संडे के मोटिवेशनल करिअर फंडा में आपका स्वागत है। यदि आप लाइफ में फैसले लेने में हमेशा डरते हैं, तो आज का मोटिवेशन आपके लिए है।
कहा गया है
देह शिवा बर मोहे इहै, शुभ करमन ते कबहुं ना टरूं।
न डरों अरि सो जब जाइ लरूं, निश्चै कर अपुनी जीत करूं
- गुरु गोबिन्द सिंह जी
अर्थात, हे चण्डी! मुझे ये वर दें, मैं शुभ कर्म करने से कभी पीछे ना हटूं। जब मैं युद्ध में जाऊं तो शत्रु का मुझे कोई भय ना हो, और युद्ध में अपनी जीत निश्चित करूं।
एक विशाल ताकत से भिड़ जाना
आप और हम अपने डेली मॉडर्न लाइफ में कई बार अन्याय और करप्शन का शिकार होते हैं। हमारा रिएक्शन होता है ‘जाने दो यार कौन पन्गा मोल ले!’ हम दरअसल अपने डर को जस्टिफाई कर रहे होते हैं।
लेकिन करोड़ों में एक, ऐसा भी होता है, जो इस माइंडसेट को चैलेंज करता है।
आपके हमारे बापू- महात्मा गांधी ऐसे ही एक बिरले व्यक्ति थे, जिन्होंने करोड़ों इंडियंस को सिखाया कि डर छोड़ो, कॉन्फिडेंस से आगे बढ़ो।
याद रखें, आजादी की लड़ाई में गांधी जी ने जो राह दिखाई उसे आप अपने करिअर में अभी के अभी लागू कर सकते हैं, बस स्ट्रेटेजी को सही समझने के बाद।
गांधीजी की स्ट्रेटेजी
यूं तो बेहद इंटेलेक्चुअल गांधी जी ने अहिंसा, सत्याग्रह, नॉन-कोऑपरेशन, ग्राम स्वराज्य, इकोनॉमी के ट्रस्टीशिप मॉडल, आदि अनेक विषयों पर लिखा और बोला है लेकिन यदि आप उनके जीवन को देखें तो एक कॉमन थ्रेड दिखती है - 'डर से मुक्ति'।
करोड़ों भारतीयों को पहली बार पॉलिटिकली अवेयर करके सड़क पर आंदोलन के लिए ले आना कोई छोटी बात तो नहीं थी।
अहमदाबाद में गांधीजी के साबरमती आश्रम के एक ओर जेल और दूसरी ओर श्मशान था। ऐसी जगह पर आश्रम बनाने के पीछे गांधीजी का लॉजिक यह था कि सत्याग्रहियों में दो तरह का डर होता है, पहला डेथ का और दूसरा जेल जाने का। जब वे इन दोनों के पास रहेंगे तो उनके मन से यह डर निकल जाएगा। और डर गया, तो जीत का रास्ता खुला।
क्या होती है डर से मुक्ति (फ्रीडम फ्रॉम फियर)
गांधीजी के अनुसार, डर से मुक्ति आत्मनिर्भरता की ओर पहला कदम है।
फ्रीडम फ्रॉम फियर का मतलब है कि दुनिया में किसी को भी अपनी सरकार, उसके सशस्त्र बलों, अलोकतांत्रिक तरीके से काम करने वाली पुलिस या अपने पड़ोसियों से भी नहीं डरना चाहिए। इसका मतलब है कि आप रात को इस विश्वास के साथ सो सकते हैं कि आपका घर अगले दिन भी सेफ रहेगा।
चम्पारण का अद्भुत आंदोलन
गांधीजी ने बिहार के चंपारण के गरीब किसानों के लिए कानूनी न्याय से अधिक महत्वपूर्ण डर से मुक्ति को माना। चंपारण के जमींदारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण ने किसानों को बड़े वकीलों की मदद से जमींदारों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर किया। ये लड़ाई अनिर्णायक थी। अदालतों से कोई राहत नहीं मिली।
