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भास्कर इंटरव्यू‘हिंदू राष्ट्र पर डिबेट नहीं, तो खालिस्तान पर क्यों’:अमृतपाल बोला- लोग खालिस्तान के साथ, जरूरी नहीं कि हिंदुस्तानी एक मुल्क में रहें

अमृतसर3 महीने पहलेलेखक: वैभव पलनीटकर
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करीब साढ़े 6 फीट का कद, सिर पर नीले रंग की पग, शरीर पर सफेद रंग का बाना और हाथ में तलवार। ये अमृतपाल सिंह है। वारिस पंजाब दे संगठन का मुखिया। अमृतपाल खुद को गर्व से खालिस्तान का समर्थक बताता है, खालिस्तान यानी खालसा या सिखों का अलग देश। ये दावा भी करता है कि लोग खालिस्तान के समर्थन में हैं। साथ ही पूछता है कि अगर हिंदू राष्ट्र की मांग पर डिबेट नहीं होती, तो खालिस्तान पर क्यों की जाती है।

अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में ही 23 फरवरी को हजारों लोगों की भीड़ अमृतसर के अजनाला थाने में घुस गई थी। उन्होंने बैरिकेडिंग तोड़ दी और पुलिस पर हमला भी किया।

अमृतपाल सिंह के साथ आई भीड़ ने पुलिस पर तलवार, फरसे और डंडों से हमला कर दिया था। ये लोग थाने से अमृतपाल के सहयोगी लवप्रीत तूफान को छुड़ाने आए थे।
अमृतपाल सिंह के साथ आई भीड़ ने पुलिस पर तलवार, फरसे और डंडों से हमला कर दिया था। ये लोग थाने से अमृतपाल के सहयोगी लवप्रीत तूफान को छुड़ाने आए थे।

इस घटना के बाद अमृतपाल सिंह का नाम चर्चा में आ गया। पर अमृतपाल हैं कौन, जिन्हें लोग अगला जरनैल सिंह भिंडरांवाले कह रहे हैं। यही जानने मैं जल्लूपुर खेड़ा गांव पहुंचा। अमृतसर से करीब 40 किमी दूर इसी गांव में अमृतपाल सिंह का घर है।

गांव की संकरी गलियों से गुजरता हुआ, मैं एक किलेनुमा घर के सामने रुका। करीब 12 फीट ऊंची दीवारें, लोहे के मजबूत दरवाजे, घर के ऊपर सिख धर्म के लहराते झंडे, हाथ में कटार, तलवार और बंदूकें लिए कई सेवादार।

जल्लूपुर खेड़ा गांव में अमृतपाल सिंह के घर के बाहर हथियारबंद सेवादार घूमते रहते हैं। इसके अलावा हर आने-जाने वाले पर नजर रखने के लिए CCTV कैमरे भी लगे हैं।
जल्लूपुर खेड़ा गांव में अमृतपाल सिंह के घर के बाहर हथियारबंद सेवादार घूमते रहते हैं। इसके अलावा हर आने-जाने वाले पर नजर रखने के लिए CCTV कैमरे भी लगे हैं।

मैं घर में घुसा और कहा, ‘मुझे अमृतपाल सिंह से मिलना है।’ एक सेवादार ने मुझे दालान में बैठने के लिए कहा। फिर बताया कि अमृतपाल सिंह तैयार हो रहे हैं। करीब आधे घंटे बाद मुझे घर के अंदर से पीछे वाले हिस्से में ले गए।

घर से गुजरते हुए मेरी नजर दीवार पर लटकी सिख कट्टरपंथी जरनैल सिंह भिंडरांवाले की बड़ी सी तस्वीर पर गई। मैंने मोबाइल से उसकी फोटो ले ली। इस पर एक सेवादार तुरंत पलटा और थोड़े गुस्से में बोला- ‘फोटो डिलीट कीजिए। बिना इजाजत फोटो नहीं ले सकते।’ फोटो डिलीट करवाने के बाद ही मुझे आगे बढ़ने दिया। मैं घर के पीछे वाले हिस्से में पहुंचा, वहां खाट और कुर्सियां पहले से लगी हुई थीं।

