‘लोग हमारे स्टॉल पर आते हैं, वे स्टॉल या राज्य के बारे में बात नहीं करते, पूछते हैं कि क्या आप सांप और डॉग मीट खाते हैं। ये क्या सवाल हुआ।’ हरियाणा के सूरजकुंड मेले में पहुंची नगालैंड की एक लड़की ने बहुत गुस्से में ये बात कही।
12 फरवरी को बना उसका वीडियो वायरल हुआ, तो मजाकिया बयानों के लिए सुर्खियों में रहने वाले नगालैंड के मंत्री तेमजेन इम्ना आलोंग ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा, ‘कुछ लोग तो हमें Bear Grylls के रिश्तेदार ही समझने लगे हैं। ये ठीक नहीं हैं। पूछना है तो गूगल से पूछो। न मिले, तो मुझसे पूछ लेना।’
क्या वाकई नगालैंड में लोग डॉग, सांप या चूहे का मांस खाते हैं या यूं ही उनके बारे में ऐसी बातें कही जाती हैं। इसका जवाब तलाशने मैं सूरजकुंड से 2200 किमी दूर दीमापुर के ट्राइब मार्केट में पहुंचा। इसे शहर का सुपर मार्केट भी कहते हैं। रविवार को छोड़कर यहां हफ्ते के 6 दिन चहल-पहल रहती है, लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ बुधवार को होती है। इस दिन पूरे राज्य से लोग यहां सामान बेचने आते हैं।
मैंने बाजार घूमना शुरू किया। बाहरी हिस्से में किराने के सामान की दुकानें हैं। अंदर जाने पर ट्राइबल ड्रेस और ग्रॉसरी शॉप हैं। इसके ठीक सामने सीमेंट के लंबे-लंबे प्लेटफॉर्म बने हुए थे और उन पर सब्जियां, फ्रूट, अनाज, दाल, मसाले और अचार बिक रहे थे।
हम थोड़ा आगे बढ़े और उस लेन में पहुंचे, जहां मीट बिकता है। यहीं हमें उस सवाल का जवाब मिल गया, जो हम सूरजकुंड से लेकर चले थे। आगे रास्ते पर 25-30 जिंदा कुत्ते बोरियों में बांधकर रखे गए थे। टोकरियों में रखकर इनका मांस बिक रहा था।
मार्केट में मेंढक, ईल, पक्षी, चूहे, सब मिलते हैं
मार्केट में घुसते ही ये किसी नॉर्मल सब्जी मंडी की तरह लगता है। पर इसकी पहचान अंदर बने मीट मार्केट की वजह से है। यहां जगह-जगह जिंदा ईल से भरे कंटेनर रखे हैं। प्लास्टिक की थैलियों में मेंढक रखे हैं। पिंजरों में चूहे कैद हैं और प्याज के ढेर की तरह जिंदा कीड़े बिक रहे हैं।
हमारी नजर बोरियों में बंधे कुत्तों पर गई। ये शोर न करें, इसलिए इनके मुंह पतली रस्सी से बंधे हैं। अब हमें ऐसे शख्स की तलाश थी, जो हमें मार्केट के बारे में बता सके। यहां हमें बिंडाग ला मिल गईं, जो दीमापुर मार्केट एसोसिएशन से जुड़ी हैं।
सिर्फ 50 रुपए फीस, फिर डॉग मीट की शॉप लगाने की छूट
बिंडाग ला बताती हैं कि मार्केट में दुकान लगाने के लिए दिन के 50 रुपए देने पड़ते हैं। इसमें 40 रुपए अथॉरिटी ऑफिस और 10 रुपए नगर निगम को जाते हैं। ये पैसे देकर कोई भी दुकान लगा सकता है, भले डॉग मीट बेचे या सब्जी।
मरीज और प्रेग्नेंट महिलाएं खाती हैं डॉग मीट
बिंडाग ला के मुताबिक, डॉग मीट पर एक बार बैन लग चुका है। इससे बहुत दिक्कत हो गई थी। बैन के बाद हमने कुछ दिन इसे बेचना बंद कर दिया था। फिर हमारी बात शुरू हुई और अब दोबारा बिक्री शुरू हो गई है।
वे कहती हैं, ‘हमारे यहां सभी लोग डॉग मीट नहीं खाते। इसमें बहुत प्रोटीन होता है, इसलिए प्रेग्नेंट महिलाएं, कैंसर के मरीज, इलाज करवा रहे या ऑपरेशन करवा चुके लोग इसे खाते हैं। इसके सूप में बहुत ताकत होती है।’
क्या डॉग मीट की सप्लाई बाहर भी होती है? इसके जवाब में बिंडाग ला कहती हैं कि 'यहां से मीट सप्लाई नहीं होता। हां, यहां बने सामान, ब्लैक चावल, बीन्स और यहां उगने वाले दुर्लभ पत्तों को बाहर भेजा जाता है।'
आखिर में बिंडाग ला फिर दोहराती हैं, ‘सभी लोग इस मीट को नहीं खाते, इसलिए दीमापुर के किसी भी होटल में यहां से डॉग मीट की सप्लाई नहीं होती।’
प्रतिबंधित जानवरों का मीट भी बेचा जा रहा
