संडे जज्बात54 की उम्र में 17,598 फीट चढ़ाई की:फिट रहना है; बेटियां मेरे लिए अस्पताल के चक्कर काटें यह नहीं चाहता

13 दिन पहलेलेखक: जेडी मजीठिया
  • कॉपी लिंक

मेरा नाम जेडी मजीठिया है। 54 साल का हूं। खिचड़ी टीवी सीरियल का ‘हिमांशु’ मैं ही हूं। मैं एक डायरेक्टर और प्रोड्यूसर भी हूं। हाल ही में 17,598 फीट की ऊंचाई पर एवरेस्ट बेस कैंप करके वापस लौटा हूं। जिसके पीछे कहानी है खुद को फिट रखने की। चलो मैं अपनी कहानी शुरू करता हूं।

हम पांच भाई और दो बहन हैं। जब मैं पैदा होने वाला था तो मौसी ने मां से कहा कि अगर बेटा होगा तो मुझे दे देना। मां इस बात पर राजी भी हो गई। जब मैं पैदा हुआ तो मां ने मुझे कुछ दिन तक अस्पताल में ही रखा। कुछ दिन के बाद वह मौसी से बोलीं कि अब मैं तुम्हें अपना बेटा नहीं दे सकती हूं। मुझे इससे मोह हो गया है।

हम लोग बहुत अमीर नहीं थे। मेरे पिता की एक कॉलेज में किताबों की दुकान थी। मैंने उन्हें और अपनी मां को कमर तोड़ मेहनत करते हुए देखा है। मुझे याद है कि मेरे पापा दोनों कंधों पर सब्जी का थैला लटकाकर 5 से 7 किलोमीटर पैदल चलकर घर आते थे।

अपने भाईयों में से सिर्फ मैं ही था जो कॉलेज तक गया। मैंने मुंबई के मशहूर एनएम कॉलेज से कॉमर्स की पढ़ाई की।

कॉलेज टाइम से ही मिमिक्री करता था। थियेटर भी करता रहता था। मैं हमेशा से ऐड एजेंसी में जाना चाहता था। पढ़ाई खत्म करने के बाद मैंने एक एजेंसी जॉइन कर ली। जल्द ही पता चला कि मैं जो सपना लेकर वहां गया था, वो ऐड एजेंसी में कभी पूरा नहीं हो सकता था।

मेरे बॉस बहुत डिमोटिवेट किया करते थे। उस वक्त तो खराब लगता था, लेकिन आज सोचता हूं कि मेरे लिए अच्छा ही हुआ। जब-जब मेरे साथ ऑफिस में खराब बर्ताव हुआ, मुझे लगा नौकरी छोड़कर कुछ अच्छा करना है।
मेरे बॉस बहुत डिमोटिवेट किया करते थे। उस वक्त तो खराब लगता था, लेकिन आज सोचता हूं कि मेरे लिए अच्छा ही हुआ। जब-जब मेरे साथ ऑफिस में खराब बर्ताव हुआ, मुझे लगा नौकरी छोड़कर कुछ अच्छा करना है।

पिता का साथ देने के लिए मैं हमेशा अपने से एक क्लास छोटी क्लास को ट्यूशन पढ़ाया करता था। मैंने उन पैसों को जमा करना शुरू कर दिया। कुछ और पार्ट टाइम काम भी किए। पैसे जमा करके एक मोटर साइकिल खरीदी।

अब मैं नौकरी छोड़ चुका था। सोचा कि मैं फुल टाइम फिल्मों में काम करुंगा। एक शो की रील बनाई। ये एक फीचर फिल्म की तरह थी। इसमें मैंने भी काम किया। मैंने ही प्रोड्यूस किया। मुझे लग रहा था कि इसे बड़े-बड़े प्रोडयूसर-डायरेक्टर को दिखाऊंगा और मुझे काम मिल जाएगा।

लेकिन ऐसा हुआ नहीं। किसी ने मुझे काम नहीं दिया। यहां तक कि मैंने इसके लिए विज्ञापन भी दिए थे। फिल्म का नाम था ‘यस यू किल्ड शाहरुख खान।’

