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कश्मीर घाटी में बदलाव के संकेत दिख रहे हैं। कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद से ही बंद शीतलनाथ भैरव मंदिर में 31 साल बाद इस साल बसंत पंचमी के मौके पर पूजा-अर्चना हुई। जम्मू और दिल्ली से आए कश्मीरी पंडितों के समूह ने यहां पंचाली पूजा का आयोजन किया। इस पूजा की खबरें मीडिया में छाई रहीं, लेकिन श्रीनगर समेत पूरे कश्मीर में अभी भी हजारों मंदिर बंद पड़े हैं या खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। शीतलनाथ मंदिर के बहाने देखते हैं कि पूरे कश्मीर के अन्य मंदिरों का क्या हाल है?
सबसे पहले बात शीतलनाथ मंदिर की ही करते हैं। कश्मीर के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि 1990 के पहले तक शीतलनाथ मंदिर कश्मीरी पंडितों का प्रमुख धार्मिक और सामाजिक केंद्र हुआ करता था। आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू तक ने इस मंदिर के परिसर में पंडितों को संबोधित किया था, लेकिन 1989 में आतंकवाद के चरम पर पहुंचने और पंडितों के पलायन के बाद यह मंदिर बंद हो गया।
31 साल बाद मंदिर में बसंत पंचमी की पूजा कराने वाले उपेंद्र हांडू कहते हैं, ‘1989 में पंडितों के रातों-रात कश्मीर छोड़ देने के बाद शीतलनाथ मंदिर बंद हो गया। बाद में उसमें आग भी लगा दी गई। जनवरी 1990 से मंदिर में नियमित पूजा नहीं हुई थी।’
जम्मू से आईं संतोष राजदान ने शीतलनाथ मंदिर में बसंत पंचमी की पूजा में प्रमुख भूमिका निभाई। संतोष के इस इलाके में आने पर उनके पुराने पड़ोसियों ने उनका जोश-खरोश से स्वागत किया।
संतोष कश्मीर छोड़ने से पहले इस मंदिर के पास ही रहतीं थीं और उनके पास उस समय की स्पष्ट यादें हैं। वे कहती हैं, ‘सदियों से इस मंदिर में शीतलनाथ भैरव की जयंती के रूप में बसंत पंचमी मनाई जाती थी। बसंत पंचमी के दिन यहां मेले जैसा माहौल रहता था, लेकिन पंडितों के पलायन के बाद यहां नियमित पूजा भी बंद हो गई। संतोष के साथ दिल्ली और जम्मू से आए जत्थे में शामिल लोगों का कहना था कि अब कम से कम शुरुआत तो हुई है, लेकिन कश्मीर के हजारों मंदिर अब भी बंद पड़े हैं।
स्थानीय प्रशासन के अधिकारी कहते हैं कि मंदिर में आग लगाने की वारदात के बाद से 24 घंटे इसकी कड़ी सुरक्षा रहती है। मंदिर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही उसके पास कराल खुद में पुलिस स्टेशन भी बनाया गया, लेकिन इतनी सारी सुरक्षा के बावजूद यहां पर 31 सालों तक पूजा नहीं हुई, कभी-कभार इक्का-दुक्का लोग दर्शन करने के लिए आ जाते थे।
मंदिर परिसर के स्कूल को लेकर विवाद
बाबा शीतलनाथ भैरव मंदिर परिसर में एक स्कूल भी था। पलायन से पहले स्कूल का प्रबंधन पंडितों के हाथ में था और स्कूल में हिंदू-मुसलमान दोनों पढ़ते थे। पंडितों के कश्मीर छोड़ देने के बाद कुछ कश्मीरी मुस्लिमों ने इसे चलाया, लेकिन कुछ दिनों के बाद प्रबंधन के लोगों के बीच आपसी झगड़े शुरू हो गए और मामला अदालत में पहुंच गया। अदालत में चल रहे इस मामले में कश्मीरी मुसलमानों के कई गुटों के अलावा पंडित समुदाय के भी कुछ लोग शामिल हैं।
स्थानीय लोग कहते हैं कि शीतलनाथ मंदिर श्रीनगर की बहुत प्राइम लोकेशन पर है। एक अनुमान के मुताबिक मंदिर के पास अभी भी 25 से 30 करोड़ की प्रॉपर्टी है। स्कूल से जुड़ा विवाद भी इसीलिए है कि मंदिर से जुड़ी प्राइम लोकेशन की इस जगह को कोई छोड़ना नहीं चाहता।
आर्टिकल-370 हटने के बाद सुरक्षा बेहतर हुई है
शीतलनाथ मंदिर में पूजा का आयोजन कराने वाली संतोष कहती हैं, 'आर्टिकल 370 हटने के बाद श्रीनगर समेत बाकी कश्मीर में सुरक्षा के हालात बेहतर हुए हैं। इसके बाद ही हमने तय किया था कि इस साल मंदिर में पूजा जरूर करेंगे।'
यह बात कुछ हद तक सही भी लगती है। 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल-370 खत्म होने के बाद आतंकी हमलों और पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है। 2019 में कश्मीर में पत्थरबाजी की 2000 से ऊपर घटनाएं दर्ज की गई थीं, लेकिन 2020 में इस तरह की सिर्फ 327 वारदातें हुईं। 2019 में एनकाउंटर में मारे गए आतंकियों की संख्या 157 थी, जबकि 2020 में यह संख्या 221 थी।
श्रीनगर के मेयर ने कहा- इस साल 30 मंदिरों का पुनर्निमाण कराएंगे
सुरक्षा पहलू के अलावा कश्मीर में राजनीतिक माहौल भी कुछ बदला है। श्रीनगर के मेयर जुनैद अजीम मट्टू ने कहा, ‘श्रीनगर के हर एक मंदिर को मरम्मत की जरूरत है। कुछ के पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। यह काम श्रीनगर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन द्वारा किया जाएगा। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि यह मेरा व्यक्तिगत आश्वासन है, हम इस साल श्रीनगर में कम से कम 30 मंदिरों की मरम्मत और पुनर्निर्माण का काम कराएंगे। पहले कश्मीर के राजनीतिक गलियारों में मंदिरों के बारे में कोई बात नहीं होती थी, लेकिन अब इसकी शुरुआत हुई है।
क्या बाकी मंदिरों में भी पूजा-पाठ शुरू होगा?
