करिअर फंडागीता से लें मॉडर्न लाइफ के लिए 5 सबक:मेंटल बैलेंस बनाए रखें, परिवर्तन को अपनाएं... क्योंकि विनाश में ही सृजन छिपा है

8 महीने पहले
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‘गीता 'निवृत्ति-प्रधान' नहीं है वह तो 'कर्म-प्रधान' है, गीता में 'योग' शब्द 'कर्मयोग' के अर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है’

- बाल गंगाधर तिलक अपनी पुस्तक 'गीता रहस्य' में

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क्या है गीता

जीवन के सार से सराबोर श्रीमद्भागवत गीता भारत का विश्वभर में प्रसिद्ध ग्रन्थ है जो सैकड़ों सालों से जीवन की टफ एग्जाम्स में निर्णय लेने में हेल्प करता आ रहा है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। यह माना जाता है कि महर्षि कृष्ण दैपायन व्यास ने गीता को लिखा है।

महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भागवत गीता के नाम से प्रसिद्ध है।

मॉडर्न लाइफ के लिए 5 सबक

इस शानदार प्राचीन ग्रन्थ में मॉडर्न स्टूडेंट्स और प्रोफेशनल के लिए खजाना छुपा है। मैं वही आपसे शेयर करूंगा। तैयार हैं?

(1) परिवर्तन को गले लगा लो

अध्याय 2, 22वां श्लोक:

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।

अर्थ: मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नए कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देह पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे नए शरीरों में चला जाता है।

दैनिक जीवन में उपयोग: जीवन का एकमात्र सार्वभौमिक सत्य है कि जीवन परिवर्तनशील है, जो आज है वो कल नहीं होगा या तो उसका स्वरूप बदल जाएगा या उसके स्थान पर कुछ और जन्म लेगा। लेकिन कुछ कोर चीजें हमेशा बनी रहती हैं। जैसे अलग-अलग स्थान, समय, परिस्थिति के हिसाब से मनुष्यों और जानवरों के खाने की आदतें बदल सकती हैं, मगर बेसिक चीज वही रहेगी अर्थात भोजन करना। हम ये सोच कर अपने जीवन के सभी निर्णय लें तो हम जीवन में खुशी हासिल कर सकते हैं।

(2) हमेशा मेन्टल बैलेंस बना के रखें

अध्याय 2, 38वां श्लोक:

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।

ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।

अर्थ: जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान करके फिर युद्ध में लग जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को प्राप्त नहीं होगा।

दैनिक जीवन में उपयोग: हमारे दैनिक जीवन में हम कई लोगों को देखते हैं जो इमोशनल बैलेंस नहीं बना पाते। कभी आप पाएंगे कि वो जरा सी खुशी मिलने पर पागलों की तरह खुश हो जाएंगे और थोड़ी ही देर बाद जरा सा दुख मिलने पर सर्वाधिक दुखी। ऐसे व्यक्ति मैनेजमेंट के उच्च पदों पर सही निर्णय नहीं कर पाते। क्योंकि ऐसे निर्णय कई लोगो को प्रभावित करते हैं, इसलिए इन्हें इमोशंस से परे धरातल की कसौटी पर लेने की आवश्यकता होती है। इसलिए ऐसा व्यक्ति जिसमें वह दुख और सुख में एक जैसा भाव रख पाने की क्षमता हो मैनेजमेंट के उच्च पदों के लायक होता है, आप यह क्षमता अपने में विकसित करके इन पदों के लायक बन सकते हैं।

(3) विनाश में ही सृजन है

अध्याय 4, 7वां श्लोक:

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।

अर्थ: जब-जब इस धरती पर पाप, अहंकार और अधर्म बढ़ेगा, तो उसका विनाश कर पुन: धर्म की स्थापना करने हेतु, मैं अवश्य अवतार लेता रहूंगा।

दैनिक जीवन में उपयोग: मॉडर्न मैनेजमेंट में इसे 'क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन' के रूप में समझा जा सकता है। जापान का 'काइजेन' कॉन्सेप्ट भी इसी ओर इशारा करता है कि पुराने सिस्टम्स और वस्तुओं को निरंतर बेहतर बनाते हुए परिवर्तन करना। यदि हम इसे अपने दैनिक जीवन में उतारें तो निश्चित ही सफलता पा सकते हैं।

(4) आपसे बढ़कर आपका मित्र नहीं

अध्याय 6, 5वां श्लोक:

उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5।।

अर्थ: अपने द्वारा अपना उद्धार करें, अपना पतन न करें; क्योंकि आप ही अपने मित्र हैं और आप ही अपने शत्रु हैं।

दैनिक जीवन में उपयोग: व्यक्ति द्वारा स्वयं का आकलन करना बेहद आवश्यक है। जब तक आप खुद को नहीं समझेंगे, तब तक आप स्वयं से जुड़ा कोई भी फैसला मजबूती के साथ नहीं कर सकेंगे। जब मनुष्य अपने गुणों और कमियों को जान लेता है तब वह अपने व्यक्तित्व का निर्माण सही ढंग से कर पाता है।

(5) ज्ञान लेने के बाद उसका इस्तेमाल हम पर है

अध्याय 18, 63वां श्लोक:

इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।

विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।।18.63।।

अर्थ: यह गुह्यसे भी गुह्यतर (शरणागतिरूप) ज्ञान मैंने तुझे कह दिया। अब तू इस पर अच्छी तरह से विचार करके जैसा चाहता है, वैसा कर।

दैनिक जीवन में उपयोग: अपने टीचर से मिले बढ़िया ज्ञान का अंतिम उपयोग हमें अपनी परिस्थिति के हिसाब से ही करना है। अंतिम फैसला हमारा होगा, और अंतिम फल भी हमारा।

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