हमारी जिंदगी कई मायनों में प्लास्टिक पर निर्भर है। पानी के बोतल से लेकर खाने की प्लेट में प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। शरीर और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदेह होने के बावजूद, विकल्प के आभाव में इसे पूरी तरह बंद नहीं किया जा सकता है। इस समस्या को देखते हुए केरल के विनय कुमार बालाकृष्णन ने गेहूं के भूसे (Wheat Bran) से एडिबल टेबल वेयर बनाने का तरीका खोजा है, जो पर्यावरण के साथ किसानों के लिए भी फायदेमंद है।
हर साल कई टन ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ वेस्ट में चला जाता है। इस सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल डिस्पोजेबल प्लेट्स, ग्लास, बाउल, स्पून और कटलरी सहित कई टेबलवेयर प्रोडक्ट बनाने में किया जाता है। विकल्प के तौर पर बालाकृष्णन ने सीएसआईआर - नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इंटरडिसिप्लिनरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी (NIIST) के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं के भूसे से बायोडिग्रेडेबल सिंगल यूज क्रॉकरी का स्टार्टअप ‘तूशान’ (Thooshan) नाम से शुरू किया है।
ऐसी क्रॉकरी जिसमें खाना खाने या पानी पीने के बाद, उसे खाया भी जा सकता है। इन् क्रॉकरी को माइक्रोवेव में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कई खूबियों के कारण अमेरिका, फ्रांस, रूस सहित कई देशों में इसकी डिमांड है।
आज की पॉजिटिव खबर में आइये जानते हैं विनय कुमार बालाकृष्णन के इस आइडिया के बारे में जो प्लास्टिक डिस्पोजेबल का बेहतर विकल्प है…
वेस्ट का विकल्प वेस्ट से निकाला
55 साल के विनय कुमार बालाकृष्णन केरल के एर्नाकुलम में रहते हैं। 2013 तक मॉरीशस की एक इंश्योरेंस कंपनी में बतौर सीईओ रहे। कई सालों तक बैंकिंग और इंश्योरेंस कंपनी में काम करने के बाद वो नौकरी छोड़ खुद का स्टार्टअप शुरू करने देश वापस आ गए। बालाकृष्णन ऐसा काम करना चाहते थे जो पूरी तरह इको - फ्रेंडली और नेचर से जुड़ा हो। बालाकृष्णन कहते हैं, “मैं प्लास्टिक का विरोधी हूं और इसलिए मैं ऐसे प्रोडक्ट की तलाश में था जो पल्स्टिक का बेहतर विकल्प बन सके और उससे नेचर को कोई नुक्सान भी न हो। डिस्पोजेबल क्रॉकरी बनाने के लिए मैंने चवल, गेहूं और अनानास के वेस्ट पर रिसर्च किया, जिसमें सबसे बेहतर गेहूं का वेस्ट सबसे लगा।”
प्रोसेसिंग करते समय बचने वाले चोकर या भूसे (Wheat Bran) को अक्सर लोग फेंक देते हैं या पशुओं को खिला देते हैं, लेकिन ये हेल्थ के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। चोकर वाले आटे में फाइबर और पोटेशियम की मात्रा अधिक होती है। इस फायदेमंद वेस्ट से बर्तन बनाने का तरीका निकला।
केले का पत्ते से आया बायोडिग्रेडेबल प्लेट का आइडिया
ऐसा मन जाता है केले के पत्ते में का इस्तेमाल खाना परोसने के लिए तकरीबन 10 हजार साल से किया जा रहा है। जो पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल होता है। बालाकृष्णन कहते हैं, “ केले के पत्ते में खाना खाना भारतीय संस्कृति की पहचान है, जो पूरी तरह से नेचुरल है। केरल में केले के पत्ते का उपयोग खाना खाने के लिए अभी भी कई जगहों पर किया जा रहा है। यहीं से मुझे ‘‘तूशान’ ’ स्टार्टअप का आइडिया आया। मलयालम में आधे कटे हुए केले के पत्ते को ‘तूशनिला कहते हैं और उसी से हमने ‘तूशान’ शब्द लिया।”
