पंथदूल्हा बारात लेकर आता है, लेकिन बेटी विदा नहीं होती:एक दिन पहले ईद, मस्जिद में नमाज पढ़ती महिलाएं; देश की पहली मस्जिद की कहानी

केरल2 महीने पहलेलेखक: मनीषा भल्ला
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मोहम्मद हैरिस 10 साल पहले बारात लेकर केरल के कुन्नूर आए थे। अगले दिन उनके माता-पिता, भाई और बाराती अपने गांव लौट गए, लेकिन हैरिस यहीं बस गए, क्योंकि यहां का रिवाज ही ऐसा है। यहां बेटी विदा नहीं होती है।

निकाह के बाद लड़के को अपना घर छोड़ना पड़ता है। वह पत्नी के घर पर रहता है। बच्चे पिता की जगह मां का सरनेम लगाते हैं। आम मुस्लिम रवायतों की तरह यहां निकाह के वक्त ‘कबूल है’ नहीं बोला जाता।

यहां से करीब दो घंटे की दूरी पर है देश की पहली और दुनिया की दूसरी सबसे पुरानी मस्जिद चेरामन जुमा। यहां देशभर से एक दिन पहले ही ईद मनाई जाती है। आज पंथ सीरीज में कहानी इसी मस्जिद और इसके जरिए भारत में फैले इस्लाम की…

इस मस्जिद का निर्माण 629 ईस्वी में इस्लामिक स्कॉलर मलिक बिन दीनार ने कराया था।
इस मस्जिद का निर्माण 629 ईस्वी में इस्लामिक स्कॉलर मलिक बिन दीनार ने कराया था।

केरल के त्रिशूर से करीब 40 किमी. और कोच्चि से 35 किमी दूर कोडंगलूर के मेथला गांव में चेरामन मस्जिद है। बाकी मस्जिदों से अलग यहां ना कोई मीनार है ना गुंबद। बौद्ध आर्किटेक्ट में बनी यह मस्जिद किसी बड़े बंगले की तरह दिखती है। फिलहाल मस्जिद के रिनोवेशन का काम चल रहा है।

मैं यहां एक लोकल मुस्लिम परिवार के साथ दो दिन रही। मैंने देखा कि यहां घर की मुखिया महिलाएं ही हैं। परिवार से जुड़े तमाम फैसले महिलाएं ही लेती हैं।

रात के तकरीबन 8 बजे मुझसे महिलाओं ने मस्जिद चलने की बात कही। मेरे दिमाग में सवाल कौंधा कि रात में मस्जिद वो भी महिलाओं के साथ… उत्तर भारत के मस्जिदों में तो ऐसा नहीं होता। फिर मैं उनके साथ मस्जिद गई। उन्हें नमाज पढ़ते हुए देखा। मेरे लिए यह रोमांचित करने वाला अनुभव था।

मस्जिद में नमाज पढ़ती महिलाएं। करीब 35% महिलाएं यहां मस्जिदों में नमाज पढ़ती हैं।
मस्जिद में नमाज पढ़ती महिलाएं। करीब 35% महिलाएं यहां मस्जिदों में नमाज पढ़ती हैं।

कुन्नूर हेरिटेज फाउंडेशन के डायरेक्टर मोहम्मद शिहाद बताते हैं, ‘मैं मापला समुदाय से आता हूं। हमारे पूर्वज करीब 3 हजार साल पहले अरब से व्यापार करने के लिए यहां आए थे। उनमें से ज्यादातर लोग यहीं बस गए।

जब उनकी जनरेशन आगे बढ़ी, तो केरल के मूल निवासियों ने उन्हें अपने से अलग माना। इसके चलते ऐसे लोगों का एक अलग समुदाय बन गया, जिसे मापला समुदाय कहते हैं। इसमें ईसाई और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग हैं।

यहां डचों के बनाए किले के ऊपर से देखने पर दूर कई जहाज नजर आ रहे हैं। मोहम्मद शिहाद बताते हैं कि एक जमाने में यहां मीलों तक जहाज खड़े रहते थे। जिसके जरिए अरब के लोग व्यापार करते थे। आज भी केरल के तटीय क्षेत्रों में उनकी कम्युनिटी का दबदबा है।

