जलीकट्टू का नाम तो आप सबने सुना है…तमिलनाडु में जान दांव पर लगाकर बैल को पकड़ने के लिए उमड़ने वाली भीड़ का शोर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। लेकिन जलीकट्टू अकेला ऐसा इवेंट नहीं है जहां आस्था और रोमांच की हद जानलेवा तक हो जाती है।
कभी आप पर किसी ने जलता पटाखा फेंका है? या फिर कभी आपने जलती गेंद से फुटबॉल खेला है…या कभी मगरमच्छ से कुश्ती लड़ी है?
ये ऐसे खेल हैं जो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में परंपरा का हिस्सा बन चुके हैं। इन खतरनाक खेलों में हर साल कई लोग घायल होते हैं। इनमें से कई खेलों को रोकने के लिए आवाज भी उठ चुकी है, लेकिन परंपरा के नाम पर ये अब तक जारी हैं।
जानिए, कौन से हैं वो खेल जो परंपरा के नाम पर खतरे की हद पार कर जाते हैं। कौन सी हैं वो परंपराएं जो इतने खतरनाक खेलों को जन्म देती हैं।
शुरुआत देश से…पहले जानिए मध्य प्रदेश के खतरनाक पारंपरिक खेल की कहानी
1. हिंगोट युद्ध: देसी फल से बने पटाखे जलाकर एक-दूसरे पर फेंकते हैं लोग
मध्य प्रदेश के इंदौर के करीब गौतमपुरा और रुणजी गांवों में हिंगोट युद्ध नाम का खेल होता है। दीपावली के आस-पास होने वाले इस त्योहार में लोग हिंगोट नाम के फल को खोखला कर उसमें बारूद भरते हैं और एक लकड़ी लगा इसे रॉकेट जैसी शक्ल देते हैं। फिर इसे जलाकर एक-दूसरे पर फेंकते हैं।
कभी मुगलों और मराठों के युद्ध में थे ये हथियार…अब दो गांव निभाते हैं युद्ध की परंपरा
स्थानीय लोगों के मुताबिक हिंगोट युद्ध की परंपरा 200 साल से भी ज्यादा पुरानी है। मान्यता है कि किसी जमाने में जब मुगल सेना मराठाओं की जमीन पर कब्जा करने लगी थी तो मराठाओं ने गोरिल्ला युद्ध में हिंगोट के फलों में बारूद भरकर बम की तरह इस्तेमाल किया था।
आज गौतमपुरा और रुणजी गांव इस खेल में एक दूसरे से युद्ध करते हैं। दोनों तरफ की टीमें एक दूसरे पर हिंगोट से बने रॉकेट और बम फेंकती हैं और ढालों से खुद को बचाती हैं। हर साल इस खेल में दोनों टीमों के कई लोग घायल भी होते हैं। खतरनाक होने की वजह से इसे बंद करने की मांग भी उठती रही है, मगर संस्कृति का हिस्सा बताते हुए ये दोनों ही गांव इसे जारी रखे हुए हैं।
अब देखिए, दुनिया के अनूठे और खतरनाक खेल
2. फ्लेमिंग बॉल्स: जलती हुई गेंद एक-दूसरे पर फेंकते हैं लोग
मध्य अमेरिका के देश ग्वाटेमाला की राजधानी ग्वाटेमाला सिटी से करीब 200 किमी. दूर बसे सैन क्रिस्टोबल वेरापाज शहर में एक अनूठा खेल खेला जाता है। हर साल 8 दिसंबर को मनाए जाने वाले एक त्योहार के दौरान लोग कपड़े की गेंद बनाकर उसे केरोसिन से भिगोते हैं। फिर इसे जलाकर ये जलती हुई गेंदें एक-दूसरे पर फेंकते हैं।
ये त्योहार सैन क्रिस्टोबल वेरापाज के पोकोमची मायन में सबसे बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। हर साल 8 दिसंबर को इस इलाके को पुलिस बैरिकेड्स से घेर देती है ताकि कोई गाड़ी अंदर न जा पाए। इन जलती हुई गेंदों की वजह से गाड़ियों के आग पकड़ने की घटनाएं आम हैं।
मदर मेरी के पापों से मुक्ति के पहले समारोह से शुरू हुई थी परंपरा
