संडे जज्बातदिनदहाड़े भाई का मर्डर, अंतिम संस्कार में पंडित नहीं आए:डिप्रेशन में मम्मी-पापा की मौत, ना मेरी शादी हुई ना बहन की

5 महीने पहलेलेखक: अनुराधा भालिगा
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दिन दहाड़े इकलौते भैया की हत्या। उनके गम में मम्मी-पापा दोनों की मौत। अब घर में मैं और छोटी बहन है। दोनों की शादी की उम्र निकल गई है। रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया है। पड़ोस के लोग अछूत समझते हैं। मम्मी-पापा का अंतिम संस्कार हम दोनों बहनों को ही करना पड़ा। कोई पंडित नहीं आया। सात साल से कभी थाना तो कभी कोर्ट का चक्कर काट रही हूं, लेकिन अब तक इंसाफ नहीं मिला।

मैं अनुराधा भालिगा। अपनी बहन हर्षा के साथ मंगलुरु के कोडियाल बेल इलाके में रहती हूं। बड़ी सी हवेली है, लेकिन उसमें रहने वाले बस दो लोग। बाहर से देखने पर लगता है कि यहां कोई अमीर रहता होगा, लेकिन हमारा हाल ऐसा है कि भाई के इंसाफ के लिए वकील हायर करने के भी रुपए नहीं हैं।

हमारा हंसता-खेलता परिवार था। पापा तेंदुपत्ता का बिजनेस करते थे। वे अक्सर घर से बाहर ही रहते थे। सात-आठ महीने में कुछ दिनों के लिए घर आते थे। हमारी उनसे शिकायत भी रहती थी कि आप हमें टाइम नहीं देते। कहीं घुमाने नहीं ले जाते।

मां ही हमारी देखभाल करती थी। सुबह-सुबह उठकर टिफिन बनाती थी। स्कूल से आने के बाद होम वर्क कराती थीं। इसी तरह दिन बीतते गए।

पापा, मम्मी और भैया की तस्वीर। हर दिन इनकी तस्वीरें देखते ही गुजर जाता है। इनकी तस्वीरों के सिवा हमारे पास कुछ है भी नहीं।
पापा, मम्मी और भैया की तस्वीर। हर दिन इनकी तस्वीरें देखते ही गुजर जाता है। इनकी तस्वीरों के सिवा हमारे पास कुछ है भी नहीं।

दिवाली पर मां के साथ मिलकर बांस के पत्तों से घर सजाते। पकवान बनाते। गणेश चतुर्थी पर घर में गणेशजी बिठाते। मां मोदक बनातीं। सालोंभर कोई ना कोई उत्सव चलते ही रहता। मम्मी-पापा, चार बहनें और एक भैया विनायक। इतनी ही दुनिया थी हमारी।

भैया मुझसे पांच साल बड़े थे। हमारे लिए हर चीज लाकर देते थे। कभी किसी चीज का प्रेशर नहीं बनाते थे। हमारे कहीं बाहर आने-जाने पर रोक नहीं थी, लेकिन उनकी जानकारी में हर बात रहती थी कि हम कहां जा रहे हैं, किससे मिलने जा रहे हैं, हमारी सहेली कौन कौन है।

हम रात में फिल्म देखने जाते थे, तो वे बाहर रिसीव करने के लिए खड़े रहते थे। उनके साथ चलने से हिम्मत मिलती थी। किसी को तू कहने की भी हिम्मत नहीं थी। आज तो गली में कोई शोर भी मचाता है तो जान दुबक जाती है। कोई जबरन घर में घुस आया तो हमारा क्या होगा। किसको आवाज देंगे हम। कौन हमें बचाएगा।

भैया पढ़ने में बहुत अच्छे नहीं थे, लेकिन सोशल वर्क में उनकी काफी दिलचस्पी थी। स्कूल के दिनों से ही वे लोगों की मदद करते थे। आस-पास किसी का भी कोई काम हो, वे मदद के लिए तैयार रहते थे।

