हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें। दूसरो की जय से पहले खुद को जय करे।
- गुलजार
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कम्फर्ट जोन का मामला
आज मैं आपसे बात करूंगा प्रोफेशनल लाइफ की एक बड़ी प्रॉब्लम के बारे में।
क्या आपको कोई नया काम करते या सीखते वक्त, नई जगह रहने जाते वक्त, किसी नए सोशल ग्रुप में एडजस्ट करने में डर लगता है? यदि हां, तो उसका एक बड़ा कारण आपका 'कम्फर्ट जोन' हो सकता है।
कई लोग इसके बारे में जानना चाहते थे, इसलिए आज मैं आप को कम्फर्ट जोन के बारे में सब कुछ बताऊंगा।
'कम्फर्ट जोन' क्या है
1) 'कम्फर्ट जोन' नाम से ही क्लियर है, कोई ऐसा फील्ड या काम होता है जिसे करने में, या जहां रहने में, एक्स्ट्रा एफर्ट न करने पड़े, और जो आपको सुरक्षित लगे।
2) किसी 'हिंदी मीडियम' में शिक्षा पाए छात्र के लिए, हिंदी में बात करना, पढ़ना लिखना, देखना उसका 'कम्फर्ट जोन' हो सकता है. और शायद किसी और लैंग्वेज में काम करना उसे प्रोब्लेमैटिक लगे।
3) लम्बे समय से किसी एक ही सिटी या कस्बे में रहने से, जहां अनेकों दोस्त, परिचित और कामकाज संबंधित लोग हों, उस जगह को छोड़कर किसी और जगह जाना, ये कम्फर्ट जोन छोड़ना होता है।
4) अनेक लोग केवल अपने 'कम्फर्ट जोन' में ही पर्सनल रिलेशन्स बनाना पसंद करते हैं। अलग सोच के लोगों और अलग सामाजिक स्तर के लोगों के समूह में जगह बनाना भी 'कम्फर्ट जोन' से बाहर आना है।
'कम्फर्ट जोन' से बाहर आना मुश्किल क्यों
1) मनुष्य को एक प्राणी के तौर पर देखा जाए तो प्रकृति ने हमें अप्रिय या असहनीय विचारों और भावनाओं से दूर रहने के लिए डिजाइन किया है।
2) जब हम किसी भी सिचुएशन को अपने पर्सनल एक्सिस्टेंस (व्यक्तिगत अस्तित्व) के साथ जोड़ते हैं, तो फिर हमारा इंटरनल सुरक्षा तंत्र तुरंत एक्टिवेट हो जाता है, और हमें सेफ रखने की कोशिश करता है।
3) ऐसा होने का एक कारण ये भी है कि हम बेवजह के खतरों से दूर रहें, और खुद को परेशान न करें। तो जोश-जोश में आपने बहुत भारी सामान उठा लिया, जो आपके बूते के बाहर था, उसका परिणाम स्लिप डिस्क और टूटा सामान होता है। समय के साथ हमारा कम्फर्ट जोन ऐसे ही डिफाइन होते चला जाता है।
4) यह प्रकृति का हमारे लिए अलार्म है कि सावधान आगे समस्या हो सकती है, सोच लो, तैयारी कर लो, जानकारी इकठ्ठा करो, योजना बनाओ, फिर आगे बढ़ो।
जैसा कहते हैं, जहां बुद्धिमान कदम रखने से डरता है, वहां मूर्ख कूदते-फांदते पहुंच जाता है।
'कम्फर्ट जोन' से बाहर निकलना क्यों जरूरी
1) प्रकृति ने ही हमें दूसरा पाठ भी पढ़ाया है - सही समय पर कम्फर्ट जोन से बाहर निकल जाओ।
2) यदि चिड़िया का बच्चा अंडे के 'कम्फर्ट जोन' में ही रहना चाहे, तो? बिल्ली का बच्चे गिरने के डर से पेड़ पर चढ़ना ही ना चाहे, तो? कोई छोटा बच्चा घर के आरामदायक माहौल को छोड़कर स्कूल ही ना जाए, तो? नौकरी दूसरे शहर में करने से डरते हुए लोग जाना ही छोड़ दें, तो?
