ग्राउंड रिपोर्टअमृतपाल का नशा मुक्ति अभियान, तस्वीरों में भिंडरांवाले:नशा छोड़ने वालों के लिए दवा-खाना फ्री, गांव के लोग सेवा दे रहे

अमृतसर3 महीने पहले
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अमृतसर का जल्लूपुर खेड़ा गांव। देखने में ये पंजाब के दूसरे सामान्य गांवों की तरह ही है। खेतों से घिरी बस्ती, आबादी करीब 2200। पर गांव में घुसते ही सामने गुरुद्वारे पर लगी तस्वीर इसके अलग होने का एहसास करा देती है। सामने एक बड़ा सा पोस्टर है, इस पर उग्रवादी जरनैल सिंह भिंडरांवाले, ‘वारिस पंजाब दे’ के फाउंडर दीप सिद्धू और नीचे संगठन के मौजूदा चीफ अमृतपाल सिंह की बड़ी फोटो लगी है। पोस्टर पर सब गुरुमुखी में लिखा है।

जल्लूपुर खेड़ा अमृतपाल सिंह या गांव के लोगों की भाषा में कहें तो ‘सिंह साब’ का गांव हैं। पूछने पर लोग बताते हैं कि पोस्टर पर नशा छुड़ाने के अभियान के बारे में लिखा हुआ है। अमृतपाल ने गांव के गुरुद्वारे में एक सेंटर बनाया है, जहां वे नौजवानों की नशे की आदत छुड़वाते हैं। पोस्टर पर भिंडरांवाले की फोटो इसलिए है, क्योंकि अमृतपाल उसे अपना आदर्श बताते हैं।

ऐसा नहीं है कि खालिस्तान और जरनैल सिंह भिंडरांवाले जैसे शब्द पंजाब भूल गया था। 29 सितंबर 2022 को दुबई रिटर्न अमृतपाल सिंह नाम का नौजवान ‘वारिस पंजाब दे’ नाम के संगठन का मुखिया बना, तो ये शब्द पंजाब की राजनीति पर फिर हावी होने लगा। अमृतपाल सिंह की 'दस्तार बंदी' का समारोह मोगा जिले के रोडे गांव में हुआ। ये जरनैल सिंह भिंडरांवाले का पैतृक गांव है।

अमृतपाल भले ही कहते रहे कि वे पंजाब के नौजवानों को नशे से बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन ये सारे इशारे, उनका लिबास और उनके बयान कुछ और ही कहानी कहते हैं। अमृतपाल की इसी कहानी की तलाश में मैं पहुंचा अमृतसर से करीब 40 किलोमीटर दूर जल्लूपुर खेड़ा गांव।

अमृतपाल का मानना है कि उनकी खालिस्तान की मांग जायज है, क्योंकि सिख भारत में आजाद नहीं हैं। वे पलटकर पूछते हैं हिंदू राष्ट्र की बात हो सकती है, तो खालिस्तान की क्यों नहीं।

तारीख- 29 सितंबर 2022, जगह- मोगा जिले का रोडे गांव। इस दिन अमृतपाल को ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख घोषित किया गया था। जरनैल सिंह भिंडरांवाले इसी रोडे गांव का रहने वाला था। कार्यक्रम में हजारों लोग पहुंचे थे और खालिस्तान के समर्थन में नारे भी लगे।
तारीख- 29 सितंबर 2022, जगह- मोगा जिले का रोडे गांव। इस दिन अमृतपाल को ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख घोषित किया गया था। जरनैल सिंह भिंडरांवाले इसी रोडे गांव का रहने वाला था। कार्यक्रम में हजारों लोग पहुंचे थे और खालिस्तान के समर्थन में नारे भी लगे।

दस्तारबंदी के समय अमृतपाल ने कहा था, 'यह वादा है आपसे कि हमारे शरीर में जो लहू है, उसका एक-एक कतरा आपके चरणों में बहेगा, पंथ की आजादी के लिए बहेगा।' इस गांव में घुसते हुए मन में बस एक सवाल था कि कहीं पंजाब फिर से 1980 के हिंसा वाले दौर में तो नहीं लौट रहा।