जिस जगह अमृतपाल सिंह से मुलाकात होनी थी, वह किसी खंडहर जैसी थी। वहां भी हाथ में राइफल लिए कई सेवादार मौजूद थे।
जिस जगह अमृतपाल सिंह से मुलाकात होनी थी, वह किसी खंडहर जैसी थी। वहां भी हाथ में राइफल लिए कई सेवादार मौजूद थे।

कुछ देर बाद एक दरवाजा खुला और राइफल लिए दो सेवादार तेजी से आए। उन्होंने जगह का मुआयना किया, इसके बाद अमृतपाल सिंह की एंट्री हुई। उम्र करीब 29 साल और शख्सियत बिल्कुल जरनैल सिंह भिंडरांवाले से मिलती-जुलती। शुरुआत में वे अपने फोन को देखते हुए कुछ सोचते रहे। इसके बाद शुरू हुआ बातचीत का सिलसिला…

सवाल: अजनाला में हिंसक भीड़ बैरिकेडिंग तोड़कर थाने में घुस गई, आप उसका नेतृत्व कर रहे थे। लोग आपके बारे में जानना चाहते हैं, बताइए आप कौन हैं?
जवाब: देखिए, पहली बात तो ये कि संगत को भीड़ कहना जायज बात नहीं है। दूसरा वहां इतनी ज्यादा हिंसा नहीं हुई है, ये सब सिर्फ 8 सेकेंड के लिए हुआ था, वो भी पुलिस के लाठीचार्ज के बाद। उसके बाद शांति रही।

मैं ड्रग्स और पंजाब के मुद्दा उठाता हूं, इसलिए यूथ मुझसे जुड़ रहे हैं। अमृतपाल सिंह कुछ हो या ना हो, ये मैटर नहीं करता। मैं सिर्फ एक विचार को रिप्रजेंट कर रहा हूं। ये विचार मुझसे पहले भी था और मेरे जाने के बाद भी होगा। कई बार लोगों को लगता है कि ये मेरा खुद का विचार है, ऐसा नहीं है।

सवाल- आपके सहयोगी पर केस हुआ, इसमें अगर कोई पुलिस पर चढ़ाई कर देगा, तो लॉ एंड ऑर्डर तो नहीं रह जाएगा। आप गुरु ग्रंथ साहिब भी साथ ले गए। क्या ये कानून व्यवस्था को चुनौती नहीं है?
जवाब:
ये पर्सनल मसला नहीं है। हमने ड्रग्स सिंडिकेट के खिलाफ लड़ाई शुरू की है और सिंडिकेट चलाने वाले सरकार में बैठे हैं। उन्हें ये बात अच्छी नहीं लगती कि युवा सही रास्ते पर आएं और अपनी राजनीतिक समझ मजबूत करें। पुलिस ने एक झूठी FIR कराई और हमारे साथी को टॉर्चर किया। किसी बेकसूर का जेल में होना सबसे बड़ी हिंसा है।

ये तो कोर्ट तय करेगी न कि वो बेकसूर है या नहीं..
जवाब: कोर्ट ने ही उन्हें जेल से रिहाई दी है। हमने जबरदस्ती जेल से नहीं निकाला। ये पूरा केस हमें फंसाने के लिए किया गया था, लेकिन सरकार की नीति फेल हुई है। गुरु ग्रंथ साहिब की बात है तो हम जहां भी जाते हैं, गुरु ग्रंथ साहिब की ओट में जाते हैं। ये पहला वाकया नहीं है। इंदिरा गांधी ने जब इमरजेंसी लगाई थी, तो उसके विरोध के लिए संत करतार सिंह ने 37 नगर कीर्तन निकाले थे और गुरु ग्रंथ साहिब के साथ निकाले थे।