अभी देशभर में रोजा चल रहा है। कुछ दिन बाद ईद मनाई जाएगी। यहां भी लोग रोजा रख रहे हैं, सहरी और इफ्तार की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन देश के बाकी हिस्सों से अलग यहां एक दिन पहले ही ईद मनाई जाती है।

इसकी वजह है कि ये लोग सऊदी अरब के कैलेंडर को मानते हैं। वहां एक दिन पहले चांद दिखता है, इसलिए यहां पहले ईद मनाई जाती है।

अभी कोडंगलूर के मार्केट में रोजा की रौनक बरकरार है। दुकानें सजी हैं। लोग इफ्तार के लिए फलों की खरीदारी कर रहे हैं।
अभी कोडंगलूर के मार्केट में रोजा की रौनक बरकरार है। दुकानें सजी हैं। लोग इफ्तार के लिए फलों की खरीदारी कर रहे हैं।

यहां के लोगों का दावा है कि असल रूप में इस्लाम केरल में ही है। यहां नबी (मोहम्मद पैगंबर) के जमाने से ही मस्जिद है और यहीं से होकर देश के बाकी हिस्सों में इस्लाम फैला है।

इसके बाद मेरी मुलाकात मस्जिद कमेटी के प्रेसिडेंट डॉ. मोहम्मद सैयद से हुई। उन्होंने मुझे इफ्तार पर मस्जिद में ही बुलाया था। मुझे मस्जिद की इमारतें दिखाते हुए डॉ. मोहम्मद सैयद बताते हैं, ‘यह मस्जिद 7वीं सदी की है। कई बार इस पर हमले हुए हैं और बार-बार इसका पुर्ननिर्माण भी कराया गया है।

पहले यहां बौद्ध और जैन मत का काफी प्रभाव था। बड़ी तादाद में यहां बुद्ध विहार और जैन मंदिर थे। उनके जाने के बाद यहां हिंदू बस गए। हिंदू राजाओं ने शासन भी किया। यही वजह है कि मस्जिद का आर्किटेक्ट बौद्ध संस्कृति से काफी मिलता-जुलता है।’

डॉ. सैयद ने मुझे पुरानी मस्जिद की कुछ तस्वीरें दिखाईं। उन्हें देखने से पता चला कि मरम्मत के दौरान भी मस्जिद के मूल आर्किटेक्चर से छेड़छाड़ नहीं की गई है।

चेरामन जुमा मस्जिद की पुरानी तस्वीर। कई बार मस्जिद पर हमले हुए हैं, लेकिन अभी भी इसका स्ट्रक्चर पहले की तरह ही है।
चेरामन जुमा मस्जिद की पुरानी तस्वीर। कई बार मस्जिद पर हमले हुए हैं, लेकिन अभी भी इसका स्ट्रक्चर पहले की तरह ही है।

यहां एक कमरे में बड़ा सा मेहराब (दीवार की तरह नक्काशी) है। उसके सामने दीया जल रहा है। यह दीया करीब 2000 साल पुराना है। यहां हर धर्म के लोग आते हैं, मन्नतें मांगते हैं और दीये में तेल डालते हैं। सालों से यह परंपरा चली आ रही है।

विजय जैन मस्जिद के मुख्य सिक्योरिटी गार्ड हैं। मस्जिद में जैन गार्ड... मैं थोड़ा हैरान हुई। उन्होंने मेरी हैरानी भांपते हुए कहा- मैडम यहां हिंदू-मुस्लिम जैसा कुछ नहीं है। सब साथ रहते हैं। मैं 20 साल से मस्जिद में काम कर रहा हूं। मंदिर के बाहर ज्यादातर दुकानें भी हिंदुओं और ईसाइयों की हैं।

यह दीया करीब 2000 साल पुराना है। यहां हर धर्म के लोग आते हैं, मन्नतें मांगते हैं और दीये में तेल डालते हैं।
यह दीया करीब 2000 साल पुराना है। यहां हर धर्म के लोग आते हैं, मन्नतें मांगते हैं और दीये में तेल डालते हैं।

