अगर मजबूत इरादा और बेहतर आइडिया हो तो वेस्ट से भी पैसा कमाया जा सकता है। इसकी मिसाल दी है मुंबई के कौशिक वरदान और उनकी मां भुवना श्रीनिवास ने। मां- बेटा साथ मिलकर एग्रो-वेस्ट से ईकोफ्रेंडली कपड़ा बनाने का काम कर रहे हैं। जिससे पेड़-पौधों से निकलने वाले वेस्ट, यानी कचरे का इस्तेमाल तो हो ही रहा है, इसके अलावा इन कपड़ों को बनाने में नेचर को किसी तरह से नुकसान भी नहीं हो रह है।
हमारे देश में एग्रीकल्चर और इससे जुड़ी इंडस्ट्रीज से हर साल कई टन कचरा निकलता है, जिसे एग्रो -वेस्ट कहा जाता है। ज्यादातर लोग इसे खत्म करने के लिए जला देते हैं, जो प्रदूषण का बड़ा कारण बनता है। वहीं कई फैब्रिक्स जैसे कॉटन, पालिएस्टर या रेयॉन जैसे फैब्रिक के प्रोडक्शन में नेचर को बहुत नुकसान होता है।
मां-बेटे ने इन्हीं परेशानियों के विकल्प के तौर पर एग्रो-वेस्ट से बने ईकोफ्रेंडली कपड़ा बनाने का स्टार्टअप ‘रेडान’ (Raydan) नाम से शुरू किया। दोनों कई लोगों को रोजगार देने के साथ एक साल में 20 लाख रुपए का बिजनेस किया है।
काम कीमत में सस्टेनेबल फैब्रिक
25 साल के कौशिक वरदान मुंबई के रहने वाले हैं। सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने के मकसद से इन्होंने अपनी मां, भुवना (53) के साथ मिलकर रेडान की शुरुआत की। जिसके जरिए कमल, गुलाब, केला, एलोवेरा, संतरे, नीलगिरि, मक्का, बांस और गन्ना जैसी फसलों से निकलने वाले कचरे का इस्तेमाल कर ईकोफ्रेंडली कपड़ा बना रहे हैं।
कौशिक कहते हैं कि उन्होंने इंजीनियरिंग के बाद, डिजाइनिंग में मास्टर्स किया। उन्हें नौकरी करने की बजाय खुद का स्टार्टअप शुरू करना था। कौशिक बताते हैं, “मुझे कुछ ऐसा करना था जो सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा दे सके। मेरी मां को टेक्सटाइल इंडस्ट्री के बारे में काफी समझ थी और मुझे फैशन और डिजाइन के बारे में। तो हमने रेडान की शुरुआत की। रेडान में हम ब्लेंडेड फैब्रिक (मिक्स्ड फैब्रिक) तैयार करते हैं। जिसमें बैम्बू और कॉटन या बैम्बू और केले जैसे दो फैब्रिक को मिलाकर एक फैब्रिक बनाते हैं। जिससे लोगों को कम कीमत में ईकोफ्रेंडली कपड़े मिल सके।”
कौशिक के अनुसार उनका स्टार्टअप देश का पहला स्टार्टअप है, जो ब्लेंडेड ईकोफ्रेंडली कपड़े बनाने का काम कर रही है।
कई फायदे हैं ईकोफ्रेंडली कपड़ों के
मार्केट में मिलने वाले ज्यादातर फैब्रिक के मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस में नेचर को नुकसान पहुंचता है। अगर बात कॉटन की करें तो इसके प्रोडक्शन में पानी का इस्तेमाल बहुत ज्यादा होता है। वैसे ही पॉलिएस्टर, जिसे सस्ता फैब्रिक माना जाता है, ग्लोबल प्लास्टिक वेस्ट के लिए जिम्मेदार है। जबकि एग्रो-वेस्ट से बनने वाले कपड़े नेचर के लिए पूरी तरह से फायदेमंद साबित होते हैं।
कैशिक बताते हैं, “हम ज्यादातर केले और बैम्बू का इस्तेमाल करते हैं। जिनका पेड़ एक बार फल देने के बाद वैसे भी वेस्ट हो जाता है और इन्हें बड़ा होने में सिर्फ 6 महीने ही लगते हैं। इसके अलावा हम कमल, गुलाब, एलोवेरा, संतरे, नीलगिरि, मक्का और गन्ना की फसलों से निकले वाले कचरे का भी इस्तेमाल करते हैं। जिससे किस भी तरह नेचर को नुकसान नहीं होता बल्कि इससे बने कपड़े दूसरे फैब्रिक की तुलना में आरामदायक होते हैं। इसमें किस भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है।”
कौशिक के अनुसार एग्रो-वेस्ट से बने फैब्रिक से हर तरह के गार्मेंट्स बन सकते हैं जो दिखने में बहुत सुंदर लगते हैं।
देश के कई हिस्सों से एग्रो-वेस्ट इकट्ठा किया जाता है
कौशिक बताते हैं देश के कई हिस्सों से रॉ मटेरियल खरीदा जाता है। प्रोडक्शन के लिए सबसे बड़ी यूनिट तमिलनाडु के सेलम शहर में लगी है। वे बताते हैं, “मिल्स में अलग-अलग तरह की फसलों से बचे हुए वेस्ट से फाइबर निकाला जाता है और उससे धागा तैयार किया जाता है। फिर धागों की बुनाई करके अलग-अलग तरह का कपड़ा तैयार किया जाता है। हर महीने लगभग एक टन यार्न का प्रोडक्शन हम करते हैं। जिससे ईकोफ्रेंडली फैब्रिक बनाई जाती है।”
