ग्राउंड रिपोर्टCBI ने डरकर कहा था- हम UP में सेफ नहीं:क्या है 15 मर्डर की कहानी, क्या मुख्तार-बृजेश में फिर होगी गैंगवार

मऊ/गाजीपुर12 दिन पहलेलेखक: रवि श्रीवास्तव
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मुख्तार अंसारी, पूर्वांचल का वो नाम, जिससे पुलिस ही नहीं CBI भी डरती थी। विधायक कृष्णानंद राय के मर्डर की जांच का आदेश मिला तो CBI ने लिखकर दे दिया, 'UP में सेफ नहीं हैं, जांच नहीं कर पाएंगे।' केस ही बाहर ले जाना पड़ा। बीते 6 साल में सरकार की सख्ती के बाद मुख्तार का साम्राज्य ढह रहा है।

मुख्तार को 4 केस में सजा हो चुकी है। आखिरी सजा 29 अप्रैल 2023 को सुनाई गई। इसमें उसे 10 साल की जेल हुई है, लेकिन ये वो मुख्तार है, जो 18 साल से जेल में है और वहीं रहते हुए उस पर मर्डर के 7 केस दर्ज हो गए। 1986 में सच्चिदानंद की हत्या से ये सिलसिला शुरू हुआ, अब मुख्तार पर मर्डर के कुल 15 केस हैं। आखिरी मर्डर 2014 में एक मजदूर का हुआ था।

मुख्तार अंसारी पर भास्कर की इस स्पेशल सीरीज के पहले पार्ट में आपने पढ़ा, मुख्तार की संपत्ति और गैंग का वारिस कौन होगा। दूसरे पार्ट में आपने मुख्तार के शार्प शूटर्स के घर से ग्राउंड रिपोर्ट पढ़ी। तीसरे पार्ट में मऊ दंगों में मुख्तार कैसे शामिल था, ये पढ़ा। आज चौथे और आखिरी पार्ट में पढ़िए, मुख्तार के 15 मर्डर और बृजेश से गैंगवार की कहानी…

पहला मर्डर ठेकेदारी में कमीशन के लिए
मुख्तार पूर्वांचल के बहुत सम्मानित अंसारी परिवार से आता है। 80 के दशक में पढ़ाई के दौरान दोस्त साधु सिंह के साथ मुख्तार सबसे पहले मकनू सिंह गैंग से जुड़ा। ये गैंग सरकारी ठेकों पर कब्जा करने और कमीशन वसूलने का काम करती थी। गाजीपुर के सच्चिदानंद राय की हत्या ठेकों को लेकर ही हुई थी। सच्चिदानंद मंडी परिषद के ठेकेदार थे।

सरकारी फाइलों के मुताबिक, ये मुख्तार का पहला मर्डर था। एक ठेके को लेकर मुख्तार और सच्चिदानंद राय में ठन गई। 17 जुलाई 1986 को सच्चिदानंद को गोली मार दी गई। उनके परिवार से मिलने हम गाजीपुर पहुंचे। यहां हमें उनके भाई अच्युतानंद मिले।

अच्युतानंद कहते हैं, ‘हम मुख्तार के खिलाफ अच्छे से पैरवी नहीं कर पाए। शुरू में तो मुकदमा भी दर्ज नहीं करवाया था। भाई के जाने के बाद भाभी मानसिक रूप से बीमार हो गईं।’ भाभी की जिम्मेदारी अच्युतानंद ही उठा रहे हैं। मैंने पूछा- गुजारा कैसे होता है, तो गुस्से में बोले, ‘भूमिहार हैं हम, मुख्तार ने भाई को मारा था। जमींदार हम पहले भी थे, आज भी हैं।’

1988 से शुरू हुई बृजेश सिंह और मुख्तार की दुश्मनी
गाजीपुर में मकनू सिंह और साधु सिंह के साथ मुख्तार क्राइम की दुनिया में नाम कमा रहा था। उधर, वाराणसी में बृजेश सिंह पिता की हत्या का बदला लेने के बाद नए बाहुबली की तरह सामने आया था। जेल में बृजेश की मुलाकात त्रिभुवन सिंह से हुई और दोनों साथ काम करने लगे।

बृजेश और मुख्तार की दुश्मनी कैसे शुरू हुई, इसकी कहानी मऊ के CO सिटी धनंजय मिश्रा सुनाते हैं। धनंजय मिश्रा UP STF में रह चुके हैं। मुख्तार पर नकेल कसने वाले अफसरों में उनका नाम सबसे ऊपर है।

