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भास्कर एक्सक्लूसिवद्रौपदी के घर प्रेम विवाह प्रस्ताव लेकर पहुंचे थे श्याम:दहेज में मुर्मू को मिली एक गाय, एक बैल और 16 जोड़ी कपड़े

8 महीने पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी
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दिल्ली से 1650 किमी दूर भुवनेश्वर, वहां से करीब 300 किमी दूर मयूरभंज और वहां से और 25 किमी दूर एक आदिवासी गांव है पहाड़पुर। चारों ओर से भीगे और सुस्त पड़े गांव के छोर तक पहुंचती साफ-सुथरी सड़कें। आधा पक्का-आधा कच्चा सा एक घर। सामने बंधे तार पर सूखता एक लाल और दूसरा मटमैला गमछा और मिमयाती बकरियां।

बांस का बना छोटा दरवाजा। खटखटाया तो बाहर आए लक्ष्मण बासी। बुजुर्ग, कमर से थोड़े झुके हुए, लेकिन चुस्त। मैंने पूछ लिया- द्रौपदी मुर्मू को जानते हैं? तपाक से कहा- 'जानेंगे क्यों नहीं, उसके घर श्याम चरण का रिश्ता लेकर हम लोग ही तो गए थे।’

ठिठके, फिर थोड़े मुस्कुराए और कहने लगे- ‘प्रेम विवाह था दोनों का। द्रौपदी के घर जाने से एक हफ्ता पहले श्याम ने मुझे बताया था- उसको प्रेम हुआ है।' करीब 42 साल पुरानी बात है ये। फिर यही पहाड़पुर गांव द्रौपदी टुडू का ससुराल बन गया। हां… वो पहले द्रौपदी टुडू थीं, श्याम से शादी के बाद द्रौपदी मुर्मू हो गईं।

राजनीति में आने से पहले द्रौपदी मुर्मू रायरंगपुर में एक स्कूल में टीचर थीं। तस्वीर में पीछे खड़ीं मुर्मू मंद-मंद मुस्कुरा रही हैं।
राजनीति में आने से पहले द्रौपदी मुर्मू रायरंगपुर में एक स्कूल में टीचर थीं। तस्वीर में पीछे खड़ीं मुर्मू मंद-मंद मुस्कुरा रही हैं।

अब चलिए कहानी में उतरते हैं...

तब द्रौपदी मुर्मू भुवनेश्वर से ग्रेजुएशन कर रही थीं। पढ़ाई में अव्वल तो थीं हीं, न होतीं तो 7वीं की पढ़ाई के बाद भला भुवनेश्वर कैसे पहुंचतीं। उस समय अपने गांव उपरवाड़ा (मुर्मू का मायका) से भुवनेश्वर जाकर पढ़ने वाली वे इकलौती लड़की थीं। साल 1969 से 1973 तक आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ीं और उसके बाद ग्रेजुएशन के लिए भुवनेश्वर के रामा देवी वुमंस कॉलेज में दाखिला लिया।

उन्हीं दिनों श्याम चरण मुर्मू से उनकी मुलाकात हुई। श्याम चरण भी भुवनेश्वर के एक कॉलेज से पढ़ाई कर रहे थे। फिर दोनों में प्रेम हुआ। इसके बाद श्याम द्रौपदी के घर विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। यह बात 1980 की है।

द्रौपदी के पिता को मनाने के लिए श्याम तीन दिन तक गांव में डटे रहे

द्रौपदी की भाभी शाक्यमुनि कहती हैं, 'मैं तो उनकी शादी के बाद यहां आई, लेकिन बातों ही बातों में मुझे सास ने बताया था कि पिताजी यानी बिरंची नारायण टुडू को जब पता चला तो वे द्रौपदी से गुस्सा हो गए। वे इस रिश्ते से खुश नहीं थे, लेकिन श्याम भी ठानकर आए थे कि द्रौपदी से संबंध पक्का करके ही जाएंगे। श्याम अपने गांव के रिश्ते के चाचा लक्ष्मण बासी, अपने सगे चाचा और गांव के दो-तीन लोगों को लेकर द्रौपदी के गांव पहुंचे थे।'