डॉ. सैयद बताते हैं, ‘मस्जिद के आसपास दो फीसदी मुसलमान रहते हैं। यहां मुस्लिम पॉकेट बनाकर रहने का रिवाज नहीं है। सब लोग एक साथ मिलजुल कर रहते हैं। केरल के कोस्टल बेल्ट में अरब सागर के जरिये हजारों साल से व्यापार हो रहा है। कोडंगलूर का पुराना नाम मुसिरिस था।

यह तमिल शब्द है, इसका अर्थ काली मिर्च होता है। तब काली मिर्च का बड़े लेवल पर यहां व्यापार अरब के लोग करते थे।

यहां कालीकट में बेहतरीन किस्म की लकड़ियां मिलती थीं। लकड़ी के जहाज भी बनते थे। आज भी अरब से लोग यहां लकड़ी के परंपरागत जहाज बनवाने के लिए आते हैं। एक जहाज की कीमत कम से कम 50 करोड़ रुपए होती है।

5वीं सदी में यहां बौद्ध लोगों का प्रभाव था, लेकिन धीरे-धीरे उनका प्रभाव खत्म हो गया। उनके जाने के बाद यहां बौद्धिक खालीपन आ गया। उसी वक्त इस्लाम शुरू हुआ था। हर जगह उसकी चर्चा हो रही थी। लोग इस्लामिक भाषणों से प्रभावित हो रहे थे। जब अरब के लोग यहां आने लगे, तो उन्होंने बहुत हद तक यह खालीपन भर दिया।’

मस्जिद के निर्माण को लेकर कई कहानियां हैं। एक प्रमुख कहानी है कुछ इस तरह है...

‘’मालाबार के राजा चेरामन पेरुमल की राजधानी कोडंगलूर थी। एक रात उन्होंने सपना देखा कि आसमान में चांद के दो टुकड़े हो गए हैं। अगले दिन उन्होंने अपने दरबार में ज्योतिषियों को बुलवाया और इसकी व्याख्या करवाई, पर वे संतुष्ट नहीं हुए। उसी दौरान व्यापारियों का एक काफिला राजा से मिलने आया। राजा ने उन्हें सपने के बारे में बताया।

व्यापारियों ने राजा को मक्का में सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (नबी) के बारे में बताया और कहा कि यह उन्हीं का चमत्कार होगा। राज ने नबी से मिलने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने अपने राज्य में कुछ क्षेत्रीय प्रशासक तैयार किए। फिर अपने काफिले के साथ मक्का के लिए रवाना हो गए।

राजा ने मक्का में नबी के दर्शन किए। कुछ समय उनके साथ रहे और उनसे प्रभावित होकर इस्लाम अपना लिया। इसके बाद वे अपने देश के लिए निकल पड़े, लेकिन रास्ते में बीमार हो गए। ओमान में उनकी मौत हो गई।

मरने से पहले उन्हें एहसास हो गया था कि वे ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेंगे। इसलिए उन्होंने अपने साथ गए दोस्तों को पत्र लिखकर दिया था। बाद में इस्लामिक स्कॉलर मलिक बिन दीनार मालबार आए और राजा का पत्र क्षेत्रीय शासकों को दिया।

पत्र में राजा ने कोडंगलूर में वीरान पड़ी बुद्ध विहार में मस्जिद बनाने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद राजा के नाम पर यहां चेरामन जुमा मस्जिद बनी।’’

बेटियां विदा नहीं होतीं, उनके लिए मायके में अलग कमरे भी बनाए जाते हैं

डॉ. सैयद बताते हैं, ‘हिंदू महिलाओं की तरह ही यहां महिलाएं मंगलसूत्र पहनती हैं। मेरी पत्नी मंगलसूत्र पहनती है। मेरे तीन बेटियां हैं, तीनों मंगलसूत्र पहनती हैं। जबकि उत्तर भारत में इस्लामिक संस्कृति में ऐसा नहीं है।’

कन्नूर सिटी हेरिटेज फाउंडेशन के डायरेक्टर मोहम्मद शिहाद बताते हैं, ‘कन्नूर और लक्षद्वीप के मुस्लिम शादी के बाद दुल्हन के घर पर जाकर रहते हैं। इस रवायत पर यहां बड़े-बड़े अध्ययन हो रहे हैं। PhD की थीसिस लिखी जा रही है।

