बिहार के पश्चिम चंपारण की रहने वाली नेहा उपाध्याय एक किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता गवर्नमेंट सर्विस में होने के बाद भी खेती से जुड़े रहे हैं। नेहा की शुरुआती पढ़ाई दिल्ली में हुई। इसके बाद उन्होंने लंदन से ग्रेजुएशन और मास्टर्स की डिग्री हासिल की। 2012 में मास्टर्स करने के बाद नेहा को लंदन में ही एक स्कूल में बतौर रिसर्च ऑफिसर जॉब मिल गई। वहां दो साल तक उन्होंने काम किया। इसके बाद वे इंडिया लौट आईं और लद्दाख में लोकल किसानों के साथ मिलकर ऑर्गेनिक फार्मिंग और इको विलेज मॉडल पर काम करना शुरू किया। आज उनके साथ 650 किसान जुड़े हैं और उनकी कंपनी का रेवेन्यू तीन करोड़ रुपए है।
केमिकल वाले फूड्स की वजह से बच्चे बीमार हो रहे
35 साल की नेहा बताती हैं कि लंदन में जॉब के दौरान मेरा ज्यादातर वक्त बच्चों के साथ बीतता था। मैं बच्चों की लाइफ स्टाइल, उनमें होने वाले डिसीज और फूड को लेकर रिसर्च कर रही थी। तब मुझे पता चला कि ज्यादातर बच्चों को सही फूड नहीं मिल रहा है। वे केमिकल बेस्ड फूड खा रहे हैं।
इसकी वजह से उन्हें कम उम्र में ही कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। अगर इन्हें सही फूड मिले तो ये परेशानियां कम की जा सकती हैं। इसके बाद नेहा ने एक संस्थान से ऑर्गेनिक फार्मिंग का कोर्स किया। इसकी प्रोसेस को समझा, अलग-अलग एक्सपर्ट से मिलीं और फार्मिंग के बारे में जानकारी हासिल की।
नेहा बताती हैं कि तब अखबारों के जरिए मुझे भारत में सुसाइड कर रहे किसानों के बारे में पता चला। कई किसान गरीबी और कर्ज में दबे होने की वजह से अपनी जान देने को मजबूर हो रहे हैं। चूंकि मेरा फैमिली बैकग्राउंड भी एग्रीकल्चर रहा है। इसलिए मैंने तय किया कि क्यों न अपने देश में इस सेक्टर को लेकर कोई पहल की जाए जिससे लोगों को सही फूड भी मिले और किसानों की कमाई भी बढ़ सके। ताकि वे खुशहाल रह सकें।
इंडिया आकर कई राज्यों का दौरा किया, किसानों को ट्रेनिंग दी
यही सोचकर नेहा लंदन से भारत लौट आईं। कुछ दिनों तक वे बिहार में रहीं। इस दौरान उन्होंने देखा कि बच्चों में फूड्स को लेकर दिक्कत है। उन्हें प्योर और ऑर्गेनिक फूड नहीं मिल रहा है। ज्यादातर जगहों पर तो जागरूकता की कमी के चलते फूड प्रोडक्ट वेस्ट भी हो रहे हैं।
इसके बाद नेहा ने बिहार, हरियाणा, महाराष्ट्र, सिक्किम सहित कई राज्यों का दौरा किया। वहां के किसानों से मिलीं। उनके काम को समझा। उनकी क्या-क्या परेशानियां और चैलेंजेज हैं, उसे नोट डाउन किया। इसके बाद उन्होंने अलग-अलग गांवों में जाकर किसानों के बीच जागरूकता अभियान चलाया। उन्होंने ऑर्गेनिक फार्मिंग की ट्रेनिंग दी, फूड प्रोसेसिंग और उसकी खूबियों को किसानों के साथ साझा किया।
नेहा कहती हैं कि अभी मैं अपने स्टार्टअप को लेकर रिसर्च और प्लान कर ही रही थी कि मुझे एक NGO की तरफ से लद्दाख में अवेयरनेस कैंप के लिए बुलाया गया। 2015 में मैं लद्दाख चली गई। वहां मैंने उन गांवों में काम करना शुरू किया जहां गरीबी और माइग्रेशन सबसे ज्यादा थी। जहां लोग बाढ़ की वजह से बदहाल थे। वे बताती हैं कि मैंने लद्दाख के तकमाचिक गांव से अपने काम की शुरुआत की। उस गांव को मैंने इको विलेज मॉडल के रूप में बदला। वहां के किसानों को ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए ट्रेंड किया, प्रोसेसिंग यूनिट लगाई, सोलर ड्रायर उपलब्ध कराया। यानी वो सारे रिसोर्सेज उन्हें उपलब्ध कराए जो खेती के लिए चाहिए होते हैं।
माइग्रेशन घटा, किसानों की आमदनी बढ़ी