ईसाई मान्यताओं के मुताबिक ईसा मसीह की मां यानी मदर मेरी सभी तरह के पापों यानी ओरिजिनल सिन्स से मुक्त थीं। उनके इन पापों से मुक्ति को इमैक्युलेट कंसेप्शन कहा जाता है। इसी को याद करने के लिए 8 दिसंबर को जुलूस निकाले जाते हैं।
सैन क्रिस्टोबल वेरापाज में ये मान्यता है कि इस जुलूस के आगे चलने वाले रास्ते से बुरी आत्माओं को मिटाने के लिए आग के गोले फेंकते हैं। इसी परंपरा ने अब कपड़े की जलती हुई गेंदों का रूप ले लिया है।
ये खेल इतना खतरनाक है कि खुद यहां की म्युनिसिपल अथॉरिटी ने इसे बंद करवाने की कोशिश की है, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के चलते लोग इसे बंद नहीं करते हैं।
3. फायरबॉल फुटबॉल: जलते हुए नारियल से नंगे पैर फुटबॉल का खेल
फीफा वर्ल्ड कप का मजा तो आप सबने लिया होगा, लेकिन क्या आपने कभी जलती हुई गेंद से फुटबॉल खेला है। इंडोनेशिया में एक ऐसा ही खेल होता है।
इस खेल में नारियल को केरोसिन में भिगोया जाता है और फिर इसमें आग लगा दी जाती है। इस जलते हुए नारियल से फुटबॉल खेला जाता है। खास बात ये है कि ये खेल नंगे पैर खेला जाता है। यहां तक कि गोलकीपर भी बिना ग्लव्स के नंगे हाथों से ही गेंद रोकता है।
मार्शल आर्ट से उपजा ये खेल…आग से बचने के लिए नमक इस्तेमाल करते हैं प्लेयर
इंडोनेशिया, ब्रुनेई समेत पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में सिलट मार्शल आर्ट सिखाया जाता है। यह मार्शल आर्ट खिलाड़ी की फुर्ती पर बहुत ज्यादा जोर देता है। फुर्ती दिखाने के तरीके के तौर पर ही छोटी गेंद को हाई किक्स से रोकने और मारने की परंपरा शुरू हुई थी।
इससे कई तरह के खेल निकले। एशियन गेम्स में शामिल किया गया दक्षिण-पूर्व एशिया का खेल सेपक टकरा (फुट वॉलीबॉल) भी इसी परंपरा से शुरू हुआ था। जलती हुई गेंद से फुटबॉल खेलने को सेपक बोला अपी कहा जाता है।
मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया में रमजान के स्वागत में होने वाले समारोह में इस तरह के प्रदर्शन शुरू हुए जो बाद में खेल में बदल गए। इस खेल में 4 प्लेयर और एक गोल कीपर होता है और 10-10 मिनट के 2 हाफ में इसे खेला जाता है। गेम खेलने से पहले सभी प्लेयर आग से बचने के लिए नमक जैसी चीजों से नहाते या हाथ-मुंह धोते हैं।
4. एलिगेटर रेसलिंग: मगरमच्छ से कुश्ती भी है खेल
अगर आपको पता चले कि पानी में मगरमच्छ है तो क्या आप उस पानी में उतरना चाहेंगे। मगर अमेरिका के फ्लोरिडा प्रांत में ऐसे लोग भी हैं जो न सिर्फ इस पानी में उतरते हैं बल्कि एलिगेटर यानी मगरमच्छ से कुश्ती लड़ उसे काबू में करते हैं।
यहां एलिगेटर रेसलिंग की प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं। पारंपरिक रूप से ये खेल नेटिव अमेरिकन जनजाति सेमिनोल की संस्कृति का हिस्सा रहा है। मगर अब इसमें कई उत्साही टूरिस्ट और स्थानीय श्वेत आबादी भी शामिल होती है।
सेमिनोल जनजाति ने अभाव के दिनों में शुरू की थी ये परंपरा…अब कमाई का जरिया बनी