जब गांधीजी मौके पर आए तो उन्होंने पूरी स्थिति देखी और घोषणा की कि मुकदमेबाजी करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि कानून की अदालतें किसानों के साथ न्याय न कर सकेंगी। उन्होंने महसूस किया कि इन दबे-कुचले किसानों को साहसी बनना सिखाना आवश्यक है।
गरीब किसानों को जेल जाने से बड़ा डर लगता था, और जेल जाने के डर से वे अपना घर-बार तक छोड़ कर भाग जाते थे। इसी दौरान अंग्रेजों ने आचार्य कृपलानी पर किसी मामले में मुकदमा ठोंक दिया, तब भी गांधीजी ने आचार्य कृपलानी को मुकदमा ना लड़कर जेल जाने की सलाह दी। उनका कहना था कि हमें गांव वालों के मन से डर निकालने के लिए उन्हें यह कर के दिखाना पड़ेगा की हंसते-हंसते जेल जाया जा सकता है, और जेल में भी हंसा जा सकता है।
एक लम्बी अहिंसक लड़ाई के बाद चंपारण केस ने गरीब और शोषित किसानों के परिवर्तन को देखा। कुछ ही सालों में, ब्रिटिश बागान मालिकों ने अपनी सम्पदा छोड़ दी, जो किसानों के पास वापस चली गई। गांधीजी को सच्चे अर्थों में भारत ने महात्मा मान लिया।
यूनिवर्सल डिक्लियरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (UDHR)
1948 में जारी UDHR के अनुसार डर से मुक्ति को एक बेसिक ह्यूमन राइट माना जाता है। इसको बनाने में भारतीयों की बड़ी भूमिका रही है, और गांधीवादी आंदोलन की परंपरा ने वो इनसाइट तैयार कर दिए थे। आज 2022 के भारत में हमें सोचना है कि आम इंडियन की लाइफ से डर कितना दूर हुआ, या नहीं।
क्यों जस्टिफाई करें
ज्यादातर लोग अपने डर को दो तरह से संभालते हैं– (1) वे इसे मंजूरी देते हैं और फिर इसे अन्य इमोशन्स और कार्यों में दबा देते हैं या (2) वे इसे एक्सेप्ट कर लेते हैं और यह पहचानने की कोशिश करते हैं कि यह क्या है: शरीर की सुरक्षा, जान की फिक्र, भूखे रहने का या अपमानित होने का।
आप उस डर को पहचान कर अपने कार्यों को उसके अनुसार समायोजित करें और आगे बढ़ें। करिअर डेवलपमेंट केवल तभी होता है जब आप अपने कम्फर्ट जोन में नहीं होते हैं। शालीनता के दायरे से एकदम नए, अज्ञात क्षेत्र में कूदना एक निडर व्यक्ति का काम है। इस वजह से ये लोग हमेशा बढ़ते और सीखते रहते हैं। एक बार जब आप अस्वीकृति के डर पर काबू पा लेते हैं, तो जीवन में कुछ भी करना आसान हो जाता है।
मॉडर्न लाइफ में मीनिंग
निडरता का मॉडर्न लाइफ में मतलब है नई बातों को सीखना, डिस्कम्फर्ट को स्वीकारना, और करिअर ग्रोथ के लिए स्किल बिल्डिंग करते रहना। हम नहीं करते हैं, क्योंकि हम डरते है नई चीजों से।
‘निडर’ होने का मतलब यह नहीं है कि आपको डर नहीं लगता। इसका मतलब है कि आपके पास अपने रास्ते में आने वाली किसी भी प्रॉब्लम को एनेलाइज करने का स्किल है। एक बार इंटरनल फियर गया, तो एक्सटर्नल फियर भी खत्म समझें।
तो आज का करिअर फंडा ये है कि ‘अपने मन के डर को समझें, उसका सामना करें, और उसे खत्म करें! इसके लिए हिंसा नहीं, समझ की जरूरत है।’
कर के दिखाएंगे
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