27 फरवरी को नगालैंड में विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग है। मौजूदा समय में 60 विधानसभा सीटों वाले नगालैंड में सभी विधायक सत्ता में हैं, विपक्ष है ही नहीं। ये एक चौंकाने वाली बात है, लेकिन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात है कि यहां के गांवों में रिजल्ट आने से पहले ही तय हो जाता है कि चुनाव कौन जीतेगा। इसके अलावा देश में कोई भी PM हो, राज्य में कोई भी CM हो, नगालैंड के कुछ हिस्सों में उन्हें वहां के राजा के आदेश का पालन करना होगा।
नगालैंड की राजधानी कोहिमा से 50 किमी दूर दीमापुर के सुहोई गांव के जिओ सीपी येप्थो जब मुझे विलेज हेड की परंपरा के बारे में बता रहे थे, तो गर्व से उनका चेहरा चमक रहा था।
वे बिना हिचके कहते हैं- ‘कोई भी प्रधानमंत्री हो, CM हो, लेकिन हमारे लिए हेड जीबी या गांव बोरा (Gaon Burahs) ही हमारा राजा है। उसके कहे शब्द, हमारे लिए पत्थर की लकीर हैं। यहां से निकलकर अगर कोई CM भी बन जाए, तो गांव लौटने पर उसे भी राजा का आदेश मानना ही पड़ेगा।’
इलेक्शन से पहले ही तय कर लेते हैं कि किसे जिताना है
जिओ सीपी येप्थो बताते हैं कि यहां एक राजा (हेड जीबी) और उसका 4 लोगों का मंत्रिमंडल (असिस्टेंट जीबी) होता है। 50 साल के जिओ खुद भी सुहोई गांव के असिस्टेंट जीबी हैं। वे कहते हैं, ‘यहां इलेक्शन से पहले ही हम मिलकर तय कर लेते हैं कि किसे वोट करना है। ऐसा नहीं है कि लोग अपनी पसंद के कैंडिडेट को वोट नहीं दे सकते, लेकिन हम लोगों को यह बताते हैं कि अगर गांव में रोड, बिजली या फिर पानी लाना है तो हमें किसी एक व्यक्ति को चुनना होगा।’
मैं पूछता हूं कि ये आप लोग कैसे तय करते हैं? जिओ जवाब देते हैं- ‘हम सब मिलकर एक कैंडिडेट को चुनते हैं और फिर पूरा गांव ही उसे वोट करता है। इस बार गांव में चार में से दो असिस्टेंट जीबी BJP के सपोर्ट में हैं और बाकी दो दूसरी पार्टियों के समर्थक हैं। ऐसे में पूरे गांव को इकठ्ठा कर जानेंगे कि किसके पक्ष में ज्यादा लोग हैं। जिसकी संख्या ज्यादा होगी, उसके आधार पर हेड जीबी ये तय करेंगे कि सभी लोगों को इस बार किसे वोट करना है।’
गांव में हर काम के लिए हेड जीबी की मंजूरी जरूरी
मैं जिओ से सवाल करता हूं, ‘इस तरह तो इलेक्शन से पहले ही पता चल जाता होगा कि कौन जीतेगा? वे कहते हैं- ‘जीते जो भी, गांव में जीबी ही सुप्रीम पावर होता है। यहां जो नया काम होगा, उस पर अंतिम मुहर सिर्फ हेड जीबी ही लगाते हैं।’
ये सब कब से शुरू हुआ, इस सवाल के जवाब में जिओ कहते हैं- ‘ये नियम-कानून हमारे पूर्वजों ने बनाए थे, हम सिर्फ उनमें संशोधन कर सकते हैं। हम सुमी ट्राइब के लोग हैं, हमारे लिए हमारे हेड जीबी के शब्द ही कानून हैं। हमारी तरह ही कोनियक ट्राइब में भी जीबी का आदेश सबसे ऊपर होता है।’
