करिअर फंडापरफॉरमेंस, प्रैक्टिस और परफेक्शन का 3-पी फार्मूला:सक्सेस के सबक बहरे मेंढक और माउंटेन मैन से सीखिए

8 महीने पहले

'उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य को न पा लो'

- स्वामी विवेकानंद

दिमाग की ट्रेनिंग से निकलेगी एग्जाम में सफलता की राह

तो आप एक टफ कॉम्पिटिटिव एग्जाम में अपियर हो रहे हैं, बढ़िया। और आप घंटों मेहनत भी कर रहे हैं, बढ़िया। लेकिन अगर आपने अपनी माइंड ट्रेनिंग नहीं की, तो सफर अधूरा रह जाएगा।

आज हम आपको बताएंगे एक शानदार 3-पी फार्मूला।

परफॉरमेंस, प्रैक्टिस और परफेक्शन

1) परफॉरमेंस - बहरा मेंढक बनो

एक तालाब में बहुत सारे मेंढक रहते थे। उस तालाब के बीच में एक बड़ा सा लोहे का पिलर था। एक दिन तालाब के मेंढकों ने पिलर पर चढ़ने के लिए रेस लगाई। कॉम्पिटिशन में भाग लेने के लिए कई मेंढक आए और दूसरे तालाब से भी कई मेंढक रेस देखने के लिए पहुंचे। सब उस लोहे के बड़े से पिलर को देख कर कहने लगे ‘अरे इस पर चढ़ना असंभव है’, ‘इसे तो कोई भी नहीं कर पाएगा’, ‘इस खम्भे पर तो चढ़ा ही नहीं जा सकता’, और ऐसा हो भी रहा था। जो भी मेंढक खम्भे पर चढ़ने की कोशिश करता, वो खम्भे के चिकने एवं काफी ऊंचा होने की वजह से थोड़ा सा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता। बार-बार कोशिश करने के बाद भी कोई खम्भे के ऊपर नहीं पहुंच पा रहा था। काफी मेंढक हार मान गए थे, और कई मेंढक गिरने के बाद भी ट्राय कर रहे थे।

इसके साथ-साथ अभी भी रेस देखने आए मेंढक जोर-जोर से चिल्लाए जा रहे थे ‘अरे यह नहीं हो सकता’, ‘यह असंभव है’ ‘कोई इतने ऊंचे खम्भे पर चढ़ ही नहीं सकता’ आदि। और ऐसा बार-बार सुन सुन कर काफी मेंढक हार मान बैठे और उन्होंने भी प्रयास करना छोड़ दिया। और अब वो भी उन मेंढकों का साथ देने लगे जो जोर-जोर से चिल्ला रहे थे।

लेकिन एक छोटा मेंढक था, जो लगातार कोशिश करने के कारण खम्भे के टॉप पर जा पहुंचा, हालांकि वो भी काफी बार गिरा, उठा, ट्राय किया तब कही जाकर वो जीता। उसको विजेता देखकर, सबने उसकी सक्सेस का सीक्रेट पूछा कि भाई ये असंभव टास्क किया कैसे? तभी पीछे से आवाज आई ‘अरे उससे क्या पूछते हो वो तो बहरा है।’ अर्थात डिस्करेज करने वालों से दूर रहना चाहिए, और अपना काम करते रहना चाहिए।

2) प्रैक्टिस - सीखी हुई चीजों को बेहतर करने के लिए रीपीटेड एटेम्पट

प्रैक्टिस मतलब एक ही प्रोसेस को बार-बार रिपीट करना और तब तक रिपीट करना जब तक कि मिस्टेक्स होना बंद न हो जाएं। उस प्रोसेस में सक्सेस न मिल जाए। एग्जाम्स में सक्सेस प्रैक्टिस से ही आती है। एक्टर्स, सिंगर्स, ऑथर्स, साइंटिस्ट्स, टीचर्स लगातार प्रैक्टिस से ही सफल हुए हैं। इस दुनिया में लाखों लोग जन्म लेते हैं। ये लोग जन्म से ही केपेबल या डायनामिक नहीं होते हैं। जो अपनी लाइफ में जोरदार प्रैक्टिस करता है उसकी लाइफ अपने आप सक्सेसफुल होने लगती है। इंडिया के फ्रीडम स्ट्रगल में हमारे लीडर्स को कितनी बार जेल जाना पड़ा, लेकिन हर बार अपनी स्ट्रेटेजी बना कर वे मैदान में कूद पड़ते थे! ऋषि पाणिनि पढ़ने में पहले कमजोर थे लेकिन प्रैक्टिस से आपने एक दिन संस्कृत व्याकरण का पूरा शास्त्र लिख दिया। आचार्य विनोबा भावे अपने भूदान आंदोलन में हजारों किलोमीटर चल कर, अनेक फैल्योरस के बाद, लाखों एकड़ जमीन दान करवाने में सफल हुए।

3) परफेक्शन - गोल अचीव करना ही है - मांझी द माउंटेन मैन बनो

दशरथ मांझी को ‘माउंटेन मैन’ कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने ये साबित किया है कि इच्छा शक्ति हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है। दशरथ बिहार में गया के करीब गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे। वे काफी कम उम्र में ही धनबाद की कोल माइन में काम करने लगे। बड़े होने पर उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी कर ली। अपने पति के लिए खाना ले जाते समय फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गईं। हॉस्पिटल पहाड़ के दूसरी ओर था, जो 55 किलोमीटर पर था। इतना दूर होने से ट्रीटमेंट नहीं मिला, और फाल्गुनी की डेथ हो गई। इसने दशरथ को लाइफ में एक गोल दे दिया – वह अकेले अपने दम पर पहाड़ के बीच से रास्ता निकालेंगे। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर खुद अकेले ही 25 फीट ऊंचे पहाड़ को काटकर एक सड़क बना डाली। 22 वर्षों के एफर्ट के बाद, दशरथ की सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लॉक की दूरी को 55 किलोमीटर से 15 किलोमीटर कर दिया। सब लोग दशरथ को पागल समझते थे, लेकिन इस बात ने इनके कन्विक्शन को और स्ट्रॉन्ग किया। परफेक्शन अचीव कर के ही उन्होंने दम लिया।

जैसा हमने कहा था - माइंड की ट्रेनिंग से निकलेगी एग्जाम में सक्सेस की राह!

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