'2008 का साल, मार्च का महीना, होली का दिन। मैं अमेरिका में था और छोटा भाई इंदौर में। भाई अपने दोस्तों के साथ होली खेलने गया था, तभी वो हाईटेंशन वायर की चपेट में आ गया और ऑन द स्पॉट उसकी मौत हो गई। घर में मातम पसर गया। मैं अपने भाई को आखिरी बार देख भी नहीं पाया।
अमेरिका में मैं जिस परफ्यूम बिजनेस को चला रहा था, 2014 आते-आते वो मंदी की गिरफ्त में आ गया। मैंने सोचा कि अब यहां इस सेक्टर में कुछ ज्यादा स्कोप नहीं है। अपने देश में ही कुछ करूंगा। जिसके बाद अपनी पत्नी रीमा और फैमिली के साथ मिलकर मैंने चिप्स, स्नैक्स जैसे प्रोडक्ट में पैक किए जाने वाले खिलौनें की मैन्युफैक्चरिंग कंपनी शुरू की।
2019 में 5 मशीनों के साथ हमने खिलौना बनाना शुरू किया था। आज 250 मशीनें और 5,000 लोगों की टीम काम कर रही है। इसमें अधिकांश महिलाएं हैं। 3 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में हर रोज 1.25 करोड़ पीस खिलौनों का प्रोडक्शन हो रहा है। हम 2200 तरह के खिलौनों की मैन्युफैक्चरिंग कर रहे हैं, 3 साल में ही कंपनी का सालाना टर्नओवर 200 करोड़ से अधिक का है।'
दोहपर के एक बज रहे हैं। इंदौर के पालदा इलाके में 'Candy Toy Corporate' के फाउंडर गौरव मिरचंदानी से मेरी बातचीत हो रही है। साथ में उनकी पत्नी रीमा मिरचंदानी खिलौने के पैकेट पर रेट लिख रही हैं।
यहीं पर दर्जनों महिलाएं रंग-बिरंगे छोटे-छोटे खिलौनों की पैकेजिंग कर रही हैं। ये वही खिलौने हैं, जो चिप्स-स्नैक्स जैसे पैकेट में रखे जाते हैं। गौरव कहते हैं कि इस तरह के खिलौनों से स्नैक्स या बच्चों के लिए प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों की डिमांड बढ़ती है।
बच्चे इन खिलौनों को देखकर प्रोडक्ट खरीदना चाहते हैं। वो अट्रैक्ट होते हैं। यह मार्केट की एक स्ट्रैटजी है। उनकी कंपनी हर रोज इस तरह के एक करोड़ से ज्यादा खिलौनें बनाती है।
मशीनों की धीमी आवाज के बीच गौरव मुझे शुरुआती दिनों के बारे में बताते हैं, जब वो इंदौर से 12वीं करने के बाद पढ़ने के लिए अमेरिका गए थे। वो कहते हैं, ‘बचपन से मैं सोचता था कि देश से बाहर जाकर खुद को एक्सफ्लोर करूं। पढ़ने में एवरेज स्टूडेंट था। टीचर कहा करते थे- तुम लाइफ में कुछ नहीं कर पाओगे।
थोड़ी-बहुत तैयारी करने के बाद मेरा एडमिशन अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया में हो गया। मीडिल क्लास फैमिली, गाड़ी वगैरह बेचकर पापा ने किसी तरह से पैसों का अरेंजमेंट किया, लेकिन हॉस्टल और खुद के खर्च के लिए पैसों की जरूरत थी।
मैंने कैंपस जॉब करना शुरू कर दिया। इस दौरान मैंने पार्ट टाइम चर्च में गार्ड की नौकरी की और कार की सफाई करता। पास आउट होने के बाद अमेरिका के ही एक मॉल में मोबाइल बेचने की जॉब करने लगा। इसी दौरान मेरी मुलाकात हैदराबाद के रहने वाले एक परफ्यूम स्टोर ओनर से हुई।
दरअसल, उन्हें इंडिया आना था। उन्होंने अपना स्टोर मुझे चलाने के लिए दे दिया। मैंने 2 महीने में उसकी सेल दोगुनी कर दी। वापस लौटने के बाद उन्होंने खुश होकर मेरे हाथ परफ्यूम स्टोर खरीदने का ऑफर दिया, लेकिन मेरे पास उतने पैसे नहीं थे। एक शर्त पर उन्होंने मुझे परफ्यूम स्टोर दे दिया कि मैं उनके दूसरे स्टोर से परफ्यूम खरीदूंगा। हालांकि ये मार्केट कॉस्ट से ज्यादा था।'