अमृतपाल का घर यानी सिंह साब की कोठी
मैंने गांव में पूछा कि अमृतपाल कहां रहता है? तो जवाब मिला ‘अरे सिंह साब नू घर जाणा है। पल्ले जा के जो बड़ी सी कोठी आएगी, जिसके बाहर CCTV कैमरे लगे हैं। वोई है जी अमृतपाल जी नू घर।’ पहले अमृतपाल के घर ना जाकर मैं गांव के सबसे बड़े गुरुद्वारे में पहुंचा। यहां भी अमृतपाल और ‘वारिस पंजाब दे’ के पोस्टर लगे हैं। असल में ये गुरुद्वारा ही ‘वारिस पंजाब दे’ का दफ्तर है और यही नशामुक्ति का केंद्र है।

वहां काफी लोग बैठे थे, उनसे पूछा तो पता चला कि ये पंजाब के दूरदराज इलाकों से यहां पहुंचे हैं। तरनतारन, गुरुदासपुर, मोगा, बठिंडा, संगरूर… पंजाब के हर कोने से लोग यहां इस आस से पहुंचते हैं कि उनके बच्चे का नशा छूट जाएगा।

62 साल के जसबीर सिंह अमृतसर के पड़ोसी जिले तरनतारन से दोस्त के बेटे को लेकर आए हैं। तारा नाम का 26 साल का लड़का 5 साल से हेरोइन का नशा करता है, काबू में नहीं रहता। पिछले 1 महीने से तारा यहीं रह रहा है। जसबीर बताते हैं कि उन्हें सोशल मीडिया से ‘वारिस पंजाब दे’ के इस नशा मुक्ति केंद्र के बारे में पता चला।

गुरुद्वारे में चल रहा 'वारिस पंजाब दे' का नशा मुक्ति केंद्र, यहां पंजाब के दूरदराज के इलाकों से लोग नशा छुड़वाने आ रहे हैं। उनके लिए सभी इंतजाम मुफ्त में किए गए हैं।
गुरुद्वारे में चल रहा 'वारिस पंजाब दे' का नशा मुक्ति केंद्र, यहां पंजाब के दूरदराज के इलाकों से लोग नशा छुड़वाने आ रहे हैं। उनके लिए सभी इंतजाम मुफ्त में किए गए हैं।

योग, सेवा और शबद कीर्तन से नशे का इलाज
मैं लोगों से बात करता हूं तो पता चलता है कि नशा मुक्ति केंद्र में मौजूद ज्यादातर लड़के हेरोइन का नशा करते हैं। यहां के सेवादार सतराणा सिंह बताते हैं कि ‘नशा पीड़ितों को गुरुद्वारे में पूरी तरह मुफ्त रखा जाता है। पीड़ितों का इलाज आयुर्वेदिक दवाओं, योग, सेवा और शबद कीर्तन से होता है। सुबह से शाम तक पीड़ितों को अच्छी डाइट और दवाएं दी जाती हैं। उन्हें अच्छी संगत में रखा जाता है, उनकी निगरानी के लिए गार्ड्स भी होते हैं।’

सतराणा बताते हैं कि ‘गुरुद्वारे के आसपास चल रहे कंस्ट्रक्शन में नशा छुड़वाने आए लोगों से काम भी करवाया जाता है। हमारी कोशिश उनकी सेहत सुधारने के साथ उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने की भी होती है, ताकि नशा पीड़ित यहां से ठीक होकर जाएं, तो आम जिंदगी बसर कर सकें।’

