फोन बदल लेते हैं। करीब 10% तो हर 6 महीने में फोन बदलते हैं। मगर पुराने फोन रिसाइकिल कितने लोग करते हैं? इसका जवाब आपको चौंका देगा…दुनिया भर में लोगों के अलमारियों में रखे पुराने फोन्स को एक सीध में रखते जाएं तो पूरी पृथ्वी को 46 बार लपेटा जा सकता है।

भारत में तो फोन रिसाइकिल करने वालों की संख्या वैश्विक औसत से भी बहुत कम है। लेकिन पुराने फोन जमा करने की आपकी आदत आपके नए फोन के शौक के लिए खतरा बन सकती है। एक फोन बनाने में कई रेयर अर्थ मेटल्स का इस्तेमाल होता है। इनके भंडार इतने सीमित हैं कि अगर रिसाइकिलिंग के बजाय सिर्फ इनके खनन पर निर्भर रहे तो जल्द ही ये खत्म हो जाएंगे। फोन का टच स्क्रीन बनाने में इस्तेमाल होने वाला इंडियम तो प्राकृतिक तौर पर इतना ही उपलब्ध है कि अगले 20 वर्ष तक फोन स्क्रीन बन पाएं। लोग रिसाइकिलिंग करते क्यों नहीं है? कैसे हम इसमें बदलाव ला सकते हैं और पुराने फोन रिसाइकिल करना क्यों जरूरी है? आपके सभी सवालों के जवाब…

समझिए क्यों जरूरी है फोन को रिसाइकिल करना…आपके पुराने से नए फोन के 80% पार्ट बन सकते हैं

आपके छोटे से मोबाइल फोन में अलग-अलग तरह के बहुत सारे कॉम्पोनेंट्स का इस्तेमाल होता है। इन कॉम्पोनेंट्स में को बनाने में कई तरह के रेयर अर्थ मेटल्स और अन्य धातुओं का इस्तेमाल होता है। अजोक्लीनटेक के मुताबिक एक मोबाइल का 80% हिस्सा नया फोन बनाने में इस्तेमाल हो सकता है। इन रेयर अर्थ मेटल्स और की कई धातुओं का भंडार बहुत सीमित है। फोन के अलावा अन्य चीजें बनाने में भी इनका तेजी से इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में अगर रिसाइकिल नहीं किया गया तो जल्द ही इनके भंडार खत्म हो जाएंगे।

रॉयल सोसाइटी ऑफ केमेस्ट्री से जानिए…चिप से केसिंग तक फोन के कौन से कॉम्पोनेंट्स पर मंडरा रहा है खतरा

अब जानिए, फोन रिसाइकिल न होने का गुणा-भाग

आमतौर पर एक फोन की शेल्फ लाइफ 4-5 साल होती है। इसके बाद फोन की कम्पनी उस पर अपडेट देना बंद कर देती है। लोग इस शेल्फ लाइफ से पहले नया फोन तो ले लेते हैं, मगर पुराना फोन रिसाइकिल नहीं करते।

रिसाइकिलिंग में बाधा…किसी को तरीका नहीं पता तो किसी को डेटा चोरी का डर

ग्वालियर के अनुज शर्मा के पास 6-7 पुराने फोन हैं। वे इनका इस्तेमाल नहीं करते, लेकिन रिसाइकिल कैसे करें उन्हें नहीं पता। वहीं, दिल्ली में रहने वाले विपुल भार्गव के पास भी घर पर 5 फोन रखे हुए हैं। इन पुराने फोन्स का कोई इस्तेमाल नहीं है। विपुल रिसाइकिलिंग के कई ऐसे स्टोर और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जानते हैं जो इन पुराने फोन्स के बदले पैसे भी देंगे, मगर फिर भी वे रिसाइकिल नहीं करते। उन्हें डर है कि इन पुराने फोन्स में मौजूद उनके डेटा का गलत इस्तेमाल हो सकता है।

क्लाउड स्टोरेज से दूर हो सकती है डेटा प्रोटेक्शन की समस्या

दुनिया में क्लाउड स्टोरेज के प्रति रुझान तेजी से बढ़ रहा है। मगर भारत में आज भी लोग फोन की तस्वीरें, वीडियो और अन्य डेटा क्लाउड के बजाय फोन में ही सेव करना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी वजह से ज्यादा स्टोरेज कैपेसिटी वाले या एक्सपैंडेबल मेमोरी वाले फोन ज्यादा लोकप्रिय भी होते हैं। मगर फोन पर डेटा सेव करना सुरक्षित नहीं होता। फोन खराब होने या चोरी होने पर आपका डेटा भी असुरक्षित होता है।

भारत में रिसाइकिलिंग का 95% कारोबार अवैध

पुराने फोन रिसाइकिलिंग के लिए आप किसी भी रजिस्टर्ड फोन शॉप पर दे सकते हैं। मगर भारत में फोन रिसाइकिलिंग का 95% हिस्सा अवैध रूप से चलता है। सरकार ने मोबाइल जैसे ई-वेस्ट की रिसाइकिलिंग को प्रमोट करने के लिए घर-घर आने वाली वेस्ट कलेक्शन की गाड़ी में भी ई-वेस्ट का अलग डिब्बा जोड़ा है। मगर ज्यादातर शहरों में इन कचरा गाड़ियों में जाने वाला सामान्य कचरा ही पूरा रिसाइकिल नहीं होता। ऐसे में लोग फोन की रिसाइकिलिंग के इस माध्यम पर भरोसा नहीं कर पाते।

पुराने फोन इस्तेमाल करते रहना भी खतरनाक

हर फोन से इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक रेडिएशन होता है। फोन कंपनियां नए फोन में इस रेडिएशन के स्तर को नियंत्रित रखती हैं। मगर शेल्फ लाइफ के बाद फोन से रेडिएशन की मात्रा बढ़ जाती है। लंबे समय तक इतने ज्यादा रेडिएशन के प्रभाव से ब्रेन ट्यूमर तक हो सकता है।