उन्होंने अपने रिश्तेदारों के साथ तीन-चार दिन के लिए उपरवाड़ा गांव में डेरा डाल लिया था। उधर द्रौपदी ने भी मन बना लिया था कि शादी करुंगी तो उन्हीं से। मानमनौव्वल में थोड़ा वक्त लगा। आखिरकार सब राजी हो गए।

अब शादी तो पक्की हो गई, लेकिन दहेज तय होना बाकी था। आदिवासियों में लड़के के घर वाले ही रिश्ता लेकर जाते हैं।

राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने के बाद हाल ही में द्रौपदी मुर्मू रायरंगपुर गई थीं। वहां शिव मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद उन्होंने झाड़ू भी लगाई थी।
राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने के बाद हाल ही में द्रौपदी मुर्मू रायरंगपुर गई थीं। वहां शिव मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद उन्होंने झाड़ू भी लगाई थी।

द्रौपदी की चाची जमुना टुडू संथाली भाषा में कहती हैं- ‘दहेज में तय हुआ एक गाय, बैल और 16 जोड़ी कपड़े। द्रौपदी के घर वाले इतने पर राजी हो गए थे।'

द्रौपदी संथाल समाज से आती हैं। श्याम भी उसी समाज के थे। इस समाज में लड़की के परिवार को लड़के का परिवार दहेज देता है। लड़की और लड़के के घर वाले मिलकर तय करते हैं, दहेज कितना और क्या होगा। उस बातचीत में जितना तय हुआ, श्याम मुर्मू ने बिना समय गंवाए हां कर दी। और फिर रिश्तेदारों के साथ अपने गांव लौट गए।

कुछ दिन बाद श्याम से द्रौपदी का विवाह हो गया। श्याम चरण के चाचा बताते हैं, 'आदिवासियों के यहां दावत कैसी होगी, लाल-पीले देसी मुर्गे का भोज हुआ था। तब यही सब शादी में बनता था।'

द्रौपदी-श्याम के विवाह की तारीख किसी को नहीं पता

द्रौपदी मुर्मू की शादी 1980 में हुई थी। ये तो सबको पता है, लेकिन तारीख किसी को पता नहीं। उनकी चाची से जब पूछा तो बोलीं कि इतनी पुरानी बात कैसे याद रहेगी? भाई ने कहा- उस वक्त मैं 17-18 साल का था। पहले तारीख पर कहां इतना ध्यान देते थे। सालभर याद रहता था।

वे मुस्करा कर कहते हैं- ‘अब मुझे यह थोड़े ही पता था कि इतना सब बताना पड़ेगा।’ शादी की तारीख की पड़ताल उनके ससुराल पहाड़पुर, मायके उपरवाड़ा और फिर रायरंगपुर तक की। पर अब ये किसी को याद नहीं।

जिस घर दुल्हन बनकर आईं, वहां अब आवासीय विद्यालय

रायरंगपुर में द्रौपदी मुर्मू की ओर से बनवाई गई पति और दोनों बेटों की प्रतिमाएं। हर साल द्रौपदी इन लोगों की डेथ एनिवर्सरी पर यहां आती हैं।
रायरंगपुर में द्रौपदी मुर्मू की ओर से बनवाई गई पति और दोनों बेटों की प्रतिमाएं। हर साल द्रौपदी इन लोगों की डेथ एनिवर्सरी पर यहां आती हैं।

पहाड़पुर गांव के बीच में एक अच्छा भवन है। SLS यानी श्याम लक्ष्मण शिपुन उच्चतर प्राथमिक विद्यालय। दरअसल 1984 में द्रौपदी की 3 साल की बेटी की मौत हो गई। इसके बाद 2010 में उनका पहला बेटा, 2013 में दूसरा और 2014 में उनके पति की मौत हो गई। इसके बाद द्रौपदी ने अगस्त 2016 में अपने घर को स्कूल में तब्दील कर दिया।

