18 साल से बेड पर हूं। गर्दन के नीचे का पूरा हिस्सा सुन्न हो गया है। हिलने-डुलने की भी शक्ति नहीं बची। न खुद से खा सकता हूं, न खुद से पानी पी सकता हूं। अपना पर्सनल मैसेज भी दूसरों से टाइप कराना पड़ता है। समझ नहीं आता मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ।
तब मैं 17 साल का था। कई हसरतें थीं, ढेर सारे ख्वाब थे। और अचानक मुझे जीवनभर के लिए बेड रेस्ट दे दिया गया। सारी उम्मीदें टूट कर चकनाचूर हो गई। मैं बता नहीं सकता क्या गुजरी है मुझ पर। सालों तक डिप्रेशन में रहा। रात-दिन रोता रहता था, लेकिन फिर जिंदगी ने ऐसी करवट ली कि बेड पर पड़े-पड़े मैं अपने जैसे अनगिनत लोगों की उम्मीद बन गया, हौसला बन गया।
मैं रईस हिदाया, केरल के मल्लपुरम जिले का रहने वाला हूं। पांच भाई बहनों में सबसे बड़ा। पापा गल्फ कंट्री में सेटल थे और हम भाई-बहन यहां मां के साथ रहते थे। मैं पढ़ाई-लिखाई में एवरेज था, लेकिन दूसरे क्रिएटिव कामों में सबसे आगे। स्कूल के सबसे मशहूर लड़कों में मेरी गिनती होती थी।
25 अप्रैल 2004 की बात है। तब मैं दसवीं क्लास में था। अगले दिन स्कूल में एनुअल फंक्शन था। उसके प्रबंधन की जिम्मेदारी मेरी थी। मैं दौड़-भाग कर रहा था। चीजें अरेंज करते-करते काफी देर हो गई। रात 8-9 बजे तक मैं स्कूल में ही था।
मुझे डेकोरेशन में कुछ कमी लग रही थी। मैंने दुकान वाले को फोन कर दिया कि वह दुकान खुली रखेगा, मैं देर रात सामान खरीदने के लिए आऊंगा।
थोड़ी देर बाद एक ऑटो में बैठकर दुकान के लिए निकल गया। थकान की वजह से रास्ते में मुझे झपकी लग गई। इसी बीच किसी बड़ी गाड़ी ने पीछे से ऑटो को टक्कर मार दी। उसके बाद क्या हुआ, कैसे हुआ, मुझे कुछ याद नहीं।
तीन दिन के बाद मुझे होश आया तो मैं अस्पताल में था। मैं नहीं जानता कि किसने मेरे परिवार को फोन किया, कौन मुझे अस्पताल लेकर आया। कुछ देर बाद मैंने हाथ-पैर हिलाने की कोशिश की।
मैंने महसूस किया कि न तो मेरे हाथ हिल रहे हैं और न ही पांव। गर्दन के नीचे के हिस्से में भी कोई हरकत नहीं हो रही थी। एक्सीडेंट की वजह से गर्दन से नीचे के हिस्से में लकवा मार चुका था। डॉक्टर ने बताया कि मैं कभी चल नहीं सकता। कभी बैठ नहीं सकता। मुझे हमेशा लेटे रहना होगा।
मुझे लगा कि मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई। मुझे घुटन होने लगी। मैं बहुत रोया। खैर तीन महीने बाद मुझे घर लाया गया। स्कूल से मेरे क्लासमेट्स मुझसे मिलने आते। टीचर्स मिलने के लिए आते रहते। भाई-बहन हमेशा मेरे आसपास ही रहते थे। कभी अकेला नहीं छोड़ते थे, लेकिन मैं सारा दिन रोता रहता था।
मैं हमेशा यही सोचता था कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। एक साल तक हर दिन रोते बिता। ढंग से खाना नहीं खाता था, किसी से बात नहीं करता था। ऐसा लगता था मुझे किसी ने अंधेरे में धकेल दिया है।
इधर मुझे ठीक कराने के लिए परिवार हर मुमकिन कोशिश कर रहा था। हर अस्पताल और डॉक्टर के यहां जा चुके थे। मां कई जगह मन्नत भी मांग चुकी थीं। यानी जहां-जहां लोगों ने बताया, वहां-वहां वे लोग मुझे लेकर गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
उसके बाद मैंने फिजियोथेरेपी ट्रीटमेंट लेना शुरू किया। उस वक्त मैं सैय्यद कुतुब की लिखी एक किताब In the Shade of the Qur'an पढ़ रहा था। उसकी एक लाइन से मेरी जिंदगी का मकसद बदल गया।
वो लाइन थी- जो लोग गरीबों के लिए सिर्फ भाषण देते हैं खुदा उनकी दुआ कुबूल नहीं करेंगे, जो लोग मानवता के लिए काम करेंगे खुदा उनकी ही दुआ कबूल करेंगे। बस इस लाइन ने मेरे दिमाग में घर बना लिया।
मैंने देखा कि जहां मैं फिजियोथेरेपी के लिए जाता था, वहां लोग अकेले पड़े होते थे। उनके साथ कोई नहीं होता था। लोग अपने मरीजों को अस्पताल में छोड़कर भाग जाते थे। वे लोग हिल-डुल भी नहीं पाते थे और वहीं लेटे-लेटे चिल्लाते रहते थे।