सुहोई के रहने वाले कियलहो येपथोमी भी बताते हैं- ‘किसे वोट करना है, वह हेड और असिस्टेंट जीबी ही तय करते हैं। हम उनके आदेशों को मानकर उम्मीदवार को वोट देते हैं।’
राजा के 4 मंत्री, यही आदेशों का पालन करवाते हैं
असिस्टेंट जीबी जिओ से मुलाकात के बाद मैं सुहोई गांव के राजा तोकुहो नेहो सुहोई (Head GB Tokuho neho suhoi) से मिलने पहुंचा। हालांकि, वे उस इमेजरी में फिट नहीं होते, जैसे राजाओं को हम उत्तर भारत में देखते हैं। वे बेहद शालीन तरीके से मुझसे मिलते हैं।
तोकुहो बताते हैं- ‘यहां किंगशिप (राजशाही) की परंपरा काफी पहले से है। ये गांव 1963 में बना, तब से हमारा परिवार इसका हिस्सा है। हम लोग इसे ‘अतकाव’ बोलते हैं।’
तोकुहो आगे बताते हैं- ‘जब मैं नहीं रहूंगा तो मेरा बड़ा बेटा इस गांव का हेड जीबी बनेगा। हमारे गांव में कुल 4 असिस्टेंट जीबी हैं। उन्हें भी यह पद पैतृक रूप से मिलता है। उनके मरने के बाद उनका बेटा या भाई इस गद्दी का हकदार होता है।’
तोकुहो के मुताबिक, हर गांव में एक ‘विलेज काउंसिल’ और ‘विलेज डेवलपमेंट बोर्ड’ होता है। इसके बाद यूथ ऑर्गेनाइजेशन, स्पोर्ट्स काउंसिल और कल्चरल काउंसिल होती है। ये सभी पांचों जीबी के अंडर में ही काम करते हैं। तोकुहो कहते हैं- ‘सुहोई में 280 घर हैं और यहां 1000 से ज्यादा लोग रहते हैं। हमसे पूछे बिना गांव में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता।’
गांव का अपना सिस्टम, अपना संविधान
तोकुहो बताते हैं- ‘यहां एक काउंसिल हॉल (दरबार) है। यहां काउंसिल और दूसरी समितियों की मीटिंग होती हैं। इनमें लिए गए फैसले पहले कैबिनेट के पास जाते हैं और फिर उन्हें मेरे पास लाया जाता है। कई बार कैबिनेट, जो फैसले नहीं ले पाती, वो सीधे मेरे पास आते हैं। मैं चारों काउंसिल सेक्रेटरी और चेयरमैन के साथ मिलकर उन पर फैसला लेता हूं। यहां मेरा फैसला ही आखिरी है।’
गांव के विकास के लिए पैसे मिलने के सवाल पर तोकुहो बताते हैं- ‘ हमारे यहां फंड आमतौर पर ‘रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ के तहत आता है। जितना फंड आता है, विलेज कमेटी उसके हिसाब से काम करती है और उसका फाइनल अप्रूवल भी मैं ही देता हूं।’
तोकुहो आगे बताते हैं- ‘गांव के अपने नियम-कानून और संविधान है। वक्त और जरूरत के हिसाब से हम हर साल इनमें संशोधन भी करते हैं। हेड जीबी के घर पर काउंसिल (मंत्रिमंडल) की बैठक होती है और उसमें नियम-कानून बनाए और संशोधित किए जाते हैं। इसमें हम 5 लोगों के अलावा किसी का दखल नहीं होता।’