3) 'कम्फर्ट जोन' से बाहर निकले बिना जीवन नहीं चल सकता, ऐसा होना और करना पूर्णतः प्राकृतिक है। जरूरी है अपनी क्षमता और लिमिट समझ कर, सही दिशा में बढ़ना।
कैसे निकले कम्फर्ट जोन से बाहर
आप इन 5 पावर टिप्स को फॉलो करें, और कम्फर्ट जोन से निकलने का तरीका समझ लें। करिअर में आगे बढ़ने के लिए ये जरूरी है।
1) पहचानें कि कहीं आप खुद को बरगला तो नहीं रहे
कोई ऐसा व्यक्ति जो अपना शहर नहीं छोड़ना चाहता वो अनेकों बहाने सोच सकता है जैसे कि ‘मैं यह शहर नहीं छोड़, सकता क्योंकि मेरे मां-बाप बूढ़े हैं उन्हें देखभाल की जरूरत है’। कोई व्यक्ति जिसे लोगों से मिलना ज्यादा पसंद नहीं है यह कह सकता है कि ‘नेटवर्किंग इतना महत्वपूर्ण नहीं है; असली चीज काम की क्वालिटी है, इसलिए मैं तो सिर्फ काम पर ध्यान दूंगा’। आप खुद ईमानदारी से सोचें कि डर के मारे आप खुद को धोखा तो नहीं दे रहे?
2) अपने डर का मूल पता लगाएं
अब अपने डर का पता लगाते हुए सोचें कि आपको वास्तव में किस चीज से डर लग रहा है। हमेशा कुल्हाड़ी से लकड़ी काटने वाले को इलेक्ट्रिक वुड कटर से डर लग ही सकता है। लेकिन एक बार सावधानी से इस्तेमाल करने से डर हमेशा के लिए दूर हो जाता है। तो डर के प्रकार होते हैं – शारीरिक नुकसान, भावनात्मक (अपनों के पास ना होना), सामाजिक (बेइज्जती होना) या आर्थिक (बहुत अधिक पैसा खर्च हो जाना) इत्यादि। अपने डर को बारीकी से समझें।
3) डर कम करने के उपाय
एक बार डर का ओरिजिन समझने के बाद ये पता करें कि उससे लड़ा कैसे जाए, उसे कम कैसे किया जाए, किससे मदद ली जाए। महात्मा गांधी को जब चम्पारण के नील किसानों की भयानक हालत पता चली, तो वे सीधे वहां चले गए, और सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में ही अपने इस डर पर काबू पा लिया था कि अंग्रेज मुझे मार डालेंगे। अपनी सारी जिन्दगी उन्होंने हम भारतीयों को ये सिखाया कि कैसे नैतिकता की मदद से डर दूर होता है।
4) ऐसी योजना बनाएं जो उपयुक्त हो
किसी भी काम को करने का कोई एक सही और गलत तरीका नहीं होता बस अपना-अपना तरीका होता है। आपको श्रीलंका के प्रसिद्ध बैट्समेन अरविंदा डी'सिल्वा का बैटिंग स्टान्स याद होगा, वह सही स्टान्स से एकदम अलग था लेकिन उनके लिए काम करता था। स्पीच देते समय ऑरेटरी में परफेक्ट होना जरूरी नहीं (महात्मा गांधी बिलकुल सादे तरीके से अपनी बात बोलते थे)।
5) क्षेत्र के एक्सपर्ट्स से हेल्प लें, उनकी नकल करें
कम्फर्ट जोन के बाहर के किसी भी नए काम को करने से पहले, उसी काम को बरसों से कर रहे लोगों और विशेषज्ञों के अनुभव का लाभ लेना बुद्धिमानी है। आपका रिस्क कम होता है, और कम्फर्ट बढ़ता है।
आज का करिअर फंडा है कि बड़ी सफलता कम्फर्ट जोन से बाहर निकल कर ही मिलती है, और सही एप्रोच से ये संभव है।
कर के दिखाएंगे!
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