ये सरकार की नाकामी है कि बिना जांच किए झूठी FIR दर्ज की गई। उसकी जांच नहीं की। हमारा पुलिस सिस्टम अभी भी पुराने जमाने का ही है, उसमें बदलाव नहीं आ रहा है। जिसे कस्टडी में टॉर्चर किया गया, उसकी कौन भरपाई करेगा।

सवाल: अजनाला केस में जो हुआ, उसमें आप जीत गए और पुलिस-प्रशासन हार गया। इसे कैसे देखते हैं?
जवाब:
मैं इसे उनकी हार नहीं कहूंगा, ये पॉलिटिकल सिस्टम की हार है। पुलिस को कभी पॉलिटिकल सिस्टम का टूल नहीं बनना चाहिए। पुलिस स्थायी है, सरकार 5 साल में बदलती रहती है।

सवाल: आपकी रोजमर्रा की जिंदगी कैसी है, क्या काम करते हैं, दिन कैसे बीतता है? जिस रास्ते पर आप चल रहे हैं, उससे क्या हासिल करना चाहते हैं?
जवाब: मैं दुबई से लौटा हूं, तब से संगत में ही मेरा दिन बीतता है। मैं नशे की वजह से बर्बाद हो चुके युवाओं के साथ काम करता हूं। यहां जो लोग आपको काम करते हुए दिख रहे हैं, जो हमारे गार्ड्स हैं, वो सभी नशा करते थे, इंजेक्शन में भरकर हेरोइन लेते थे। आज वो नशे के जाल से निकल आए हैं, खुशहाल जिंदगी बिताते हैं। रोज 20-25 पंजाबी नौजवान और उनके परिवार हमारे पास आते हैं, यहां रुकते हैं। हम उनका इलाज करते हैं।

हमारा मकसद है- पंजाब को ड्रग फ्री सोसाइटी बनाना, पानी का संकट, माइग्रेशन और भाषा का मुद्दा सुलझा रहे लोगों की मदद करना। संप्रभुता का मुद्दा पंजाब में हमेशा से ही रहा है, ये बात कब से बुरी होने लगी। हिंदू राष्ट्र की बात होती है, इस पर तो कोई डिबेट नहीं होती।

पर हम और आप तो हिंदुस्तानी हैं न..
जवाब: ये जो टैगलाइन है, उसे समझिए। अमेरिका एक देश है, लेकिन साउथ अमेरिका के लोग भी अमेरिकन हैं, कनाडा के लोग भी अमेरिकन हैं। उस हिसाब से हम कहें कि हिंदुस्तानी हैं, तो जरूरी नहीं है कि हम एक ही मुल्क में रहेंगे।

हिंद महासागर पर भारत, चीन समेत कई देशों का कंट्रोल हैं। डायवर्सिटी को स्वीकार नहीं किया जाता, वहीं से बात शुरू होती है। अगर ये ना कहा जाता कि सिख हिंदुओं का अंग है, तो बात यहां तक नहीं पहुंचती, न दरबार साहिब पर हमला होता, न आज संप्रभुता की बात आती।

सवाल: आपकी संप्रभुता की बात भारत से अलग मुल्क बनाने तक जाती है। देश में कई धड़े हैं, कोई हिंदू राष्ट्र की मांग करते हैं, कुछ कश्मीर को मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहते हैं।
जवाब:
डेमोक्रेसी में डायलॉग को कभी नहीं दबाया जा सकता। अगर सिखों की खालिस्तान की मांग है, तो इसे दबाया नहीं जा सकता। अभी यहां कोई रेफरेंडम नहीं हुआ, इसलिए नहीं पता कि कितने सिख ये चाहते हैं। मैं रेफरेंडम की मांग नहीं करता। पहले हमें हमारा प्रचार करने दिया जाए।

