जापानी प्रधानमंत्री फुमियो कुशीदा ने हाल ही में चिंता जताई है कि घटते बर्थ रेट की वजह से जापान बिखरने की कगार पर है। ये हाल सिर्फ जापान का ही नहीं है…एशिया की जमीन से दुनिया की महाशक्ति बनने का सपना देख रहे चीन के लिए भी गिरता बर्थ रेट चिंताएं बढ़ा रहा है।
चीन दुनिया की दूसरी और जापान तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है। यानी दुनिया के दो सबसे समृद्ध देशों में हर साल पैदा होने वाले बच्चों की संख्या घटती जा रही है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन दोनों ही देशों में विवाहित जोड़े परिवार बढ़ाने में खास रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इसकी वजह क्या है? ये सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है, लेकिन इसकी एक बड़ी वजह महंगाई है।
जी हां, एशिया ही नहीं, दुनिया के सबसे दो समृद्ध देशों में युवा महंगाई के चलते परिवार नहीं बढ़ाना चाहते हैं।
खाने-पीने के सामान का खर्च, बच्चों के पढ़ाई का खर्च, मकान का बढ़ता किराया…अगर आपको लगता है कि इन बातों से छोटे या गरीब देशों में ही परिवार चिंतित हैं तो ऐसा नहीं है।
जापान में रहना भारत के मुकाबले 182% तक महंगा है। वहीं चीन में रहना भारत के मुकाबले 104% तक महंगा है।
सरकारी नीतियों, सामाजिक ढांचे और आर्थिक हालात की वजह से आज चीन और जापान दोनों ही देशों में युवाओं का सोचने का तरीका बदल रहा है। प्राथमिकताएं बदल गई हैं और इसकी वजह से आज ये हालत है कि यहां आबादी घटना शुरू हो गई है।
आइए, हम आपको बताते हैं कि कैसे दुनिया के दो सबसे अमीर देशों में महंगाई, लोगों की सोच को बदल रही है।
पहले देखिए, भारत के मुकाबले जापान कितना महंगा है
जापान में आलू-टमाटर, रेस्टोरेंट का खाना हो या मकान किराया या दवाएं और ट्रांसपोर्टेशन…सभी कुछ भारत की तुलना में बहुत ज्यादा महंगा है।
भारत में किसी महानगर में 1 किलो आलू औसतन 32 रुपए और 1 किलो टमाटर औसतन 45 रुपए का मिल जाता है, जबकि जापान में आलू 290 रुपए, तो टमाटर 394 रुपए किलो मिलता है।
टूथपेस्ट की एक ट्यूब भारत में 88 रुपए का तो जापान में 121 रुपए का है। मूवी के दो टिकट भारत में 650 रुपए तक मिल जाते हैं, जबकि जापान में यही टिकट 2200 रुपए से ज्यादा कीमत के हैं।
नीचे दिए ग्राफिक की मदद से समझिए, जापान और भारत में कीमतों में क्या अंतर है…
जापान में महंगाई और सामाजिक हालात का असर…52% से ज्यादा महिलाएं नौकरी करती हैं
जापान पारंपरिक रूप से पितृसत्तात्मक समाज रहा है। यानी समाज और परिवार में पुरुषों का प्रभाव ज्यादा रहा है। ट्रेडिशनली जापान में महिलाएं घर के काम ही करती रही हैं।
लेकिन समय के साथ जापान में शहरीकरण बढ़ा और लाइफ स्टाइल बदल गया। जापान के सख्त वर्क कल्चर की वजह से अक्सर पुरुष घर के लिए समय नहीं निकाल पाते थे। इस ट्रेंड की वजह से महिलाओं में खाली समय बिताने के लिए नौकरी करने का चलन आया।
समय के साथ महिलाओं की नौकरी से होने वाली परिवार की अतिरिक्त आय, परिवार के लिए जरूरत भी बन गई। अब जापान के शहरों में महंगाई का आलम ये है कि परिवार में पति और पत्नी दोनों का नौकरी करना जरूरी हो गया है।
