भास्कर इंटरव्यू8 साल पहले कानून रद्द, ममता सरकार केस चलाती रही:कार्टून शेयर किया तो पीटा, जेल में डाला; 11 साल बाद आरोपों से बरी

4 महीने पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी
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'बंगाल में सिर्फ मैं नहीं हूं, जिसे इस तरह से टॉर्चर किया गया। ऐसे 50 लोगों की लिस्ट है मेरे पास, जो अपने ऊपर लगे बेबुनियाद आरोपों के खिलाफ केस लड़ रहे हैं। ये लड़ाई न मेरे लिए आसान थी और न ही उनमें से किसी के लिए होगी। मेरे तो 11 साल कोर्ट के चक्कर लगाते-लगाते खत्म हो गए, और न जाने कितना पैसा बर्बाद हो गया। क्या कोई ये सब लौटा सकता है।’

जादवपुर यूनिवर्सिटी में केमिस्ट्री के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा भले ही 11 साल बाद आरोपों से बरी हो गए हैं, लेकिन आज भी ये कहानी सुनाते हुए उनकी आवाज कांपने लगती है। अंबिकेश को पिछले दिनों 20 जनवरी को अलीपुर कोर्ट ने बरी किया है।

ये मामला 13 अप्रैल 2012 का है। पश्चिम बंगाल की CM ममता बनर्जी और तब केंद्रीय रेल मंत्री रहे TMC के सीनियर लीडर मुकुल रॉय का एक कार्टून शेयर करने के मामले में अंबिकेश के खिलाफ ईस्ट जादवपुर पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जिस IT एक्ट की धारा 66A के तहत उन्हें गिरफ्तार किया गया था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने 8 साल पहले खत्म कर दिया है, फिर भी केस चलता रहा।

वह कार्टून, जिसे फॉरवर्ड करने पर अंबिकेश को जेल जाना पड़ा। तब TMC केंद्र सरकार का हिस्सा थी। पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी ने दिनेश त्रिवेदी को केंद्रीय कैबिनेट से हटवाकर मुकुल रॉय को रेल मंत्री बनवा दिया था। अंबिकेश ने इसी पर बना यह कार्टून सीक्वेंस शेयर किया था।
वह कार्टून, जिसे फॉरवर्ड करने पर अंबिकेश को जेल जाना पड़ा। तब TMC केंद्र सरकार का हिस्सा थी। पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी ने दिनेश त्रिवेदी को केंद्रीय कैबिनेट से हटवाकर मुकुल रॉय को रेल मंत्री बनवा दिया था। अंबिकेश ने इसी पर बना यह कार्टून सीक्वेंस शेयर किया था।

‘मुझसे कोरे कागज पर लिखवाया गया कि मैं CPM का समर्थक हूं’
अंबिकेश महापात्रा बताते हैं, ‘मैंने ईमेल सिर्फ फॉरवर्ड किए, खुद नहीं लिखे। TMC के समर्थकों ने मुझे पीटा। मुझसे कोरे कागज पर लिखवाया गया कि मैं CPM का समर्थक हूं और मैंने ये मेल खुद लिखे हैं, फोटो के साथ छेड़छाड़ की है। हालांकि, आगे भी मुझे किसी तरह के व्यंग्यात्मक ईमेल आए तो मैं उन्हें फॉरवर्ड करता रहूंगा।'

इस मामले में अंबिकेश के साथ PWD के रिटायर्ड इंजीनियर ​​​​​​सुब्रत सेनगुप्ता को भी गिरफ्तार किया गया था। सेनगुप्ता केस लड़ते-लड़ते साल 2019 में 80 साल की उम्र में चल बसे।

पढ़िए, अंबिकेश महापात्रा से बातचीत:

सवाल: 11 साल लग गए निर्दोष साबित होने में, लड़ाई मुश्किल रही होगी?
जवाब: एक तरफ मनी, मसल्स, पावर, प्रशासन है। उनकी पुलिस, उनकी सरकार। लड़ाई तो मुश्किल होनी ही थी। अलीपुर कोर्ट के चक्कर, पैसे की बर्बादी और सबसे अहम ये कि मेरे इतने साल बर्बाद हो गए। क्या एक आम आदमी के लिए इससे ज्यादा बड़ा नुकसान कुछ हो सकता है? लेकिन मेरे साथ पूरा कॉलेज प्रशासन था, आम जनता थी। दोस्त और परिवार था।

सबसे खराब ये था कि जिस कानून (IT एक्ट 66-A) को आधार बनाकर मुझ पर आरोप लगाया गया, वह कानून 24 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। बंगाल की न्याय व्यवस्था और सरकार को शायद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भी कोई फर्क नहीं पड़ता।

सवाल: जिस दिन आपकी गिरफ्तारी हुई, उस दिन हुआ क्या था?
जवाब: मेरे एक दोस्त ने मुझे कार्टून भेजा था। मैंने उस कार्टून को 23 मार्च 2012 को ईमेल के जरिए अपनी सोसाइटी के एक ग्रुप में फॉरवर्ड कर दिया था। नेताओं के और भी कार्टून देश में बनते हैं, जैसे दूसरे लोग करते हैं मैंने भी कर दिया।