कई लोग तो ऐसे थे जो सालों से अस्पताल से बाहर ही नहीं निकले थे। किसी ने 10 साल से सूरज नहीं देखा था तो किसी ने 10 साल से अपने परिवार को नहीं देखा था।
इसकी एक बड़ी वजह गरीबी भी थी। सरकार गरीब रोगियों के लिए कच्चे दूध का पैकेट और एक अंडा देती थी। अस्पताल प्रशासन की तरफ से दूध और अंडा उबालने के लिए दो रुपए लिए जाते थे, लेकिन ज्यादातर लोगों के पास दो रुपए भी नहीं होते थे।
इन हालातों ने मुझे एहसास करवाया कि मैं बेहतर स्थिति में हूं। भाई-बहन मुझ पर जान देते थे। माता-पिता बहुत प्यार करते थे। जब मेरी आंख से आंसू आता, तो पूरा परिवार इकट्ठा हो जाता था। सब मुझसे लिपट जाते थे। और दूसरी तरफ जब मैं अस्पताल में इन लोगों का दर्द देखता तो विचलित हो जाता।
कुछ दिन बाद मैंने उन लोगों से बात करनी शुरू की, जो अस्पताल में सालों से पड़े थे। उनसे कोई और बात नहीं करता था। बातचीत के दौरान मुझे पता चला कि इनका दर्द कितना गहरा है। कुछ लोगों ने मुझसे अपने जज्बात शेयर किए, अपनी फीलिंग शेयर की, अपने दुख साझा किए।
मैंने रियलाइज किया कि इससे लोगों पर पॉजिटिव असर पड़ रहा है। लोगों को इससे हिम्मत मिल रही है। असल में ये लोग चाहते थे कि कोई उन्हें सुने, उनसे बात करे।
मुझे लगा कि यही सही समय है लोगों की सेवा करने का। मैंने बिस्तर पर लेटे-लेटे एक वॉट्सऐप ग्रुप बनाया। अलग-अलग अस्पतालों में अकेले पड़े लोगों के नंबर जुटाए। सबको ग्रुप में जोड़ना शुरू किया। मैं फोन पर या वीडियो कॉल पर ऐसे लोगों से घंटों बात करता था, उनकी बातें सुनता था।
अक्सर मेरे पास दोस्त या परिचित आते रहते थे। वे मुझसे पूछते थे कि तुम्हें किसी चीज की जरूरत तो नहीं। मैं हर बार मना कर देता था। फिर मैंने एक नई पहल की। जो लोग मुझसे मदद की बात कहते, मैं उनसे कहता कि इस पते पर कुछ सामान पहुंचवा दीजिए। फलां अस्पताल में कुछ भेज दीजिए। इस तरह बेड पर लेटे-लेटे मैं लोगों तक मदद पहुंचवाने लगा।
किसी के घर व्हील चेयर, किसी के घर कोई जरूरी सामान, तो किसी अस्पताल में पैसे और दवाइयां…. इस तरह धीरे-धीरे लोगों की मदद करने का कारवां बढ़ता गया। मैं ग्रुप बनाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक मदद पहुंचाने में जुट गया।
अब तक मैं सब कुछ व्यक्तिगत लेवल पर मैनेज कर रहा था। जब नेटवर्क बड़ा हो गया तो मुझे लगा कि अब व्यक्तिगत लेवल से उठकर काम करना पड़ेगा। फिर मैंने ग्रीन पाएलेटी नाम से एक ट्रस्ट बनाया। उससे ज्यादा से ज्यादा सक्षम लोगों को जोड़ने लगा।
मैंने तय किया कि ऐसे लोगों को अस्पताल और घर से बाहर निकालना है, जो सालों से बाहर नहीं निकले हैं। दोस्तों से सलाह-मशविरा करने के बाद 25 लोगों को तैयार किया। हम पहली बार वायनाड गए। वहां एक हिल स्टेशन में हमने एंजॉय किया। बोटिंग भी की।
अच्छा खाना खाया। आसमान देखा। पक्षियों की आवाजें सुनी, पानी देखा, हवा को महसूस किया। सबके लिए बहुत ही खास अनुभव था। उसके बाद हम केरल में अलग-अलग जगहों पर गए। तमिलनाडु गए। उस दिन के बाद मेरा मिशन ही यह बन गया।
आज मुझे केरल के लोग जानते हैं। केरल के बाहर भी मेरी पहचान है। मैं आंदोलनों में जाता हूं। सेमिनार और वर्कशॉप में जाता हूं, लेकिन कभी-कभी काफी तकलीफ होती है। अपना पर्सनल मैसेज भी मैं खुद नहीं कर पाता। किसी को आवाज देकर बुलाना पड़ता है, उसे बताना पड़ता है कि किसे क्या मैसेज भेजना है।
किताबें पढ़ने का मुझे बहुत शौक है, लेकिन खुद से नहीं पढ़ पाता। मेरे लिए लोग एक-एक पन्ने पलटते हैं तब मैं पढ़ता हूं। टॉयेलट जाना हो, नहाना हो, पानी पीना हो या खाना हो, हर चीज के लिए दूसरे की जरूरत होती है।
रईस हिदाया ने ये सारी बातें भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की है...
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