जम्मू के राजौरी का अपर डांगरी गांव आजकल शाम होते ही सन्नाटे से घिर जाता है। गांव की पहाड़ी पर एक कमरा बन रहा है। इस कमरे में CRPF के 30 हथियारबंद जवान रहेंगे। इनका काम हिंदुओं पर हो रहे टारगेटेड आतंकी हमलों के दौरान जवाबी कार्रवाई करना होगा। गांव के लोगों ने 20 साल पहले पुलिस से मिली 71 राइफलें निकाल ली हैं, निशाना लगाने की प्रैक्टिस कर रहे हैं।
पहले ये डर नहीं था, लोगों ने 31 दिसंबर को गांव में नए साल का जश्न भी मनाया था। 1 जनवरी 2023 की शाम को गांव में 2 अनजान लोग घुस आए। पूछ-पूछकर हिंदुओं को गोली मारी। लोग बचकर घरों में भागे तो दरवाजों पर ही AK-47 राइफल से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं।
ये सब 15 मिनट चला और 5 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। आतंकी जाते हुए बाल्टी के नीचे एक बम छिपा गए। 2 जनवरी की सुबह 2 बच्चों की इससे मौत हो गई। इन हमलों में 11 लोग घायल हुए। आतंकी अभी भी पहुंच से बाहर हैं। हमले में मारे गए दो लड़कों की मां गुस्से में कहती हैं- ‘उन्हें (आतंकी) पकड़ लाओ, मैं खुद गोली मार दूंगी।’
लोग डरे हुए हैं, हर अनजान शख्स से ID कार्ड मांग रहे
इस हमले को 1 महीना बीत चुका है। डांगरी पहुंचा तो लोग अब भी खौफ में नजर आए। अनजान शख्स को गांव में घूमते देखा तो एक आदमी पास आया और पूछा- आप कौन हो? मैंने कहा, ‘मीडिया से हूं, दिल्ली से आया हूं।’ उसने कहा, ‘ID कार्ड दिखाइए। ऐसे कोई भी मीडिया वाला बोलकर आ जाएगा और रेकी करके चला जाएगा। कल को हम पर फिर अटैक हो सकता है।’
जम्मू से करीब 150 किमी दूर बसा अपर डांगरी गांव 1 जनवरी के बाद से इसी डर में जी रहा है।
20 साल पहले पुलिस से मिली बंदूक से आतंकियों को भगाया
गांव में मेरी मुलाकात बालकृष्ण शर्मा से हुई। बालकृष्ण इकलौते शख्स हैं, जो गोली बरसा रहे आतंकियों से भिड़ गए थे। पुलिस ने साल 1998 से 2001 के बीच गांव वालों को 71 बंदूकें दी थीं। बालकृष्ण ने वही बंदूक निकाली और आतंकियों पर दो फायर कर दिए।
मैंने उनसे पूछा, उस दिन क्या हुआ था? 40 साल के बालकृष्ण बताते हैं- ‘करीब पौने 7 बजे थे, ठंड के मौसम में दिन जल्दी ढल जाता है, अंधेरा हो चुका था। मैं घर के सामने वाले कमरे में बैठा था। तभी फट-फट-फट…. फट..फट.. जैसी कुछ आवाजें आईं। मुझे लगा नया साल है, बच्चे पटाखे फोड़ रहे होंगे। फिर आवाजें बढ़ने लगीं, मुझे कुछ शक हुआ।’
‘मैं बाहर निकला तो देखा गांव के कुछ लड़के दौड़ते हुए मेरी तरफ आ रहे हैं। पास आकर बोले कि हमला हो गया.. हमला हो गया..। मैं सीधा अंदर गया और बंदूक निकाल ली। कारतूस लोड किया और जिधर फायरिंग हो रही थी, उधर 2 गोली चला दीं। फायरिंग बंद हो गई। शायद आतंकियों को लगा कि फोर्स आ गई, इसलिए वे भाग गए।’
मैंने पूछा, आपके पास ये बंदूक कहां से आई? बालकृष्ण बोले- ‘20 साल पहले पुलिस ने दी थी। तब आतंकियों को रोकने के लिए विलेज डिफेंस कमेटी बनी थी। कई लोगों के साथ मुझे भी एक बंदूक मिली। अब कमेटी की मीटिंग तक नहीं होती। बुरा वक्त आने पर बंदूकें चलेंगी या नहीं, इसका कोई भरोसा नहीं।’
गांव में 30% मुस्लिम घर, लेकिन सिर्फ हिंदू घरों पर हमला
डांगरी गांव में हुआ कत्लेआम बीते कुछ साल में जम्मू में सबसे बड़ा टारगेटेड आतंकी हमला है। पुलिस और NIA की जांच में सामने आया है कि आतंकियों ने तीन घरों की रेकी की हुई थी। आतंकी टारगेट तक आए और AK-47 से अंधाधुंध फायरिंग कर दी। गांव में करीब 30% घर मुस्लिमों के भी हैं, लेकिन आतंकियों का टारगेट सिर्फ हिंदुओं के घर थे।