दरअसल उस वक्त शाहरुख खान का दौर था। ‘डर’ और ‘बाजीगर’ जैसी फिल्मों की वजह से उनकी फैन फॉलोइंग बड़ी थी। टाइटल देखकर लोगों को ऐसा लग रहा था कि यह फिल्म शाहरुख खान की है।

रिस्पॉन्स न मिलने की वजह से मैं दुखी था। मुझे काम नहीं मिल रहा था। इस बीच मुझे शाहरुख खान के ऑफिस से फोन आया। इस तरह के फिल्म टाइटल के लिए मुझे लिखित में माफी मांगने के लिए कहा गया। मेरे बचे हुए पैसे भी माफीनामा में चले गए।

अब फिल्म का सपना छोड़, मैंने सिर्फ थियेटर पर ध्यान देना तय किया। मैंने सोचा कि मैं सिर्फ एक्टिंग ही नहीं करूंगा बल्कि प्ले प्रोड्यूस भी करूंगा। मैं जानता था कि एक्टर की उम्र बहुत लंबी नहीं होती है। जो नाटक मैंने प्रोड्यूस किए थे वो खूब चले थे। लोग दो-दो साल तक टिकट लेकर उसे देखने आए। मुझे लगता है कि थियेटर से मैंने जो शुरुआत की, उसके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

मेरे बिजनेस पार्टनर आतिश कपाड़िया हैं। वो मेरे अच्छे दोस्त भी हैं। हमें किसी ने प्रोडक्शन हाउस के मालिक रोनी स्क्रूवाला से मिलवाया। हम दोनों ने उन्हें ‘खिचड़ी’ टीवी सीरियल का कॉन्सेप्ट बताया।

‘खिचड़ी’ के कैरेक्टर हमारे अलग-अलग नाटकों के ही पात्र थे। जिन्हें हमने एक टीवी सीरियल में डाल दिया था।
‘खिचड़ी’ के कैरेक्टर हमारे अलग-अलग नाटकों के ही पात्र थे। जिन्हें हमने एक टीवी सीरियल में डाल दिया था।

खिचड़ी ने जो मील का पत्थर तय किया उससे टीवी की दुनिया हमारे लिए खुल गई। फिर तो ‘साराभाई वर्सेस साराभाई’ और ‘बा बहू और बेबी’ जैसे सीरियल बनाए।

हमारा काम सही चल रहा था। इसके बाद भी ‘खिचड़ी’ सीरियल करते-करते हम बोर हो गए थे। हमने इसे बंद करने का फैसला लिया। इसके लिए चैनल राजी नहीं हुआ। हमने चैनल से कहा कि हम इसका सेकेंड सीजन लाएंगे। बस, हमें थोड़ा ब्रेक चाहिए।

15 साल से मैं इंडियन फिल्म एंड टीवी प्रोड्यूसर काउंसिल का चेयरमैन हूं। जिसमें हमने टीवी के स्ट्रक्चर, उसके कैनवास को बड़ा किया है।

यह सब करते-करते मुझे लगने लगा था कि अब मेरा शरीर पहले जैसा नहीं रहा। मेरा शरीर जवाब दे रहा था। उम्र हावी हो रही थी। घुटने की सर्जरी भी हुई।

एक दिन मैंने अपने आपको स्क्रीन पर यह जानने के लिए देखा कि मैं इसमें कितना जवान दिखाई दे रहा हूं। उस दिन के बाद मैंने फैसला किया कि काम-धंधा अपनी जगह है। अगर मैंने इस समय शरीर पर काम नहीं किया तो शरीर भी मेरा साथ नहीं देगा।

मुझे याद आया कि मेरी पत्नी जो शादी से पहले मेरी गर्लफ्रेंड थी, उससे मिलने के लिए मैं अस्पताल जाया करता था। वह हमारा डेटिंग स्पॉट था। कम उम्र में उसके पिता बीमार हो गए और लंबे समय तक अस्पताल में एडमिट रहे। वह अस्पताल में अपने पिता की देखभाल करती थी।

उसकी दौड़-धूप देखकर मुझे बहुत खराब लगता था कि इस लड़की के साथ इतनी कम उम्र में क्या हो रहा है। इसकी उम्र खुला आसमान देखने की है। समुद्र की लहरों का शोर सुनने की है और यह सारा दिन यहां अस्पताल में रहती है। इसे कुछ नहीं पता कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है।

