हाल ही में भारतीय साइकिल टीम के नेशनल कोच पर एक महिला खिलाड़ी ने गंभीर आरोप लगाया। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) को किए ईमेल में खिलाड़ी ने बताया कि स्लोवाकिया में चल रही ट्रेनिंग के दौरान कोच जबरन उनके कमरे में घुस आया और हमबिस्तरी चाही। इनकार पर करियर बर्बाद करने तक की धमकी दे डाली। डरी हुई खिलाड़ी कॉम्पिटिशन में हिस्सा लिए बिना देश लौट आईं।
कोच की वतन वापसी में करीब हफ्तेभर का वक्त है। कत्ल के बाद सबूतों की सफाई में इससे कम समय लगता है, फिर ये तो यौन शोषण की बात है- वो जुर्म, जहां विक्टिम ही सहमी होती है। कहना न होगा कि इतने दिनों में कई बदलाव हो जाएंगे। हो सकता है, खिलाड़ी चुप्पी साध जाए। या फिर कोच ही पलटवार कर दे। ये भी हो सकता है कि कथित तौर पर ‘बीवी वाली फीलिंग’ की मांग कर रहा कोच दिल बड़ा करते हुए खिलाड़ी से ब्याह रचा ले। तब साइकिल कॉम्पिटिशन छोड़कर युवती घर सजाने और मर्द लुभाने के दिलखुश नुस्खे सीखेगी।
साल 2018 की बात है, जब एक अमेरिकी बच्ची ने कोर्ट रूम में सुबकते हुए बताया- जिमनास्टिक्स के दौरान मेरी रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई। मुझे डॉ लैरी नासार के पास भेजा गया। ठीक होने गई थी, लेकिन ज्यादा बीमार होने लगी। हर विजिट पर डॉक्टर मेरा रेप करते। हर बार मैं अपनी आंखें कसकर मींच लेती, होंठ काटने से खून जमा हो जाता। मैं उल्टी करना चाहती थी, लेकिन चुपचाप बाहर आ जाती। उनका बहुत बड़ा नाम था। मेरे करियर से लेकर मेरे परिवार तक को गायब कर देने लायक।
15 साल की जिमनास्ट के साथ 150 से भी ज्यादा लड़कियों के किस्से गुंथे हुए थे, जिनका इस अमेरिकी स्पोर्ट्स फिजिशियन ने रेप किया। पहली बार जिस लड़की ने ये बात कही, उसे टीम से बाहर भेज दिया गया। धीरे-धीरे लड़कियां इकट्ठा होने लगीं। सुबकियों की आवाज चीख में बदलने लगी, तब जाकर सीरियल रेपिस्ट को 175 सालों की कैद मिली।
इस बीच लगभग 300 लड़कियों ने यूएसए जिमनास्टिक्स को भी घेरा। उनका कहना था कि एसोसिएशन जान-बूझकर लड़कियों को एक औरतखोर डॉक्टर के पास ऐसे भेजती रही, जैसे शेर के पिंजरे में मेमना डाल दिया जाए। सालों की घुटने के बाद आखिरकार लड़कियां बोल पड़ीं। इसके बाद भी लैरी को पद से नहीं हटाया गया, न ही उसे काम पर आने से रोका गया। वो उसी तरह आता और बंद कमरे में लड़कियों का इलाज करता रहा।
रेप की पहली रिपोर्ट के बाद भी एसोसिएशन ने महीनों बात पर परदा डाले रखा। इसपर बात करती खिलाड़ी लड़कियों को हफ्तों की फोर्स्ड लीव पर भेज दिया गया। यहां तक कि जिन लड़कियों ने डॉक्टर पर रेप का आरोप लगाया था, वे पागल या एक्सेसिवली सेंसिटिव कहलाने लगीं, यानी वो लड़की, जो घुटने की जांच करते सीधे-सादे डॉक्टर पर सीना छूने का आरोप लगाए। खूब शोरगुल मचा, तब जाकर करीब 10 महीनों बाद कार्रवाई शुरू हुई।
खेल में बच्चियों के यौन शोषण को लेकर वैसे तो पहले भी बात होती रही, लेकिन वो ऐसी ही थी, जैसे घर खरीदने के सीरियस डिस्कशन के बीच बच्चे के तुतलाने की आवाज। इस बारे में ‘लिटिल गर्ल्स इन प्रिटी बॉक्सेज’ किताब की लेखिका जोआन रायन लिखती हैं- वे लड़कियां हैं। जिमनास्टिक्स में अपनी पकड़ बना चुका पुरुष उन्हें छेड़ता या रेप करता है, तो वे चुप रहेंगी। ये वो बच्चियां हैं, जिनके पेरेंट्स ने उनके खेल के लिए अपना घर गिरवी रख दिया, तब क्या वे रेप नहीं झेल सकतीं!