आतंकियों ने एक घर में दो भाइयों 23 साल के दीपक और 21 साल के प्रिंस शर्मा को गोली मारी और जाते-जाते बाहर चबूतरे के पास IED भी प्लांट कर गए। इसके बाद बगल के घर में गए, वहां प्रीतम और उनके बेटे को गोली मारी। पड़ोस में घर के बाहर खड़े सतीश ने आतंकियों को गोली चलाते देखा। सतीश के साथ पत्नी, बेटी आरुषि और बेटा शुभ भी थे।
सतीश की पत्नी बताती हैं, 'हमारे घर के बाहर बल्ब जल रहा था, इसलिए शायद आतंकियों ने हमें देख लिया। आतंकी भागते हुए हमारी तरफ आ रहे थे। घर का बाहरी दरवाजा लोहे का है। हम अंदर की तरफ भागे और दरवाजा बंद करने लगे, लेकिन आतंकी खेत के रास्ते से घर के ठीक सामने आ गए।'
'आतंकियों ने गेट बंद कर रहे मेरे पति पर गोलियां चला दीं। 15-20 गोलियां लोहे के दरवाजे को पार कर मेरे पति को लगीं। मैं, बेटा और बेटी भी जख्मी हो गए। पति नहीं रहे और हम तीनों का भी अभी तक इलाज चल रहा है। बेटे की हालत ज्यादा खराब है। आप देखिए, गेट पार कर गोलियां के निशान अंदर दीवारों, सीढ़ियों और टंकियों पर बन गए हैं।’
आतंकी, जो IED प्रिंस और दीपक के घर के बाहर लगाकर गए थे, उसमें 2 जनवरी को सुबह करीब 10 बजकर 5 मिनट पर ब्लास्ट हुआ। इस धमाके में 4 साल के विहान शर्मा और 15 साल की समीक्षा शर्मा की मौत हो गई। दोनों प्रिंस और दीपक के मामा के बच्चे थे।
‘भतीजे को गोली लगने की खबर मिली थी, वहां तो लाशों का ढेर लगा था’
हमले में मारे गए दीपक और प्रिंस के चाचा 27 साल के नवनीत शर्मा बताते हैं- ‘मैं उस दिन जम्मू से डांगरी लौटा था। घर लौटे 10 मिनट ही हुए थे कि पटाखे चलने जैसी आवाजें सुनाई देने लगीं। तभी पापा का फोन आया कि ऊपर वाली साइड मत आना, यहां फायरिंग हो रही है। उन्होंने बताया कि मेरे एक भतीजे को गोली लग गई है।’
उनका फोन कटा तो दोस्त का फोन आया कि ‘जल्दी से गाड़ी लेकर ऊपर आ जाओ, दीपक और प्रिंस को गोली लगी है। मैं पहुंचा तो देखा कि एक के बाद एक लाशें आती जा रही थीं… प्रीतम, शिशुपाल, सतीश मारे गए, उनकी पत्नी और बच्चे बुरी तरह घायल थे।’
हमले में शामिल होने के शक में पुलिस मुस्लिम लड़कों को उठा ले गई
नवनीत कहते हैं कि ‘हम देख रहे हैं कि कश्मीर में धर्म के आधार पर आतंकी टारगेट किलिंग कर रहे हैं। अब तक एक-दो लोगों को टारगेट किया जाता था, लेकिन अब आतंकियों के हौसले बढ़ गए हैं। पुलिस कुछ मुस्लिम लड़कों को उठाकर ले गई है, उन पर हमले में शामिल होने का शक है।'
पुलिस ने इस हमले के बाद 18 लोगों को हिरासत में लिया था, जिनमें कुछ महिलाएं भी शामिल थीं।
नवनीत से मिलकर मैं गांव की पहाड़ी पर मुस्लिम बस्ती में जाता हूं। यहां रहने वाले मुस्लिम गुज्जर समुदाय के हैं। ये आमतौर पर मवेशियों का काम करते हैं। गांव में आतंकी हमले के बाद ये लोग भी डरे हुए हैं। कैमरे पर आना नहीं चाहते थे, लेकिन कहते हैं- ‘कुछ मुस्लिम लड़कों से पूछताछ हुई है। गांव में हमला हमारे लिए भी सदमा है। किसने किया, कैसे किया ये पुलिस को पता लगाना चाहिए। शक है तो हमारे फोन रिकॉर्ड चेक कर लें, कोई सबूत नहीं मिलेगा, क्योंकि अपने गांव पर कौन हमला कराएगा। हमें भी तो यहीं सभी के साथ रहना है।’
‘आतंकियों को गोली मारूंगी, तभी न्याय होगा’
हमले में मारे गए प्रिंस और दीपक सरोजबाला के बेटे थे। उनका घर गांव के बाहरी तरफ बना है। आसपास खेत हैं और सामने से सड़क निकलती है। आतंकी इसी रास्ते से आए, दोनों भाइयों को मारा और भाग गए। इसी घर के बाहर IED भी छुपाया गया था, जिसमें अगले दिन धमाका हुआ। दीवारों पर आज भी ब्लास्ट के निशान मौजूद हैं।