धनंजय मिश्रा के मुताबिक, ‘दोनों को गैंग चलाना था। उस समय सरकारी ठेकों पर कब्जा करना और कोयले के कारोबार पर वर्चस्व जमाना पैसे कमाने का सबसे बड़ा जरिया था। दोनों इस कब्जे की जंग में ही आमने-सामने आ गए।’

1988 में वाराणसी में त्रिभुवन सिंह के भाई राजेंद्र सिंह की हत्या हुई। आरोप मुख्तार पर लगा। बृजेश सिंह ने त्रिभुवन से दोस्ती निभाते हुए पुलिस के भेष में हॉस्पिटल में साधु सिंह की हत्या कर दी। इसका बदला लेने के लिए मुख्तार ने 3 अगस्त 1991 को कांग्रेस नेता अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या करवा दी।

गैंगवार बढ़ रहा था और कई केस में पुलिस मुख्तार को ढूंढ रही थी। ऐसे में उसने राजनीति में आने का फैसला लिया।

1996 में मुख्तार बसपा के टिकट पर मऊ सदर सीट से चुनाव लड़ा। सीट मुस्लिम बहुल थी, इसलिए आसानी से जीत गया। उधर, बृजेश पूर्वांचल से निकलकर मुंबई और गुजरात तक नेटवर्क फैला चुका था। राजनीति में आने के बाद मुख्तार और ताकतवर हो गया। उसने बृजेश की गैंग पर हमले बढ़ा दिए। इसके बाद बृजेश ने मुख्तार के मर्डर का प्लान बनाया।

उसरी चट्टी कांड: 2001 में बृजेश ने मुख्तार पर किया जानलेवा हमला
15 जुलाई, 2001 की दोपहर मुख्तार गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में अपने घर से मऊ जाने के लिए निकला था। मुख्तार के घर को ‘फाटक’ कहा जाता है। मुख्तार के साथ कई हथियारबंद लोग थे। उसरी चट्टी के पास रेलवे क्रॉसिंग है, यहीं एक ट्रक अचानक मुख्तार के काफिले के आगे आ गया। कार रेलवे क्रॉसिंग पार नहीं कर पाई और गेट बंद हो गया।

मुख्तार की कार जैसे ही क्रॉसिंग पर रुकी, ट्रक से कुछ हथियारबंद हमलावर निकले और काफिले पर गोलियां बरसाने लगे। इधर से भी जवाबी फायरिंग हुई। मुख्तार का गनर और 2 साथी मारे गए। मुख्तार इस हमले में मुश्किल से बचा था।

उधर, बृजेश को भी गोली लगी। मुख्तार को लगा कि बृजेश मर गया, लेकिन इस घटना के 2 साल बाद बृजेश और मुख्तार का फिर आमना-सामना हुआ। 2003 में लखनऊ के छावनी इलाके में गोलीबारी हुई थी। इसमें कृष्णानंद राय, बृजेश सिंह और मुख्तार शामिल थे।

ये फुटेज गाजीपुर कोर्ट की है, जब बृजेश सिंह को पेशी के लिए लाया गया था।
ये फुटेज गाजीपुर कोर्ट की है, जब बृजेश सिंह को पेशी के लिए लाया गया था।

कृष्णानंद राय को मारी गईं 67 गोलियां
बृजेश सिंह मुख्तार को नहीं मार पाया। हमले के बाद मुख्तार बृजेश गैंग के पीछे पड़ गया। 1985 से मोहम्मदाबाद सीट पर अंसारी फैमिली का कब्जा था। 2002 में कृष्णानंद राय ने अफजल अंसारी को हरा दिया। मुख्तार ने हार का बदला लेने के लिए जून 2005 में गाजीपुर के तमलपुरा गांव के राजेंद्र राय की हत्या करा दी। वे कृष्णानंद के करीबियों में शामिल थे और भांवरकलां ब्लॉक से चुनाव लड़ने वाले थे।