भैया हमेशा कहते थे कि कोई भी मदद के लिए आए तो उसे मना नहीं करना चाहिए। वे सामाजिक कामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे, इसी वजह से उनसे कई लोग जलते थे।
भैया हमेशा कहते थे कि कोई भी मदद के लिए आए तो उसे मना नहीं करना चाहिए। वे सामाजिक कामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे, इसी वजह से उनसे कई लोग जलते थे।

इंजीनियरिंग करने के बाद उनकी जॉब लग रही थी, लेकिन उन्होंने खुद का इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रैक्टर का काम शुरू किया। कुछ दिन काम करने के बाद वे कहने लगे कि इसमें फायदा नहीं हो रहा। मुझे कोई दूसरा काम शुरू करना चाहिए।

मैंने कहा कि आप किसी चीज की टेंशन नहीं लो, जो आपको ठीक लगे वहीं करो। इसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रिकल कंसल्टेंसी का काम शुरू किया। ये काम अच्छा चलने लगा था।

उधर पापा परेशान रहते थे कि इतनी लड़कियों की शादी कैसे होगी। उनकी उम्र ज्यादा है और घर में काम करने वाले अकेले भैया ही हैं। पर भैया ने पापा से कहा कि आप परेशान नहीं होइए, मैं सब संभाल लूंगा।

भैया ने दोनों बहनों की शादी का सारा खर्च और मैनेजमेंट सब कुछ संभाला। किसी भी चीज की कमी नहीं हुई।

भैया कहते थे कि तुम दोनों बहनों की शादी और धूम-धाम से करूंगा। अक्सर रात में वे मुझे उठा देते थे। बातें करने लगते थे। अगर कोई त्योहार हो तो उसकी प्लानिंग करने लगते थे। हर दिन का हिसाब-किताब वे डायरी में मेंटेन करते थे।

ये मेरी छोटी बहन हर्षा है। हम दोनों बहनें अपनी उम्र से ज्यादा की दिखती हैं। वक्त और हालात ने हमें ऐसा बना दिया है।
ये मेरी छोटी बहन हर्षा है। हम दोनों बहनें अपनी उम्र से ज्यादा की दिखती हैं। वक्त और हालात ने हमें ऐसा बना दिया है।

भैया सुबह पांच बजे उठते थे। नहा-धोकर सबसे पहले मंदिर जाते थे, उसके बाद ही कोई काम करते थे। एक दिन भी मंदिर जाना वे मिस नहीं करते थे। एक दिन भैया को पता लगा कि मंदिर के रेनोवेशन में जो पैसा खर्च हो रहा है, उसमें कुछ धांधली हो रही है। इसको लेकर उन्होंने आरटीआई फाइल की।

बस यहीं से कुछ लोग उनकी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ गए।

25 मार्च 2016 को मम्मी-पापा दोनों का जन्मदिन था। मम्मी 80 साल की और पापा 85 साल के होने जा रहे थे। हमने सोचा कि इस बार बहुत ही शानदार तरीके से दोनों का जन्मदिन मनाएंगे। सबको बुलाएंगे। बड़ी पार्टी करेंगे।

भैया देर रात घर आते थे। डिनर के बाद मैं उनके साथ बैठकर मम्मी-पापा के जन्मदिन की प्लानिंग करती थी। जैसे कि कौन-कौन पार्टी में आएंगे। क्या-क्या मेन्यू होगा। कितना खर्चा होगा। एक-एक चीज भैया अपनी डायरी में लिखते थे।

इसी बीच एक मनहूस तारीख आई। 21 मार्च 2016, सुबह के 5 बज रहे होंगे। मैं किचन में चाय बना रही थी। भैया नहा-धोकर मंदिर जाने के लिए घर से निकले ही थे कि जोर-जोर से आवाज आने लगी।

अन्नू, अन्नू… कोई विनायक को मार रहा है। मैं नंगे पांव दौड़ते-भागते बाहर निकली। सामने गली में भैया स्कूटी पर दीवार के सहारे बैठे थे। उनके सिर से खून बह रहा था। मैंने कई बार-आवाज दी, लेकिन उनके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई।

मैं चीखने लगी कि कोई एम्बुलेंस बुलाओ, मेरे भाई को बचाओ। थोड़ी देर बाद पापा-मम्मी आ गए। पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए। हम फौरन भैया को लेकर अस्पताल पहुंचे। वहां डॉक्टर ने 10 मिनट में डिक्लेयर कर दिया कि इनकी मौत हो चुकी है।

