खुद्दार कहानीलड़की मुझे हुई, उदास नर्स हो गई:मेरे दिए 2 हजार रुपए भी नहीं लिए; बोली- बेटा होगा तो दीजिएगा

जींद (हरियाणा)10 दिन पहलेलेखक: नीरज झा
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'हरियाणा या राजस्थान में किसी के घर बेटी पैदा हो जाती, तो उसे गड्ढा खोदकर उसमें दफन कर मार दिया जाता। मेरे गांव में कोई महिला गर्भवती होती, तो सबसे पहले अल्ट्रासाउंड करवाया जाता। पता चलता कि पेट में बेटी है, तो उसका अबॉर्शन करवा दिया जाता।

इतना ही नहीं, बेटी के पैदा होने पर उसे इतना कम दूध, खाना-पानी दिया जाता कि वो कुछ साल की होते-होते ही मर जाती। 2012 की बात है। मैं हरियाणा के बीबीपुर पंचायत का सरपंच था। मेरी पत्नी प्रेग्नेंट थी। डिलीवरी के लिए वो हॉस्पिटल में भर्ती थी।

जब बच्चे का जन्म हुआ, तो नर्स अंदर से बाहर आई। उसके चेहरे पर 12 बज रहे थे। मासूम और धीमी आवाज में बोली, 'बेटी हुई है।'

मैंने कहा, ' इतनी उदास क्यों हो। ये तो खुशी की बात है।' मैंने खुशी में उसे 2 हजार रुपए दिए, तो नर्स ने कहा, 'बेटी के पैदा होने पर किस बात की खुशी, पैसा नहीं लेते हैं। अगली बार दे दीजिएगा, जब बेटा होगा।'

मैं चौक गया…। मेरे गांव का सेक्स रेश्यो उस वक्त काफी नीचे था। मैंने 'बेटी बचाओ' को लेकर कैंपेन शुरू किया, तो जानलेवा हमला हुआ। यहां तक कि मेरे खिलाफ सुपारी दी गई। जब इन मुद्दों पर महिलाओं से बातचीत करना शुरू किया, तो उनका कहना था- 'सिर्फ पुरुष ही बेटी को जन्म से पहले नहीं मारते, कोख में बेटी की कातिल हम महिलाएं भी हैं।'

सुबह के तकरीबन 10 बज रहे हैं। हरियाणा के जींद शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित है बीबीपुर पंचायत। 41 साल के पूर्व सरपंच सुनील जागलान अपनी लाल रंग की कार साफ कर रहे हैं। उनकी गाड़ी के पीछे लिखा है, ‘सेल्फी विद डॉटर’ यानी बेटी के साथ सेल्फी। ये वही सुनील जागलान हैं, जिनका जिक्र पिछले दिनों PM नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ के 100वें एपिसोड में की थी।

हरियाणा के बीबीपुर पंचायत के पूर्व सरपंच सुनील जागलान गाड़ी साफ कर रहे हैं। इस गाड़ी के पीछे लिखा है- सेल्फी विद डॉटर।
हरियाणा के बीबीपुर पंचायत के पूर्व सरपंच सुनील जागलान गाड़ी साफ कर रहे हैं। इस गाड़ी के पीछे लिखा है- सेल्फी विद डॉटर।

सुनील के साथ बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाता हूं। वे बताते हैं, ‘PM 2014 के बाद से मंच और 'मन की बात' के जरिए दो-तीन बार मेरे कामों की सराहना कर चुके हैं। 100वें एपिसोड में उन्होंने मुझसे बातचीत की तो लगा बेटी बचाने का संदेश, देश के दूसरे हिस्सों तक मेरे माध्यम से पहुंच गया। अच्छी बात यह है कि आज हरियाणा का सेक्स रेश्यो 915 से अधिक है, जो पहले 850 से भी कम था।’

जब मैं सुनील के गांव की तरफ जा रहा था, तो रास्ते में स्कूल जाती हुई लड़कियां, बेधड़क सड़कों पर एक समूह में जाती हुई महिलाएं, पोखर-तालाब, हरे-भरे पेड़-पौधे से घिरा चौपाल और कुछ खाली जमीन पर गोबर के उपले दिखाई दे रहे थे।