जापान का 2021 का लेबर फोर्स सर्वे बताता है कि देश में 52.2% महिलाएं नौकरी कर रही हैं। 2012 में यह आंकड़ा 46.2% था। 2012 में जापान में नौकरी करने वाली महिलाओं की संख्या करीब 2.66 करोड़ थी जबकि 2021 में नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या 3 करोड़ से ज्यादा है।
10 साल में 60% गिर गई है जापान की बर्थ रेट
जानकारों के मुताबिक 10 साल पहले जापान में हर साल औसतन 20 लाख बच्चों का जन्म होता था। मगर अब हर साल औसतन 8 लाख बच्चे पैदा होते हैं।
जापान का वर्क कल्चर और बढ़ती महंगाई इस गिरती बर्थ रेट के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जापान में जनता के लिए सरकारी मदद सीमित ही होती है। 2022 में सरकार ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया था कि 20 से 40 साल के लोग महंगाई और नौकरी से जुड़ी चिंताओं के कारण फैमिली प्लानिंग करने से दूर भाग रहे हैं।
एक संस्कृति के तौर पर भी जापान का पूरा फोकस हर प्रोडक्ट और सर्विस में परफेक्शन लाने पर होता है। हालांकि, इस परफेक्शन की वजह से ही यहां कॉस्ट ऑफ लिविंग भी ज्यादा होती है।
चीन में हालात जापान जितने बुरे नहीं, मगर आबादी का घटना शुरू हो चुका है
दुनिया में जिन देशों की आबादी सबसे तेजी से घट रही है उनमें चीन का नाम शामिल नहीं है। बल्कि अभी तक चीन दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाला देश है।
लेकिन पॉपुलेशन ग्रोथ की दर चीन में घटने लगी है। इससे भी ज्यादा चिंताजनक चीन के लिए घटती बर्थ रेट है।
2022 ऐसा साल था जब 60 साल में पहली बार चीन की आबादी में सालाना जितना इजाफा हुआ उससे ज्यादा मौतें हुईं। चीन में 2022 में 90 लाख 56 हजार बच्चे पैदा हुए हैं, जबकि 1 करोड़ 41 हजार लोगों की मौत हुई।
चीन की दो बच्चों की पॉलिसी ही नहीं महंगाई भी है घटती आबादी की जिम्मेदार
चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने 1980 से 2016 तक देश में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू कर रखी थी। 2016 में इसमें छूट देते हुए दो बच्चों की पॉलिसी लागू की गई। हालांकि अब इसमें भी ढील दी गई है और लोगों को 3 बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
लेकिन पॉलिसी में बदलावों के बावजूद बच्चों के मामले में लोगों की सोच नहीं बदल रही है। इसकी एक बड़ी वजह चीन में लगातार बढ़ती कॉस्ट ऑफ लिविंग है।
पहले नीचे दिए ग्राफिक्स की मदद से समझिए, भारत के मुकाबले चीन में जीना कितना महंगा है…
चीन में आबादी का घनत्व शहरों में बहुत ज्यादा…इसी वजह से यहां जीवन महंगा
चीन की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है तो क्षेत्रफल के मामले में भी चीन दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा देश है।
लेकिन यहां के सुदूर गांवों में आबादी का घनत्व बहुत कम है, जबकि इंडस्ट्रियल शहरों में आबादी का घनत्व बहुत ज्यादा है।
शहरों के सीमित रिसोर्स पर इतने ज्यादा लोगों की दावेदारी के चलते हर संसाधन की कीमत बढ़ती जाती है।
चीन का कम्युनिस्ट शासन कहने को तो वेलफेयर स्कीम्स के जरिए जनता को सुविधाएं देने की बात करता है, मगर आबादी का एक बड़ा तबका इन स्कीम्स के दायरे से बाहर है।
यही वजह है कि शहरों में जीवन महंगा और कठिन है। चीन की युवा पीढ़ी बच्चों के बजाय कमाई बढ़ाने पर ज्यादा फोकस रखती है। महंगाई के चलते बच्चे की परवरिश का खर्च भी भारी पड़ता है।
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