हमारे ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। इकलौता भाई चला गया। वहीं घर का सारा काम देखता था। कमाई का सोर्स भी वहीं था। सिंगल हैंड सब काम संभाल लेता था। अब परिवार की जिम्मेदारी हम दो बहनों पर आ गई।

पहले पुलिस ने कई दिन थाने के चक्कर कटवाए। फिर अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर लिखी, लेकिन कार्रवाई नहीं की। 6 साल बाद इस साल ट्रायल शुरू हुआ है, वो भी बार-बार सरकार से गुहार लगाने के बाद।

भैया के जाने के बाद पापा डिप्रेशन में चले गए। मां ने खाना-पीना छोड़ दिया। गुमसुम रहने लगीं। भैया को डोसा बहुत पसंद था। उनके जाने के बाद मां ने हमें कभी डोसा नहीं बनाने दिया। आज भी हम डोसा नहीं बनाते।

कुछ दिनों बाद मम्मी की तबीयत बिगड़ने लगी। एक दिन अचानक उनसे सिर में तेज दर्द हुआ। हम उन्हें अस्पताल ले गए, लेकिन वे नहीं बचीं। डॉक्टर ने बताया कि ब्रेन हैमरेज से उनकी जान चली गई।

इधर पापा की तबीयत भी दिन-पर-दिन बिगड़ती जा रही थी। वे किसी से बातचीत नहीं करते थे। पहले भैया और फिर मां के जाने का उन्हें गहरा सदमा लगा था।

कुछ महीने बाद पापा का साथ भी छूट गया। जिस दिन पापा की मौत हुई, अंतिम संस्कार के लिए कोई पंडित घर नहीं आया। आसपास का कोई उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुआ। मामा के साथ मिलकर हम दोनों बहनों ने उनका अंतिम संस्कार किया।

घर की सफाई करना, खाना बनाना और फिर सो जाना। हम दोनों बहनों की वीरान जिंदगी इससे आगे नहीं बढ़ रही।
घर की सफाई करना, खाना बनाना और फिर सो जाना। हम दोनों बहनों की वीरान जिंदगी इससे आगे नहीं बढ़ रही।

पापा के जाने के बाद दोनों बहनें अनाथ हो गईं। रिश्तेदारों ने घर आना छोड़ दिया। उन्हें लगता था कि वे हमारा साथ देंगे तो पुलिस केस में फंस जाएंगे। कुछ करीबी लोगों ने साथ भी दिया तो पीछे से, कभी सामने आकर नहीं।

मुझे समझ नहीं आता कि हमारी क्या गलती है। हमने क्या बिगाड़ा है। लोग बात क्यों नहीं करते। कोई पूछने भी नहीं आता कि हम किस हाल में हैं। दोनों बहनें हर दिन घुट-घुटकर जी रही हैं। ना कोई त्योहार ना कोई पकवान।

कुछ बच्चे पढ़ने आते हैं। उनसे जो रुपए मिलते हैं, सुबह-शाम दो रोटी मिल जाती है। बाकी सारा दिन मैं अपने कमरे में अकेले लेटी रहती हूं, बहन अपने कमरे में। बस इतनी ही दुनिया है हमारी। पहले शादी का ख्याल भी आता था, अब तो वो भी नहीं। अब ना उम्र है शादी की, ना ही इच्छा बची है।

उधर पड़ोस के लोगों को लगता है कि इतनी बड़ी हवेली में दो बहनें कब तक रहेंगी। ये घर बेचकर कहीं और क्यों नहीं चली जातीं। इनके मरने के बाद यहां कौन रहेगा। बताइए… जीने पर कोई पूछने नहीं आ रहा, लेकिन मरने के बाद हमारा क्या होगा, इसकी चिंता में लोग परेशान हैं। समझ नहीं आता, आखिरी दुनिया ऐसी क्यों है। अकेले रहना कोई क्राइम है क्या।

अनुराधा भालिगा ने ये सारी बातें भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की हैं...

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