सुनील कहते हैं, ‘2010 में मेरे सरपंच बनने से पहले तक ये महिलाएं अपने घर से बाहर भी नहीं निकल पाती थीं। बेटी तो पैदा ही नहीं होती थी। जो होती भी, तो उसे चौखट के भीतर ही चूल्हे में झोंक दिया जाता। घूंघट में उनकी जिंदगी खत्म हो जाती। खाली जमीन पर माफियाओं, दबंगों ने कब्जा कर रखा था।’

इस तस्वीर में सुनील के साथ उनकी पत्नी और दोनों बेटी नंदिनी और याचिका है।
इस तस्वीर में सुनील के साथ उनकी पत्नी और दोनों बेटी नंदिनी और याचिका है।

इसी बीच मेरी नजर सुनील के घर के दरवाजे पर जा टिकती है। सुनील के दरवाजे के बाहर 'नंदिनी निवास डिजिटल इंडिया विद लाडो' का एक बोर्ड लगा हुआ है। सुनील मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘लड़ाई यहीं से, इसी गांव से शुरू हुई थी। नंदिनी मेरी बड़ी बेटी का नाम है, जिसके पैदा होने पर नर्स उदास हो गई थी। आज मेरी दो बेटियां हैं।’

घर के अंदर जाने पर सुनील का कमरा अवॉर्ड से भरा हुआ है। सैकड़ों अवॉर्ड रखे हुए दिखाई दे रहे हैं। एक कॉर्नर पर पिता की तस्वीर लगी हुई है।

सुनील कहते हैं, ‘2017 में पापा की डेथ हो गई थी। वो टीचर थे। मेरे अंदर महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर जो जज्बा है, वो कहीं न कहीं पापा से मिला। वो हमेशा चाहते थे कि लड़कियां पढ़े-लिखें, आगे बढ़ें, लेकिन दिक्कत गांव के लोगों की सोच में थी। उनकी मानसिकता में थी, वे बेटी पैदा नहीं होने देना चाहते थे।’

सुनील बेटी के साथ सेल्फी लेते हुए एक स्टैच्यू को देख रहे हैं।
सुनील बेटी के साथ सेल्फी लेते हुए एक स्टैच्यू को देख रहे हैं।

सुनील सरपंच बनने का दिलचस्प वाकया बताते हैं। वे कहते हैं, ‘जिस मकान में हम लोग अभी हैं, वो उस वक्त बनकर तैयार हुआ था। मैं कंप्यूटर साइंस से ग्रेजुएशन करने के बाद एकेडमी सेक्टर में काम कर रहा था। कॉलेज लेक्चरर था, फिर बाद में IIT की तैयारी करने के लिए एक इंस्टीट्यूट को चलाने लगा।

मैंने एक नई कार ले ली थी। गांव में कच्ची गली थी। बरसात के दिनों में घुटने तक पानी भर जाता था। एक रोज की बात है। मैंने अपने गांव के सरपंच से सड़क बनवाने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि फंड नहीं है। मैं डिप्टी कमिश्नर के पास गया। पहले तो उन्होंने दो-तीन दिनों तक टालमटोल किया, फिर कहा- विधायक फंड पास करेगा न।

मैंने विधायक से अपील कर फंड पास करवा लिया, लेकिन मौजूदा सरपंच किसी और काम में फंड लगवाना चाह रहे थे। इस बात पर हमारा विवाद हो गया। मैं इसकी शिकायत लेकर डिप्टी कमिश्नर के पास फिर से गया, तो वे झल्लाते हुए बोले- अब सरपंच ही तय करेगा न कि कौन-सा फंड कहां लगेगा। ताना मारते हुए कहा- सरपंच ऐसे ही नहीं बन जाते हैं।'

ये बात मुझे चुभ गई।

मैंने भी सोच लिया कि अब सरपंच बनकर दिखाता हूं।

घर-घर जाकर महिलाओं से बातचीत करना शुरू किया। उनसे जब भ्रूण हत्या को लेकर बात की, तो उनका कहना था कि इसमें उनकी भी बराबर की भूमिका होती है। जितना दोष मर्दों का है, उतना ही महिलाओं का। मैंने उनकी काउंसलिंग करनी शुरू की। आलम ये हुआ कि 2010 के पंचायती चुनाव में लोगों ने मुझे सरपंच बना दिया।'

