ग्राउंड रिपोर्ट376 साल की शांति, फिर जल उठा था मऊ:15 मौतें, मां-बेटी से गैंगरेप, दंगों में क्या था मुख्तार का रोल

मऊ14 दिन पहलेलेखक: रवि श्रीवास्तव
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'14 अक्टूबर, 2005 का दिन था। मैं हॉस्पिटल पहुंचा ही था। तब तक पता नहीं था कि मऊ में दंगा हो गया है। 4-5 घंटे के बाद लाशें आने लगीं। 1,2,3,4,5..... कुल 15 लाशें। 8 हिंदुओं की, 7 मुस्लिमों की। किसी बॉडी पर चाकू घोंपने के निशान थे, किसी पर गोली के। अफवाहों से ऐसा माहौल बना कि लोग सीरियस मरीजों को भी हॉस्पिटल से लेकर भाग गए।'

ये पीएन सिंह हैं, मऊ दंगे के वक्त पोस्टमार्टम हाउस इंचार्ज थे, अभी डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में चीफ फार्मासिस्ट हैं। UP के मऊ में भरत मिलाप के दौरान हुआ झगड़ा, अगले दिन तक दंगे के बदल गया था। दंगा भड़काने का आरोप तब मऊ सदर से विधायक रहे मुख्तार अंसारी पर लगा। मुख्तार सरेंडर कर जेल गया और तभी से अलग-अलग मामलों में अंदर है।

29 अप्रैल, 2023 को ही गैंगस्टर एक्ट में उसे 10 साल की सजा हुई है। वाराणसी के 32 साल पुराने अवधेश राय हत्याकांड में 22 मई को सुनवाई होनी है। इस हत्याकांड में मुख्तार मुख्य आरोपी है।

मुख्तार अंसारी पर सीरीज की ये तीसरी स्टोरी है। पहली स्टोरी में हमने मुख्तार के 15 हजार करोड़ रुपए के साम्राज्य और दूसरी में उसके खास शूटर्स के बारे में बताया था। इस स्टोरी में पढ़िए कि मऊ के दंगे कैसे भड़के और इसके आरोपी-पीड़ित किस हाल में हैं।

394 साल पुराना शहर, शाहजहां की बेटी ने भरत मिलाप के लिए जगह दी थी
मऊ शहर की बसाहट मुगल सल्तनत से जुड़ी है। शाहजहां की बेटी जहांआरा ने इसे 1629 में बसाया था। बताया जाता है कि जहांआरा ने कटरा में अपना घर और उसके सामने शाही मस्जिद बनवाई। तब हिंदू यहां भरत मिलाप का मंचन करते थे।

जहांआरा को ये कार्यक्रम बहुत अच्छा लगता था, इसलिए उन्होंने मस्जिद से सटी जगह पर भरत मिलाप करने की इजाजत दे दी। मुगलकाल में तो इस पर विवाद नहीं हुआ, लेकिन 376 साल बाद 2005 में मऊ जल उठा। एक महीने तक जलता रहा।

कुछ लड़कों ने स्पीकर गिरा दिए, यही विवाद दंगे में बदला
जहांआरा ने खुद भरत मिलाप के लिए जगह तय की थी, 376 साल तक शांति से ये कार्यक्रम होता रहा, फिर 2005 में ऐसा क्या हुआ कि दंगा भड़क गया। इस सवाल के साथ हम दंगा कवर करने वाले सीनियर जर्नलिस्ट राहुल सिंह से मिले।

वे बताते हैं, ‘शाम 6 से 7 बजे का वक्त होगा। भरत मिलाप के दौरान बिरहा कार्यक्रम की तैयारी चल रही थी। शाही मस्जिद से निकले कुछ लड़कों ने माइक का तार खींचकर स्पीकर गिरा दिया। इससे माहौल बिगड़ गया।’

'मेरे पास खबर आई तो मैं मौके पर पहुंचा। माहौल समझने के लिए पुलिस इंस्पेक्टर के पास खड़ा था। पुलिस आरोपी 4 लड़कों को उनके घर से गिरफ्तार कर चुकी थी। सभी को कोतवाली भेज दिया गया। पुलिस फिर से कार्यक्रम शुरू करवाने की कोशिश कर रही थी। तभी एक शख्स इंस्पेक्टर के पास मोबाइल लेकर आया और बोला, ‘भाई बात करेंगे।'