शीतलनाथ मंदिर में पूजा का प्रतीकात्मक तौर पर बहुत महत्व है, लेकिन क्या इसके बाद कश्मीर के बाकी मंदिर भी खुल सकेंगे। आर्टिकल-370 को निरस्त करने के बाद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में बंद सभी मंदिरों को खोला जाएगा। उन्होंने कहा था कि घाटी के लगभग 50,000 मंदिरों को बंद कर दिया गया था और उनमें से 90% को नष्ट कर दिया गया है। उन्होंने कहा था कि नष्ट हुए मंदिरों का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया गया है।
हालांकि, इस संख्या को लेकर मतभेद है। कश्मीरी मुसलमानों का मानना है कि मंदिरों की यह संख्या ज्यादा है और इतने बड़े पैमाने पर मंदिरों को नष्ट भी नहीं किया गया है। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू कहते हैं, ‘कश्मीर के गांव-गांव में मंदिर थे, इनकी कुल संख्या क्या थी, यह अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन कश्मीर में ऐसे 1,842 पवित्र स्थान हैं, जिनकी पंडित समाज में बड़ी मान्यता है। इनमें 1100 मंदिर हैं। बाकी गुफाएं और पेड़ हैं।’
अदालत में कश्मीर सरकार द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के मुताबिक कश्मीर में 464 मंदिर हैं, जिनमें से 174 क्षतिग्रस्त हैं, लेकिन पंडित समुदाय 1100 मंदिर होने की बात करता है।
मंदिरों की मरम्मत की रफ्तार बहुत धीमी
केंद्र सरकार ने घाटी के सभी मंदिरों के नवीनीकरण की बात कही थी, लेकिन जमीन पर यह काम बहुत धीमी गति से चल रहा है। कुछ मंदिरों में जरूर मरम्मत का काम चल रहा है, लेकिन श्रीनगर समेत अनंतनाग, कुलगाम में अभी भी सैकड़ों साल पुराने मंदिर बंद हैं। मंदिरों की जमीन पर अतिक्रमण कर लिया गया है। श्रीनगर शहर में ही छोटे-बड़े 125 मंदिर हैं। इनमें से कई मंदिर परिसरों में अतिक्रमण कर लिया गया है। दक्षिण कश्मीर में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थान हैं, लेकिन वहां पर ऐसी ज्यादातर जगहें तोड़फोड़ दी गई हैं या वहां अतिक्रमण कर लिया गया है।
स्थानीय प्रशासन के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘मंदिरों में 1990 से पहले वाली चहल-पहल तब तक नहीं लौटेगी, जब तक घाटी में पंडितों की संख्या नहीं बढ़ती।’ वे आगे कहते हैं, ‘तकनीकी तौर पर श्रीनगर के बहुत से मंदिर बंद नहीं हैं, लेकिन फिर भी वहां हिंदू नहीं जाते। इसके पीछे डर और आशंका है।’ फिलहाल कश्मीर घाटी में कुछ हजार कश्मीरी पंडित परिवार ही रहते हैं। इनमें से भी अधिकतर वे हैं, जो सरकारी नौकरी में हैं।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू भी कहते हैं, ‘मंदिरों की रौनक तभी लौटेगी जब यहां के बहुसंख्यक कश्मीरी मुसलमान भी हिंदुओं के साथ मिलकर कोशिश करेंगे। वे इसकी एक मिसाल भी देते हैं, ‘2018 में, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के अचन क्षेत्र मे एक मंदिर को स्थानीय मुसलमानों की मदद से पुनर्निर्मित किया गया था। अचन मे केवल तीन पंडित परिवार थे। उन्होंने मंदिर के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए मुसलमानों से संपर्क किया। मुसलमानों ने आगे आकर इसमें हाथ बंटाया। ऐसा माहौल पूरी कश्मीर घाटी में बनना चाहिए।’
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