हमले की अगली सुबह परिवार के लोग दीपक और प्रिंस की डेडबॉडी लेने हॉस्पिटल गए थे। पड़ोस में ही सरोज बाला के भाई रहते हैं। उनके बच्चे विहान और समीक्षा सरोजबाला के यहां आए थे। चबूतरे के पास खेलते हुए विहान ने कोने में रखी बाल्टी उठाई। इसके बाद तेज धमाका हुआ। विहान और वहीं खड़ी समीक्षा की इसमें मौत हो गई।
सरोज बाला कहती हैं कि 'आतंकियों ने सोच-समझकर यहां बम फिट किया था। मैं बेटों की लाश घर लाती तो यहीं चबूतरे के पास गमी में शामिल होने के लिए आई भीड़ होती और अगर भीड़ के बीच ब्लास्ट होता तो और लोगों की भी जान जाती।'
मैं सवाल करता हूं तो सरोजबाला नाराजगी से कहती हैं- ‘न्याय तो तब होगा, जब उन आतंकियों को पकड़ा जाए और मेरे सामने लाया जाए। मैं उन्हें उसी तरह गोलियां मारूंगी, जिस तरह उन्होंने मेरे बेटों को मारी थीं।’
मैंने पूछा कि आपने आतंकियों को देखा था? तो बोलीं- ‘2 लोग थे, चेहरे पर नकाब था। दोनों ने वर्दी पहनी हुई थी। पैर में जूते थे। वे फौज के जवानों की तरह लग रहे थे। हुलिया मुझे ठीक से नहीं दिखा।'
सरोजबाला उस दिन के बारे में और बात नहीं करना चाहती, मैं उन्हें अकेला छोड़कर आगे बढ़ जाता हूं। घर के बाहर मेरी मुलाकात गांव के सरपंच धीरज शर्मा से हुई।
धीरज बताते हैं- ‘हमने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का सबसे भयानक दौर भी देखा है, लेकिन आज तक गांव में इस तरह की कोई वारदात नहीं हुई थी। अब गांव में CRPF के 30 जवान तैनात रहेंगे। ऊपर पहाड़ी पर उनके लिए 50x20 का एक कमरा बनवा रहे हैं।’
‘पाकिस्तान से आकर यहां बसे थे, पाकिस्तान आज भी पीछा नहीं छोड़ रहा’
धीरज शर्मा आगे कहते हैं, ‘यह गांव बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों से बसा है। हमारा परिवार 1947 से पहले मीरपुर जिले में रहता था। यह जगह अभी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है। हमारे पूर्वज यहां आकर बसे थे, फिर सब जीरो से शुरू किया, पर देखिए पाकिस्तान आज भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा।’
‘जम्मू में इस तरह की घटना होगी, किसी ने सोचा भी नहीं था। कश्मीर में आतंकवाद फैला था, तब हमारे गांव में पुलिस ने लोगों को हथियार दिए थे, लेकिन तब भी इस तरह का हमला नहीं हुआ था। हमले के बाद पुलिस और हेल्थ डिपार्टमेंट की दो बड़ी कमियां सामने आईं। पुलिस ने हमले वाली जगह ठीक से चेक नहीं किया और हेल्थ डिपार्टमेंट ने घायलों को ठीक से हैंडल नहीं किया।’
इस आरोप पर गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुपरिन्टेंडेंट डॉ. महमूद कहते हैं, 'हर हादसे के बाद जब ऐसी स्थिति बनती है तो परिवार और गांव वाले मेडिकल स्टाफ से संतुष्ट नहीं रहते। हादसे के वक्त मैं और मेरा पूरा स्टाफ ड्यूटी पर था, हमने पूरी मुस्तैदी से घायलों का इलाज किया। बाद में कुछ लोगों को जम्मू के लिए भी रेफर किया गया।'
हमलावरों की तलाश जारी, हमले की वजह भी नहीं पता
पुलिस और सुरक्षाबलों की सबसे बड़ी चूक रही कि अटैक के बाद भी उन्होंने मौका-ए-वारदात को सैनिटाइज नहीं किया। सैनिटाइजेशन मतलब उस जगह को बॉम्ब डिटेक्टर से चेक करना, ताकि पता चल जाए कि आतंकी बम प्लांट करके तो नहीं गए हैं। मामले की जांच अब नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) कर रही है। हालांकि सुरक्षाबलों के पास आतंकियों का कोई ठोस सुराग नहीं है कि हमला किसने किया और क्यों किया?