एक समय पूरे फ्लोरिडा में सेमिनोल जनजाति बसती थी। मगर 19वीं सदी में श्वेत आबादी के साथ इस जनजाति के तीन सिविल वॉर हुए। उस वक्त ये जनजाति सिर्फ एवरग्लेड्स इलाके में सिमट गई।
ये इलाका बहुत पिछड़ा हुआ था। मगरमच्छ का मांस और चमड़ा ही यहां का मेन रिसोर्स था। मगर मगरमच्छ का मांस बहुत जल्दी खराब होता था इसलिए सेमिनोल लोग जिंदा मगरमच्छ पकड़कर ही बेचते थे। मगरमच्छ को पकड़ने की इस जनजाति की परंपरा उसी दौर में शुरू हुई।
समय के साथ एवरग्लेड्स में भी विकास हुआ। जब श्वेत आबादी ने जनजाति के लोगों का ये खतरनाक खेल देखा तो उन्हें कमाई का जरिया भी नजर आया। श्वेतों ने ही सेमिनोल लोगों को फ्लोरिडा के दूसरे हिस्सों में बसाया और वहां भी एलिगेटर रेसलिंग के शो दिखाने लगे।
अब सेमिनोल जनजाति के लोग खुद ही ऐसे शो और प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं। इससे उनकी कमाई इतनी बढ़ी है कि हाल ही में इस ट्राइब ने हार्ड रॉक क्लब चेन को खरीद लिया है।
एनिमल राइट्स वालों ने कई बार इस खेल का विरोध करते हुए बंद करने की मांग की है। हालांकि सेमिनोल जनजाति के लोगों का कहना है कि वे सिर्फ अपनी संस्कृति को बचा रहे हैं और इसमें मगरमच्छ को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता है।
5. फेरेट लेगिंग: पैंट में चूहे से भी तेज दांतों वाले फेरेट को रखने का खेल
फेरेट, चूहे के परिवार का यानी रोडेन्ट फैमिली का एक जानवर होता है। मगर इसका आकार चूहे से काफी बड़ा होता है और दांत भी काफी पैने होते हैं। इस जानवर को ज्यादा से ज्यादा देर अपनी पैंट में रखने का खेल इंग्लैंड से शुरू हुआ था जो आज अमेरिका में भी खेला जाता है।
खिलाड़ी को फेरेट अपनी पैंट के अंदर रखना होता है। शर्त ये होती है कि पैंट नीचे से पैक रहे ताकि फेरेट नीचे से निकल पाए। लगातार इस बात का खतरा बना रहता है कि फेरेट अपने दांतों और नाखूनों से खिलाड़ी को घायल कर सकता है।
इस खेल को मर्दानगी साबित करने का तरीका माना जाता है। 2010 में एक खिलाड़ी ने 5.30 घंटे तक फेरेट को पैंट रखकर नया रिकॉर्ड बनाया था।
शिकारियों ने जांच से बचने के लिए शुरू किया था ये काम…अब खेल बन गया
फेरेट लेगिंग खेल की शुरुआत इंग्लैंड के यॉर्कशायर से हुई थी। दरअसल, सूंघने की अद्भुत क्षमता की वजह से पुराने समय में शिकारी अपने साथ फेरेट रखते थे।
बाद में फेरेट का भी शिकार शुरू हो गया। इसे रोकने के लिए शिकारियों की सख्त जांच हुआ करती थी। उस समय कई शिकारी अथॉरिटी से छुपाने के लिए फेरेट को अपनी पैंट के अंदर रख लेते थे। क्योंकि ये माना जाता था कि कोई भी फेरेट जैसे जानवर को पैंट में रखने का खतरा नहीं मोल लेगा।
समय के साथ ये मर्दानगी का साबित करने का तरीका और फिर एक खेल बन गया। कोयले की खदानों में काम करने वाले खाली समय बिताने के लिए ऐसे खेल खेलते थे। खेल का सबसे पहला रिकॉर्ड 1972 में बना, जब एक व्यक्ति ने 40 सेकेंड के लिए फेरेट को पेंट में रखा। 2003 से ये खेल अमेरिका के वर्जीनिया में राष्ट्रीय स्तर पर होने लगा।
कंटेंट : हिना ओझा
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