‘जब एक हुकूमत का सूरज चढ़ता है तो दूसरी का ढ़लता है’
- प्राचीन कहावत
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बड़े साम्राज्यों की बड़ी कहानी से हमारे लिए लेसंस
हर साम्राज्य की एक बुनियाद होती है, जो रखी जाती है खून, तलवार, किस्मत और फतह से। आज हम इतिहास की एक ऐसी ही घटना से सबक सीखने की कोशिश करेंगे जिसमें एक 20 साल के सुल्तान ने वह काम कर दिखाया जिसे उसके पूर्वज सदियों से नहीं कर पा रहे थे।
आज हम बात करेंगे पूर्वी रोमन साम्राज्य (या बायजेन्टाइन साम्राज्य) के सबसे मजबूत गढ़ कॉन्स्टेंटिनोपल के पतन की, जिसे 20-21 साल के ऑटोमन सुलतान मेहमेद II द्वारा जीत लिया गया।
क्या है कहानी इस्तांबुल (कॉन्स्टेंटिनोपल) पर विजय की
बात वर्ष 1453 ईस्वी की है, जब कॉन्स्टेंटिनोपल लगभग 1000 (330 ईस्वी से) वर्षों से पूर्वी यूरोप (रोमन) साम्राज्य की राजधानी रहा था! अनेकों राजाओं ने, स्वयं मेहमेद II के पिता ने भी, इसे जीतने की कोशिश में काफी कुछ गंवा दिया था।
ऑटोमन (अर्थात उस्मानी) साम्राज्य (1299 ईस्वी से 1924 ईस्वी) उस समय मध्य एशिया से पूर्वी यूरोप तक फैल चुका था। मेहमेद II इसी कड़ी में एक ऑटोमन सुलतान थे। कंस्टिन्टिनोपल एक मजबूत किला था जिसे मेहमेद II के पहले 24 फौजों ने जीतने की कोशिश की थी, लेकिन सब नाकाम रही थीं।
दीवारों की कहानी
किले की मजबूती का सबसे बड़ा कारण वो दीवारें थीं, जिन्हे उन्हें बनाने वाले राजा के नाम पर 'थियोडोसियन वाल्स' कहा जाता था। ये दीवारें तीन से चार स्तरों में बनी थी तथा इनके आगे एक खाई थी। मेहमेद II ने सब तोड़ते हुए फतह हासिल की।
मेहमेद II के हैरतअंगेज कारनामे से चार बड़े सबक
1) जीवन में सही लोगों का साथ जरूरी: मेहमेद II को भी अन्य ऑटोमन (उस्मानी) सुल्तानों की तरह ही परवरिश दी गई थी, वे बहादुरी से लड़ने के अलावा, एडमिनिस्ट्रेशन और चार से पांच भाषाओं में माहिर थे।
लेकिन जीवनभर जो चीज उनको बाकी सभी सुल्तानों से अलग बनाती है वो थी उनकी सौतेली मां, मारा ब्रोन्कोविच (जो सर्बिया की राजकुमारी थी और जिन्हे 'मां मारा' कहते थे) का गाइडेंस। कॉन्स्टेंटिनोपल की लड़ाई में जब मेहमेद हार मानने ही वाले होते हैं तो मारा सर्बिया से घोड़े पर बैठ कर उन्हें ये समझाने आती हैं की वे लड़ाई में बने रहें और अंतिम जीत उनकी ही होगी। सबक: रिश्ते बनाए रखें
2) अगर ठान लिया जाए तो असंभव कुछ भी नहीं: किले की घेराबंदी के दो महीने बीत जाने, कई मोर्चों पर हार मिलने, अपनी ही सेना में बगावत होने के डर, और कॉन्स्टेंटिनपोल की मदद के लिए विएना की सेना के आने की अफवाहों के बीच मेहमेद II अपनी माता से मिलने वाले हौसले के बाद 'करो या मरो' का फैसला करता है, और जीत उसकी होती है। बीस साल का लड़का 1500 साल पुराने साम्राज्य को चकनाचूर कर देता है। सबक: डर से लड़ो, आगे बढ़ो
3) ये दुनिया शुरू से 'आइडियाज वर्ल्ड' ही है: मॉडर्न समय में मैनेजमेंट थिंकर्स का मानना है वर्तमान में विश्व में सबसे महत्वपूर्ण एक 'आइडिया' होता है, लेकिन मुझे ऐसा लगता है हमेशा से ही ऐसा था। कॉन्स्टेंटिनोपल की लड़ाई में मेहमेद के दो आइडियाज उसके बहुत काम आय और जो विश्व में पहली बार किए गए थे।
(i) पहला था 'थियोडोसियन वॉल्स' को तोड़ने के लिए उस समय तक की दुनिया की सबसे बड़ी तोपों का निर्माण और
(ii) दूसरा शहर के अंदरूनी बंदरगाह 'गोल्डन हॉर्न' में कड़ी सुरक्षा के चलते पानी के जहाजों को जमीन में जंगल के रास्ते पेड़ों पर चिकनाई लगाकर कर फिर उस पर जहाजों को लुढ़काकर पंहुचाना।
दोनों ही आइडियाज समय से आगे के थे और रोमन्स ऐसा होने की कल्पना भी नहीं कर पाए। सबक: नए तरीके ढूंढ़ते रहो
4) दूसरों के भरोसे लड़ाइयां नहीं जीती जा सकतीं: कॉन्स्टेंटिनोपल का राजा कांस्टैंटिन XI एक बहादुर राजा था, लेकिन उसके पास एक छोटी सेना थी और वह मुख्य रूप से किराए पर लड़ने वाले एक समुद्री डाकू जियोवानी गुस्तिंयानी और पोप की आर्मी के भरोसे था। पोप की आर्मी तो कभी पहुंची ही नहीं और गुस्तिंयानी और उसके लोग ऑटोमॅन्स हमले में बहुत लड़े पर अंत में गुस्तिंयानी को तीर लगने पर भाग खड़े हुए। सबक: आपकी लड़ाई आपकी अपनी है
आज के प्रोफशनल्स और स्टूडेंट्स भी इन लेसंस से मॉडर्न वर्ल्ड के चैलेंजेस से निपटने सीख सकते हैं।
आज का करिअर फंडा यह है कि हमें अपनों का साथ, खुद पर भरोसा, हमेशा अपना दिमाग चलाने और दृढ निश्चय से आग में कूद पड़ने पर भी विजय हासिल होने की सम्भावना होती है।
कर के दिखाएंगे!
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