मैंने बंदूक की गोलियों से महात्मा गांधी की तस्वीर बनाई है। कार के इंजन के पार्ट्स से घोड़ा बनाया है। भ्रूण हत्या में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल डिवाइस से रोते हुए बच्चे की तस्वीर बनाई है। कील से धीरूभाई अंबानी, नेल्सन मंडेला, जीसस क्राइस्ट, मदर मैरी जैसी दर्जनों तस्वीरें बनाई हैं।
मेरे स्टूडियो में पेंट, ब्रश, पेंसिल, कैनवास के बदले हथौड़े, कील, वायर, लोहे की रॉड, लोहा काटने की मशीन, गैराज का सामान, चला हुआ कारतूस मिलता है।
मैं 5वीं फेल वाजिद खान, मध्यप्रदेश के मंदसौर का रहने वाला हूं। अब बसेरा इंदौर में है। देश का पहला नेल आर्टिस्ट यानी कील से तस्वीरें बनाने वाला कारीगर हूं। मेरे लिए दुनिया की कोई भी चीज वेस्ट नहीं। जो लोगों के लिए वेस्ट, वो मेरे लिए बेस्ट है।
अपनी कहानी में आगे बढ़ने से पहले मैं आपको दो वाकये बताना चाहता हूं-
इससे आप मेरी पढ़ाई-लिखाई और कामयाबी- दोनों का अंदाजा लगा सकते हैं। जमींदार फैमिली से ताल्लुक रखता हूं, लेकिन मुझे कुछ अपना करना था, खुद की तलाश थी।
उस वक्त 5वीं क्लास में बोर्ड के एग्जाम होते थे, मैं फेल हो गया। हकलाता था, इसलिए भी पढ़ाई छोड़ दी। हकलाने की वजह से स्कूल के बच्चे मेरा मजाक उड़ाते थे।
मैंने स्कूल जाना बंद किया, तो पापा ने कहा- पढ़ोगे नहीं तो क्या करोगे, लेकिन मुझे एजुकेट नहीं लिट्रेट होना था। 13 साल की उम्र में पागलों की भांति घर से निकल पड़ा।
मंदसौर की कई दुकानों में करीब 10 साल तक मजदूरी की, वेल्डिंग की दुकान पर ट्रैक्टर की ट्रॉली बनाता। सरिया को गर्म कर मोटे हथौड़े से पीटता। 4 साल तक मैंने यह काम किया। 11 किलोमीटर पैदल चलकर काम करने जाता था।
शुरुआती एक-डेढ़ साल कोई पैसे ही नहीं मिलते थे। बाद में 30 रुपए महीना मिलने लगा, इससे ऑटो का किराया निकल जाता था।
1995 की बात है। श्मशान घाट में लोहे की शेड बनानी थी। उस वक्त गांव-कस्बों में बिजली नहीं आती थी, लेकिन रातभर में शेड तैयार करना था। एक तरफ लाश जल रही थी, दूसरी तरफ मैं अपने मालिक के साथ जलती चिता की रोशनी से शेड बना रहा था। रात में वहीं पर खाना भी खाया और सोया भी।
एक रोज मेरे अंकल को लगा कि ना तो मैं पढ़ पाया और ना ही कोई ढंग का काम कर रहा हूं। उन्होंने मेरी खूब पिटाई की, अपने दोस्त के यहां लाकर छोड़ दिया। उन्होंने अपने दोस्त से कहा- जिंदगी में ये कुछ नहीं कर सकता है। इसके हाथ-पैर तोड़ देना, लेकिन इंसान बना देना।
चाचा के दोस्त की मोटर वाइंडिंग की दुकान थी, मैंने 3 साल तक यहां काम किया। दिन के 14-14 घंटे काम करता था, लेकिन पैसे नहीं मिलते थे।
उसके बाद ऑटो चलाने लगा। उस वक्त मर्सिडीज कंपनी ऑटो टाइप का टेम्पो बनाती थी। 17-18 किलोमीटर तक सवारी ढोने पर 2 रुपए मिलते थे। फिर पुराने कपड़े खरीदकर फुटपाथ पर बेचने लगा। इसी में से अपने लिए भी पहनने के कपड़े रख लेता था।
मैं 1300 रुपए लेकर इंदौर आ गया, आज की तरह उस वक्त इंदौर इतना डेवलप नहीं था। खाने के पैसे नहीं थे, बहुत दिनों तक बासी रोटियां खानी पड़ती थीं। होटल वाला फ्री में भी दे देता था। फिर एक होटल मालिक के बकरों की चौकीदारी करता और उसी होटल में खाना भी मिल जाता।
इसी दौरान एक दिन मैं सोचने लगा कि अपना क्या कर रहा हूं। कौन-सी पहचान बना रहा हूं? क्या इसी के लिए घर से बगावत कर निकला था।
2001 का साल बीत रहा था। शहर के एक स्कूल में गैजेट बनाने का काम करने लगा। IIM के एक प्रोफेसर स्कूल में आए हुए थे, उन्होंने मुझे देखते ही कहा- तुम्हें आर्टिस्ट बनना चाहिए।