इन फैब्रिक को देश के हर हिस्से में सप्लाई किया जाता है। इसके अलावा अमेरिका, कनाडा , सिंगापुर सहित कई देशों में भी एक्सपोर्ट किया जा रहा है। जिसे पेंट, शर्ट, स्कर्ट और ड्रेस सहित कई गार्मेंट्स बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
किसानों को भी है फायदा
कौशिक बताते हैं कि नेचर के प्रति बढ़ रही जागरूकता के कारण उनके मिल्स को ज्यादा काम मिल रहा है। जिसकी वजह से किसानों को भी फायदा हो रहा है।
वे कहते हैं, “जिस तरह इको फ्रेंडली कपड़ों की मांग मार्केट में बढ़ रही है उसी तरह किसानों की भी आमदनी बढ़ रही है। पहले हम सिर्फ केला और बैम्बू के फाइबर पर काम कर रहे थे, लेकिन जब हमने दूसरे पेड़ों के वेस्ट शामिल किए तब से बागवानी कर रहे किसान भी हमसे जुड़ गए हैं।
किसानों के अलावा हमारी टीम में 15 लोग काम करते हैं। जो अलग-अलग यार्न से फैब्रिक बनाते हैं। इनसे बने कपड़े इको-फ्रेंडली होने के साथ-साथ रिसाइकिल भी किए जा सकते हैं। अगर इन्हें डीकम्पोज किया जाए तो ये कपड़े चंद महीनों में ही नष्ट हो जाएंगे। जबकि आजकल बनने वाले करीब 60% कपड़े जैसे पॉलिएस्टर, नायलॉन और ऐक्रेलिक टेक्सटाइल में प्लास्टिक होता है जिसे आसानी से डीकम्पोज नहीं किया जा सकता।
मां के दिखाए रास्ते पर आगे बढ़े
कौशिक को सस्टेनेबल फैब्रिक के बारे में जानकारी उनकी मां, भुवना श्रीनिवास से मिली। जो काफी समय से टेक्सटाइल इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं।
कौशिक कहते हैं, “मेरी मां पहले एरिका पाम लीफ से क्रॉकरी बनाने का काम करती थीं। उसके बाद उन्होंने चैंप्स एग्रो नाम से ईकोफ्रेंडली कपड़े बनाने का भी काम किया। उनसे ही मैंने जाना कि कैसे हमारे कपड़े नेचर को फायदा या नुकसान पंहुचा सकते हैं। पहले सिर्फ बाहर के देश जैसे अमेरिका या लंदन में इस तरह के कपड़े बन रहे थे। अब भारत में न सिर्फ डिजाइनर बल्कि आम लोग भी ईकोफ्रेंडली कपड़े पहनना पसंद करते हैं इसलिए हम भी इस तरह के फैब्रिक बनाने में इंट्रेस्ट ले रहे हैं।”
कौशिक अपनी मां के साथ कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया। उनकी मां फैब्रिक के प्रमोशन से संबंधित काम से जुड़ीं थीं, लेकिन कौशिक खुद मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ना चाहते थे। इसलिए पढ़ाई के बाद नौकरी करने की बजाय उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया।
एक ही साल में 20 लाख का टर्नओवर
कौशिक ने अपने स्टार्टअप की शुरूआत 2020 में किया और जल्द ही कई मैन्युफैक्चरिंग कंपनी और डिजाइनर उनके कस्टमर बन गए हैं। जो उनसे कपड़ा खरीदकर गार्मेंट्स बनाने का काम कर रहे हैं।
कौशिक कहते हैं, “आजकल बहुत सारी कंपनियां ईकोफ्रेंडली का लेबल लगाकर अपने ब्रांड्स की मार्केटिंग कर रही हैं। ऐसे में बाजार में अपनी जगह बनाना थोड़ा मुश्किल है। मैंने तो स्टार्टअप की शुरुआत ही कोरोना काल में की। पहले थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन हमारे फैब्रिक की क्वालिटी देख कस्टमर हमसे खुद जुड़ने लगे। हम अलग-अलग सेक्टर में काम करने वाली मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को कपड़ा सप्लाई करते हैं, जिनमें पैंट,शर्ट, जुराबें , ड्रेस और इनर वियर बनाने वाली कंपनियां शामिल हैं।”
कमाई के बारे में पूछने पर कौशिक बताते हैं पिछले एक साल में उनके स्टार्टअप ने लगभग 20 लाख रुपए का टर्नओवर कमाया है। उन्हें उम्मीद है कि आने वाले सालों में यह टर्नओवर दुगुना हो जाएगा क्योंकि बाजार में ईकोफ्रेंडली कपड़े की मांग तेजी से बढ़ रही है।
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