3 नवंबर 1957: लाइका नाम की फीमेल डॉग अंतरिक्ष में जाने वाली पहली जानवर बनी थी। इसे सोवियत संघ ने भेजा था। इस मिशन के दौरान लाइका की मौत हो गई थी।
अब 65 साल बाद अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 3 हाईटेक मैनिकिंस यानी दो महिला और एक पुरुष पुतले को चांद के मिशन पर भेजने की तैयारी में है।
इस एक्सप्लेनर में जानते हैं कि आखिर क्यों NASA इंसानों की जगह पुतलों को अंतरिक्ष में भेज रहा है, ये क्यों खास हैं और नासा इनके जरिए क्या जानकारियां जुटाना चाहता है...
पुतलों को मून मिशन पर क्यों भेज रहा है NASA
अंतरिक्ष में रेडिएशन का खतरा बहुत ज्यादा होता है। ज्यादातर मामलों में कैंसर भी हो जाता है। इसलिए चांद पर फिर से इंसानों को भेजने की तैयारी में जुटा अमेरिका, अपने आर्टेमिस-1 मिशन में इंसानों के बजाय पुतलों को भेज रहा है। इन पुतलों को मैनिकिंस कहते हैं और इस तरह के खास मैनिकिंस का साइंटिफिक रिसर्च के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इनके नाम हेल्गा, जोहर और मूनिकिन कैंपोस हैं। इन्हें एक साथ फैंटम्स कहा जाता है। इन पुतलों को जर्मनी के ऐरोस्पेस सेंटर DLR ने बनाया है। वहीं तीसरे पुतले का नाम मूनिकिन कैंपोस है, जिसका शरीर पुरुषों जैसा है।
NASA के ये पुतले बिल्कुल इंसानों की तरह हैं। इन्हें इंसानों के शरीर के टिश्यूज जैसे प्लास्टिक से बनाया गया है। इनमें भी ह्यूमन की तरह हड्डियां, खाल और फेफड़े होंगे।
हेल्गा और जोहर महिलाओं के शरीर जैसे पुतले हैं। इन्हें अंतरिक्ष में महिलाओं के शरीर पर होने वाले रेडिएशन का असर जांचने के लिए भेजा जा रहा है।
तीसरा पुतला मूनिकिन कैंपोस को ये जांचने के लिए भेजा जा रहा है कि आने वाले समय में इंसानों का चांद पर जाना कितना मुश्किल होगा। ये अंतरिक्ष के बारे में समझ बढ़ाने के लिए किए जाने वाले वैज्ञानिक प्रयोगों में से एक है।
हजारों सेंसर्स रिकॉर्ड करेंगे रेडिएशन का असर
पुतलों के शरीर के उन हिस्सों पर सेंसर्स लगाए गए हैं, जहां इंसानों के शरीर में रेडिएशन का असर सबसे ज्यादा होता है। लॉन्च से लेकर धरती पर वापस आने तक इनके हजारों सेंसर्स अंतरिक्ष में इंसानों के शरीर पर रेडिएशन के होने वाले संभावित असर को रिकॉर्ड करेंगे।
हेल्गा और जोहर के लिए ड्रेस कोड
जोहर को रेडिएशन से बचने वाली जैकेट पहनाई जाएगी। इस जैकेट को एस्ट्रोरेड नाम दिया गया है। वहीं दूसरे पुतले हेल्गा को बिना जैकेट के भेजा जाएगा। यह खास जैकेट एस्ट्रोरेड पॉलीइथिलीन से बनी है, जो जोहर को हानिकारक प्रोटोन्स से बचाएगी। यह उसके ऊपरी शरीर और यूट्रस को कवर करेगी।
इस मिशन के जरिए हेल्गा और जोहर पर पड़ने वाले रेडिएशन की तुलना की जाएगी। इससे वैज्ञानिक पता लगाएंगे कि भविष्य में अंतरिक्ष जाने वाले इंसानों को कैसे बेहतर सुरक्षा दी जा सकती है।
लेडी पुतलों को अंतरिक्ष में भेजने पर जोर क्यों