उसके बाद मैंने कई आर्ट गैलरीज में जाकर पेंटिंग देखी। वडोदरा म्यूजियम में मार्बल का आर्ट देखा, तब लगा कि इस फील्ड में तो पहले से सैकड़ों लोग काम कर रहे हैं। मैं नया क्या करूंगा? मेरे जेहन में एक बात आई कि उसी आइडिया पर काम करो, जो पास में हो। मैं गांव आया हुआ था, घर पर फर्नीचर का काम चल रहा था। मैंने वहां से कीलें चुरा लीं और उससे तस्वीर बनाने लगा।
इस तस्वीर को बनाने में 4 साल लग गए। मैंने कील से आर्ट बनाना खुद से सीखा, कह सकता हूं कहीं-न-कहीं गॉड गिफ्टेड है। इस आर्ट को मार्केट में लॉन्च करने में 3 साल लग गए। यानी पहले आर्ट को मार्केट में लाने में 7 साल लगे।
जब आर्ट एग्जीबिशन में लोगों ने मेरे बनाई तस्वीर को देखा, तो सभी दंग रह गए। 20 लाख रुपए में इसकी नीलामी हुई, तब लगा कि अब मैं कुछ तो नया कर सकता हूं। मार्केट में नई पहचान मिल गई। उसी आर्ट ने मुझे वाजिद खान आर्टिस्ट बना दिया, लेकिन घर वाले फिर भी खुश नहीं थे।
मुझे याद है- पापा को कील से बना एक आर्ट दिखाया था। उन्होंने आर्ट देखकर कहा- बहुत बकवास है। मैं बहुत रोया, कुछ महीने बाद पापा ने बताया- यदि उस दिन मैं तुम्हारी तारीफ कर देता तो तुम आज वाजिद खान आर्टिस्ट नहीं, वाजिद खान कील वाले होते।
मैंने पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों से कई महान हस्तियों की तस्वीरें बनाई हैं। भ्रूण हत्या के लिए जिन-जिन मेडिकल डिवाइसेज का इस्तेमाल होता है, उससे रोती हुई बच्ची की तस्वीर बनाई है। मैं अलग-अलग सेगमेंट में अब इतना काम कर चुका हूं कि दुनिया की कोई भी चीज मुझे वेस्ट नहीं लगती।
मैं न स्केचिंग नहीं करता हूं और न ही मार्किंग करता हूं, डायरेक्ट तस्वीर बनाता हूं। यदि एक कील गलत जगह पर ठोक दी तो पूरी तस्वीर खराब हो जाती है।
मेरा नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड समेत 37 वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। स्विट्जरलैंड, स्कॉटलैंड, नीदरलैंड, तुर्की, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, फ्रांस समेत 40 से ज्यादा देशों में मैंने लेक्चर्स लिए हैं, वर्कशॉप ऑर्गेनाइज किए हैं।
मैं चाहता हूं कि मरने के बाद भी मेरी आर्ट जिंदा रहे। इसलिए आज एक वाजिद खान, सौ वाजिद खान पैदा कर रहा है। गरीब बच्चों को फ्री में वर्कशॉप देता हूं, वहीं जो संस्थान बच्चों से पैसे लेते हैं उनसे मैं भी पैसे लेता हूं। एक वर्कशॉप की फीस एक लाख रुपए होती है।
देश के राष्ट्रपति भवन में साइकिल की चेन और कबाड़ से बनी राष्ट्रपति भवन की तस्वीर लगी है। मैंने सलमान खान, धीरूभाई अंबानी समेत सैकड़ों हस्तियों की कील से तस्वीर बनाई है। अलग-अलग देशों में मेरे आर्ट लगे हुए हैं। एक आर्ट की कीमत ढाई करोड़ रुपए तक की है। अब मैं काइनेटिक आर्ट पर वर्क कर रहा हूं , जो कटोरियों से बना हुआ है।
आज महीने में मुझे दर्जनों तोहफे मिलते हैं, ठहरने के लिए फ्री में होटल मिलता है। कपड़े वगैरह सब स्पॉन्सर होते हैं, लेकिन कभी मेरी जिंदगी फुटपाथ पर गुजरी है, पुराने कपड़े खरीदकर पहने हैं। होटल का बासी खाना खाया है। हालांकि मैं उस दौर को बुरा नहीं मानता, क्योंकि जिनके दोनों हाथ-पैर नहीं होते, वो भी इतिहास रचते हैं, फिर मैं तो फिर भी स्वस्थ इंसान हूं।
मैं एक किताब लिखना चाहता हूं नेक्स्ट जेनरेशन के लिए, ताकि उन्हें पता चले कि मुझमें ऐसी कौन-सी बात थी, जिसकी वजह से इतनी मुसीबतों के बाद भी मैं यहां तक पहुंचा।
हालांकि आज भी मेरे गांव के लोग मुझे पागल कहते हैं, लेकिन मुझे पता है कि पागल लोग ही इतिहास रचते हैं।
ये सारी बातें वाजिद खान ने भास्कर के नीरज झा से शेयर की है।
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