उस वक्त लोग व्यापार के लिए महीनों घर से बाहर रहा करते थे। सुरक्षा के लिहाज से लड़की अपने माता-पिता के घर रहती थी। मालाबार के राजा भी अपनी शादी के बाद रानी के घर पर रहने के लिए गए थे। वहीं परंपरा आज भी अपनाई जा रही है। यहां बेटियों के लिए अलग से कमरे भी बनाए जाते हैं।’

शिहाद एक और फर्क बताते हैं कि केरल में आज भी 1888 का बना काजी एक्ट लागू है। इसे ब्रिटिशर्स ने बनाया था। उत्तर भारत में हर मस्जिद में अलग काजी होते हैं, लेकिन यहां क्षेत्रों के आधार पर काजी होते हैं।

यहां शादी के वक्त कबूल-कबूल-कबूल नहीं बोला जाता है। निकाह से एक दिन पहले काजी लड़की के घर जाकर निकाह के लिए उसकी रजामंदी लेता है। निकाह वाले दिन केवल दूल्हा और दुल्हन के परिवार वाले शादी में आमने-सामने होते हैं।

लड़की के पिता कहते हैं कि मैं बेटी का इतनी मेहर के बदले में फलां से निकाह करवा रहा हूं, लड़का बोलता है कि इतनी मेहर के बदले मैं आपकी बेटी को स्वीकार करता हूं। इसके बाद दुआ होती है। इस तरह शादी हो जाती है।

मैंने यहां महिलाओं को बुर्के में नहीं देखा। हिजाब में या सिर पर दुपट्टा लिए हुए देखा। महिलाएं दुकानें भी चला रही हैं, रात में अकेले भी आ-जा रही हैं।

अरक्कल फैमिली केरल की पहली रॉयल मुस्लिम फैमिली है। उन्होंने अपना एक महल म्यूजियम बना दिया है। परिवार का फैमिली ट्री देखें तो पुरुषों से ज्यादा महिलाएं शासक हुई हैं। जैसे सुल्तान आयशा बीबी (1921-31), सुल्तान आदिराज मरियम्मा बीबी, (1946-57), सुल्तान अमीना बीबी (1957-80), सुल्तान आयशा मुत्थु (1998-06)...।

अब पंथ सीरीज की ये दो कहानियां भी पढ़िए...

1. इंसान का मांस और मल तक खा जाते हैं अघोरी:श्मशान में बैठकर नरमुंड में भोजन, कई तो मुर्गे के खून से करते हैं साधना

रात 9 बजे का वक्त। जगह बनारस का हरिश्चंद्र घाट। चारों तरफ सुलगती चिताएं। आग की लपटें और उठते धुएं से जलती आंखें। कोई चिता के पास नरमुंड लिए जाप कर रहा, तो कोई जलती चिता से राख उठाकर मालिश, तो कोई मुर्गे का सिर काटकर उसके खून से साधना कर रहा है। कई ऐसे भी हैं, जो इंसानी खोपड़ी में खा-पी भी रहे हैं। इन्हें देखकर मन में सिहरन होने लगती है।

ये अघोरी हैं। यानी जिनके लिए कोई भी चीज अपवित्र नहीं। ये इंसान का कच्चा मांस तक खा जाते हैं। कई तो मल-मूत्र का भोग करते हैं। पंथ सीरीज में आज कहानी इन्हीं अघोरियों की…(पढ़िए पूरी खबर)

2. रात 12:30 बजे होती है निहंगों की सुबह:सुबह बकरे का प्रसाद बंटता है, घोड़ा इनके लिए भाई जान है और गधा थानेदार

अमृतसर के अकाली फूला सिंह बुर्ज गुरुद्वारे में चहल-पहल है। सिख छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी की 'बंदी छोड़ दिवस' का जश्न मना रहे हैं। आस-पास की सड़कें ब्लॉक हैं। भारी बैरिकेडिंग की गई है। घोड़े टाप दे रहे हैं, नगाड़े बज रहे हैं। बोले सो निहाल, सतश्री अकाल, राज करेगा खालसा आकी रहे न कोय… के जयकारे लग रहे हैं। नीले रंग के खास चोगे और बड़ी सी पग धारण किए लोग तलवारबाजी कर रहे हैं। ये निहंग सिख हैं। (पढ़िए पूरी खबर)

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