‘इंस्पेक्टर ने एक नजर उस आदमी को देखा और फोन पर बात करने लगे। मुझे लगता है कि फोन पर मुख्तार था। कुछ सेकेंड ही बात हुई, इंस्पेक्टर ने अपने मोबाइल से किसी मातहत को फोन किया। कुछ देर बाद हमने देखा कि आरोपी लड़के कोतवाली से छूटकर फिर उसी जगह पर आ गए।’

‘उन लड़कों को देख रामलीला कमेटी वाले भड़क गए। इंस्पेक्टर ने लड़कों को फटकार कर वहां से भगा दिया। कहा, ‘जाओ, विधायक के कहने पर छोड़ा है, घर जाओ। इसके बाद कमेटी वाले आरोपियों को पकड़ने की मांग पर अड़ गए। रात गहरी हो रही थी। कमेटी वालों ने कहा कि आरोपी गिरफ्तार नहीं होंगे, तब तक भरत मिलाप कार्यक्रम नहीं होगा।’

‘यह सब चल ही रहा था कि DM, SP मौके से घर लौट गए। रामलीला कमेटी वाले भी शीतला माता मंदिर चले गए। यहीं से पुष्पक विमान उठता है। माहौल शांत लगा, तो हम सब भी घर चले गए। सुबह 7 बजे पता चला कि शाही मस्जिद के पास लोगों ने रास्ता जाम कर दिया है। वे आरोपियों की गिरफ्तारी और भरत मिलाप कार्यक्रम कराने की मांग कर रहे हैं।’

‘मैं पहुंचा, तब तक दोनों पक्ष आमने-सामने आ चुके थे। पत्थरबाजी हो रही थी। हमें पता चला कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को मैसेज मिला है, हिंदू शाही मस्जिद पर हमला करने वाले हैं। इससे भीड़ इकट्ठी हो गई और दंगा शुरू हो गया। अल्लाह-हू-अकबर और जय श्रीराम के नारे सुनाई दे रहे थे। हर तरफ आग की लपटें और धुआं था। गोलियां चल रही थीं। एक महीने तक मऊ उस दंगे से उबर नहीं पाया। हम कवरेज कर घर लौटते, तभी फोन आ जाता कि किसी घर, दुकान में आग लगा दी गई है।’

राहुल बताते हैं, ‘मुख्तार पर दंगे भड़काने और दंगे के दौरान मर्डर के आरोप लगे थे। ये अलग बात है कि सितंबर, 2006 में कोर्ट ने उसे बरी कर दिया। इस मामले में 28 गवाह बयान से पलट गए थे। मुख्तार के साथ 32 और लोग आरोपी थे, वे भी बरी हो गए।’

रामप्रताप यादव का मर्डर हुआ; मुख्तार नामजद था, दो महीने में बरी हो गया
मऊ रेलवे स्टेशन से करीब 25 किमी दूर अछारा गांव है। यहां रामप्रताप यादव का परिवार रहता है। बताया जाता है कि रामप्रताप की दंगे के दौरान सलाहाबाद में हत्या कर दी गई थी। ये 14 अक्टूबर, 2005 की बात है। रात के करीब 10 बजे थे। सलाहाबाद रोड के एक तरफ हिंदू और दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग खड़े थे। बीच में मुख्तार की गाड़ी चल रही थी। तभी एक गोली चली और रामप्रताप यादव को लगी।

हम रामप्रताप के परिवार से मिलने अछारा गांव पहुंचे। गांव की शुरुआत में ही खपरैल वाला एक उजाड़ सा घर है। देखकर लगता है कि यहां कोई नहीं रहता होगा। आवाज लगाने पर रामप्रताप की पत्नी लालमुनि बाहर आईं।

हमने उनसे रामप्रताप की मौत के बारे में बात करनी चाही। वे बोलीं, ‘इस बारे में कोई बात नहीं करनी।’ हमने कहा, 'ठीक है, पर पति के न रहने पर क्या-क्या दिक्कतें हुईं?’