हत्या और रेप के दोषियों से वसूला जाता है जुर्माना
कानून बनाने तक तो ठीक है, लेकिन पुलिस के बिना ये लागू कैसे कराए जाते हैं? जवाब में तोकुहो बताते हैं- ‘क्राइम होने पर पहले काउंसिल सजा पर फैसला लेती है। अगर इस फैसले पर ऐतराज होता है, तो आखिरी फैसला हेड जीबी लेता है। ये फैसला नहीं मानने पर दोषी को 3, 5 या जुर्म के आधार पर कई साल के लिए गांव और कम्युनिटी से निकाल दिया जाता है। ऐसे लोगों पर जुर्माना भी लगाया जाता है।’
मैं सवाल करता हूं कि ‘पुलिस किसी को पकड़ने नहीं आती?’ तोकुहो मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं- ‘क्राइम अगर हमारे गांव की सीमा में हुआ है, तो उस पर फैसले का अधिकार भी हमारा ही है। गंभीर अपराध के मामलों में भी मेरी अनुमति के बिना पुलिस किसी को अरेस्ट नहीं कर सकती। जमीन या दूसरे दीवानी और फौजदारी मामले भी ज्यादातर हेड जीबी ही सुलझा लेते हैं।’
‘गांव बनने के बाद से एक भी केस यहां के पुलिस स्टेशनों में दर्ज नहीं किया गया है। गांव में पुलिस सिर्फ गश्त के लिए आती है। हम गांव के हर व्यक्ति को बराबर की सजा देते हैं। हमारे पास हर जमीन का रिकॉर्ड भी रहता है। दो गांवों में होने वाले विवाद को एक जिले में मौजूद जीबी की ऑर्गेनाइजेशन सुलझाती है।’
लोकतंत्र के ऊपर राजशाही चलाना कितना सही
मुझे असिस्टेंट जीबी ने इलेक्शन से पहले होने वाली प्रोसेस के बारे में बताया था। मैं तोकुहो से पूछता हूं कि क्या डेमोक्रेसी में इस तरह चुनाव से पहले कैंडिडेट चुन लेना सही है? वे जवाब देते हैं- ‘हमारे यहां अलग सिस्टम है। इन चुनावों के लिए भी शनिवार (18 फरवरी) को हमारे यहां एक मीटिंग होगी, इसी में गांव के लोग तय करेंगे कि 27 फरवरी को किसे वोट देना है। यहां गांव के आधे लोग एक पार्टी और आधे दूसरी पार्टी में नहीं भागते। हम जो तय करेंगे सभी लोग उसे ही वोट करते हैं।’
कियलहो येपथोमी बातों-बातों में मुझे पहले ही बता चुके थे कि हेड जीबी तोकुहो दीमापुर में BJP के डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट भी हैं। ऐसे में यह पहले से तय माना जा रहा है कि इस गांव के लगभग सभी वोट BJP को ही जाने वाले हैं।
मैं तोकुहो से पूछता हूं, 'किसी ने आपकी बात नहीं मानी, तो पता कैसे चलेगा?' वे कहते हैं- ‘यहां सब परंपरा और पद का सम्मान करते हैं। अगर लोग मानते नहीं, तो ये सिस्टम कब का खत्म हो गया होता। हम कुछ तय करते हैं, तो सभी उस बात को मानते हैं।’
फर्जी वोटिंग भी नगालैंड में बड़ी समस्या