अजनाला में थाने पर हमला हुआ, भीड़ में इलाज करवाने वाले भी थे
35 साल के मनदीप सिंह अमृतसर के सठियाला गांव के रहने वाले हैं। मैं गुरुद्वारे पहुंचा तो वो तसले में मिट्टी भरकर ले जा रहे थे। मनदीप बताते हैं ‘मेरा भाई और मां मुझे यहां दो हफ्ते पहले छोड़कर चले गए थे। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, नशा लेना बंद कर दिया है। हमें सुबह केला और दूध मिलता है, दिन में अच्छी सब्जी और रोटी मिलती है।’

मैं बातों-बातों में मनदीप से पूछता हूं, अजनाला में थाने पर हमला हुआ था, क्या आप भी उसमें गए थे? मनदीप बताते हैं ‘सारे लोग बाबा जी के साथ गए थे। संगत बहुत नाराज थी, हम सब अमृतपाल से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए हमें जाना ही था।’ ये बातें सुनकर एक सेवादार आए और हमें रोकने लगे। कहा कि ‘आप किसकी परमिशन से ये रिकॉर्ड कर रहे हैं?’ पहचान बताने के बाद ही बात करने दी।

वॉट्सऐप के जरिए चल रहा संगठन
‘वारिस पंजाब दे’ के इस नशामुक्ति केंद्र पर करीब 60-65 पीड़ित रह रहे हैं। संस्था के तहत इसी तरह का एक और सेंटर बरनाला में भी चलता है। सेवादार बताते हैं कि ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन में अभी कोई कागजी सदस्यता जैसा सिस्टम नहीं है, जो संगत हमारे साथ जुड़ी है, उन्हें वॉट्सऐप के जरिए जानकारी मिलती रहती है और वो हमसे जुड़े रहे हैं। अब संगठन अपने सदस्यों की लिस्ट बनाने और उन्हें लिखित सदस्यता देने के बारे में सोच रहा है।

गुरुद्वारे से मैं अमृतपाल सिंह के घर पहुंचा। कोठीनुमा घर, जिसकी चारों तरफ से किलेबंदी है, कोठी के ऊपर सिख धर्म के दो भगवा झंडे फहरा रहे हैं। 12-15 फीट ऊंची दीवारें और मोटे लोहे के दरवाजे। घर के अंदर दाखिल हुए तो मुझे एक कुर्सी पर बिठाया गया और कहा गया कि इंतजार कीजिए, अमृतपाल सिंह तैयार हो रहे हैं।

आसपास कई सारे सेवादार थे, सभी के बाईं तरफ चमकती हुई कटार, कुछ लोगों के पास तलवार और राइफल भी। मैंने सेवादारों से पूछा कि ये तलवारें-राइफल क्यों लटकाए हुए हैं? जवाब मिला- ‘सिक्खी में तो ये होता ही है। ऊपर से हमारे सिंह साहब की सुरक्षा भी जरूरी है, उन्हें खतरा रहता है।’ मैंने पूछा किसका खतरा, तो बोले- ‘बहुत लोग उनके दुश्मन हैं।’

अमृतपाल सिंह की सिक्योरिटी में तैनात सेवादारों की रायफल पर AKF लिखा है, इसका मतलब है आनंदपुर खालसा फौज।
अमृतपाल सिंह की सिक्योरिटी में तैनात सेवादारों की रायफल पर AKF लिखा है, इसका मतलब है आनंदपुर खालसा फौज।

मेरी मुलाकात अमृतपाल सिंह के चाचा हरजीत सिंह से हुई, वे 5 साल गांव के सरपंच रहे हैं। मैंने अजनाला वाले कांड का जिक्र किया तो हरजीत बोले- ‘भाईसाहब (अमृतपाल) के लिए सिर्फ गांव से नहीं, बल्कि पूरे पंजाब और यहां तक हरियाणा से भी लोग आए थे। लोग अमृतपाल सिंह को प्रेम करते हैं और उन्हें पता चला कि पुलिस भाईसाहब को झूठे केस में गिरफ्तार करना चाहती है। लोगों के अंदर नाराजगी थी। हमने पहले से पुलिस को अल्टीमेटम दिया था।’