लालमुनि कहती हैं, ‘पति की मौत से तीन-चार साल पहले ही हमारा गौना हुआ था। एक बेटा गोद में था। इसके बाद जिंदगी उलट-पुलट गई। कई बार भूखे सोना पड़ता था। अंटी चढ़ाकर (चरखी पर धागे लपेटना) जो मिलता, उसी से बच्चे को पाला। रोज 50 से 100 रुपए मिल जाते थे। कमाई नहीं होती, उस दिन खाने के लिए पड़ोसियों के सामने हाथ फैलाती।’

हमने पूछा- बेटा कहां है? लालमुनि बताती हैं, ’पढ़ाई करता है। पुलिस में जाने की तैयारी कर रहा है।’ रामप्रताप यादव की हत्या में मुख्तार का नाम सामने आया था, इस पर लालमुनि कहती हैं कि ‘हमने तो नहीं देखा था, तो कैसे किसी का नाम ले लें। परिवारवाले ही मुकदमा लड़ रहे थे। बस उस वक्त दो लाख रुपए मुआवजा मिला था।’

रामप्रताप के भाई ने मुलायम के बगल में बैठकर कहा- मुख्तार बेगुनाह
जर्नलिस्ट राहुल सिंह कहते हैं कि ‘रामप्रताप की हत्या में मुख्तार नामजद था। उसके लोग रामप्रताप के भाई को लेकर लखनऊ पहुंच गए। वहां मुलायम के बगल बैठकर उसने कहा कि मुख्तार का मेरे भाई को मारने में कोई रोल नहीं है। मुख्तार तो दंगा रोकने की कोशिश कर रहा था।’

गांववाले कैमरे पर बात नहीं करते, पर बताते हैं कि रामप्रताप की हत्या के बाद मुख्तार के आदमियों ने परिवार पर दबाव बनाया था। कुछ लेनदेन भी हुआ, पर रामप्रताप की पत्नी को कुछ नहीं मिला। केस की पैरवी नहीं हो सकी। 27 गवाह कोर्ट में मुकर गए। सबूत नहीं थे, इसलिए मुख्तार समेत दूसरे आरोपी बरी हो गए।

गोली लगने से पिता की मौत हुई, बेटे उस घटना को याद नहीं करना चाहते
दंगों से पीड़ित एक परिवार मऊ की पुरानी सब्जी मंडी में रहता है। घर के नीचे वाले हिस्से में तीन-चार दुकानें हैं। ऊपर सोनू और मोनू दूबे रहते हैं। उनके पिता गोपाल दुबे को दंगे के दौरान गोली मारी गई थी।

घर के सामने ही एक मस्जिद है। बस्ती में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, हिंदू कम। हमारे आवाज देने पर मोनू नीचे आए। कहने लगे- कैमरे पर कुछ नहीं कहूंगा। उस घटना को हम भूल चुके हैं। दंगा किसने कराया, किसने गोली मारी, उससे अब क्या फायदा। हम अपनी जिंदगी जी रहे हैं। इस बारे में कोई बात नहीं करनी।’

मऊ दंगे में मारे गए गोपाल दुबे का घर, 50 साल के गोपाल उस दिन छत पर थे। कहीं से उन पर गोली चलाई गई और गोपाल दुबे की मौत हो गई।
मऊ दंगे में मारे गए गोपाल दुबे का घर, 50 साल के गोपाल उस दिन छत पर थे। कहीं से उन पर गोली चलाई गई और गोपाल दुबे की मौत हो गई।

पत्नी और बेटी से गैंगरेप किया, पीट-पीटकर पैर तोड़ दिया
दंगों के दौरान एक मुस्लिम परिवार की मां-बेटी से गैंगरेप हुआ था। ये परिवार रघुनाथपुरा में रहता है। ये मुस्लिम आबादी वाला इलाका है। यहां हमें मो. जफर मिले। हमने पूछा- दंगे वाले दिन क्या हुआ था। जफर उस दिन की कहानी सुनाने लगे, ‘हम छोटी रहजनिया में रहते थे। 15 अक्टूबर, 2005 को भीड़ ने बस्ती पर हमला कर दिया। दंगाई हाथ में चाकू, लाठी, हॉकी लिए थे। घरों को लूटकर आग लगाने लगे। मैं परिवार के साथ भाग निकला।’