मुझे नहीं पता था सरकार इतना बुरा मान जाएगी। मैंने मार्च में कार्टून फॉरवर्ड किया था और 13 अप्रैल 2012 को मुझे पुलिस ने गिरफ्तार किया। TMC के गुंडों ने मुझे बुरी तरह पीटा। 19 घंटे मैं और सुब्रत सेनगुप्ता जेल में रहे। फिर बेल पर रिहा हुए। 11 साल तक केस लड़ा, इस दौरान हमले का खतरा बना रहा।

सवाल: क्या सुब्रत सेनगुप्ता भी बरी हो गए?
जवाब: वे तो 2019 में ही बरी हो गए थे। केस से नहीं, दुनिया से। कोर्ट के चक्कर लगाते-लगाते ही खत्म हो गए। मैंने तो लड़ाई लड़ी और जीती भी, पर वे लड़ते-लड़ते ही चल बसे। मैंने ऐसे ही मामलों के लिए साल 2014 में एक संस्था शुरू की थी। इसका नाम आक्रांता आमरा (We are the assaulted) है।

मैंने उन लोगों को खोजना शुरू किया, जो मेरी तरह ही टॉर्चर हुए, लेकिन सत्ता के सामने डटे हुए हैं। मैंने 50 लोगों की लिस्ट तैयार की है। ये वो लोग हैं जो हमारे साथ अपनी डिटेल साझा करने के लिए आगे आए।

सवाल: जिन 50 लोगों का आप जिक्र कर रहे हैं, क्या ये लोग अब भी केस लड़ रहे हैं?
जवाब: हां, वे सब केस लड़ रहे हैं। हालांकि इन सब पर IT एक्ट के तहत ही आरोप नहीं हैं। उन पर कार्रवाई इसलिए की गई, क्योंकि इन्होंने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई। ये वही लोग हैं, जिन्हें सत्ता की नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़ा है। मेरी लिस्ट में पूरी डिटेल है।

सवाल: आप कह रहे हैं सियासत से आपका लेना-देना नहीं, आपने 2016 में चुनाव क्यों लड़ा था?
जवाब: चुनाव मैंने किसी पार्टी से नहीं लड़ा था। चुनाव सिर्फ सिम्बॉलिक था। मैंने सत्ता के खिलाफ यह चुनाव लड़ा था। यह भी प्रोटेस्ट का एक तरीका था। मैं भले ही हार गया, लेकिन इसके जरिए अपने ऊपर लगे आरोपों और इस केस को लोगों तक ले गया। मैंने किसी पार्टी से नहीं, बल्कि अपनी संस्था आक्रांता आमरा से चुनाव लड़ा था।

सवाल: आप एक तरह से TMC के खिलाफ लड़ाई का चेहरा हैं, क्या किसी और पार्टी ने चुनाव लड़ने का ऑफर नहीं दिया?
जवाब: 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले BJP ने संपर्क किया था। टिकट देने के लिए भी तैयार थे। मुझे BJP के साथ नहीं जाना था। BJP धर्म पर आधारित राजनीति करती है। मुझे किसी कम्युनल, फंडामेंटलिस्ट पार्टी के साथ नहीं जुड़ना था।

2016 में कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट ने भी संपर्क किया था। मैं आम आदमी हूं, मैं आम आदमी की तरह ही लड़ना चाहता था। वैसे भी बंगाल में सत्ता के टॉर्चर के खिलाफ ये लड़ाई अब सड़कों पर उतर आई है। मेरे जैसे बहुत सारे स्ट्रीट फाइटर, ये फाइट कर रहे हैं।

66A एक्ट बंगाल ही नहीं और भी राज्यों में एक्टिव
अंबिकेश महापात्रा के आरोपों पर बंगाल सरकार का पक्ष जानने के लिए हमने कानून मंत्री मलय घटक से बात करने की कोशिश की। उनके दफ्तर से कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद हमने TMC प्रवक्ता मानव जायसवाल से 66A एक्ट पर बात की।

हमने पूछा कि 8 साल पहले रद्द हो जाने के बावजूद बंगाल में इस कानून को आधार बनाकर केस कैसे चल रहे हैं, तो जवाब मिला- 'क्या दूसरे किसी राज्य में यह कानून नहीं चल रहा।'

फिर लहजे को थोड़ा नरम करते हुए बोले, 'बंगाल बॉर्डर स्टेट है, कई बार हमें इस तरह के कानूनों की जरूरत पड़ती है।'

4 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जाहिर की थी
इस मामले में 7 सितंबर 2022 को चीफ जस्टिस यूयू ललित ने भी गंभीर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि 66A (IT एक्ट) रद्द हो चुका है, लेकिन कई राज्यों में अब भी इसके तहत मामले दर्ज हो रहे हैं।

बेंच ने इस मामले में केंद्र सरकार के वकील जोहेब होसेन को राज्यों के चीफ सेक्रेटरी से बात करने के लिए कहा था। इस कानून को सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 19 (1) (a) यानी अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ मानते हुए रद्द किया था।

अंबिकेश महापात्रा की संस्था आक्रांता आमरा ने ऐसे 50 लोगों की लिस्ट बनाई है, जो TMC समर्थकों की हिंसा के शिकार हुए। इनमें से कई को सिर्फ सोशल मीडिया पर ममता सरकार के खिलाफ कमेंट करने के लिए हमले झेलने पड़े।

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