हर साल द्रौपदी अपने बेटों और पति की डेथ एनिवर्सरी पर यहां जरूर आती हैं। इस स्कूल में पढ़ने वाली एक बच्ची कहती है- 'हमें गर्व है कि अब वे राष्ट्रपति बनेंगी। जब जीतेंगी तो हम यहां पार्टी करेंगे। गाना गाएंगे और नाचेंगे।’

गांव की बहू के स्वागत में हर जगह लगे हैं बैनर-पोस्टर

राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनने के बाद से द्रौपदी के ससुराल पहाड़पुर में खुशनुमा माहौल है। गांव वालों ने एक बैनर बनवा रखा है। बैनर के दोनों ओर द्रौपदी की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हैं और लिखा है, राष्ट्रपति पद की प्रार्थिनी द्रौपदी मुर्मू, पहाड़पुर गांव आपका स्वागत करता है।

यह बैनर उस रास्ते पर लगाया गया है जो संथालों के जाहिरा यानी पूजा स्थल के लिए जाता है। 400 वोटर वाले इस गांव में करीब 100-125 घर हैं। इस गांव में हो, मुंडा और संथाल तीन आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं।

जीत के लिए कहीं बुढ़म ठाकुर, तो कहीं शालग्राम की पूजा

द्रौपदी मुर्मू के गांव में अभी से जीत के जश्न की तैयारियां शुरू हो गई हैं। जगह-जगह आदिवासी समुदाय के लोग पारंपरिक नृत्य कर रहे हैं।
द्रौपदी मुर्मू के गांव में अभी से जीत के जश्न की तैयारियां शुरू हो गई हैं। जगह-जगह आदिवासी समुदाय के लोग पारंपरिक नृत्य कर रहे हैं।

खास परंपरा से पहले पूजा पाठ, फिर नाच गाना आखिर में भोज। कहीं खिचड़ी तो कहीं भात-दालमा। 14 जुलाई को पहाड़पुर में संथालों ने अपने इष्ट शालग्राम की पूजा की। शाल के पेड़ों को शालग्राम कहा जाता है। संथाल समुदाय के लोग इसी पेड़ की पूजा करते हैं। शाल के साथ कुछ अन्य पेड़ों से भरा करीब एक एकड़ का एरिया होता है, इसे जाहिरा यानी पूजास्थल कहते हैं। इससे पहले गांव के हो और मुंडा समुदाय के लोगों ने बहू द्रौपदी की जीत के लिए आशीर्वाद मांगा।

पहाड़पुर ही नहीं बल्कि मयूरभंज जिले के हर गांव में अलग-अलग समुदाय के आदिवासी अपने देवता की पूजा-पाठकर जीत की गुहार लगा रहे हैं।

मटियागौड़ ग्राम पंचायत के कांपड़ गांव में बाथुड़ी समुदाय के आदिवासियों ने अपने देवता बुढ़म ठाकुर की पारंपरिक पद्धति से पूजा की। बुढ़म ठाकुर पीपल के पेड़ पर निवास करते हैं। पूजा पाठ के बाद पवित्र नाच पूजा का अहम हिस्सा है।

द्रौपदी मुर्मू की जीत तय है। यहां के लोगों को भी पूरा यकीन है। इसके बाद भी उन्हें राष्ट्रपति बनाने के लिए लोग पारंपरिक पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
द्रौपदी मुर्मू की जीत तय है। यहां के लोगों को भी पूरा यकीन है। इसके बाद भी उन्हें राष्ट्रपति बनाने के लिए लोग पारंपरिक पूजा-अर्चना कर रहे हैं।

राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है। 21 जुलाई को नतीजे घोषित होंगे और 25 जुलाई को शपथ ग्रहण। NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना तकरीबन तय है। तो भास्कर द्रौपदी मुर्मू के ओडिशा स्थित पहाड़पुर गांव पहुंचा। पहली कड़ी में आपने उनकी शादी की कहानी पढ़ी।

अब अगली कड़ी यानी 21 और 25 जुलाई को हम लेकर आएंगे द्रौपदी की लाइफ, स्ट्रगल और पार्षद से राष्ट्रपति के मुकाम तक पहुंचने की कहानियां।

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