‘अलीनगर में मेरी ससुराल है, हम वहीं चले गए। वहां भी दंगा भड़क चुका था। दिन में करीब 12 बजे 30-35 लोग हमारे घर में घुस गए। मुझे और मेरे बेटों को पीटने लगे। रॉड मारकर मेरी टांग तोड़ दी। पत्नी और 15 साल की बेटी से गैंगरेप किया। गहने-पैसे लूट लिए और घर में आग लगा दी। बाहर कर्फ्यू लगा था, तो हम हॉस्पिटल भी नहीं जा पाए। 9 दिन बाद 24 अक्टूबर को जिला हॉस्पिटल में दिखाया। एक महीने बाद FIR दर्ज करवाई। अभी ये मामला CBI कोर्ट में चल रहा है।’
(रेप केस होने की वजह से मो. जफर का नाम बदला गया है।)

पीड़ित से मिलने के बाद हम दंगे के आरोपियों के घर पहुंचे। इनमें त्रिवेणी प्रसाद और दूसरे आरोपी हैं, जिन पर जफर की पत्नी और बेटी से गैंगरेप का आरोप है…

मुख्तार का विरोध किया, तो रेप का मुकदमा झेल रहा, बेटे का कत्ल हो गया
रेप के आरोप पर हमने त्रिवेणी प्रसाद से बात की, तो उन्होंने अलग ही कहानी बताई। वे कहते हैं, ‘सलाहाबाद रोड पर कम्हरिया गांव है। गांव की एक जमीन पर मुख्तार के गुंडे कब्जा करना चाहते थे। लोगों ने विरोध किया। गुंडो को पीटा भी। मुख्तार को ये बात पता चली तो उसे बुरा लग गया।’

‘उसे पता था कि गांव वालों के पीछे मैं हूं। उसने मेरे ऊपर गैंगरेप का केस करवा दिया। मऊ दंगों के दौरान यही एक मामला है, जो CBI के पास चला गया। इसमें आरोपी पक्ष के बयान होने हैं। केस में 15 लोगों को नामजद किया गया था। आज मुख्तार जो झेल रहा है, उसे देखकर लोगों को शांति मिल रही है।’

इस केस के बाद क्या-क्या झेलना पड़ा? त्रिवेणी प्रसाद कहते हैं, ‘रेप का मुकदमा तो झेल ही रहा था, 2 अगस्त 2006 को 15 साल के बेटे अंकित की हत्या कर दी गई। पहले मैंने अज्ञात में FIR करवाई थी। इसके बाद दो लोगों को नामजद भी किया, लेकिन किसी को सजा नहीं हुई। केस बंद हो गया। इतनी कमाई नहीं थी कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जा पाता।’

‘ये सब मुख्तार के इशारे पर हुआ। उसके शूटर्स ने मेरे बेटे को मारा था। आए मुझे मारने थे, लेकिन मैं बच गया। बेटे की मौत से मैं टूट गया।’ त्रिवेणी प्रसाद बात करते-करते रोने लगते हैं। कहते हैं, ‘परिवार आज भी बेटे की मौत का जिम्मेदार मुझे ही मानता है। मैंने मुख्तार का विरोध न किया होता तो बेटा जिंदा होता। मैं पत्नी से नजर नहीं मिला पाता हूं। वो मेरे दूसरे बेटे के साथ लखनऊ में रहती है। घर में अंकित की फोटो तक नहीं है। उसकी याद न आए, इसलिए सारी फोटो जला दीं।’

रघुनाथ का भी यही दावा- जमीन कब्जाने का विरोध किया, तो केस करवा दिया
त्रिवेणी प्रसाद से मिलने के बाद हम कम्हरिया गांव पहुंचे, जहां जमीन पर कब्जे का जिक्र उन्होंने किया था। यहां रघुनाथ चौहान से मुलाकात हुई। गैंगरेप के आरोपियों में रघुनाथ का भी नाम है। वे बताते हैं कि ‘मुख्तार के आदमी विनोद पांडे ने हमारी जमीन कब्जा ली थी। मुझे जेल भिजवा दिया। रेप का केस करवा दिया। इस समय मेरे ऊपर 7 केस चल रहे हैं।’

एक और आरोपी प्रमोद कुमार ने बताया कि ‘दंगे के एक महीने पहले रघुनाथ की जमीन हड़पने के लिए विनोद और मुख्तार के गुंडे आए थे। हमारा उनसे झगड़ा हो गया। मऊ में दंगा हुआ, तो एक महीने बाद हम लोगों पर रेप का केस दर्ज हो गया। हमें फंसाया गया है बस, और कुछ नहीं। अब मुख्तार पर कार्रवाई हो रही है, सरकार से आस है कि हमारी भी सुनवाई हो जाए।’