लोकतंत्र में हमें इसका अधिकार है। इस पर बात होनी चाहिए, तब शायद कोई हल निकल जाए। हो सकता है सरकार साबित कर दे कि हम गलत बात कर रहे हैं, तो हम मान जाएंगे।

सवाल: आपका बचपन कहां बीता, पढ़ाई कहां की, क्या काम किया? ऐसा क्या हुआ कि आप मॉडर्न लाइफ से सिख बाने में आ गए, खालिस्तान का मुद्दा उठाने लगे?
जवाब:
मेरा बचपन जल्लूपुर खेड़ा गांव में बीता। यहीं 10वीं तक पढ़ाई हुई। कपूरथला में मैंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया था, लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं की। इसके बाद मैं दुबई चला गया, वहां 10 साल फैमिली बिजनेस मैनेज किया। 2015 में बरगाड़ी में बेअदबी की घटना हुई, वो न सिर्फ मेरे लिए, बल्कि कई सिखों के लिए ट्रिगर पॉइंट था।

अमृतपाल सिंह दुबई में रहकर ट्रांसपोर्ट का कारोबार कर रहे थे। पिछले साल सितंबर में वह दुबई में कामकाज समेटकर पंजाब आ गए।
अमृतपाल सिंह दुबई में रहकर ट्रांसपोर्ट का कारोबार कर रहे थे। पिछले साल सितंबर में वह दुबई में कामकाज समेटकर पंजाब आ गए।

सवाल: लोग कहते हैं कि आप जरनैल सिंह भिंडरांवाले की तरह दिखते हैं। उनकी जवानी की फोटो और आपकी फोटो को सोशल मीडिया पर शेयर किया गया। क्या ये लुक आपने उन्हीं से लिया है?
जवाब: ये पहनावा जरनैल सिंह भिंडरांवाले का नहीं है, जो लोग कल्चर को नहीं जानते, वो ऐसी बात करते हैं। करतार सिंह भिंडरांवाले, संत गुरबचन सिंह भिंडरांवाले सभी ने यही बाना पहना है। सिख धर्म में उपदेश देने वाले का ये बाना होता है, निहंगों का बाना अलग होता है। जितनी भी टकसालें (सिख धार्मिक शिक्षा केंद्र) हैं, उनमें ये बाना आज भी पहना जाता है।

सवाल: आपने सिख धर्म की शिक्षा किस टकसाल में ली और कितने साल धर्म के बारे में पढ़ाई की?
जवाब:
मेरी ट्रेनिंग किसी टकसाल में नहीं हुई, न ही मैंने धर्म की शिक्षा ली। मैंने घर से ही धर्म की शिक्षा ली है। उपदेश देने के लिए धर्म की शिक्षा की जरूरत नहीं होती। सिखी में ऐसा कोई कोर्स नहीं है, लेकिन टकसाल में रहने वालों को ज्ञान होता है, ये बात सही है।

सवाल: आप अलग देश की मांग कर रहे हैं। कोई और करता तो अब तक UAPA, NSA और राजद्रोह कानून लग जाता। पुलिस ही नहीं, CBI-NIA पीछे लग जातीं। आप पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, ऐसा क्यों?
जवाब:
अगर जांच एजेंसियों ने छोड़ दिया होता, तो पुलिस मुझ पर फर्जी केस क्यों करती। राजद्रोह और UAPA जैसे कानून लोकतांत्रिक देश में क्यों हैं, ये सबसे बड़ा सवाल है। कल को सेंट्रल एजेंसी मुझे मरवा दें, ये भी हो सकता है। मैं जहां जाता हूं, मेरा प्रचार रोकने की कोशिश की जाती है।