गौरव आगे कहते हैं, 'करीब 5 साल परफ्यूम का बिजनेस किया, लेकिन 2014 आते-आते ऑनलाइन ई-कॉमर्स साइट्स बूम कर चुकी थी। लोगों का आउटलेट्स से प्रोडक्ट खरीदना कम हो गया। मम्मी-पापा घर पर अकेले थे, मैं उन्हें अमेरिका बुला भी नहीं सकता था। तब मुझे लगा कि इंडिया में ही जाकर कोई बिजनेस करूं।’
खिलौना बनाने की कंपनी की शुरुआत को लेकर गौरव एक दिलचस्प वाकया बताते हैं। वो कहते हैं, ‘2015 की बात है। मैं छुट्टियों में घर आया हुआ था। पापा का फूड केमिकल ट्रेडिंग का बिजनेस था। एक रोज मैं उनके साथ इंदौर की एक स्नैक्स बनाने वाली कंपनी की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में गया था। उस वक्त तक इंडिया में चिप्स वगैरह के पैकेट में छोटे-छोटे खिलौने की पैकेजिंग का चलन शुरू हो चुका था।
मैंने जब देखा तो लगा कि इन खिलौनों की मैन्युफैक्चरिंग भी इंडिया में ही हो रही होगी, लेकिन मैं गलत था। पता चला कि ये सारे प्रोडक्ट्स चीन से आते हैं।’
गौरव मुझे अपनी फैक्ट्री दिखा रहे हैं, जहां 250 से ज्यादा मशीनें इंस्टॉल्ड हैं। इसमें छोटे-छोटे खिलौनों की अलग-अलग कैटेगरी की मैन्युफैक्चरिंग चल रही है।
इसमें कैंडी टॉय, डायनासोर टॉय, जंपिंग टॉय, व्हीकल टॉय, शूटिंग टॉय, प्रैंक टॉय, लाइट टॉय, पज़ल टॉय, म्यूजिकल टॉय, स्पिनिंग टॉय और चिपकु टॉय जैसे सैकड़ों खिलौनें दिख रहे हैं।
गौरव कहते हैं, ‘मेरा बैकग्राउंड मार्केटिंग का रहा है। मैंने MBA की पढ़ाई की है। रीमा ने भी फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया है। जब मैंने टॉय इंडस्ट्री शुरू करने के बारे में सोचना शुरू किया, सच बताऊं तो मुझे TOY का T भी नहीं पता था। इसलिए मैंने शुरुआत टॉय की ट्रेडिंग से की।'
गौरव बताते हैं, 'इंदौर की एक कंपनी से पहली बार में ही मुझे 2 करोड़ का ऑर्डर मिल गया। मैंने चीन से खिलौनों को इंपोर्ट करना शुरू किया। ये करीब 3 साल तक चलता रहा।
इसी दौरान केंद्र सरकार ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए 3 साल में हीं खिलौनों पर इंपोर्ट ड्यूटी को 5% से बढ़ाकर 60% कर दिया। इस वजह से प्रोडक्ट को मंगवाना मंहगा हो गया। मार्जिन बहुत कम बच रहा था।
तब मैंने सोचा कि क्यों न खिलौनों की मेकिंग इंडिया में ही की जाए। जिसके बाद मैंने खिलौनों की पूरी मेकिंग प्रोसेस को जानना शुरू किया।'
हमारी बातचीत के बीच ही गौरव के पापा आ जाते हैं। वो अपने फूड केमिकल के बिजनेस के बारे में बताते हैं। कहते हैं, ‘90 के दशक की बात है। मैंने महज 30 हजार रुपए से फूड केमिकल ट्रेडिंग का बिजनेस शुरू किया था।’
गौरव फैक्ट्री की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, 'पहले यह एक छोटे से एरिया में था। 2019 की बात है। मेरी जो भी कमाई थी, वो अमेरिकी परफ्यूम मार्केट में फंसी हुई थी। हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि बड़े पैमाने पर खिलौनें की मैन्युफैक्चरिंग शुरू की जा सके।
