मैं 1947 का हिन्दुस्तान बोल रहा हूं। 1 जनवरी से 15 अगस्त 1947 के बीच हिन्दुस्तान में जो भी हुआ, वह इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। 15 कहानियों की इस सीरीज की चौथी कड़ी में आज सुनिए, कैसे लिखी जा रही थी आजादी की पटकथा...धूप तेज होने लगी थी और आजादी पाने की आवाज भी। "कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा। ये जिंदगी है कौम की, तू कौम पर लुटाए जा'... आजाद हिंद फौज का यह कौमी तराना उन दिनों हर गली-मोहल्ले-नुक्कड़ पर खूब जोर-जोर से गाया जाता था। तब प्रभात फेरियां निकालना खतरे से खाली नहीं होता था। मगर मेरे हिम्मती बच्चों को इसकी परवाह ही कहां थी।
वहीं, पूरा हिन्दुस्तान टुकुर-टुकुर दिल्ली में चल रही सियासी मुलाकातों की तरफ भी देख रहा था। तारीख थी :15-16 अप्रैल, माउंटबेटेन कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी में थे। अभी बातचीत का सिलसिला शुरू ही हुआ था कि उन्होंने आजादी के अजूबे ‘रोड-मैप’ का प्रस्ताव पेश कर दिया। ‘डिकी बर्ड प्लान’ नाम की यह योजना भारतीय नेताओं को रास नहीं आई। जोरदार विरोध के साथ कह दिया गया कि इससे देश टुकड़ों में बंट जाएगा और अराजकता पैदा हो जाएगी।
माउंटबेटेन को समझ में आ गया कि इस तरह सतही योजना से काम नहीं बनेगा। नई योजना बनानी पड़ेगी, और वे इस पर काम भी करने लगे। दरअसल, ब्रिटिश राजघराना नहीं चाहता था कि जिन आपसी झगड़ों के भरोसे वे अपना राज-पाट अनवरत चलाते रहने की सोच रहे थे, उन्हीं झगड़ों की परिणति में निकला लहू कहीं उनके अपने प्रिय ‘यूनियन जैक’ पर धब्बे न बना दे। उधर, संविधान सभा आजाद भारत की रूपरेखा तैयार करने में लगी हुई थी। इन्हीं दिनों डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा में हिंदू कोड बिल पेश कर दिया था। नेहरू के समर्थन के बावजूद इस बिल का जमकर विरोध हुआ।
बहरहाल संविधान सभा का तीसरा अधिवेशन 28 अप्रैल से 2 मई को संपन्न हुआ। इसमें मुस्लिम लीग ने तो भाग नहीं लिया, लेकिन अधिवेशन शुरू होने से पहले ही छह राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा के सदस्य बन चुके थे। इस बीच त्रावणकोर, भोपाल, हैदराबाद, जोधपुर और जूनागढ़ रियासतों के प्रमुखों और उनकी प्रजा में मतभेद गहराता जा रहा था। भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्लाह खान मुस्लिम लीग के नेताओं के करीबी थे, कहा जाता है कि वे तय नहीं कर पा रहे थे कि भारत का हिस्सा बनें या नहीं। जबकि वहां की हिंदू बाहुल्य जनता उनके विरोध में थी।
त्रावणकोर रियासत के दीवान सीपी रामास्वामी भी जिन्ना के बहकावे में आ गए थे। उनकी रियाया भी लगातार उनके खिलाफ झंडा बुलंद कर रही थी। जूनागढ़ के नवाब दो राष्ट्रों के सिद्धांत के खिलाफ थे, लेकिन मुस्लिम लीग के दबाव में जिन्ना के साथ जाना चाहते थे।
कल सुनिए : अंग्रेजों ने कैसे बनाई ऐतिहासिक दस्तावेजों की समाधि।
सीरीज की पहली कड़ी में जानिए कैसे हिन्दुस्तान से ब्रिटेन तक उथल-पुथल मची थी…सुनने के लिए क्लिक करें
सीरीज की दूसरी कड़ी में जानिए में जानिए किस तरह जिन्ना की जिद ने देश को बंटवारे के मुहाने पर खड़ा कर दिया…सुनने के लिए क्लिक करें
सीरीज की तीसरी कड़ी में जानिए आजादी से पहले रजवाड़ों और रियासतों में कैसी बेचैनी थी…सुनने के लिए क्लिक करें
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.