मेरे दोस्त और पार्टनर आतिश कपाड़िया ने भी बहुत कम उम्र में अपनी मां को खो दिया है। बिना मां के उनका जीवन कैसा बीता यह मैं जानता हूं।

ऐसे में मैं अपने पिता की बात करूं तो हमेशा चलने-फिरने और भजन गाने वाले मेरे पिता अब बोल नहीं पाते हैं। आज मेरे पास सबकुछ है। दुनिया में अगर कुछ मिस करता हूं तो वो है अपने पिता की जुबान।

मेरे पिता की जुबान चली गई है। वह बिस्तर पर लेटे रहते हैं। मैं उन्हें एक बच्चे की तरह ट्रीट करता हूं। मैं उनकी आवाज सुन नहीं सकता, लाचार महसूस करता हूं।
मेरे पिता की जुबान चली गई है। वह बिस्तर पर लेटे रहते हैं। मैं उन्हें एक बच्चे की तरह ट्रीट करता हूं। मैं उनकी आवाज सुन नहीं सकता, लाचार महसूस करता हूं।

मैं अपने पिता से बात करता हूं। उनके साथ हंसता हूं, खेलता हूं। वो बस देखते रहते हैं। मैं उनका वीडियो बनाकर उन्हें दिखाता हूं। कई बार उनके पुराने भजन गाते हुए वीडियो भी उन्हें दिखाता हूं। वो हैरान होते हैं कि तब और अब के वीडियो में मैं कैसा दिखाई दे रहा हूं।

एक बार होली वाले दिन घर में अकेला था। हालांकि मैं बहुत कम सिरगेट पीता हूं। वो भी रात में या फिर घर से बाहर। उस दिन मैंने मेरे बैग में देखा कि एक सिगरेट रखी है। पता नहीं, मेरे दिमाग में क्या आया कि मैंने उसे बालकनी में जाकर सुलगा लिया। अचानक से मेरी छोटी बेटी ऊपर आ गई। बालकनी में मुझे देखा। मैंने सिगरेट छिपा ली। उसने मुझसे कहा, 'सिगरेट पी रहे हो। मर जाओगे, फिर मत कहना कि मैंने टोका नहीं।'

इन सब घटनाओं का धुंआ ऐसा दिमाग में जमा हुआ कि जब वो छटा तो लगा कि सिर्फ और सिर्फ सेहत पर ध्यान देना है।

मेरी दो बेटियां हैं। मैं नहीं चाहता कि खेलने-कूदने की उम्र में वह मेरी देखभाल के लिए अस्पताल के चक्कर काटें। मेरे लिए दवाएं लाएं।

मैं चाहता हूं कि वह अपनी लाइफ एंजॉय करें। खुश रहें। खूब तरक्की करें। जिंदगी को जिएं, उसके लिए मेरा सेहतमंद होना बहुत जरूरी था।

उम्र के प्रोसेस को स्लो डाउन करने के लिए मैंने अपने आपको चुनौती दी। मैं जानता हूं कि अगर आप चाह लो तो अस्पतालों से दूर रह सकते हैं।

बच्चों को खुश रखने के लिए मेरा काम करना भी जरूरी था। काम करने के लिए भी हेल्दी रहना जरूरी था। मरना तो सभी को है, बूढ़ा भी होना है, लेकिन मैं अस्पताल में मरना नहीं चाहता हूं।
बच्चों को खुश रखने के लिए मेरा काम करना भी जरूरी था। काम करने के लिए भी हेल्दी रहना जरूरी था। मरना तो सभी को है, बूढ़ा भी होना है, लेकिन मैं अस्पताल में मरना नहीं चाहता हूं।

मेरे बहुत सारे डर थे। मैंने धीरे-धीरे अपने हर डर को जीतना शुरू किया। मुझे ऊंचाई से, गहराई से शायद घबराहट होती थी। मैंने स्कूबा ड्राइविंग की, बंजी जंपिंग की, फिर मैं 'सर्वाइवर इंडिया- द अल्टीमेट बैटल' शो में गया। जहां मुझे फिलीपींस के एक टापू में छोड़ दिया गया।

