जयपुर के रहने वाले अंकित अरोड़ा साइकिलिस्ट हैं। वे साइकिल पर भारत भ्रमण के लिए निकले हैं। अब तक वे 15 राज्यों का सफर कर चुके हैं। इस दौरान 20 हजार किलोमीटर से ज्यादा साइकिल चला चुके हैं। अपनी साइकिल यात्रा के जरिए उन्होंने एक अनोखी मुहिम भी शुरू की है। वे जहां भी साइकिल से जाते हैं, वहां के लोगों को ऑर्गेनिक फार्मिंग की ट्रेनिंग देते हैं, बच्चों को मोटिवेट करते हैं, एजुकेशन से जोड़ते हैं और गांवों में ईकोविलेज मॉडल डेवलप करते हैं। इससे सैकड़ों लोगों को उन्होंने रोजगार से भी जोड़ा है। इसके लिए उन्हें कई अवार्ड भी मिल चुके हैं।
31 साल के अंकित साल 2010 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करने लगे। उन्होंने अलग-अलग कंपनियों में करीब 7 साल तक काम किया। उसके बाद 2017 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और साइकिल से भारत की सैर पर निकल गए।
अंकित को शुरुआत से ही साइकिलिंग को लेकर दिलचस्पी रही है। वे स्कूल और कॉलेज लाइफ में खूब साइकिलिंग करते थे। नौकरी दौरान भी साइकिल चलाने का उनका जुनून कम नहीं हुआ। उन्हें जब भी मौका मिलता अपनी साइकिल लेकर निकल पड़ते थे।
इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज कराया नाम
अंकित कहते हैं कि साइकिलिंग के दौरान मेरे मन में ख्याल आया कि कुछ रिकॉर्ड बनाना चाहिए। उसके बाद उन्होंने साल 2016 में तीन शहरों की यात्रा की। वे बिना रुके लगातार 69 घण्टे तक साइकिल चलाते रहे। ये उनका नेशनल रिकॉर्ड बना। इसके लिए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में उनका नाम भी दर्ज हुआ और उन्हें अवार्ड भी मिला।
वे कहते हैं कि उस दिन के बाद साइकिलिंग को लेकर मेरा पैशन और ज्यादा बढ़ गया। मेरे अंदर ये कॉन्फिडेंस आया कि मैं इससे भी बड़ा रिकॉर्ड बना सकता हूं। वर्ल्ड लेवल पर कुछ कर सकता हूं। फिर क्या था गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवाने का जुनून सवार हो गया। सोते-जागते और नौकरी के दौरान मेरे मन में बस साइकिलिंग का ही ख्याल आने लगा।
नौकरी छोड़ भारत यात्रा पर निकले
अंकित कहते हैं कि साइकिल से भारत की यात्रा करने का इरादा तो मैंने कर लिया, लेकिन यह काफी चैलेंजिंग काम था। नौकरी करते हुए यह काम करना संभव नहीं था। चूंकि मैं मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखता था, इसलिए नौकरी छोड़ना भी मुश्किल काम था। खैर, काफी सोच विचार करने के बाद मैंने साल 2017 में अपनी नौकरी छोड़ दी। सोचा आगे जो होगा देखा जाएगा। तब मेरे दिमाग सिर्फ और सिर्फ साइकिलिंग का ही ख्याल था।
अगस्त 2017 में राजस्थान से अंकित ने साइकिल के जरिए अपनी भारत यात्रा की शुरुआत की। इसके लिए उन्होंने एक नई साइकिल, कुछ कपड़े और ट्रेवल के लिए जरूरी चीजें खरीदीं। इसमें करीब 80 हजार रुपए खर्च हुए। यानी, जो कुछ उनके पास सेविंग्स थी, उन्होंने इसमें लगा दी।
जैसे-जैसे सफर आगे बढ़ा, मकसद बदलता गया
अंकित कहते हैं कि पहले तो मेरे मन में सिर्फ और सिर्फ रिकॉर्ड का ख्याल था, लेकिन जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ते गया, अलग-अलग जगहों पर लोगों से मिला, उनकी दिक्कतें देखीं, तो मेरा मकसद बदल गया। मुझे लगा कि साइकिल चलाकर रिकॉर्ड कायम करने से चीजें नहीं बदलेंगी और न ही उससे समाज को कुछ खास हासिल होगा। अगर मेरे साइकिलिंग के सफर में कुछ अच्छी चीजें जुड़ जाएं जिससे लोगों का भला हो, बदलाव हो, तो वह ज्यादा कामयाब सफर होगा। इसके बाद मैंने अपना मोटिव बदल लिया।
भास्कर से बात करते हुए अंकित कहते हैं कि यात्रा के दौरान मुझे ऑर्गेनिक फार्मिंग करने वाले कई लोग मिले। वे लोग इनोवेटिव तरीके से फार्मिंग कर रहे थे। मुझे उनका कॉन्सेप्ट अच्छा लगा और मैं वहां रुक कर उनके काम को समझने लगा, सीखने लगा। इसके बाद मैं जहां भी जाता वहां के लोगों से कुछ न कुछ जरूर सीखता। जरूरत पड़ती तो हफ्ते-दो हफ्ते भी उसी गांव में रुक जाता और अच्छी तरह फार्मिंग सीख कर ही आगे बढ़ता। इस तरह मुझे काफी कुछ नया सीखने को मिला।