सवाल ये उठ रहा है कि आखिर NASA महिला पुतलों को ही अंतरिक्ष में क्यों भेज रहा है। इन पुतलों को बनाने वाले जर्मनी के एयरोस्पेस सेंटर DLR के मात्रोश्का एस्ट्रोरेड रेडिएशन एक्सपेरिमेंट (MARE) के प्रमुख वैज्ञानिक थॉमस बर्गर का कहना है- 'महिला अंतरिक्षयात्रियों की संख्या बढ़ रही है इसलिए हमने महिलाओं के पुतले बनाए। इसका एक कारण यह भी है कि आमतौर पर महिलाओं के शरीर पर रेडिएशन का ज्यादा असर होता है।'
दरअसल, नासा के टेस्ट के अनुसार महिलाओं का शरीर अंतरिक्ष के लिए जरूरी रेडिएशन को नहीं झेल पाता है।
पहली बार फल पर बैठने वाली मक्खियां गई थीं अंतरिक्ष
20 फरवरी 1947 को फल पर बैठने वाली मक्खियां अंतरिक्ष में भेजी गयी थीं। यह पहली बार था कि कोई जिंदा प्राणी अंतरिक्ष में गया हो। इसके बाद चूहे, बंदर, बिल्लियां, मेंढक, कुत्ते जैसे कई जानवरों को अंतरिक्ष भेजा गया।
इंसान ने चांद पर पहली बार 1969 में रखा था कदम
NASA ने जुलाई 1969 में पहली बार किसी इंसान को चांद पर भेजा था। 21 जुलाई 1969 को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील ऑर्मस्ट्रांग चांद की धरती पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने थे।
इंसानों को चांद पर भेजने की कोशिश में NASA का मिशन आर्टेमिस-1
अब 53 साल बाद NASA फिर से चांद पर इंसानों को भेजने की कोशिशों के तहत 3 सितंबर को अपना स्पेसक्राफ्ट ‘ओरियन’ चांद पर भेजेगा। नासा ने इस मिशन को आर्टेमिस-1 नाम दिया है। यह चांद की सतह पर नहीं उतरेगा बल्कि इसके चक्कर लगाएगा।
इसके बाद NASA की 2024 में आर्टेमिस-2 को भेजने की योजना है। इसमें अंतरिक्ष यात्री चांद पर कदम रखे बिना केवल चांद की ऑर्बिट में चक्कर काटकर लौट आएंगे। 2025 में NASA की आर्टेमिस-3 मून मिशन लॉन्च करने की संभावना है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर उतरेंगे।
NASA अपोलो 11 मिशन के दौरान चांद पर जाने वाला कुत्ता, स्नूपी डॉग बहुत मशहूर हुआ था। यह अपोलो मिशन की सफलता के बारे में अमेरिका के लोगों की सोच को दर्शाता था। इस कार्टून कैरेक्टर को चार्ल्स एम. स्कूल्ट्ज ने अपनी कॉमेडी सीरीज 'पीनट्स' में बनाया था। उन्होंने जिस पेन से इस सीरीज को बनाया था, उसकी निब भी आर्टेमिस-1 के साथ अंतरिक्ष का सफर तय करने जा रही है।
इनके साथ ही बच्चों के पसंदीदा 4 लीगो भी चांद के इस सफर पर जाएंगे। नासा और लीगो ग्रुप मिलकर छोटे बच्चों को अंतरिक्ष के बारे में बताने के लिए पिछले 2 साल से काम कर रहे हैं।
अपोलो 11 मिशन के मेमेंटो और इंजन का छोटा टुकड़ा भी जाएगा चांद पर
नासा के अपोलो 11 मिशन के मेमेंटो, चांद की सतह से लाया गए छोटे पत्थर और इस मिशन के रॉकेट के इंजन का एक छोटा टुकड़ा भी आर्टेमिस-1 के साथ चांद के सफर पर जा रहा है।
इनके अलावा आर्टेमिस-1 में अलग-अलग पेड़ों के बीज भी चांद पर जा रहे हैं। नासा ने अपोलो 14 मिशन के साथ भी ऐसे ही बीज भेजे थे। इन्हें वापस लाकर ‘मून ट्री’ के नाम से लगाया गया था। ऐसा पेड़ों पर स्पेस रेडिएशन का असर देखने के लिए किया जाता है। इस मिशन में भागीदार सभी देशों के झंडे, पिन और पैच भी इस मिशन में जाएंगे। इन्हें वापस लाकर इन देशों में बांट दिया जाएगा।
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