मैं 52 दिन एक ऐसे टापू में रहा, जहां पीछे जंगल था और आगे समुद्र। बीस दिन के लिए मात्र एक छोटी सी मुट्ठी भर चावल दिए गए। गिरा हुआ कोई नारियल मिल जाता था तो खा लेता था। वहां जाने से मेरे स्वाद भी चले गए। मुझे समझ में आया कि स्वाद कुछ नहीं है। बस जिंदा रहने भर के लिए खाना होना चाहिए।

बीते दिनों मैं अपनी छोटी बेटी मिश्री के साथ ‘ऊंचाई’ फिल्म देख रहा था। बस फिल्म देखने के बाद मैंने मिश्री से कहा कि मैं माउंट एवरेस्ट जा रहा हूं। मैंने अपने चार दोस्तों से भी इस बारे में बात की। उनसे अपने साथ चलने को कहा। इस पर वह कहने लगे कि पागल हो गया है तू। हमें तो यह बीमारी, वो बीमारी है। तू अकेले ही जा।

मैंने तय किया कि कोई जाए या न जाए मैं तो जाऊंगा ही। मैंने कई महीने वहां जाने की तैयारी मुंबई से शुरू की। दो दिन वॉक, दो दिन जिम, दो दिन फिजियोथेरेपी। साथ ही अपनी डाइट पर भी विशेष ध्यान दिया।

खैर मैं 5 तारीख को मुंबई से काठमांडू पहुंचा। वहां से लुक्ला और रामेछाप। रामेछाप जिस दिन हम पहुंचे, उसी दिन हमने पैदल चलना शुरू कर दिया था। कुल 12 दिनों में से मैं 8 दिन पैदल चला।

लुक्ला से रामेछाप जाने के लिए हम काफी लेट हो गए थे। हमारी फ्लाइट थी। फ्लाइट मिस न हो इसके लिए घाटियों में ड्राइवर ने बहुत तेज गाड़ी दौड़ाई। वो मेरी जिंदगी का सबसे खतरनाक दिन था। हम नौ लोग थे। हम सब की हालत बुरी थी। उल्टियां करते-करते पसलियां दर्द हो गईं। इसके बाद हम फ्लाइट पकड़ने में कामयाब हो गए।

मैं हाल में ही एवरेस्ट बेसकैंप करके लौटा हूं। नेपाल की ओर से माउंट एवरेस्ट का बेस 17,598 फीट की ऊंचाई पर है। यह एवरेस्ट की कुल ऊंचाई का 60% है। ज्यादातर लोग माउंट एवरेस्ट के बेसकैंप तक ही चढ़ाई करते हैं।

अब ऐसा लग रहा है कि नया जीवन मिला है। पहले से ज्यादा जवान और काम करने का जुनून। अब मैं जिंदगी जीता हूं, पहले सिर्फ जीता था। मैं जान गया हूं कि पैसे का उतना ही इस्तेमाल कर पाओगे, जितना करना है।

बाकी पैसे का उपयोग तो वो लोग करेंगे, जो आपका नाम भी नहीं जानते हैं।

अगर सेहत ने साथ न दिया तो आप बस बिस्तर पर पड़े रहोगे। पैसे- नेटवर्क, रिश्ते कुछ काम नहीं आएंगे।

क्यों कठिन है बेस कैंप तक पहुंचना

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट नेपाल और तिब्बत की सीमा भी है। इस प्रकार इसके दो बेस कैंप हैं।

एक दक्षिणी बेस कैंप नेपाल में है। दूसरा उत्तरी बेस कैंप तिब्बत में है।

इन बेस कैंपों का इस्तेमाल पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट के पर्वतारोहण के लिए करते हैं।

पर्वतारोही दक्षिणी बेस कैंप का इस्तेमाल दक्षिण-पूर्वी चोटी से चढ़ते समय किया जाता है। जबकि उत्तरी बेस कैंप का इस्तेमाल पूर्वोत्तर चोटी से चढ़ते समय किया जाता है।

साउथ बेस्ट कैंप की ऊंचाई 17,598 फीट है, नॉर्थ बेस कैंप 16,900 फीट की ऊंचाई पर है।

जेडी मजीठिया ने ये सारी बातें भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की हैं…

खबरें और भी हैं...