जब तक सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है सरकार को एक्शन लेने का हक नहीं है। हमने हिंसक तरीके नहीं अपनाए हैं। अपनी पहचान, संप्रभुता, मुद्दों पर बात करना अपराध नहीं है। खालिस्तानी लोगों पर सख्त कानूनों में कार्रवाई हुई है, कई सारे खालिस्तानी सजा पूरी कर लेने के बावजूद जेल में है।

सवाल: मैंने अमरनाथ और वैष्णो देवी की यात्रा में कई सिखों को देखा है। ऐसे ही हिंदू भी गुरुद्वारे जाते हैं। क्या धर्म के आधार पर अलग देश की मांग ठीक है?
जवाब: हमारी संस्कृति क्या है, ये हमारे गुरु ने बताया है। उन्होंने बताया कि हम न हिंदू, न मुसलमान। सिख धर्म में मूर्तिपूजा वर्जित है, लेकिन अगर हिंदू मूर्तिपूजा करते हैं, तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। महाराजा रणजीत सिंह ने कई मंदिर बनवाए, लेकिन वो मंदिर में जाकर पूजा नहीं करते थे।

हिंदुओं में नियम नहीं है, जो उन्हें रोके कि गुरुद्वारे नहीं जाना है। सिख धर्म अपने अनुयायियों को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं देता। हमारे पास नशा छोड़ने के लिए हिंदू लड़के आते हैं, हम उन्हें मना नहीं करते।

सवाल: पंजाब के CM भगवंत मान ने कहा है कि अजनाला में जो हुआ, उसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है। अमृतपाल सिंह की जो ताकत दिख रही है, इसके पीछे कौन है?
जवाब: पाकिस्तान बंटवारे की कगार पर है, वहां इकोनॉमिक क्राइसिस चल रहा है। भारत और पाकिस्तान दोनों में आइडेंटिटी का क्राइसिस है। भारत में तमिल, मराठों की पहचान का संकट है। विविधता में एकता सिर्फ बोलने से नहीं हो जाती, अगर तमिलनाडु पर हिंदी नहीं थोपी जाती तो वहां विरोध शुरू ही नहीं होता। पंजाब में हिंदी को थोपा जाना भी दिक्कत की बात है। अगर हम दूर बैठकर बलूचिस्तान की दिक्कत को समझते हैं, तो अपने लोगों की भी समझना चाहिए।

सवाल: आपने कहा कि आपका लक्ष्य खालिस्तान बनाना है। आपका रोडमैप क्या है। क्या ये आंदोलन हिंसक होगा? आप इतने लाव-लश्कर के साथ चलते हैं, चार लोग आगे पीछे राइफल लेकर खड़े हैं।
जवाब:
जो लोग सत्ता का हिस्सा नहीं होते, वो कभी भी हिंसा का रास्ता नहीं चुनते हैं। बंदूक और तलवारें सिख धर्म के कोड ऑफ कंडक्ट में है। बंदूकें हमारे सेल्फ डिफेंस के लिए हैं, हमने ड्रग सिंडिकेट के खिलाफ मोर्चा खोला है, वो हमारी जान के दुश्मन हैं, इसलिए सेल्फ डिफेंस जरूरी है। खालिस्तान का इश्यू तो अब आया है।

अमृतपाल सिंह के साथ उनके बॉडीगार्ड। ये सभी बंदूक और हथियारों से लैस रहते हैं।
अमृतपाल सिंह के साथ उनके बॉडीगार्ड। ये सभी बंदूक और हथियारों से लैस रहते हैं।

सवाल: आप गुरपतवंत सिंह पन्नू जैसे खालिस्तानी नेताओं के संपर्क में हैं क्या ? क्या वे आपके मूवमेंट के साथ हैं?
जवाब: हम हर एक खालिस्तानी के साथ सहानुभूति रखते हैं। बस तरीके अलग हैं। खालिस्तान का विचार बुराई नहीं है, भारत सरकार ने दरबार साहिब पर जो हमला किया था, वो भूल नहीं, सिखों के लिए ट्रॉमा है, ये पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों तक पहुंचता रहेगा। अगर सरकार बातचीत करती है, तो कोई समाधान निकल सकता है। पंजाब में बहुत सारे गुट हैं, जो खालिस्तान के लिए खड़े होते हैं, जैसे दल खालसा, शिरोमणि अकाली दल-अमृतसर। कई गुट अपनी-अपनी तरह से लड़ रहे हैं।