नगालैंड देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां साल 2013 में 90% से ज्यादा वोटिंग हुई थी। हालांकि, बाद में सामने आया कि राज्य में बड़ी संख्या में फर्जी वोटिंग होती रही है। इलेक्शन कमीशन ने यहां CCTV कैमरों की निगरानी में वोटिंग और कड़ी मॉनिटरिंग के इंतजाम भी किए हैं।
फर्जी वोटिंग के सवाल पर तोकुहो बताते हैं- ‘अब चुनाव आयोग सख्त हो गया है, इसलिए ऐसी चीजें अब नहीं होती हैं।’ हालांकि, वे मानते हैं कि पहले ऐसा कल्चर रहा है और अभी भी टाउन के इलाकों में ये होता है।
फर्जी वोटिंग पर नगालैंड में कांग्रेस की मीडिया कोऑर्डिनेटर महिमा सिंह बताती हैं- ‘5 साल पहले राज्य के युवाओं ने ‘Where's my Vote’ नाम से कैंपेन शुरू किया था। यहां पर बड़े लेवल पर बूथ कैप्चरिंग और फर्जी वोटिंग की घटनाएं सामने आती रही हैं। अब युवा इससे नाराज हैं।’
महिमा बताती हैं- ‘BJP और नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) के राज में बूथ कैप्चरिंग और फर्जी वोटिंग का कल्चर बहुत ज्यादा बढ़ा है। हमने इस बारे में राज्य के DGP को एक लेटर भी लिखा है। उसमें हमने डीटेल में बताया है कि कैसे यहां चुनाव के नियमों का मजाक बना दिया गया है। DGP ने कहा है कि हम इसके खिलाफ जल्द कार्रवाई भी करेंगे और कैमरों की निगरानी में वोटिंग होगी।’
मैं महिमा से पूछता हूं कि फर्जी वोटिंग की जरूरत क्या है, जब इलेक्शन से पहले ही हेड जीबी सब तय कर देते हैं? वे कहती हैं- ‘हां, ये सच है कि लोग आज भी अपने राजा के कहने पर वोटिंग करते हैं। यह पहले से चला आ रहा है, लेकिन अब ये बदल रहा है। सरकार को सतर्कता कैंपेन चलाकर लोगों को इसके खिलाफ जागरूक करना चाहिए।’
‘नगालैंड में बिना पैसे के कुछ नहीं होता’
सुहोई गांव के हेड जीबी तोकुहो भले ही अपनी परंपराओं को सही ठहरा रहे थे, लेकिन करप्शन के सवाल पर उनके भी सुर बदले नजर आए। भ्रष्टाचार के सवाल पर वे कहते हैं- ‘नगालैंड में बिना पैसे के कुछ नहीं होता। यहां डेवलमेंट नहीं होने का असल कारण भी यही है।'
'अगर नेता पैसे नहीं देंगे तो जनता वोट ही नहीं देती। गांव में हर शख्स तक वोट देने के बदले पैसा पहुंचाना पड़ता है। चर्च की काउंसिल संडे को होने वाली प्रेयर में 'क्लीन इलेक्शन' की बात भले ही कहे, लेकिन सब जानते हैं कि सबको पैसा मिला है।’
गांववाले जीबी के खेतों में साल में 12 दिन फ्री में काम करते हैं
जिओ के साथ मैं गांव में घूम रहा था, तो मेरी मुलाकात कियलहो येपथोमी से हुई थी। हेड जीबी से मिलकर लौटते हुए कियलहो फिर मिल जाते हैं। वे एक सरकारी स्कूल में मैथ्स के टीचर हैं। मुझे देखकर वे रुक जाते हैं, मैं बातों-बातों में उनसे पूछता हूं कि क्या जिओ और तोकुहो जैसा बता रहे थे, लोग उतना ही उनकी बातें मानते हैं?
