एकनाथ शिंदे ने गुरुवार को 42 विधायकों का एक वीडियो जारी कर यह साबित कर दिया कि असली शिवसेना की कमान अब उनके पास ही है। इसके बाद ये माना जा रहा है कि शिंदे गुट के विधायक महाविकास अघाड़ी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं। यह पहली बार नहीं है जब शिंदे गुट के लोग BJP के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। साल 2014 में भी ऐसी ही स्थिति बनी थी और BJP के साथ जाने को लेकर शिवसेना के बीच बगावत के सुर बुलंद हुए थे और तब भी उद्धव को बागियों की बात मानने पर मजबूर होना पड़ा था।
दैनिक भास्कर ने 2014 के हालात से आज की तुलना करते हुए पड़ताल की है। आप भी पढ़िए हमारी एक्सक्लूसिव रिपोर्ट…
2014 में उद्धव को फडणवीस के नाम पर था ऐतराज
पूर्व CM और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ काम कर चुके एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि साल 2014 के चुनावों में शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं।
शिवसेना के खाते में 63 और भारतीय जनता पार्टी को 122 सीटें मिली थीं। चुनाव के बाद BJP फिर से शिवसेना के साथ मिलकर सत्ता में आना चाहती थी, लेकिन ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान जारी थी। साथ ही, उद्धव को फडणवीस के नाम को लेकर भी ऐतराज था। वे नितिन गडकरी को महाराष्ट्र का CM बनाना चाहते थे।
2014 में शिंदे गुट के 25 विधायकों ने की थी बगावत
चुनाव प्रचार के दौरान उद्धव की ओर से फडणवीस और BJP के खिलाफ खूब कीचड़ उछाला गया था। उद्धव भले ही फडणवीस के साथ नहीं जाना चाहते थे, लेकिन करीब 25 ऐसे विधायक थे, जो BJP के साथ मिलकर सरकार बनाने के फैसले पर डटे हुए थे।
ये सभी विधायक एकनाथ शिंदे गुट के ही थे। उस दौरान कुछ विधायकों ने पार्टी की इंटरनल बैठक में BJP के साथ सरकार नहीं बनाने की सूरत में शिवसेना से अलग होने की बात तक कह डाली थी।
NCP की एंट्री से बदला समीकरण
इस बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) ने एक बड़ा कार्ड खेलते हुए महाराष्ट्र में भाजपा को सरकार बनाने के लिए बाहर से समर्थन देने का ऐलान कर दिया था। उस दौरान NCP के नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा था, "केंद्र में भी भाजपा की सरकार है, ऐसे में यहां भी एक स्थायी सरकार के लिए NCP भाजपा को बाहर से समर्थन देने के लिए तैयार है।"
पार्टी के विधायकों का दबाव, पार्टी को टूटने से बचाने और NCP की पहल के बाद आखिरकार उद्धव ठाकरे को झुकना पड़ा और वे BJP को समर्थन देने के लिए तैयार हुए।
साथ रह कर भी BJP का विरोध करता था उद्धव गुट
शिवसेना-BJP के गठबंधन से महाराष्ट्र में सरकार तो बनी, लेकिन ये दोनों दल हमेशा आपसी झगड़ों की वजह से सुर्खियों में रहे। उद्धव गुट के नेता हमेशा BJP की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के खिलाफ आक्रामक रहे।
यही वजह थी कि शिवसेना की तुलना विपक्षी पार्टी से होने लगी थी। चाहे वह नोटबंदी का फैसला हो, या फिर मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन लाने का निर्णय, या फिर मुंबई मेट्रो के आरे कारशेड का विरोध, उद्धव गुट के शिवसेना नेता कई बार BJP के विरोध में दिखाई दिए। सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे और उससे राजनीतिक उथल-पुथल भी मची।
2014 में भी CM बनना चाहते थे उद्धव ठाकरे
भाजपा और शिवसेना, दोनों ही ज्यादा सीटें चाहती थीं, क्योंकि दोनों को अपनी जीत का पूरा भरोसा था। भाजपा लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित थी, तो वहीं शिवसेना का कहना था कि अब मोदी लहर खत्म हो चुकी है। प्रदेश में उसका प्रभाव ज्यादा है।
दोनों के बीच तनातनी की शुरुआत जुलाई 2014 से हो गई थी, तब शिवसेना की युवा शाखा के प्रमुख आदित्य ठाकरे ने ‘मिशन 150’ लांच किया था। इस मिशन का मकसद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना था। यह बात भाजपा को रास नहीं आई और तभी से तनातनी जारी है।
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