कोविड को हम पीछे छोड़ आए हैं, और समय है रिव्यू का।
ऑनलाइन एजुकेशन ने स्कूल स्टूडेंट्स को एक नए डायमेंशन से परिचित कराया, ऑप्शंस बढ़ाए…और बहुत से प्रॉब्लम्स को भी जन्म दिया!
स्कूल स्टूडेंट्स को ऑनलाइन क्लास में दो तरह का डर सताता है - एक तरफ मम्मी और दूसरी तरफ टीचर! किसी नन्ही बच्ची का दर्द-ए-बयां, पहली बार में मुस्कुराने को मजबूर करता है और दूसरी बार में ऑनलाइन क्लासेस के कारण प्रेशर को बताता है।
मार्च 2020 से शुरू हुई एक ब्लैक स्वान घटना (ऐसी घटना जो रेयरली कभी होती है) कोविड महामारी ने एजुकेशन वर्ल्ड को हिला कर रख दिया। इस चेंज ने पॉलिसी, पढ़ाने के तरीकों, टेक्नोलॉजी और साइकोसोशल फैक्टर्स (मनोसामाजिक कारकों) से जुड़े कई प्रॉब्लम्स को बढ़ाया। आज स्कूल्स खुल गए हैं, लेकिन ऑनलाइन हमेशा के लिए एजुकेशन का पार्ट बन चुका है।
ऑनलाइन सॉल्यूशन के साथ बहुत बड़ी प्रॉब्लम भी बना। कैसे?
1) IT इंफ्रा की कमी: बहुत सारी फैमिलीज में IT इंफ्रा था ही नहीं। लैपटॉप, टैबलेट तो भूल जाइए, लॉकडाउन के दौरान फर्नीचर (स्टडी/वर्क टेबल्स, चेयर्स) की सेल्स बढ़ी, क्योंकि लोगों को घरों से काम करने और पढ़ने के लिए जरूरत पड़ी। अचानक बढ़ी डिमांड का IT सप्लाई पर फर्क पड़ा। सप्लाई कम थी, ऊपर से लॉकडाउन। डिलीवरी हो नहीं रही थी।
2) टीचर्स का वर्कलोड बढ़ गया: ऑनलाइन क्लासेज पढ़ा सकने के लिए कोई टीचर टेक्निकली तैयार नहीं था, ना तो किसी टीचर के पास क्लास में उपयोग करने के लिए प्रेजेंटेशन उपलब्ध थे (ऐसे एक प्रेजेंटेशन को बनाने में कई घंटों का समय लग सकता है) और ना ही टीचर्स को स्टाइलस का उपयोग कर लैपटॉप और टेबलेट पर लिखने की आदत ही थी।
3) बच्चों (स्टूडेंट्स) की तो दुनिया ही बदल गई: कल तक हंसते-खेलते स्कूल जाने वाले बच्चे अब घरों में कैद थे। ना दोस्तों से मिल पाना और ना ही स्कूल/क्लासरूम का माहौल। जो परिवार अपने बच्चों को लैपटॉप, डेस्कटॉप कंप्यूटर या टैबलेट दिला पाए उनका तो फिर भी ठीक, लेकिन जिन बच्चों को मोबाइल स्क्रीन पर क्लासेज अटेंड करनी पड़ी, उनकी हालत खराब थी। पढ़ाई का प्रेशर, अच्छे मार्क्स लाने का प्रेशर, लेकिन क्लासेज मोबाइल की छोटी से स्क्रीन पर देखना पड़े, घर में होने वाली एक्टिविटीज डिस्टर्ब हों तो कई बार कॉन्सेप्ट्स ठीक से समझ नहीं आते। परिवार का सपोर्ट बहुत जरूरी था। स्कूल, स्कूल होता है घर, घर। स्कूल जैसा अनुशासन स्कूल में मिलता है, घर पर नहीं मिल सकता।
4) डिजिटल डिवाइड: इंडियन सोसाइटी का ग्रेडेड स्ट्रक्चर अब डिजिटल डिवाइड के रूप में सामने आया। अर्थात अमीरों और गरीबों के बीच अंतर। अमीर परिवार ज्यादातर शहरों में रहते है जहां इलेक्ट्रिसिटी से लेकर इंटरनेट कनेक्शन तक सभी कुछ उपलब्ध है। करोड़ों गरीब और मिडिल क्लास फैमिलीज ने अपना गोल्ड और गाय/बैल बेच कर बच्चों को स्मार्टफोन दिलाया। फिर इंटरनेट कनेक्शन का प्रॉब्लम!
ऑनलाइन एजुकेशन अब लाइफ का हिस्सा रहेगी।
अब आगे - पॉजिटिव सॉल्यूशन
1) स्कूल्स इंटीग्रेटेड एप्रोच रखें: ऑफलाइन (रियल वर्ल्ड) में दुनिया लौट आई है, लेकिन अब समय है ऑनलाइन के बेस्ट एलिमेंट्स को इंटीग्रेट कर के स्टूडेंट लर्निंग को एनहान्स करने का। लॉकडाउन के लेसंस याद रखकर एक मॉडल बने, जिससे स्टूडेंट्स को डबल बेनिफिट मिले। हाइब्रिड मॉडल बनाइए।
2) डाउट्स क्लियर करवाएं: ऑनलाइन में स्टूडेंट्स तो सवाल पूछ लेते हैं, लेकिन टीचर्स कई बार टेक्निकल प्रॉब्लम्स के चलते ठीक से कम्यूनिकेट नहीं कर पाते। जैसे जब स्टूडेंट डाउट पूछता है तब टीचर की तरफ आवाज जाना बंद हो जाती है या कोई और कनेक्टिविटी की प्रॉब्लम होती है। ऐसा होने पर स्टूडेंट्स और टीचर दोनों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। स्टूडेंट्स को अपने डाउट्स नोट कर के रख लेना चाहिए, ताकि बाद में पूछ सके और टीचर्स को भी यह ध्यान रखना चाहिए की किसके डाउट्स सॉल्व करना रह गया था। फुल स्टॉप्स लगाइए।
3) डिजिटल लिटरेसी: इसका मतलब है डिजिटल समझ को बढ़ाना, और इसकी जरूरत स्टूडेंट्स, टीचर और पेरेंट्स तीनों को है। कई बार समस्याएं बहुत छोटी होती हैं, लेकिन हमारा तकनीकी नॉलेज/स्किल कम होने की वजह से हम उसे हल नहीं कर पाते। जैसे टीचर्स को ऑनलाइन में लिखने में बहुत प्रॉब्लम्स आईं। सबका लेवल बढ़ाइए।
4) लिमिटेड रिसोर्सेज से काम निकालने की फाइटिंग स्पिरिट: एक टीचर थी, उनको जब अचानक ऑनलाइन क्लासेज लेनी पड़ी तो उनके पास घर पर ना तो लैपटॉप था और ना ही टैबलेट। टैबलेट तो स्कूल ने अवेलेबल करवा दिया, लेकिन उसका स्टाइलस खराब निकला, और कोई रास्ता ना देख उस टीचर ने यू-ट्यूब पर जाकर टेम्पोरेरी स्टाइल्स बनाने का मेथड सीख कर घर पर ही स्टाइलस बना कर काम चलाया। तो, इनोवेट एंड मूव ऑन।
एक नई दुनिया में स्कूल्स को कदम रखते हुए, हाइब्रिड मॉडल का बेस्ट बेनिफिट स्टूडेंट्स को देना चाहिए।
कर के दिखाएंगे
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