कियलहो बताते हैं- ‘हमारे लिए जीबी बहुत महत्वपूर्ण है। हम लोग अपने राजा के खेतों में फ्री में जाकर खेती-बाड़ी भी करते हैं। हेड जीबी के खेत में हम लोग 5 दिन, उनके नीचे सीनियरिटी के हिसाब से आने वाले असिस्टेंट जीबी के खेतों में 4, 3, 2 दिन खेती करते हैं। इस तरह से हम हर साल अपने जीबी के खेतों में कुल 12 दिन फ्री में काम करते हैं।’
कियलहो से बातें करने के दौरान मेरी मुलाकात स्टूडेंट लीडर गुनातियों नियो से हुई। मैं उनसे इस जीबी सिस्टम पर सवाल करता हूं तो वे कहते हैं- ‘अब का समय थोड़ा बदल गया है। 60-70 के दशक में तो जीबी की बातें टाल ही नहीं सकते थे, सजा मिलती थी। अब उतनी सख्ती नहीं है। अब वह कोई तानाशाह नहीं है, हम एक लोकतांत्रिक देश हैं। हालांकि, गांव के इस सिस्टम से किसी को खास कोई दिक्कत नहीं है। सरकारों में बहुत करप्शन है।’
सुहोई गांव में है हर आधुनिक सुविधा
सुहोई गांव की 100% आबादी ईसाई है। यहां एक बड़ा चर्च है और हर संडे को यहां पूरा गांव प्रेयर के लिए आता है। हर बड़े फैसले का ऐलान भी इसी चर्च से किया जाता है। इसके अलावा गांव में एक कम्युनटी हॉल, कम्युनिटी किचन भी है। इसमें कभी-कभी पूरे गांव के लिए खाना बनता है।
गांव में एक म्यूजियम भी है, जहां पूर्वजों की विरासत को संजोकर रखा गया है। इसी म्यूजियम में मुझे वो हथियार भी दिखे, जिससे कभी यहां के लोग हेड-हंटिंग शिकार किया करते थे।
इसके अलावा गांव में इंटरनेट, मोबाइल कनेक्टिविटी के लिए मोबाइल टावर भी लगे हैं। गांव में स्कूल, फूड मार्केट और हॉस्पिटल भी मौजूद है। हालांकि, अस्पताल में सिर्फ 3 दिन ही बाहर से डॉक्टर आता है। गांव में बिजली और पानी का कनेक्शन हर घर में है। साफ पानी के लिए गांव में 5 वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी लगे हैं।
लोग तय करते हैं सब्जियों के रेट
मैं सुहोई से लौटने लगता हूं तो विलेज काउंसिल के वाइस चेयरमैन विकाहो किहो मिल जाते हैं। वे मुझे सुहोई गांव के संविधान की एक कॉपी देते हैं और कहते हैं- ‘जिले के हर गांव में अपना नियम और संविधान होता है। गांव में जब भी कोई नियम बदलता है तो पूरे गांव की राय ली जाती है।'
'गांव में बिकने वाली फल-सब्जियों के दाम भी विलेज काउंसिल ही तय करती है। यहां आपको हर गांव में सब्जियों और फलों का अलग रेट मिलेगा। दीमापुर में भले ही कोई दाम हो, हमारे गांव में उसी रेट पर मिलेंगी, जो काउंसिल ने तय किया है।’
विलेज काउंसिल एक्ट से कानूनी मान्यता मिली
नगालैंड में 1978 में विलेज काउंसिल एक्ट लागू हुआ था। इसके तहत हर गांव में एक विलेज काउंसिल बनाई गई। एक्ट में लिखा है कि काउंसिल में गांववालों की ओर से चुने सदस्य शामिल होंगे। पुश्तैनी तौर पर बनने वाले जीबी या ग्राम बोरा भी काउंसिल में शामिल रहेंगे और उन्हें वोटिंग का अधिकार होगा। इस एक्ट से जीबी सिस्टम को कानूनी मान्यता मिल गई।
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सुहोई से लौटते हुए मुझे महात्मा गांधी याद आते हैं। नगालैंड का ये सिस्टम ग्राम स्वराज का एक उदाहरण भी माना जा सकता है। लेकिन, ये राजनीति और पुलिसिंग में सीधे-सीधे दखल देता नजर आता है। साथ ही इस पूरे सिस्टम पर गांव के कुछ परिवारों का कब्जा होना भी इसे सामंती व्यवस्था में बदल देता है।
हम सुहोई गांव पर कोई भी राय बना सकते हैं, लेकिन वहां के लोग इस दौरान शनिवार की तैयारियों में जुट गए हैं। इस शनिवार उन्हें तय करना है कि 2 मार्च को किसके पक्ष में रिजल्ट आएगा।
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