राजेंद्र राय को इसी जगह गोली मारी गई थी। बचने के लिए वे गांव की ओर भागे और एक घर में घुस गए। शूटर्स ने घर में घुसकर उन्हें सिर में गोली मार दी। इसका आरोप मुख्तार के खास शूटर अंगद राय पर लगा था।
राजेंद्र राय को इसी जगह गोली मारी गई थी। बचने के लिए वे गांव की ओर भागे और एक घर में घुस गए। शूटर्स ने घर में घुसकर उन्हें सिर में गोली मार दी। इसका आरोप मुख्तार के खास शूटर अंगद राय पर लगा था।

राजेंद्र राय के भतीजे अंकित राय बताते हैं, ‘मुख्तार की तरफ से मेरे चाचा को धमकियां मिलती थीं। 2002 से 2007 तक सपा की सरकार थी और उस समय मुख्तार अंसारी का बड़ा दबदबा था।’

29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय गाजीपुर जिले के गोडउर गांव से क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन कर लौट रहे थे। 7-8 लोगों ने उन्हें रास्ते में घेर लिया और काफिले पर 500 राउंड फायरिंग हुई। कृष्णानंद राय समेत 7 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम में पता चला कि कृष्णानंद को 67 गोलियां मारी गई थीं। इस केस में सबूत की कमी के कारण मुख्तार समेत सभी आरोपी बरी हो गए।

कृष्णानंद राय की हत्या में मुख्तार के गुर्गे मुन्ना बजरंगी का नाम सामने आया। इस हत्या के बाद बृजेश सिंह ने भी UP छोड़ दिया। बृजेश ओडिशा चला गया था। लोग कहने लगे उसकी मौत हो चुकी है। बाद में 2008 में स्पेशल सेल ने बृजेश को भुवनेश्वर से अरेस्ट किया। इस दौरान 2005 में मऊ दंगा हुआ और मुख्तार को भी जेल जाना पड़ा।

हत्या समेत दूसरे मामलों में मुख्तार की गाजीपुर कोर्ट में पेशी होती है। अभी उसके ऊपर उसरी चट्टी गोलीकांड का केस चल रहा है।
हत्या समेत दूसरे मामलों में मुख्तार की गाजीपुर कोर्ट में पेशी होती है। अभी उसके ऊपर उसरी चट्टी गोलीकांड का केस चल रहा है।

मन्ना सिंह ठेकेदार की हत्या, परिवार आज भी दहशत में
गाजीपुर के बाद हम मऊ पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात अजय प्रकाश सिंह उर्फ मन्ना सिंह के परिवार से हुई। मन्ना सिंह के छोटे भाई अशोक सिंह 2022 में मुख्तार के बेटे के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। वे आज भी 4-5 बॉडीगॉर्ड के बिना घर से बाहर नहीं निकलते। अशोक कहते हैं, ‘मैं पूर्वांचल के माफिया से लड़ रहा हूं, हर वक्त जान का खतरा बना रहता है।’

मन्ना सिंह के छोटे भाई अशोक सिंह, उन्होंने 2022 में मऊ सदर सीट से BJP के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन मुख्तार के बेटे से हार गए थे।
मन्ना सिंह के छोटे भाई अशोक सिंह, उन्होंने 2022 में मऊ सदर सीट से BJP के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन मुख्तार के बेटे से हार गए थे।

अशोक सिंह बताते हैं, ‘हम तीन भाई थे। सबसे बड़े मन्ना सिंह ही थे। मऊ में ए-क्लास ठेकेदार थे। 29 अगस्त, 2009 को शाम घर से 300 मीटर दूर गाजीपुर तिराहे के पास अपने ट्रक ड्राइवरों से बात कर रहे थे। दो मोटरसाइकिल से 6 लोग आए और उन पर गोलियां चला दीं। उनकी मौके पर ही मौत हो गई। उनके साथ पीछे गाड़ी में बैठे राजेश राय की तीन दिन बाद अस्पताल में मौत हुई।’

अशोक बताते हैं, ‘हमें पता था ये हत्या मुख्तार ने कराई है। वो भाई से हर सरकारी ठेके पर 10% गुंडा टैक्स मांग रहा था।’

इस हत्याकांड की पैरवी अशोक से बड़े भाई हरेंद्र सिंह कर रहे हैं। वही इस मुकदमे में वादी भी हैं। वे बताते हैं, ‘हत्या से कुछ वक्त पहले मुख्तार को अलग-अलग विभागों में काम करने वाले ठेकेदारों ने उकसाया था कि हम आपको हिस्सा देते हैं, लेकिन मन्ना सिंह नहीं देता है।'

