सैनिटरी पैड महिलाओं की बुनियादी जरूरतों में से एक है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की सिर्फ 36% महिलाओं को ही सैनिटरी पैड की सुविधा मिल पाती है। एक तरफ सैनिटरी पैड पीरियड्स में महिलाओं को सुरक्षित रखने में मदद करता है। वहीं, दूसरी तरफ ये पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक है।
भारत में हर साल करीब 1 लाख टन यूज्ड पैड को लैंडफिल में डंप किया जाता है। मेंस्ट्रुअल हेल्थ अलायन्स इंडिया के मुताबिक, एक सैनिटरी नैपकिन को डिस्पोज होने में 500 से 800 साल लगते हैं। नैपकिन में नॉन-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक और सुपर-एब्जॉर्बेंट पॉलिमर होते हैं , इस वजह से ये आसानी से डीकम्पोज नहीं होता और पर्यावरण के लिए मुसीबत बनता है।
इसी समस्या से निपटने मुंबई की डॉ. मधुरिता गुप्ता और उनके भाई रूपन गुप्ता ने मिलकर ‘सोलर लज्जा’ नाम से सोलर से चलने वाला सैनिटरी पैड डिस्पोजल मशीन बनाई है। इस मशीन में सैनिटरी पैड के अलावा मास्क और PPE किट को भी डीकम्पोज किया जा सकता है। इससे निकलने वाली राख को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। अब तक देश के कई शहरों में 38 से ज्यादा सोलर लज्जा को इन्स्टॉल किया जा चुका है। मधुरिता समाज सेवा के साथ हर साल 20 लाख रूपए भी कमा रही हैं।
गांव की महिलाओं की परेशानी देख आइडिया आया
डॉ. मधुरिता गुप्ता मुंबई की रहने वाली हैं और पेशे से एक वेटरनरी डॉक्टर हैं। मधुरिता मुंबई बेस्ड मायवेट्स वाइल्डलाइफ ट्रस्ट की फाउंडिंग मेंबर भी हैं। करीब 10 साल से वो जू, वाइल्डलाइफ सफारी और नेशन पार्क के जानवरों के लिए काम कर रही हैं। काम करने के दौरान ही मधुरिता कई गांव की लड़कियों और महिलाओं से मिली जो पीरियड्स के लिए बहुत ही अनहाइजीनिक चीजें इस्तेमाल करती थीं।
मधुरिता बताती हैं, “जंगलों में काम करने के दौरान मुझे पता चला की पीरियड्स के दौरान ट्राइबल महिलाओं को बहुत ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है। सुविधाओं के अभाव में वो लोग पीरियड्स में टाट के बोरे में बालू भर के इस्तेमाल करती थीं, जिनकी वजह से उन्हें कई तरह की बीमारियां होती थीं। उनकी मदद के लिए हमने पैड बांटना शुरू किया।
पैड बांटने के बाद दूसरी मुसीबत उसको डिस्पोज करने की आ रही थी। कई ट्राइबल जगहों पर लड़कियां जब पैड फेंकने जाती थीं, तो पैड में लगे ब्लड की वजह से उनपर जंगली जानवरों ने अटैक किया था। उनकी परेशानी ने मुझे कुछ नया करने को प्रेरित किया और इस तरह सोलर लज्जा का अविष्कार किया।”
इस तरह बनाया सोलर से चलने वाला ‘सोलर लज्जा’
मधुरिता ने सैनिटरी पैड को डिस्पोज करने की परेशानी अपने भाई रूपन गुप्ता (35) से साझा किया, जिन्होंने IIT और IIM से पढ़ाई की है। रूपन का एजुकेशनल बैकग्राउंड इंजीनियरिंग होने की वजह से उन्हें मशीनरी के बारे में काफी जानकारी थी। कई महीनों के रिसर्च के बाद बहन-भाई ने मिलकर तैयार किया ‘‘सोलर लज्जा’ नाम से सोलर पावर सैनिटरी पैड इन्सिनरेटर। 2019 में उन्होंने सोलर लज्जा को अपने स्टार्टअप ‘Arnav Greentech Innovations’ के जरिए लॉन्च किया।
मधुरिता बताती हैं, “सैनिटरी महिलाओं के लिए जरूरत और पर्यावरण के लिए बड़ी परेशानी है। मैं इसका समाधान चाहती थी, कई कंपनियां सैनिटरी पैड इन्सिनरेटर बना तो रहीं हैं, लेकिन वो बिजली से चलने वाले हैं। देश में आज भी ऐसी कई जगह हैं जहां बिजली कब तक पहुंचेगी ये कहना मुश्किल है, इसलिए हम सोलर एनर्जी से चलने वाला मशीन बनाना चाहते थे। हमने 9 महीने तक रिसर्च की उसके बाद तैयार किया सोलर लज्जा”।
मधुरिता के अनुसार सोलर लज्जा पूरी तरह ईकोफ्रेंडली और सस्टेनेबल है। ये सोलर पावर से चलती है। एक बार इन्स्टॉल करने के बाद इसमें किसी तरह का खर्च भी नहीं करना होता है। इस पर लगे सोलर पैनल सनलाइट से रिचार्ज होंगे जिसकी मदद से मशीन काम करेगी।