ऑर्गेनिक फार्मिंग सीखने के बाद लोगों को उससे जोड़ने लगा
अंकित कहते हैं कि जब मैं खुद ऑर्गेनिक फार्मिंग और इससे जुड़े इनोवेटिव मॉडल को समझ गया तो तय किया कि अब दूसरे लोगों को इससे जोड़ा जाए, क्योंकि खुद तक सीमित रखने का कोई फायदा नहीं है। देश में ऐसे कई लोग हैं जो कैमिकल फार्मिंग करते हैं। इससे काफी नुकसान होता है। साथ ही कई ऐसे लोग मुझे यात्रा के दौरान मिले जिनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। कुछ लोग ट्रैडिशनल खेती कर भी रहे थे तो उनकी कमाई नहीं हो रही थी। मुझे लगा कि अगर ऐसे लोगों को कमर्शियल फार्मिंग और खेती के नए मॉडल से जोड़ा जाए तो इनकी अच्छी कमाई होगी।
इसके बाद अंकित ने अलग-अलग गांव के लोगों को ऑर्गेनिक फार्मिंग से जोड़ना शुरू किया। वे गांवों में कुछ दिनों तक रुक कर लोगों को ऑर्गेनिक फार्मिंग सिखाते थे, उसकी प्रोसेस समझाते थे। इतना ही नहीं मार्केटिंग का भी मॉडल तैयार करते थे और उससे लोगों को जोड़ते थे। धीरे-धीरे उनकी ये मुहिम आगे बढ़ने लगी। अभी वे सैकड़ों लोगों को ऑर्गेनिक फार्मिंग से जोड़ चुके हैं। इसमें ज्यादातर गरीब वर्ग के लोग शामिल हैं।
अब मड हाउस और ईकोविलेज मॉडल पर फोकस
ऑर्गेनिक फार्मिंग के साथ ही अंकित गांवों में मड हाउस और ईकोविलेज मॉडल डेवलप करने पर भी जोर दे रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र, तमिलनाडु सहित कई राज्यों में मड हाउस बनाए हैं। साथ ही दो गांवों को ईकोविलेज के रूप में भी बदला है। इन गांवों में खेती, पढ़ाई-लिखाई के साथ ही रोजगार भी भरपूर हैं। ये गांव सेल्फ डिपेंडेंट और सेल्फ सस्टेनेबल हैं। जहां पहले इन गावों के लोगों को बाहर कमाने के लिए जाना होता था, अब वे अपने गांव में रहकर ही न सिर्फ कमाई कर रहे हैं बल्कि दूसरे लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। कई लोगों को अंकित ने सिलाई-बुनाई की भी ट्रेनिंग देकर रोजगार से जोड़ा है।
क्या है ईकोविलेज मॉडल?
ऐसे गांव जहां ऑर्गेनिक खेती की जाए। प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग और ब्रांडिंग की जाए। जहां फूड्स से लेकर रहन-सहन की सभी चीजें लोकल और पूरी तरह से नेचुरल हों। जहां के किसानों को काम की तलाश में कहीं बाहर जाने की बजाय अपने गांव में ही रोजगार मिल सके। हेल्थ से लेकर वेल्थ तक का इंफ्रास्ट्रक्चर हो। यानी हर तरह से आत्मनिर्भर गांव, उसे हम ईकोविलेज कहते हैं।
कैसे करते हैं यात्रा और कहां से करते हैं फंड की व्यवस्था?
अंकित को साइकिलिंग के सफर पर निकले हुए 4 साल हो चुके हैं। जब वे यात्रा पर निकले थे तब उनके पास कुछ हजार ही रुपए थे, जिससे वे अपनी जरूरत की चीजों को पूरी करते थे। जब पैसे खत्म हो गए तो वे मंदिरों और धर्मशालाओं में रहने लगे। कई बार उन्हें सफर के दौरान पहाड़ों पर, खेतों और जंगलों में रहना पड़ा। कई बार ऐसा भी हुआ कि उनके पास न कुछ खाने को बचा, न पास में पैसे। फिर उन्होंने हाईवे पर जाकर लोगों को अपने बारे में बताया। गांवों में जाकर लोगों से बात की।फिर उन्होंने सोशल मीडिया की मदद ली। अपनी साइकिलिंग की फोटो-वीडियो पोस्ट करने लगे।
इससे उनकी नेटवर्किंग बढ़ी, धीरे-धीरे लोग उनके बारे में जानने लगे। अब उन्हें पैसों की खास जरूरत नहीं होती है। वे जहां भी जाते हैं लोग खुद ही आगे बढ़कर उनकी मदद और खाने-पीने की व्यवस्था कर देते हैं। कई बार कुछ लोग उन्हें कुछ पैसे डोनेट भी कर देते हैं। अंकित कहते हैं कि मैं सोशल मीडिया के जरिए देशभर के लोगों से जुड़ा हूं। जहां भी जाता हूं वहां के लोगों को पहले ही जानकारी हो जाती है। फिर वे मेरे खाने-पीने और ठहरने की व्यवस्था कर देते हैं। कई जगहों पर तो वे एक महीने से ज्यादा दिनों तक भी रह जाते हैं।
हालांकि, इस यात्रा के दौरान अंकित को कई तरह की मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा है। कई बार जंगली जानवरों का सामना हुआ है तो कई बार लोगों की अनदेखी का सामना करना पड़ा है। कई लोग उन्हें शक की निगाह से भी देखते थे।
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