'इसके बाद उसने अपने शूटर अनुज कनौजिया को हत्या का जिम्मा सौंपा। हत्या से कुछ दिन पहले अनुज कनौजिया का फोन भी भैया के पास आया था। उन्होंने कह दिया कि हम कोई गुंडा टैक्स नहीं देंगे। इसके बाद मुख्तार ने उन्हें मरवा दिया।’

मन्ना सिंह का ड्राइवर था मुख्तार का आदमी, कोर्ट में गवाही से पलटा
मन्ना के भाई अशोक सिंह बताते हैं, ‘हत्या से कुछ समय पहले हमारे घर एक मुस्लिम लड़का शब्बीर उर्फ राजा आया था। वो बहुत गरीब था। हम लोगों ने उसे काम पर रख लिया। वह यहीं खाता और रहता था। धीरे-धीरे उसने गाड़ी चलानी शुरू कर दी और भैया के साथ चलने लगा। जिस दिन हत्या हुई, वह गाड़ी खड़ी कर पीछे खड़ा हो गया। उसे भी हाथ में गोली लगी थी।’

‘लोगों ने उस पर शक किया था, लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया। फिर भैया की हत्या के चश्मदीद गवाह राम सिंह मौर्य का मर्डर हो गया। तब भी वही गाड़ी चला रहा था, लेकिन उसे कुछ नहीं हुआ। मन्ना सिंह मामले में वो गवाह था, पर कोर्ट में पलट गया। तब पता चला कि मुख्तार ने भैया पर नजर रखने के लिए उसे हमारे घर में भेजा था।’

मन्ना सिंह हत्याकांड में दर्ज कराई गई FIR, इसमें मुख्तार समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया था।
मन्ना सिंह हत्याकांड में दर्ज कराई गई FIR, इसमें मुख्तार समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया था।

जज को डराया, केस ही ट्रांसफर हो गया
अशोक सिंह बताते हैं, ‘2014 में हमारे केस में फैसला आने वाला था। तब एक सिंह साहब जज थे। कोर्ट खचाखच भरी हुई थी। अचानक जज अपने रूम में चले गए। फिर उसी दिन हमारा केस दूसरे जज के पास ट्रांसफर हो गया है। बाद में पता चला कि मुख्तार ने जज के परिवार पर दबाव बनाया था।’

‘2017 में केस फिर ट्रांसफर हुआ और जज आदिल आफताब के पास आया। हम लोग इससे खुश नहीं थे। हम ट्रांसफर एप्लिकेशन देने जा रहे थे। उन्होंने उसी दिन फैसला सुना दिया। तीन आरोपियों को सजा सुनाई गई और मुख्तार समेत बाकी लोगों को बरी कर दिया गया। हम इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में गए हैं। अब जुलाई में सुनवाई है।’

स्कूल में अपनी पहचान नहीं बताते, सुरक्षा के बीच बच्चे स्कूल जाते थे
हम मन्ना सिंह की फैमिली से मिले। पत्नी मंजू सिंह दो बेटों के साथ रहती हैं। वे कहती हैं, ‘फैमिली सपोर्ट तो था, लेकिन पति के न रहने से परेशानी तो होती है। हम लोग इतना डरे हुए थे कि अपनी पहचान छिपाकर रहते थे। बच्चे स्कूल से घर नहीं आते, तब तक चिंता लगी रहती थी। 14 साल हो गए, बच्चे भी बड़े हो गए हैं, लेकिन अब भी डर बना रहता है।’

मन्ना सिंह के परिवार से मिलकर हम राम सिंह मौर्य के घर पहुंचे। राम सिंह, मन्ना सिंह का हिसाब-किताब देखते थे और उनके मर्डर केस में चश्मदीद गवाह थे। 19 मार्च, 2010 को मन्ना सिंह की हत्या के 7 महीने बाद RTO ऑफिस के पास राम सिंह की हत्या कर दी गई।

राम सिंह मौर्य के परिवार में अब भी इतना खौफ है कि वे अनजान लोगों से नहीं मिलते। परिवार में उनकी पत्नी गीता और तीन बेटियां हैं। वे मऊ शहर वाला घर छोड़कर गांव चली गईं।