लज्जा से निकलने वाला राख खेतों में खाद का काम करती है
इस मशीन से सैनिटरी नैपकिन के साथ-साथ टैम्पून, डायपर, मास्क और PPE किट सहित कई बायोमेडिकल वेस्ट भी ईकोफ्रेंडली तरीके से डिस्पोज किए जा सकते हैं। मधुरिता के अनुसार, दूसरी मशीनों की तुलना में इसे 25% तक कम एनर्जी की जरूरत होती है। एक दिन में ये 200 पैड को डिस्पोज करके राख में बदल देती है। इस राख को खेतों में या बगीचों में खाद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे कम्युनिटी प्लेसेस के अलावा प्राइवेट कंपनी, स्कूल-कॉलेज में भी लगाया जा सकता है।
मधुरिता कहती हैं, “आज भी स्कूलों में पैड को डिस्पोज करने की फैसिलिटी न होने के कारण 60% से ज्यादा लड़कियां समय पर पैड नहीं बदल पाती हैं। जो उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। पैड्स का सही प्रबंधन न होने के कारण यह न सिर्फ लैंडफिल, बल्कि जल स्रोत और जानवरों के लिए भी खतरा है।
सोलर लज्जा के साथ ‘पैड डिस्पेंसिंग’ यूनिट भी लगाई जा सकती है। हम कई गांव महिलाओं को सैनिटरी पैड भी दिला रहे हैं। साथ ही, उन्हें जागरूक भी कर रहे हैं कि वे एक ही कपड़े को बार-बार इस्तेमाल न करें और खुद के स्वास्थ्य पर ध्यान दें”।
सोलर लज्जा ऑटोमैटिक मोड पर काम करती है, जिसमें पैड डिस्पोज होने में सिर्फ एक मिनट का समय लगता है। इसके अलावा ‘सोलर लज्जा की हर यूनिट लगभग 48000 वाट बिजली बचाती है, जिस कारण वह कार्बन फुटप्रिंट कम करने में भी सफल रही है।
11 राज्यों के कई शहरों में 38 मशीनें लगाई जा चुकी हैं
लोगों की जागरूकता बढ़ने के कारण धीरे- धीरे सोलर लज्जा की डिमांड भी काफी बढ़ रही है। 2019 में शुरू हुए स्टार्टअप के जरिए अब तक मधुरिता और उनकी टीम ने 38 मशीन देश के 11 राज्यों के कई शहरों में इन्स्टॉल करवाया जा चुका है।
मधुरिता बताती हैं, “देश के हर कोने से हमें काफी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। अब तक हम महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और सिक्किम के कई शहरों और गांव में कई मशीन इन्स्टॉल करवा चुके हैं। इसके अलावा इस मशीन की डिमांड जर्मनी, स्वीडन और स्पेन से आई है जिसका काम 2022 में शुरू करने वाले हैं।”
मधुरिता आगे बताती हैं की वो 2022 से अपने काम को रफ्तार देंगी। अभी उनके पास काफी आर्डर आ रहे हैं, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग यूनिट छोटा होने के कारण वो ज्यादा आर्डर नहीं ले पा रही हैं। कई स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, ऑफिस या फिर पब्लिक प्लेस पर सोलर लज्जा को इन्स्टॉल करने के लिए आर्डर मिल रहे हैं। सोलर लज्जा की सबसे बेसिक यूनिट की कीमत 43 हजार है। जरूरत के अनुसार इसका साइज बदला जा सकता है अपने स्टार्टअप के जरिए मधुरिता कई जगहों पर मशीन को डोनेट भी की हैं। कई महिलाओं को रोजगार भी दिया है। हर साल इसके जरिए वो 20 लाख रूपए भी कमा रही हैं।
कई अवार्ड्स भी मिले
मधुरिता और उनके भाई रुपन को इस अनोखे काम के लिए कई जगह से सराहना और कई अवार्ड्स भी मिले हैं। 2019 में सिंगापुर में आयोजित INSPRENEUER 3.0 में उन्हें टॉप 10 हेल्थकेयर इनोवेशन में शामिल किया गया था। 2020 में मधुरिता को यूनाइटेड नेशन वीमेन (UN वीमेन) ने टॉप 10 इनोवेशन में शामिल किया था।
2021 में मधुरिता को साउथ अमेरिका की चिली गवर्नमेंट ने उन्हें STRAIT OF MAGELLAN AWARD FOR SOCIAL INNOVATION से नवाजा था। महाराष्ट्र स्टेट इनोवेशन सोसाइटी द्वारा भी सोलर लज्जा को टॉप 10 इनोवेशन में शामिल किया गया है।
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