इस बाजार में डॉग के अलावा मेंढक, भैंस और हिरण का मीट भी बिकता है। हिरण के शिकार पर भी बैन है। हमें यहां भैंस का चमड़ा भी बिकता दिखा। भारत में फूड सिक्योरिटी एंड स्टैंडर्ड एक्ट 2006 के तहत मांस के लिए कुत्तों को मारने की इजाजत नहीं है। इसके बावजूद यहां डॉग मीट बिक रहा है।
2016 में डॉग मीट बैन करने की मांग शुरू हुई
नगालैंड में डॉग मीट खाने की पुरानी परंपरा रही है, लेकिन यह सबसे ज्यादा सुर्खियों में साल 2016 में आया। तब डॉग मीट की बिक्री पर बैन लगाने के लिए राज्य सरकार को कानूनी नोटिस भेजा गया था।
इसके बाद दीमापुर सुपर मार्केट में जानवरों के साथ होने वाली क्रूरता दिखाने के लिए टूरिस्ट, जर्नलिस्ट और सोशल एक्टिविस्ट आने लगे। नगालैंड में डॉग मीट बेचने के खिलाफ कई एनिमल वेलफेयर एक्टिविस्ट खड़े हो गए और मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
डॉग मीट खाना देश में प्रतिबंधित
नगालैंड में मीट के लिए डॉग की बिक्री रोकने के लिए FIAPO (Federation of Indian Animals Protection Organization) और दीमापुर नगर परिषद (DMC) कोशिश कर रहे हैं। FIAPO की लीगल मैनेजर वर्णिका सिंह कहती हैं, ‘हम 2016 से इसे रोकने में लगे हैं। हमारी संस्था लगातार राज्य और केंद्र सरकार को लेटर लिख रही थी। FSSAI (Food Safety and Standards Authority of India) के एक नोटिफिकेशन के मुताबिक, डॉग मीट खाना प्रतिबंधित है।'
वे बताती हैं कि 'खुले में डॉग मीट रखने से कई बीमारियां हो सकती हैं। हमारी पड़ताल में पता चला कि एक स्टेट से दूसरे स्टेट में डॉग की स्मगलिंग भी होती है। जिस तरह उन्हें लाया जाता है, वह भी क्रूरता है। उनका मुंह बंद कर, रस्सी में जकड़कर और बाइक में लटकाकर मार्केट तक लाया जाता है। कई बार बॉर्डर पर कुत्ते की तस्करी करते हुए लोग पकड़े गए हैं। 2020 में इसे प्रतिबंधित करने के लिए सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके बावजूद यह बाजार में बिक रहा है।'
असम में कुत्तों की बरामदगी के कुछ मामले
कानून कमजोर, इसलिए नहीं रुकती डॉग मीट की बिक्री
पेशे से वकील वर्णिका सिंह ने बताया कि प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टु एनिमल्स एक्ट 1960 के सेक्शन-11 के तहत बताया गया है कि जानवरों के साथ किस तरह का बर्ताव क्रूरता में आता है। वे कहती हैं कि ‘कुत्तों के साथ अत्याचार के लिए दी जाने वाली सजा बेहद कम है। खुलेआम मीट और डॉग बेचते हुए पकड़े जाने पर पहली बार सिर्फ 10 रुपए और तीन साल में दूसरी बार पकड़े जाने पर 50 रुपए का जुर्माना लगता है।'
'इसी कानून का फायदा डॉग मीट बेचने वाले उठाते हैं। मीट के लिए एक डॉग बेचकर दुकानदार को 3,500 से 4,000 हजार रुपए मिलते हैं। कानून जब तक सख्त नहीं होंगे, इस पर रोक नहीं लग सकती है।'
कड़े कानून का ड्राफ्ट संसद में तीन साल से पेंडिंग
वर्णिका कहती हैं कि प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टु एनिमल्स एक्ट में बदलाव के लिए कई संगठन कोशिश कर रहे हैं। एनिमल वेलफेयर इंडिया ने कई संगठनों से इस पर राय भी मांगी थी। सभी के सुझावों को मिलाकर कानून को कड़ा करने वाला ड्राफ्ट बनाया गया। यह पिछले तीन साल से संसद में पेंडिंग है। इसके लागू हो जाने से डॉग को मीट के लिए बेचते हुए पकड़े जाने पर 70 हजार रुपए और 2 से तीन साल की सजा का प्रावधान रहेगा।
दुकानदार जुर्माना देकर छूटते हैं, फिर डॉग मीट बेचने लगते हैं
दीमापुर नगर परिषद (DMC) समय-समय पर मार्केट पर छापा मारकर डॉग जैसे बड़े जानवरों को आजाद करवाता है। दीमापुर पुलिस भी कुत्तों की बिक्री रोकने के लिए गिरफ्तारियां करती है, लेकिन मार्केट पर इसका असर दिखाई नहीं देता।