मम्मी-पापा का पूरा सपोर्ट था। घरवाले और रिश्तेदारों से करीब 20 लाख रुपए का कर्ज लेना पड़ा। 5 मशीन से मैंने खिलौनें बनाना शुरू किया। शुरुआत में फैमिली के साथ मिलकर प्रोडक्शन से लेकर पैकेजिंग तक का काम संभालता था। बाद में फिर धीरे-धीरे टीम बढ़ती गई। आज हमारी कंपनी के साथ 5 हजार से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं।'
गौरव की आज शाम एक क्लाइंट के साथ मीटिंग है। वो कहते हैं, ‘शुरुआत में हम इंदौर की कुछ स्नैक्स बनाने वाली कंपनियों को ही खिलौनों की सप्लाई कर रहे थे।
फिर धीरे-धीरे अच्छी और यूनिक क्वालिटी के खिलौनों की वजह से हमारे प्रोडक्ट की डिमांड नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर बढ़ने लगी। आलम ये हुआ कि आज बड़ी-बड़ी कंपनियां हमारी क्लाइंट हैं।
जब बच्चों की पसंद के मुताबिक खिलौनों को डिजाइन करना शुरू किया, तो हमारे खिलौनों की मार्केट में डिमांड और बढ़ने लगी।'
गौरव कहते हैं, 'हम खिलौनों की मैन्युफैक्चरिंग में बेहतर क्वालिटी के प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं, ताकि कोई बच्चा यदि इसे मुंह में भी रख ले, तो उसे कोई नुकसान न हो। हालांकि, प्लास्टिक हेल्थ के लिए हार्मफुल है।
आज कोलगेट, ITC, नेस्ले, कैडबरी जैसी बड़ी कंपनियों को हम खिलौनें सप्लाई करते हैं। इंदौर के अलावा दिल्ली और हैदराबाद में भी हमारी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं। खिलौना बनाने में इस्तेमाल होने वाले रॉ मटेरियल को हम इंडिया की टॉप कंपनी से मंगवाते हैं।'
मार्केट स्ट्रैटजी को लेकर गौरव कहते हैं, ' हमने पिछले 5 सालों में होने वाले एक भी एग्जीबिशन को नहीं छोड़ा है। नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर होने वाले सभी एग्जीबिशन में हम पार्टिसिपेट करते हैं। यही वजह है कि आज टॉप नेशनल और मल्टिनेशनल कंपनियां हमारी कस्टमर हैं।
डिमांड इतनी है कि अब हम अपने मैन्युफैक्चरिंग सेटअप को और बढ़ाने का प्लान कर रहे हैं। मेरे ज्यादातर रिश्तेदार हमारी कंपनी के साथ काम कर रहे हैं।'
गौरव की कंपनी में अधिकांश महिलाएं हीं काम करती हुई नजर आ रही हैं। गौरव बताते हैं कि ये सभी महिलाएं आस-पास के गांवों की हैं।
वो कहते हैं, 'हम अम्मा कैंपेन नाम से भी एक प्रोजेक्ट चला रहे हैं। इसके तहत 50-55 साल से ज्यादा उम्र की महिलाएं भी घर पर रहकर खिलौनों को पैक करने का काम करके पैसा कमा रही हैं। खुद में वो सशक्त बन रही हैं। हमारे साथ 5 हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं। जबकि 700 से ज्यादा स्टाफ की टीम वर्क कर रही है।
आज हमारी कंपनी का सालाना टर्नओवर 200 करोड़ का है। इंडिया के अलावा तुर्किये, साउथ अफ्रीका, जापान, साउदी अरब, यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में हम खिलौनों की सप्लाई कर रहे हैं।'
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एक जगह, जो पहली नजर में देखने पर सालों पुरानी किसी खंडहर की तरह दिखाई देती है, लेकिन अंदर जाने पर दर्जनों ब्लू शेड दिखाई देती है और उसमें सुनाई देती है बड़ी-बड़ी मशीनों के चलने की आवाज। किसी शेड में स्टील की सीट को काटकर कटोरी, गमला, लंच बॉक्स जैसे दर्जनों बर्तन की मैन्युफैक्चरिंग हो रही है। (पढ़िए पूरी खबर)
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