‘सिर्फ 10% लोग ही अजनाला पहुंच पाए, 90% को तो पुलिस ने रोक दिया’
मैंने पूछा- बिना प्लानिंग के तो इतनी बड़ी भीड़ नहीं जुट सकती, पुलिस थाने पर चढ़ाई के लिए क्या पहले से रणनीति बनाई थी? हरजीत कहते हैं ‘हमने कोई प्लानिंग नहीं की थी। हमने लोगों को कॉल करके बताया था कि अजनाला पुलिस थाने के बाहर 11 बजे पहुंचना है। लोग सुबह से ही वहां जुटने शुरू हो गए थे। हमें वहां पहुंचने में देर हो गई थी। पूरे पंजाब में पुलिस ने लोगों को रोका। अजनाला तो सिर्फ 10% लोग ही पहुंच पाए, 90% लोगों को रोक दिया गया था।’

आपको बता दूं कि उग्रवाद के वक्त से ही अमृतसर और आसपास का इलाका चरमपंथ से प्रभावित था। जल्लूपुर खेड़ा गांव भी मिलिटेंसी का गढ़ रहा है। अजनाला कांड के बाद फिर से खालिस्तान की चर्चा यहां घर-घर में हो रही है। हरजीत बताते हैं ‘दरबार साहिब पर जो हमला हुआ, उसे लेकर लोगों के दिलों में दर्द है। हमले के बाद लोगों ने 10-15 साल लड़ाई लड़ी।’

कैमरे पर अमृतपाल के बारे में नहीं बोलते लोग, लेकिन समर्थन करते हैं
मुझे गांव में कई सारे लोग अलग-अलग काम करते दिखे। कोई खेत में काम करते हुए, कोई दुकान चलाते हुए। कई महिलाएं भी हमें गुरुद्वारे के बाहर मिलीं। ये सब आम बातचीत में तो अमृतपाल के बारे में बात करते हैं, लेकिन कैमरे पर नहीं आते। गुरुद्वारे के बाहर दो महिलाएं मिलीं, नशामुक्ति केंद्र के काम से काफी खुश थीं। वो बताती हैं कि हर रोज वो सेवा के लिए गुरुद्वारे आती हैं। गांव में ज्यादातर लोगों को अमृतपाल सिंह पर गर्व है।

गांव के लोग नशामुक्ति केंद्र में सेवा के लिए आते हैं, इनमें महिलाएं भी हैं। ये लोग अमृतपाल के समर्थक नहीं हैं, लेकिन उनके काम की तारीफ करते हैं।
गांव के लोग नशामुक्ति केंद्र में सेवा के लिए आते हैं, इनमें महिलाएं भी हैं। ये लोग अमृतपाल के समर्थक नहीं हैं, लेकिन उनके काम की तारीफ करते हैं।

लोग सामने आकर इसलिए नहीं बोलना चाहते कि आगे उन्हें कोई दिक्कत ना हो। अमृतपाल सिंह के घरवाले बताते हैं कि जब उन्हें पता चला कि बेटा दुबई में घर-कारोबार सब कुछ छोड़कर पंजाब लौट रहा है तो उन्हें झटका लगा कि अच्छी भली जिंदगी छोड़कर वापस क्यों आ रहा है। हालांकि अब उन्हें उसके काम से कोई दिक्कत नहीं।

गांव में जातियों के आधार पर बंटे गुरुद्वारे
जल्लूपुर खेड़ा गांव में करीब 1500 वोटर हैं और करीब 22-23 सौ आबादी है। इस गांव में 5-6 समुदाय के लोग रहते हैं- जाट, सोड़ी, संधू, ढिल्लों, खेड़ और मजहबी सिख। गांव में पंजाब के दूसरे गांवों की तरह की अलग-अलग जातियों के अलग-अलग गुरुद्वारे और श्मशान घाट हैं। गांव का सबसे बड़ा गुरुद्वारा बाबा काला मेहर है, ये अमृतपाल सिंह के नेतृत्व वाला गुरुद्वारा है।