गुरपतवंत सिंह पन्नू ने खालिस्तान की मुहिम को फिर जिंदा करने के लिए ‘सिख फॉर जस्टिस’ नाम का संगठन बनाया है। भारत सरकार 2019 में इसे बैन कर चुकी है।
गुरपतवंत सिंह पन्नू ने खालिस्तान की मुहिम को फिर जिंदा करने के लिए ‘सिख फॉर जस्टिस’ नाम का संगठन बनाया है। भारत सरकार 2019 में इसे बैन कर चुकी है।

सवाल: अगर समझौते की मेज पर आपसे बात की जाए और कहा जाए कि खालिस्तान की मांग छोड़िए, तो आप क्या मांग रखेंगे?
जवाब: सिखों के साथ जो अन्याय हुआ है, उसकी भरपाई करनी होगी। कई सिख जेल में बंद हैं, पानी, ड्रग, पलायन.. ये सारे मुद्दे हैं। जिस तरह से हिमाचल में कानून हैं कि वहां कोई जमीन नहीं खरीद सकता, इसी तरह पंजाब में भी कानून होना चाहिए।

पंजाब में जो भी सरकारी नौकरियां हैं, उनमें 95% का कोटा बनाकर पंजाबियों को नौकरियां दी जानी चाहिए। पलायन को रोकने के लिए सख्त नीतियां लानी चाहिए। ये सुनिश्चित करना होगा कि जो व्यक्ति पंजाब में पलायन कर रहा है, कहीं वो संस्कृति के लिए खतरा तो नहीं है।

सवाल: पंजाब का कल्चर पूरे देश में मशहूर है, खाने से लेकर गाने तक। ये तो वैसे ही फल-फूल रहा है, फिर क्या दिक्कत है?
जवाब: पंजाब के कल्चर को स्टीरियोटाइप किया जा रहा है। सरसों का साग और मक्के की रोटी सिर्फ पंजाब का खाना नहीं है। पंजाब में हर घर में शराब पी जाती है, बॉलीवुड ने इसे स्टीरियोटाइप कर दिया है। सरकार को कल्चर को बचाने के लिए जो कदम उठाने चाहिए, वो सरकार नहीं कर रही है। हम बैंकों में जाते हैं, तो वहां हिंदी बोलने वाले भरे हुए हैं। कहा जाता है कि हिंदी में बात करें, लेकिन यहां के लोगों को हिंदी नहीं आती है। पंजाब देखने से शांतिपूर्ण लगता है, लेकिन ऐसा है नहीं।

पंजाब में खालिस्तान चर्चा में, आनंदपुर साहिब रिजोल्यूशन के जरिए मांगे थे ज्यादा अधिकार
खालिस्तान आंदोलन की कहानी 1929 में शुरू होती है। 1973 में अकाली दल ने अपने राज्य के लिए स्वायत्तता की मांग की। ये मांग आनंदपुर साहिब रिजोल्यूशन के जरिए मांगी गई थी। आनंद साहिब रिजोल्यूशन का ही कट्टर समर्थक था जरनैल सिंह भिंडरांवाले। रागी के तौर पर सफर शुरू करने वाले भिंडरांवाले आगे चल कर उग्रवादी बन गया। 1982 में भिंडरांवाले ने शिरोमणि अकाली दल से हाथ मिला लिया और असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। यही असहयोग आंदोलन आगे चलकर सशस्त्र विद्रोह में बदल गया।
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