इस तस्वीर में सुनील अपने पंचायत की महिलाओं के साथ सभा कर रहे हैं।
इस तस्वीर में सुनील अपने पंचायत की महिलाओं के साथ सभा कर रहे हैं।

बातचीत के बीच ही सुनील की मां आती हैं।

सुनील अपनी मां की ओर देखते हुए कहते हैं, ‘मुझे याद है जब मैं सरपंच बना था, तो मां कमिश्नर को मिठाई खिलाने गई थीं। मां ने ताना मारते हुए कहा, 'कमिश्नर साहेब, ऐसे बनते हैं सरपंच। लीजिए मिठाई खाइए।'

कई दिनों के बाद सुनील अपने गांव आए हैं। उनसे मिलने के लिए बाहर कुछ महिलाएं आई हुई हैं।

सुनील बताते हैं, ‘ये वही महिलाएं हैं, जो पहले मर्दों के जुल्म सहती थीं। पति शराब पीकर आता था और इन महिलाओं की मार-पिटाई करता था। गांव में एक ठेका भी था। जब मैं सरपंच बना, तो इन महिलाओं को जस्टिस दिलाने के लिए थाने से लेकर कोर्ट तक गया।

सबसे पहले मैंने गांव के ठेके को बंद करवाने की पहल की। इसी के विरोध में ठेके वाले ने मुझे गोली मार देने की बात कही थी। जब ये बात गांव की महिलाओं को पता चली, तो सभी महिलाओं ने ठेके का घेराव कर उसे जमींदोज कर दिया।

मेरी पहल के चलते गांव के लोग मेरे खिलाफ हो गए। उनका कहना था कि दूसरों के घरों की बहू-बेटियों को बढ़ा-चढ़ा रहा है, ताक-झांक कर रहा है। पागल हो गया है।

मैंने पूरी पंचायत में बुजुर्ग महिलाओं की एक टीम तैयार कर रखी थी, जो घर-घर जाकर, महिलाओं के बीच में रहकर पता लगाती थी कौन प्रेग्नेंट है। ताकि कोई जाकर लिंग जांच, अल्ट्रासाउंड न करवाए। मैंने महिला ग्राम सभा में एक रेजोल्यूशन भी पास करवाया, जिसमें कोख के कातिल पर भी 302 के तहत कार्रवाई का प्रावधान था।'

सुनील द्वारा आयोजित सभा को एक महिला संबोधित कर रही है।
सुनील द्वारा आयोजित सभा को एक महिला संबोधित कर रही है।

सुनील बताते हैं, 'मैंने महिलाओं के साथ सभाएं करनी शुरू कर दीं। देश की पहली महिला ग्राम सभा बीबीपुर पंचायत में ही हुई थी। जब महिलाओं ने घूंघट को दरकिनार कर मंच से भाषण देना शुरू किया, अपनी समस्याएं बतानी शुरू कीं, तो ये बात एक बार फिर से गांव के लोगों को खटकने लगी।’

सुनील एक वाकया बताते हैं। वो कहते हैं, ‘एक बार मैं गांव की महिलाओं के साथ जींद शहर जा रहा था। तभी रास्ते में मेरे खिलाफ लोगों ने गाड़ी की हवा निकाल दी। फिर भी कुछ महिलाएं ही वापस गईं, बाकी सभी महिलाएं साथ में चलीं।

इतना ही नहीं, एक बार मेरे खिलाफ सुपारी यानी जान से मारने के लिए किसी को पैसे दिए गए। संयोग से मेरा एक क्लासमेट, जो उस वक्त किसी अपराध की वजह से जेल में था, उस तक बात पहुंच गई, जिसकी वजह से ये पूरा प्लान कैंसिल हो गया।’

इसी बीच सुनील का फोन बजता है। यह फोन उनकी बेटी नंदिनी का है, जिसे कोचिंग के लिए जाना है।