गांव का नक्शा करीब-करीब चौकोर है। गांव में एंट्री के साथ ही जाट, सोडी, संधू, ढिल्लों जैसे सवर्ण जातियों के जाट सिख रहते हैं, वहीं पीछे की तरफ मजहबी सिख रहते हैं। पंजाब में ज्यादातर जमीन के मालिक जट सिख होते हैं, वहीं मजहबी सिख भूमिहीन मजदूर हैं, जो जट सिखों की जमीनों पर मजदूरी करते हैं। गांव में जातिगत बंटवारा साफ दिखाई देता है।

मजहबी सिखों के गुरुद्वारे के पास वाली दुकान पर ही हम खड़े हो गए और लोगों से बात करने लगे। गांव के दूसरे लोगों की तरह यहां भी लोग कैमरे पर बात नहीं करते। लोग कहते हैं कि ‘हम मजहबी सिख हैं। जैसे यूपी, बिहार में जाति के आधार पर नफरत होती है, हमारे गांव में उस तरह तो नहीं है, लेकिन जट सिखों और हमारे बीच एक दीवार तो है। अगर ये दीवार ना होती तो हमारे गुरुद्वारे और श्मशान क्यों अलग होते।’

क्या फिर से खालिस्तान आंदोलन शुरू हो रहा है? इस सवाल के जवाब में अमृतपाल सिंह के चाचा हरपाल कहते हैं कि ‘खालिस्तान की मांग कभी खत्म ही नहीं हुई थी, लोगों की भावनाएं इससे जुड़ी हैं। इसे जितना दबाने की कोशिश की जाएगी, ये उतनी मजबूत होगी। सरकार को समझना चाहिए कि लोग क्या चाहते हैं।’

अजनाला केस में एक्शन शुरू
गांव में भले ही अमृतपाल को लेकर कितनी भी अच्छी छवि हो, लेकिन पंजाब पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने अजनाला कांड के बाद खालिस्तान समर्थक संगठन 'वारिस पंजाब दे' के जत्थेदार अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। 7 मार्च को ही अमृतपाल के 9 साथियों के हथियारों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए।

पंजाब पुलिस ने अमृतपाल के जिन 9 साथियों के आर्म्स लाइसेंस रद्द किए हैं, उनमें अमृतसर का हरजीत सिंह और बलजिंदर सिंह, कोटकपूरा का राम सिंह बराड़, मोगा का गुरमत सिंह, संगरूर का अवतार सिंह, तरनतारन का वरिंदर सिंह, अमृतपाल, पटियाला का हरप्रीत देवगन और फरीदकोट का गुरभेज सिंह शामिल है। तरनतारन के तलविंदर सिंह का लाइसेंस जम्मू-कश्मीर से बना है इसलिए उस पर रिव्यू करने के लिए लिखा गया है।

अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में 23 फरवरी को हजारों लोगों की भीड़ अमृतसर के अजनाला थाने में घुस गई थी। उन्होंने बैरिकेडिंग तोड़ दी और पुलिस पर हमला भी किया।
अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में 23 फरवरी को हजारों लोगों की भीड़ अमृतसर के अजनाला थाने में घुस गई थी। उन्होंने बैरिकेडिंग तोड़ दी और पुलिस पर हमला भी किया।

खालिस्तान की वापसी का शक और सवाल
खालिस्तान आंदोलन की कहानी 1929 में शुरू हुई थी। शिरोमणि अकाली दल से जुड़े मास्टर तारा सिंह ने अंग्रेजों के सामने पहली बार सिखों के लिए अलग देश की मांग रखी थी। 1947 में यह मांग आंदोलन में बदल गई और इसे पंजाबी सूबा आंदोलन नाम दिया गया।

स्वतंत्र भारत में राज्य पुनर्गठन आयोग ने इस मांग को ठुकरा दिया। 19 साल तक आंदोलन और प्रदर्शन होते रहे। 1966 में इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब को तीन हिस्सों में बांट दिया। सिखों को पंजाब, हिंदी बोलने वालों को हरियाणा मिला और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ बना।