फिलहाल NIA जम्मू-कश्मीर पुलिस की मदद से ही जांच आगे बढ़ा रही है। राजौरी के SSP मोहम्मद असलम बताते हैं, ‘हमने जो भी जांच की थी, उसकी डिटेल्स NIA के साथ शेयर कर दी हैं। हमारा इंटेलिजेंस सिस्टम भी NIA के साथ काम कर रहा है, जिससे केस को जल्द से जल्द सॉल्व किया जा सके। शुरुआती जांच में पता चला है कि हमले में लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े पाकिस्तानी मूल के दो आतंकी शामिल थे।’
पुलिस का मानना है कि दोनों आतंकी डेढ़ महीने पहले ही घुसपैठ करके भारत में घुसे हैं। हमले के कुछ घंटे बाद आतंकियों का मूवमेंट देखते हुए इलाके की घेराबंदी कर सर्च ऑपरेशन चलाया गया। आतंकियों की जानकारी देने वालों को 10 लाख रुपए इनाम देने का ऐलान किया गया है।
जम्मू में पहली बार ऐसा हमला
वारदात में किसी गांव वाले की मिलीभगत तो नहीं है? इस सवाल पर SSP मोहम्मद असलम ने बताया- ‘हम कुछ लड़कों की पहचान कर उनके मोबाइल डेटा की पड़ताल कर रहे हैं। जिस भी तरीके से जांच आगे बढ़ सकती है, हम उनकी मदद ले रहे हैं।’
‘राजौरी में पहली बार हिंदुओं की टारगेटेड किलिंग हुई है। इसलिए अब तक कोई मॉडस ऑपरेंडी खोजना मुश्किल है, लेकिन जिस तरह खास समुदाय के लोगों की पहचान कर उन पर हमला किया गया, ये टारगेटेड किलिंग ही है। हमने भी इसी नजरिए से जांच की है।
एक चश्मदीद ने बताया कि आतंकियों ने आधार कार्ड देखा और उसके बाद गोलियां मारीं। आतंकियों ने AK-47 से अंधाधुंध फायर किए, जो सामने आया उसे गोली मारी, घरों के दरवाजों पर फायरिंग की।’ फिलहाल पुलिस की हिरासत में गांव का तौफीक नाम का लड़का है।
पुलिस ने मौके पर पहुंचते ही सबसे पहले सैनिटाइजेशन क्यों नहीं किया?
इसके जवाब में SSP कहते हैं- ‘आम तौर पर एनकाउंटर साइट पर ऑपरेशन खत्म होने के बाद सैनिटाइजेशन किया जाता है, लेकिन ये जम्मू रीजन में इस तरह की पहली वारदात थी। ये बात सही है कि हमें सैनिटाइजेशन करना चाहिए था, लेकिन जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ CRPF और आर्मी की टीमें भी मौके पर मौजूद थीं।’
अंधाधुंध फायरिंग और IED छिपाना, ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना चाहते थे
जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व DGP एसपी वैद्य कहते हैं, ‘डांगरी में हुए हमले में आम नागरिकों को मारा गया है। इसमें कोई शक नहीं है कि इसके पीछे पाकिस्तान का डीप स्टेट है। अंधाधुंध फायरिंग करके टारगेट किलिंग और फिर IED ब्लास्ट से साफ पता चलता है कि आतंकी ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना चाहते थे। अगर VDC मेंबर फायरिंग नहीं करता, तो और ज्यादा लोगों को मार सकते थे।’
आतंकी हमले की चार बड़ी वजहें:
जम्मू-कश्मीर में परफ्यूम IED बरामद, 13 दिन पहले हुए ब्लास्ट में हुआ था इस्तेमाल
जम्मू-कश्मीर में पहली बार परफ्यूम IED का पता चला है। 13 दिन पहले 21 जनवरी को नारवाल में 20 मिनट के अंदर हुए दो धमाकों में इसी तरह के बम का इस्तेमाल किया गया था। जम्मू-कश्मीर के DGP दिलबाग सिंह ने बताया कि ये बम परफ्यूम की बोतल की तरह ही होता है। अगर कोई इसे दबाने या खोलने की कोशिश करते ही ब्लास्ट हो जाता है।
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