नेहा को यहां के किसानों का भरपूर सपोर्ट मिला। वे उनके साथ काम करने के लिए तैयार हो गए। खास करके महिलाओं ने इसमें ज्यादा दिलचस्पी दिखाई। किसान नेहा के बताए रास्ते पर चलकर अखरोट, बादाम, खुबानी, मशरूम जैसे फूड्स की फार्मिंग करने लगे। वे कहती हैं कि किसान जब प्रोडक्शन करने लगे तो हमें एक ऐसे प्लेटफॉर्म की जरूरत महसूस हुई जो उनके उत्पाद को मार्केट तक पहुंचाए। जिससे उनका कारोबार भी बढ़े और आमदनी भी। इसके बाद 2015 में गुण ऑर्गेनिक नाम से हमने स्टार्टअप की शुरुआत की। इसके लिए मेरे पास जो कुछ पहले से सेविंग्स थी वो मैंने लगा दी।
वे कहती हैं कि जब हमने यहां अपने काम की शुरुआत की थी तब तकमाचिक गांव में सिर्फ 29 परिवार थे और आज वहां 75 परिवार रह रहे हैं। इसके साथ ही पहले जिस प्रोडक्ट के लिए किसानों को 200 रुपए भी नहीं मिलते थे, आज वे इससे 400-500 रुपए कमा रहे हैं। इसके साथ ही हमने और पांच गांवों में भी इको विलेज की नींव रखी है। इससे माइग्रेशन भी कम हुआ है। नेहा बताती हैं कि हमारी पहल की वजह से तमाचिक गांव को वहां के लोकल प्रशासन की तरफ से इको विलेज का दर्जा मिल चुका है।
नेहा कहती हैं कि हमारे देश में महिलाओं की स्थिति खराब है। उन्हें लगातार काम करने के बाद भी उतना मेहनताना नहीं मिल रहा जिसकी वो हकदार हैं। पहाड़ी इलाकों में तो महिलाएं बहुत मेहनत करती हैं। वे पहाड़ के ऊपर तक काम करने आती-जाती हैं। 50-60 साल की महिलाएं मर्दों के मुकाबले ज्यादा काम करती हैं। फिर भी उनकी लाइफ स्टाइल नहीं बदलती है। इसको सुधारने के लिए मैंने महिलाओं को अपने काम से जोड़ा। आज हमारे साथ 350 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं।
कैसे करती हैं काम?
लद्दाख में नेहा के साथ करीब 650 किसान जुड़े हैं। इनमें से ज्यादातर महिलाएं हैं। ये लोग वहां के लोकल फूड्स का प्रोडक्शन और प्रोसेसिंग करते हैं। इसके बाद उसकी मार्केटिंग का काम नेहा करती हैं। नेहा ने दिल्ली की कई बड़ी दुकानों से टाइअप कर रखा है। जहां वे अखरोट, खुबानी, मशरूम, वॉल नट सहित कई प्रोडक्ट्स की सप्लाई करती हैं। इसके साथ ही अमेजन, इंडिया मार्ट सहित कई बड़े ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उनके प्रोडक्ट बिकते हैं। वे खुद भी अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया के जरिए मार्केटिंग कर रही हैं। नेहा कहती हैं कि हम अपने प्रोडक्ट की पैकेजिंग के लिए भी इको फ्रेंडली वेस्ट मटेरियल ही यूज करते हैं। किसी तरह की प्लास्टिक या हार्मफुल प्रोडक्ट यूज नहीं करते हैं।
वे कहती हैं कि हम अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा खुद की कंपनी या ऑफिस वर्क पर खर्च करने की बजाए किसानों पर खर्च करते हैं। क्योंकि वे ही हमारी असली संपत्ति हैं। वे मजबूत होंगे तो हमारी कंपनी भी ग्रोथ करेगी। कोरोना के बीच हम गरीबों और मजदूरों की लगातर हेल्प कर रहे हैं। उन्हें दवाइयां और जरूरी चीजें प्रोवाइड करा रहे हैं।
क्या है इको विलेज मॉडल?
नेहा बताती हैं कि ऐसे गांव जहां ऑर्गेनिक खेती की जाए। प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग और ब्रांडिंग की जाए। जहां फूड्स से लेकर रहन-सहन की सभी चीजें लोकल और पूरी तरह से नेचुरल हों। जहां के किसानों को काम की तलाश में कहीं बाहर जाने की बजाए अपने गांव में ही रोजगार मिल सके। हेल्थ से लेकर वेल्थ तक का इंफ्रास्ट्रक्चर हो। यानी हर तरह से आत्मनिर्भर गांव, उसे हम इको विलेज कहते हैं।
नेहा जल्द ही बिहार और यूपी में भी अपने काम को बढ़ाने वाली हैं। वे कहती हैं कि इसमें स्कोप की कोई कमी नहीं है। बस लोगों को आगे आने की जरूरत है। अगर लोग ठान लें कि उन्हें अपने गांव को हर तरह से समृद्ध बनाना है तो वे कर सकते हैं। गावों में हर चीज तैयार की जा सकती है। बस उन्हें एक सही प्लेटफॉर्म मिलना चाहिए। नेहा को इस काम के लिए अर्थ डे नेटवर्क स्टार, IIT दिल्ली की तरफ से इंट्रप्रेन्योर एक्सीलेंस अवॉर्ड, ब्रिटिश काउंसिल की तरफ से सोशल इंडिया इम्पैक्ट अवॉर्ड सहित कई बड़े सम्मान मिल चुके हैं।
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