जून 18, 1576 का दिन। हजारों सालों से कई युद्धों की साक्षी रही, भारत की सबसे प्राचीन 'अरावली पर्वत श्रृंखला'। इन्हीं पर्वतों के बीच उदयपुर से 40 किमी दूर, अपने हल्दी जैसे पीले रंग की मिट्टी के कारण पहचानी जाने वाली 'हल्दी घाटी' का मैदान।
सूर्योदय के तीन घंटे बाद, मानसिंह के नेतृत्व में मेवाड़ पर अधिकार करने आई मुगल सेना को रोकने के लिए मेवाड़ के महाराणा प्रताप की सेना ने हमला कर दिया।
शाम का समय, महाराणा प्रताप युद्ध के कोलाहल में अपने घोड़े 'चेतक' पर तेजी से 'मानसिंह' के हाथी की और बढ़े जा रहे है। चेतक के मुंह पर हाथियों के तरह की नकली सूंड बांधी गई है। सब कुछ बहुत तेजी से घट रहा हैं सेकेंड्स में।
हाथी के नजदीक पहुंचने पर 'चेतक' के दो पांव हाथी के मस्तक पर, लेकिन किस्मत का खेल, महाराणा प्रताप द्वारा, मानसिंह पर फेंका गया 'भाला' कुछ इंच दूर से निकल गया। हाथी के सूंड में बंधी तलवार से 'चेतक' के दोनों पैर जख्मी, फिर भी वह सवार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए सरपट दौड़ रहा है।
आप सभी को महाराणा प्रताप जयंती की शुभकामनाएं और करिअर फंडा में स्वागत!
इतिहास में ऐसे लोग कम ही हुए हैं, जिनमें किसी भी परिस्थिति में हार न मानने का जज्बा रहा हो। महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के ऐसे कुछ लोगों में से एक रहे हैं।
महाराणा जी के जीवन से तीन बड़े सबक
आइए लेते हैं उनके जीवन के कुछ अनसुने-अनजाने किस्सों से स्कूली बच्चों और हम सब के जीवन के लिए सबक।
1) लम्हों ने खता की, सजा सदियों ने पाई
रणनीतिक फैसले जब गलत होते हैं, तो बहुत भारी पड़ते हैं। जिस मुग़ल सेना से लड़ने में ना केवल महाराणा प्रताप ने बल्कि उनके पूर्वजों राणा उदयसिंह, राणा संग्रामसिंह (राणा सांगा के नाम से प्रसिद्द) तथा उनके वंशजों राणा अमरसिंह इत्यादि ने अपने जीवन खपा दिए। उस मुग़ल सेना के संस्थापक 'बाबर' को भारत में 'राणा सांगा' सहित अन्य देशी राजाओं ने ही 'इब्राहिम लोदी' पर हमला करने के लिए न्योता दिया था, लेकिन यह रणनीतिक निर्णय गलत साबित हुआ।
उस समय की सोच के अनुसार भारतीय राजाओं को लगा कि 'बाबर', लूट-पाट कर वापस लौट जाएगा, लेकिन 'बाबर', ना केवल हिन्दुस्तान में रुक गया बल्कि वह मेवाड़ के लिए पुराने शत्रु 'इब्राहिम लोदी' से ज्यादा खतरनाक साबित हुआ।
सबक: इस घटना से हम सबको यह सीख मिलती है कि स्ट्रैटजिक डिसीज़न बहुत इम्पोर्टेन्ट होते हैं। उन्हें लेते वक्त, आने वाले समय में उससे उपजने वाले परिणामों पर आराम से विचार करना चाहिए।
2) जमीन पर अपने लोगों से जुड़े रहना ही सफलता का रहस्य
एक राजकुमार होते हुए भी 'प्रताप' अपना अधिकांश समय 'मेवाड़' में घूमते हुए बिताते थे। वे वहां रहने वाले 'भील' लोगों में बहुत लोकप्रिय थे. वे उन लोगों में जाते, उनसे घुलते-मिलते, उनके सुख-दुःख में शामिल होते। कोई आश्चर्य नहीं कि राणा की सेना में हजारों 'भील' सैनिक थे जो राणा की आज्ञा पर जान कुर्बान करने को तैयार थे।
महाराणा प्रताप के इस पक्ष ने खासतौर पर 'हल्दीघाटी' के युद्ध के बाद, जब वे मुगल सेना पर ' छापामार' कार्रवाईयां कर रहे थे, में बहुत मदद की, क्योंकि भील लोग हजारों सालों से इन इलाकों में रहते आए थे, उन्हें इन क्षेत्रों की भौगोलिक जानकारी किसी भी व्यक्ति से अधिक थी। वे महाराणा की हमला कर छुपने में मदद करते। वस्तुतः देखा जाए तो महाराणा प्रताप इसी कारण मुग़लों से अपनी लड़ाई को जीवन पर्यन्त खींच पाए।
सबक: आप जिस भी व्यवसाय, कार्य या पढ़ाई में हो जमीन से जुड़े रहें, मूल स्तर पर कार्य करें।
3) असली बहादुरी आंतरिक होती है, बाहरी नहीं
महाराणा प्रताप को लेकर कई तरह की अफवाहें और दंतकथाएं प्रचलित हैं। उनके भाले का वजन 80 किग्रा, तलवार का वजन 5 किग्रा तथा कवच इत्यादि का कुल वजन मिलाकर 300 किग्रा था, यह बात गलत है। उदयपुर म्यूजियम के बाहर उनके अस्त्र-शस्त्र का कुल वजन 35 किग्रा बताया गया है। देखे नीचे दिया हुआ चित्र।
कहने का अर्थ है कि महाराणा प्रताप को जो चीज़ बाकी लोगों से अलग बनाती थी वह उनकी लम्बाई, उनके अस्त्र-शस्त्रों का वजन नहीं बल्कि वह जज़्बा था जिसके चलते उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी।
सबक: एटीट्यूड ही सब कुछ है।
इन तीन चीजों के अलावा मुझे महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व में पशुओं के साथ उनकी समझ का पक्ष आकर्षित करता है।
अतिश्योक्ति: पूर्ण तरीके से कहते हैं अपने घोड़े 'चेतक' से उनकी अंडरस्टैंडिंग इतनी अच्छी थी कि राणा की पुतलियां घूमी नहीं कि चेतक को समझ में आ जाता था किस ओर मुड़ना है। उनके मनपसंद हाथी का नाम 'रामप्रसाद' था, जिसने हल्दीघाटी की लड़ाई में मुगल सेना के 13 हाथियों को मार गिराया था।
उम्मीद करता हूं,, आपको आज के इनसाइट पसंद आएंगे। एक बार फिर महाराणा प्रताप जयंती की शुभकामनाएं।
आज का करिअर फंडा यह है कि महाराणा प्रताप की तरह कभी हार ना मानने का जज्बा हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं।
कर के दिखाएंगे!
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