राम सिंह मौर्य की पत्नी से हमारी फोन पर बात हुई। गीता कहती हैं, ‘मन्ना सिंह के बड़े बेटे ने आकर बताया कि वो नहीं रहे। हम तो सुनते ही बेहोश हो गए। चार भाइयों में सबसे छोटे थे। इस घटना के बाद बहुत दिक्कतें आईं, लेकिन परिवार ने साथ दिया।

उस समय माहौल बहुत डरावना था। बड़ी बेटी 12वीं का इम्तिहान दे रही थी। मैंने उसे मऊ से बाहर भेज दिया। अब बड़ी बिटिया की शादी हो गई है। पैसे नहीं थे, इसलिए बीच वाली बिटिया की पढ़ाई छूट गई। छोटी बिटिया BHU से पढ़ रही है।’

मन्ना सिंह के भाई अशोक सिंह बताते हैं, ‘6 फरवरी 2014 को आजमगढ़ के तरवां कलां में सड़क बनने के दौरान गोलीबारी हुई और बिहार का एक मजदूर इसमें मारा गया था। इसका आरोप मुझ पर और मेरे भाई हरेंद्र पर लगाया गया। ये मुख्तार की चाल थी। पुलिस की जांच में सामने आया कि घटना के वक्त हम 40 किमी दूर थे। बाद में इस मामले में मुख्तार समेत 11 लोगों को आरोपी बनाया गया। शूटर अनुज कनौजिया इसी मामले में फरार है।’

मुख्तार का ऐसा डर, CBI ने कहा था- UP में हम सेफ नहीं
अशोक सिंह बताते हैं, ‘मुख्तार दुश्मनी की वजह से नहीं मारता। वह आदतन पेशेवर अपराधी है। BJP विधायक कृष्णानंद राय की हत्या भी इसलिए कर दी कि उन्होंने उसके भाई को चुनाव में हरा दिया था।'

'कृष्णानंद मामले की CBI जांच की मांग हुई, लेकिन तब CM रहे मुलायम सिंह यादव ने इनकार कर दिया। उनका परिवार हाईकोर्ट चला गया। कोर्ट ने CBI जांच के आदेश दिए, CBI आई भी, लेकिन इतना डर गई कि लिखकर दे दिया- UP में हम सुरक्षित नहीं है। वहां मुकदमा नहीं देखा जा सकता है। UP से बाहर मुकदमा चलाया जाए। केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, UP में सपा की, इसलिए मुख्तार को कोई डर ही नहीं था।'

गाजीपुर का बसनिया, जहां कृष्णानंद राय की हत्या की गई थी। यहां उनकी याद में एक स्तम्भ भी बना है।
गाजीपुर का बसनिया, जहां कृष्णानंद राय की हत्या की गई थी। यहां उनकी याद में एक स्तम्भ भी बना है।

अब मुख्तार और बृजेश की गैंग कैसे चल रहीं…
बृजेश अगस्त 2022 में बरी होकर बाहर आ गया है। उधर मुख्तार जेल से ही गैंग चला रहा है। ऐसे में दो सवाल हैं। पहला- क्या फिर से दोनों के बीच गैंगवार होगी। दूसरा- अब दोनों गैंग काम कैसे करेंगे। सीनियर जर्नलिस्ट राहुल सिंह इसका जवाब देते हैं। उनके मुताबिक, अब गैंगवार की आशंका न के बराबर है।

राहुल कहते हैं, ‘मुख्तार पहले ही समझ गया था कि राजनीति के बिना अपराध की दुनिया में टिके रहना मुश्किल है। इसलिए उसने अपने लिए मऊ की सुरक्षित सदर सीट को चुना और वहां से लगातार 5 बार विधायक रहा। बृजेश सिंह ने भी 2016 में जेल से ही MLC चुनाव जीता। अब बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह MLC हैं।’

‘अब दोनों सफेदपोश हैं। बृजेश को वैसे भी लाइमलाइट पसंद नहीं। सरकार बदलने के बाद से ही मुख्तार और उसका गैंग शांत होकर काम कर रहा है। बृजेश भी शांति से काम कर रहा है, चाहे सरकारी ठेके हों, या फिर बालू-स्क्रैप का कारोबार हो।

ठेके अब भी इन दोनों के इशारे पर ही अलॉट हो रहे हैं, लेकिन अब या तो इनके आदमी काम कर रहे हैं या फिर नामी कंपनियों को इनकी सिफारिश पर काम मिलता है। अब रसूख से सब चलता है, गैंगवार पुरानी बात हो गई।’

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