DMC के एक अधिकारी ने नाम न बताते हुए कहा कि, ‘मार्केट में एक डॉग 3,500 से 4,000 में बिकता है, इसके आरोपी आसानी से छूट जाते हैं। यही कारण है कि लोग छापेमारी के दौरान जुर्माना देते हैं और अगले दिन से फिर वही काम शुरू कर देते हैं। दीमापुर में 90% कुत्तों को असम से नगालैंड के बाजार में लाया जाता है।
राज्य सरकार ने 2020 में लगाया था बैन
जुलाई 2020 से पहले नगालैंड में डॉग मीट की बिक्री पर बैन नहीं था। 2 जुलाई 2020 को प्रदेश सरकार ने कुत्ते के मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही प्रदेश में डॉग मार्केट बंद करने का फैसला लिया था। इसके आयात और कारोबार पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। मार्च 2020 में ही मिजोरम में भी पशुओं की स्लॉटरिंग यानी कत्ल के लिए मुनासिब जानवरों की परिभाषा से कुत्तों को हटाने से जुड़े कानून में संशोधन किया गया था।
सरकार के फैसले पर तीन साल से हाईकोर्ट का स्टे
सरकार के इस फैसले के खिलाफ जुलाई 2020 में दीमापुर के मांस बेचने वाले कारोबारी गुवाहाटी हाईकोर्ट की कोहिमा बेंच चले गए थे। अपनी याचिका में उन्होंने कहा था कि इस फैसले से उनका कारोबार प्रभावित हुआ है। याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एस. हुकातो स्वू ने अगली सुनवाई तक राज्य सरकार के बैन वाले फैसले पर स्टे लगा दिया था। 3 साल से ज्यादा होने के बावजूद अदालत में यह याचिका सुनवाई के लिए पेंडिंग है।
डॉग मीट खाने की पुरानी परंपरा
दीमापुर के रहने वाले सुरो सेमो बताते हैं कि हमारे 15 ट्राइब्स हैं और यहां डॉग मीट खाने की पुरानी परंपरा रही है। देश के दूसरे हिस्सों में जैसे लोग मटन और चिकन खाते है, उसी तरह हम डॉग मीट खाते हैं। 2020 से पहले हम हफ्ते में एक बार डॉग मीट खा लेते थे, अब ऐसा नहीं कर पाते। बैन की वजह से यह काफी महंगा बिक रहा है। सुरो सेमो के मुताबिक, दीमापुर के मार्केट में ज्यादातर कुत्ते असम से लाए जाते हैं।
नगालैंड के कुछ गांवों में अब भी राजशाही चल रही है, इस परंपरा में राजा का बेटा ही राजा बनता है। पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट...
1. PM-CM से भी ऊपर है ‘जीबी सिस्टम’, एक राजा और 4 मंत्री चलाते हैं पूरा सिस्टम
‘कोई भी PM हो, CM हो, लेकिन हमारे लिए हेड जीबी या गांव बोरा (Gaon Burahs) ही हमारा राजा है। यहां से निकलकर अगर कोई CM भी बन जाए, तो गांव लौटने पर उसे भी राजा का आदेश मानना ही पड़ेगा।’ नगालैंड की राजधानी कोहिमा से 50 किमी दूर दीमापुर के सुहोई गांव के जिओ सीपी येप्थो बहुत गर्व से विलेज हेड की परंपरा के बारे में बताते हैं। जिओ सीपी येप्थो बताते हैं कि यहां एक राजा (हेड जीबी) और उसका 4 लोगों का मंत्रिमंडल (असिस्टेंट जीबी) होता है। यही गांववालों के नियम बनाते हैं। गांव के लोग किसे वोट देंगे, ये भी हेड जीबी तय करते हैं।
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2. नगालैंड का गांव आधा भारत, आधा म्यांमार में, 7 रानियों के साथ रहता है राजा
म्यांमार बॉर्डर पर नगालैंड का एक गांव है लोंग्वा। यहां राजा है, उसकी 7 रानियां हैं, एक महल है। राजा का बेडरूम म्यांमार में और किचन इंडिया में। राजा की रियासत के 5 गांव भारत और 30 गांव म्यांमार में हैं। दोनों देशों के 50 हजार से ज्यादा लोग उनकी प्रजा हैं। सड़क ही यहां इंटरनेशनल बॉर्डर का काम करती है। मार्केट एक है, लेकिन सड़क के इस पार भारत और दूसरी तरफ म्यांमार की दुकानें लगती हैं। गांव के लोगों के पास दोनों देशों की नागरिकता है। कई लोग दोनों जगह वोट डालते हैं।
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