स्पोर्ट्स में रेप अकेला अपराध नहीं। मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच के एक खुलासे ने साल 2019 में तहलका मचा दिया था, जिसके मुताबिक 1983 से लेकर 2016 तक अकेले जापान में ही 121 एथलीट बच्चों की मौत हुई। दरअसल प्रैक्टिस के दौरान इन बच्चों के साथ अननेचुरल सेक्स भी होता और मारपीट भी। बहुत से बच्चों ने खेल छोड़ दिया, तो बहुतेरों ने खुदकुशी कर ली, जिसका कोई लेखा-जोखा खेल की दुनिया में नहीं। इसके सालभर बाद ही टोक्यो में ओलंपिक का आयोजन हुआ, जिसमें दुनियाभर के मुल्क अपने खिलाड़ियों के साथ आए। बच्चों की मौत के आंसू शैंपेन के झाग में खो गए।
कई बार ये सवाल भी उठता है कि स्पोर्ट्स में अगर इतनी नाइंसाफी है तो सामने क्यों नहीं आती! इसकी वजह खोजने खास दूर नहीं जाना होगा। लंबे समय तक ये माना जाता रहा कि खेलकूद लड़कों का काम है। वे पसीना बहाकर घर लौटेंगे तो मुलायम तौलिया लिए प्रेमिका को दरवाजे पर पाएंगे। औरतें थोड़ा-बहुत स्केटिंग कर लें, या फिर ज्यादा ही दिल चाहे तो पानी में मछली की तरह अठखेलियां कर लें। वे भी खुश, मियां दर्शक भी खुश।
जैसे मर्द संतान को जन्म नहीं दे सकते, वैसे ही औरतें फुटबॉल-जूडो जैसी चीजें नहीं खेल सकतीं। खूब बकझक के बाद औरतें मैदान में आ तो गईं, लेकिन टीवी-अखबार में नहीं आ सकीं। वजह! स्पोर्ट्स पर लिखने-बोलने का हक मर्दों ने उन्हें नहीं दिया। अरे, जिन औरतों को पोलो और गोल्फ में फर्क नहीं पता, वे भला खेल पर क्या लिखेंगी! लिखना है तो प्रेम कहानियां लिखो, या फिर बच्चे पालने के नुस्खे लिख डालो, लेकिन खेल को बख्श दो।
इसी साल जनवरी में जर्मनी में एक रिसर्च आई, जिसके मुताबिक पूरी दुनिया की स्पोर्ट्स रिपोर्टिंग में लड़कियां 10 प्रतिशत से भी कम हैं। साल 2006 से 2020 तक चले शोध के इस खुलासे पर कोई बात नहीं हुई। जरूरत भी नहीं थी! आखिरकार खेलकूद पुरुषों का इलाका है, जहां औरतें जबरन घुस रही हैं। तो बिन बुलाए आकर ठहर जाने वाले मेहमान से जैसा सुलूक होना चाहिए, खेल पर लिखने वाली औरतों के साथ वही हुआ। वे या तो खिलाड़ियों के अफेयर पर लिखने वाली बना दी गईं, या फिर मौका-बेमौका झीने कपड़े पहनकर एंकरिंग करने वाली। ऐसे में स्पोर्ट्स में यौन शोषण पर भला कौन लिखे!
मौसम के बादल में नहाए हरियाते पांव केरल में पड़ चुके। क्या ही बढ़िया हो, अगर ये बारिश जमीनों के साथ-साथ रूहों का बंजरपन भी खत्म कर पाए।
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