दंगों में कितनी मौतें हुई थीं, कितने लोग घायल हुए, ये जानने हम डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंचे। यहां हमें तब पोस्टमार्टम हाउस इंचार्ज रहे पीएन सिंह मिल गए। पीएन सिंह बताते हैं, ‘दंगा शुरू हुआ, उसके 24 घंटे तक हम लोग घर नहीं आ पाए थे। तब पुलिस, मेडिकल ऑफिसर के अलावा विधायक मुख्तार अंसारी ही दिख रहे थे। बाकी कोई लीडर नहीं आ पाया। हमें यही पता चलता था कि वही लाशों को भेज रहे हैं।’

‘तब मऊ में पोस्टमार्टम हाउस नहीं था। हॉस्पिटल के एक हिस्से में ही पोस्टमार्टम होते थे। कर्फ्यू के दौरान पुलिस वाले लाशें पटककर चले जाते थे। डेड बॉडी खुले में पड़ी थीं। जानवर उन्हें खा रहे थे। दंगों का डर महीनों तक बना रहा। कहीं शोर होता, तो लगता कोई घर जला दिया क्या।’

दंगों में मुख्तार का रोल क्या था?
इस सवाल के साथ हम फिर जर्नलिस्ट राहुल सिंह के सामने थे। राहुल कहते हैं कि मुझे याद है मुख्तार के नाम पर ही आरोपियों काे छोड़ा गया था। मैं मौके पर नहीं होता, तो इतने विश्वास से मुख्तार का नाम नहीं ले पाता। इतने साल बाद भी उसका डर पीड़ितों में है, क्योंकि वे रोज कमाने-खाने वाले लोग हैं। मुख्तार ने कुछ कर दिया, तो उनके परिवार का क्या होगा। इसी डर से कोई मुख्तार के खिलाफ नहीं जाता।’

क्या दंगा भड़काने में मुख्तार का हाथ था? राहुल सिंह कहते हैं, ’बिल्कुल था। वो उस दौरान खुली जीप में घूम रहा था। मुख्तार को देखकर उसके समर्थकों की हिम्मत बढ़ रही थी। सलाहाबाद रोड पर यही हुआ। मुख्तार को देखकर उसके लोगों का गुस्सा भड़का। तभी रामप्रताप यादव की मौत हुई।'

दंगों के दौरान मुख्तार अंसारी का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें वो खुली जिप्सी में दंगे वाले इलाके में अपने लोगों के साथ घूम रहा था। मुख्तार का दावा था कि अफसरों ने उसे लोगों को समझाने के लिए बुलाया था।
दंगों के दौरान मुख्तार अंसारी का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें वो खुली जिप्सी में दंगे वाले इलाके में अपने लोगों के साथ घूम रहा था। मुख्तार का दावा था कि अफसरों ने उसे लोगों को समझाने के लिए बुलाया था।

राहुल के मुताबिक, 'मुख्तार भले कहे कि उसे प्रशासन ने दंगा रोकने के लिए बुलवाया था, लेकिन सच यही है कि मुख्तार खुद आया था। खुली जिप्सी में चलने का उसका वीडियो सामने आया, तो प्रशासन और सरकार पर दबाव बढ़ा। इसके बाद उसने गाजीपुर में सरेंडर कर दिया।'

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सीरीज की चौथी स्टोरी सोमवार, 22 मई को पढ़िए...

बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह से दुश्मनी, ​​​​​​ठेके में 10% कमीशन नहीं मिला तो मन्ना सिंह को मरवाया

मुख्‍तार के नाम पहला क्राइम 1988 में दर्ज हुआ, तब मंडी परिषद की ठेकेदारी पर ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या कर दी गई थी। इसी दौरान मुख्तार की बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह से दुश्मनी हुई। आरोप है कि ठेकों में 10% कमीशन नहीं मिला ताे उसने 29 अगस्त 2009 को ठेकेदार मन्ना सिंह काे मरवा दिया। सीरीज की अगली रिपोर्ट में उन लोगों के परिवार की आपबीती, जिनकी हत्या का आरोप मुख्तार पर लगा।

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सीरीज की पहली और दूसरी स्टोरी

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