सुनील कहते हैं, ‘सरपंच बनने के एक साल बाद 2011 में मेरी शादी हुई थी। मैंने महिलाओं की आवाज को उठाना शुरू किया। 9 जून 2015 का वो दिन था, मैंने बड़ी बेटी नंदिनी के साथ ऐसे ही एक सेल्फी लेकर पोस्ट कर दिया। कैप्शन लिखा- सेल्फी विद डॉटर।'

इस तस्वीर में सुनील तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के साथ हैं।
इस तस्वीर में सुनील तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के साथ हैं।

देखते ही देखते यह कैंपेन में तब्दील हो गया। इस मुहिम का सपोर्ट तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी किया। मैंने लोगों से अपील की कि बेटी के साथ सेल्फी लीजिए और भेजकर जीतें बीबीपुर पंचायत की तरफ से इनाम। मेरा कॉन्सेप्ट था कि जो बेस्ट सेल्फी हो, उन्हें इनाम दिया जाए।

इस 9 जून को 'सेल्फी विद डॉटर' के 9 साल होने जा रहे हैं। लोग अपनी बेटी के साथ सेल्फी लेकर भेज रहे हैं। बीबीपुर देश की पहली डिजिटल पंचायत है, जहां ई-मेल के जरिए सारी चीजों को किया जाता था।

आज मेरी अवेयरनेस का परिणाम है कि जेंडर रेश्यो 900 से ऊपर जा चुका है। सभी कामों में महिलाएं हिस्सा ले रही हैं। सम्मान से जी रही हैं।’

अब सुनील मुझे अपने साथ लेकर गांव के लोगों से मिलवाने चलते हैं।

वो कहते हैं, ‘2014 में जब लोकसभा चुनाव था, तो उस वक्त मैंने ‘बहू दो, वोट लो’ नाम से भी एक कैंपेन चलाया था। इसका लोगों ने फिर से विरोध किया कि ये तो पंचायत का अपमान है, लेकिन इसके पीछे का कॉन्सेप्ट ये था कि जब कोख में बेटियों की हत्या कम होगी, तभी तो हर व्यक्ति की शादी होगी। गांव में उस वक्त दर्जनों अनमैरिड लड़के थे, जिनकी शादी ही नहीं हो रही थी। इस वजह से वो दूसरे गांवों, शहरों से लड़की खरीदकर लाते थे।’

सुनील इस तरह के गांव-गांव जाकर पीरियड चार्ट लगवाते हैं। महिलाओं को अवेयर करते हैं।
सुनील इस तरह के गांव-गांव जाकर पीरियड चार्ट लगवाते हैं। महिलाओं को अवेयर करते हैं।

सुनील की गाड़ी में एक बॉक्स रखा हुआ है, ये एक फर्स्ट ऐड बॉक्स है। इसमें सैनिटरी पैड का पैकेट भी रखा हुआ है।

पूछने पर सुनील बताते हैं, ‘मैं अभी 142 गांवों में घर-घर पीरियड चार्ट लगवा चुका हूं। सभी को पता होना चाहिए कि उनके घर की महिला को कब पीरियड आने वाला है। देश में करीब 60% महिलाएं टाइम पर पीरियड न आने की वजह से परेशान हैं। उन्हें PCOD की दिक्कत है।

अब पूरा देश, पूरी दुनिया बीबीपुर पंचायत को जान चुकी है। सुनील जागलान को जान चुकी है। यदि मैं टीचर होता, तो कौन जानता। इस बात की मुझे खुशी होती है कि शुरुआत मैंने अपने घर से, गांव से की और आज इसका परिणाम इतना बेहतर मिल रहा है।’

अगले बुधवार, 31 मई को खुद्दार कहानी में पढ़िए-
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बचपन से एक ही सपना था, जहाज में तभी बैठूंगा जब पायलट बनूंगा

स्कूल के दिनों में मैं क्लास बंक करके बाहर बैठे आसमान में उड़ती जहाजों को देखता रहता था। तब मेरा भी मन करता था कि जहाज में बैठूं। फिर तय किया कि अब तभी जहाज में बैठूंगा जब इसे खुद उड़ाऊंगा। आखिरकार मेरी तमन्ना पूरी हुई और पहली बार फ्लाइट में उसी दिन चढ़ा, जब पायलट बनने के लिए जा रहा था। पूरी स्टोरी खुद्दार कहानी के अगले एपिसोड में…

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