केले के पत्ते की तरह ही ‘तूशान’ के सभी प्रोडक्ट नेचुरल हैं। सभी प्रोडक्ट्स आटे या चावल की भूसे से बनाये जाते हैं जो कि मिल में वेस्ट प्रोडक्ट होते हैं। अभी तक प्लेट, बाउल, कप , स्पून , कटलरी , स्ट्रॉ जैसे प्रोडक्ट तैयार किये जा रहे हैं। जिनमें से स्ट्रॉ चावल के भूसे से बना होता है।
रोबोटिक मशीन से तैयार किया जा रहा प्रोडक्ट
बालाकृष्णन ने आपने स्टार्टअप से पहले कई रिसर्च किये, जिसमें उन्हें एक ऐसी ही पोलैंड की कंपनी के बारे में पता चला जो गेहूं के भूसे से क्रॉकरी बना रही थी। उन्होंने उस कंपनी को भारत में प्लांट लगाने की सलाह दी, लेकिन कंपनी ने मना कर दिया।
2019 में लगभग एक-डेढ़ साल की रिसर्च के बाद उन्होंने खुद का स्टार्टअप शुरू कर दिया। बालाकृष्णन बताते हैं, “ मैंने स्टार्टअप की मशीन भी खुद ही तैयार की हैं जिसे देश की अलग-अलग कंपनियों से कल-पुर्जे लेकर तैयार किया गया है। मेरी मशीन100 % रोबोटिक है, जिसे ऑपरेट करने के लिए सिर्फ एक ही कर्मचारी की जरूरत है।”
हालांकि उन्होंने इस तकनीक के लिए CSIR-NIIST के साथ MoU साइन किया। लैब में प्रोटोटाइप तैयार होने के बाद, उन्होंने सभी तरह के टेस्ट भी किए हैं और नवंबर से उनके सभी प्रोडक्ट मार्केट में मिलेंगे। फिलहाल मार्केट में स्ट्रॉ मिल रहा है जो चावल के भूसे से बना है।
माइक्रोवेव में भी इस्तेमाल किया जा सकता है
पिछले कई सालों से सरकार ‘सिंगल यूज प्लास्टिक क्रॉकरी’ की समस्या को हल करने के लिए प्रयास कर रही है। क्योंकि इससे कचरे और प्रदूषण दोनों बढ़ते हैं, लेकिन यह तभी संभव हो पाएगा जब हमारे पास प्रकृति के अनुकूल कोई विकल्प हो। और बालाकृष्णन अपने ब्रांड के ज़रिए यही विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं। वे कहते हैं कि फिलहाल, वह प्लेट बना रहे हैं और इसके बाद, पैकेजिंग कंटेनर, कटलरी, कटोरी आदि की मैन्युफैक्चरिंग पर काम कर रहे हैं। जिसे नवंबर में मार्किट में लाने की तैयारी चल रही है। गेहूं के चोकर से बनी इन प्लेट्स को माइक्रोवेव में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
बालाकृष्णन बताते हैं कि तूशान के सभी प्रोडक्ट्स बायोडिग्रेडेबल हैं और उनमें भी प्लेट, बाउल , बॉक्स और कप्स एडिबल हैं, जिन्हें इस्तेमाल करने के बाद खाया जा सकता है। न खाना चाहें तो पशुओं को चारे के रूप में खिलाया भी जा सकता है। इतना ही नहीं मिट्टी में फेकने पर ये कुछ ही दिनों में आसानी से डिस्पोज हो जाएगा और पेड़-पौधों के लिए खाद का काम करेगा।
यूनाइटेड नेशन के प्रोग्राम में भी विजेता
बालाकृष्णन का कहना है कि उनका स्टार्टअप ‘मेक इन इंडिया’ के तर्ज पर काम करता है। इसमें लगने वालीं सभी सभी चीजें देश की ही हैं। उनके इस स्टार्टअप को केरल कृषि विश्वविद्यालय से इन्क्यूबेशन मिला है। इसके अलावा, उनके प्रोजेक्ट को IIT कानपुर से भी इन्क्यूबेशन मिला है। यह प्रोजेक्ट यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम के ‘ग्रीन इनोवेशन फंड ’ में भी विनर रह चुका है।
बालाकृष्णन कहते हैं, ये स्टार्टअप न सिर्फ पर्यावरण बल्कि फार्मर के लिए भी फायदेमंद साबित होगा। फिलहाल, वह मिलों से गेहूं का चोकर खरीद रहे हैं, जिन्हें वेस्ट समझ कर फेंक दिया जाता था। वे कहते हैं कि मेरा प्रोजेक्ट पंजाब , हरियाणा , राजस्थान सहित देश के कई राज्यों के किसानों के साथ सीधा जोड़कर काम करेगा ।”
इन सभी जगहों पर अच्छा विकल्प हो सकता है
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