शिरोमणि अकाली दल इसी मांग को लेकर राजनीति में आगे बढ़ती गई। 1982 में भिंडरांवाले ने शिरोमणि अकाली दल से हाथ मिला लिया और असहयोग आंदोलन शुरू किया। ये आगे चलकर सशस्त्र विद्रोह में बदल गया। खालिस्तान का विरोध करने पर पंजाब केसरी के एडिटर लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई।

जरनैल सिंह भिंडरांवाले (नीली पग में) सिखों की धार्मिक संस्था दमदमी टकसाल का लीडर था। उसने गोल्डन टेंपल परिसर में बने श्री अकाल तख्त को अपना हेडक्वॉर्टर बना लिया था।
जरनैल सिंह भिंडरांवाले (नीली पग में) सिखों की धार्मिक संस्था दमदमी टकसाल का लीडर था। उसने गोल्डन टेंपल परिसर में बने श्री अकाल तख्त को अपना हेडक्वॉर्टर बना लिया था।

पुलिस से बचने के लिए भिंडरांवाले स्वर्ण मंदिर में दो साल तक छुपा रहा। इंदिरा सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया। 1 से 3 जून 1984 के बीच पंजाब में रेल सड़क और हवाई सेवा बंद कर दी गईं। 5 जून 1984 को रात 10:30 बजे ऑपरेशन शुरू हुआ और 7 जून तक भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर को कंट्रोल में ले लिया। इससे शुरू हुआ हिंसा का दौर इंदिरा गांधी, जनरल एएस वैद्य और बेअंत सिंह तक पहुंचा।

हिंसा का वो सिलसिला मोगा के रोडे से शुरू हुआ था और अब जल्लूपुर खेड़ा गांव से शुरू होता नजर आ रहा है। पंजाब की राजनीति को करीब से समझने वाले मानते हैं कि राज्य फिलहाल पॉलिटिकल वैक्यूम की स्थिति से गुजर रहा है। कांग्रेस और अकाली दल खात्मे की तरफ हैं, BJP पर सिखों को भरोसा नहीं, इसलिए आम आदमी पार्टी को बहुमत मिला है।

हालांकि केंद्र-राज्य सरकार और लोकतंत्र को लेकर अमृतपाल लोगों में जो अविश्वास पैदा कर रहे हैं, हिंदू-सिखों के बीच, जो तनाव की स्थिति बन रही है, वो पंजाब के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की मदद से पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट फिर सिर उठा रहा है, खालिस्तान को सपोर्ट करने वाले अमृतपाल सिंह को दूसरा जरनैल सिंह भिंडरांवाले कहा जा रहा है, पढ़िए अमृतपाल का ये इंटरव्यू...

अमृतपाल बोले- लोग खालिस्तान के साथ; हिंदू राष्ट्र पर डिबेट नहीं, तो खालिस्तान पर क्यों

करीब साढ़े 6 फीट का कद, सिर पर नीले रंग की पग, शरीर पर सफेद रंग का बाना और हाथ में तलवार। ये अमृतपाल सिंह हैं। वारिस पंजाब दे संगठन के मुखिया। अमृतपाल खुद को गर्व से खालिस्तान का समर्थक बताते हैं, खालिस्तान यानी खालसा या सिखों का अलग देश।

वे ये दावा भी करते हैं कि लोग खालिस्तान के समर्थन में हैं। साथ ही पूछते हैं कि अगर हिंदू राष्ट्र की मांग पर डिबेट नहीं होती, तो खालिस्तान पर क्यों की जाती है। अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में ही 23 फरवरी को हजारों लोगों की भीड़ अमृतसर के अजनाला थाने में घुस गई थी। उन्होंने बैरिकेडिंग तोड़ दी और पुलिस पर हमला भी किया।
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