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दिल्ली करनाल हाईवे पूरी तरह बंद कर दिया है। दिल्ली को हरियाणा से जोड़ने वाले सिंघु बॉर्डर पर सैकड़ों की संख्या में पुलिसकर्मी और अर्धसैनिक बलों के जवान तैनात किए गए हैं। यहां दिल्ली वाले छोर पर दिल्ली पुलिस की कई टुकड़ियां, हरियाणा वाले छोर पर हरियाणा पुलिस और इनके बीच BSF, RAF(रैपिड एक्शन फोर्स) और CISF की तैनाती की गई है। जवानों की यह तैनाती पंजाब और हरियाणा के किसानों को किसी भी तरह से दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए की गई है।
पंजाब और हरियाणा के हजारों किसान बीते काफी समय से कृषि संबंधी नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं। इसी विरोध को आगे बढ़ाते हुए किसान संगठनों ने 26 नवंबर से ‘दिल्ली कूच’ का कार्यक्रम रखा है और इसमें शामिल होते हुए लाखों किसान अपने ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर दिल्ली की तरफ बढ़ रहे हैं। इन किसानों में सबसे बड़ी संख्या पंजाब और हरियाणा के अलग-अलग जिलों से आए किसानों की ही है।
किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए हरियाणा और दिल्ली पुलिस कई तरह की रणनीति अपना रही है। पुलिस ने दिल्ली-करनाल हाईवे को जगह-जगह बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया है और कई जगह तो नक्सलियों जैसी रणनीति अपनाते हुए सड़क तक खोद डाली है। सोनीपत जिले की गनौर तहसील का नजारा इसी कारण बिलकुल किसी नक्सली इलाके जैसा बन पड़ा है।
‘किसानों को रोकने के लिए सुरक्षाबलों ने सड़क खोदी’
जिस तरह बस्तर के कई नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे दिखाई पड़ते हैं, ठीक वैसे ही गड्ढे इन दिनों सोनीपत के नजदीक हाईवे पर दिख रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि बस्तर में ये गड्ढे नक्सलियों द्वारा किए जाते हैं, ताकि सुरक्षा बल के जवान उन तक न पहुंच सकें, जबकि सोनीपत में सड़क खोदने का काम खुद सुरक्षाबलों ने किया है, ताकि किसान इन सड़कों पर आगे न बढ़ सकें।
सड़क खोदने के साथ ही यहां पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए नक्सलियों जैसी एक अन्य रणनीति भी अपनाई है। हाइवे पर चलने वाले ट्रकों को रोककर पुलिसकर्मी ने आड़ा-तिरछा खड़ा करवा दिया गया है, जिसके चलते ये ट्रक ही कई किलोमीटर लंबे बैरिकेड बन गए हैं। किसानों का आरोप है कि ऐसा करके पुलिस आम ट्रक ड्राइवरों और उनकी निजी संपत्ति को अपनी ढाल की तरह वैसे ही इस्तेमाल कर रही है जैसे नक्सली आम लोगों को अपनी ढाल बनाने का काम करते हैं।
सिरसा के रहने वाले किसान नेता सुरेश ढाका बताते हैं, ‘हमने इतने सालों में ऐसा पहले कभी नहीं देखा कि किसी आंदोलन को रोकने के लिए पुलिस इस हद तक गई हो। आज करनाल में किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने आम ट्रक ड्राइवरों को अपनी ढाल बनाकर आगे खड़ा कर दिया था। वहां उनके लदे हुए ट्रक एक पुल पर खड़े करवा दिए थे और उनसे चाबियां छीन ली गई थीं, ताकि वे ट्रक हटा न सकें और इससे पूरी रोड जाम कर दी गई। लेकिन किसानों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने धक्के लगाकर ही ट्रकों को किनारे कर दिया और वहां लगे बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ गए।’
‘किसान अपना रास्ता बना ही लेंगे’
पंजाब और हरियाणा के हजारों किसान बीते दो दिनों से कई बैरिकेड पार करते हुए पानीपत से आगे बढ़ चुके हैं और दिल्ली के काफी नजदीक आ गए हैं। लेकिन सोनीपत में खुदी हुई सड़कों और कई किलोमीटर में खड़े ट्रकों से जाम हुई सड़क को ये किसान अपने ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ पार कर सकेंगे? ये पूछने पर कुरुक्षेत्र से आए किसान जसमेर सिंह कहते हैं, ‘पुलिस चाहे कितने भी गड्ढे खोद ले किसानों की संख्या इतनी ज्यादा है कि अगर वो एक-एक मुट्ठी भरकर मिट्टी भी इन गड्ढों में डालेंगे तो गड्ढे भर जाएंगे। ट्रकों को भी किसान हटाकर अपना रास्ता बना ही लेंगे, जैसे अब तक बनाते हुए यहां तक पहुंचे हैं, ऐसे ही दिल्ली तक भी पहुंच जाएंगे। हम पूरे महीने का राशन-पानी लेकर निकलें हैं। अब चाहे जितने भी दिन लगें, लेकिन बिना अपनी शर्तें मनवाए हम लौटने वाले नहीं हैं।’
नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों में इतना आक्रोश क्यों है? यह सवाल करने पर पंजाब के मोगा से आए किसान हरनाम सिंह कहते हैं, ‘किसान अपनी फसलों का बर्बाद होना तो झेल सकता है लेकिन अपनी नस्लों का बर्बाद होना नहीं झेल सकता। ये कानून हमारी नस्लों को बर्बाद करने वाले क़ानून हैं। आज पंजाब और हरियाणा का किसान खुश है तो इसका सबसे बड़ा कारण यहां की मंडी और MSP की व्यवस्था है। नए कानून में मंडी से बाहर खरीद होगी तो MSP की व्यवस्था वैसी ही हो जाएगी जैसी बिहार में है। वहां ऐसा ही कानून पहले से लागू है लेकिन वहां का किसान अपनी खेती छोड़ हमारे खेतों में काम करने आता है।’
MSP खत्म होने का डर इस किसान आंदोलन का एक सबसे बड़ा कारण है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी यह बात एक से अधिक बार कह चुके हैं कि नए कानून लागू होने के बाद भी MSP की व्यवस्था पहले की तरह ही बनी रहेगी, लेकिन किसान इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं। होशियारपुर से आए किसान दरबारा सिंह कहते हैं, ‘अगर सरकार की मंशा में कोई खोट नहीं है और मोदी जी जो बोल रहे हैं वो सच है तो फिर सरकार को MSP से कम की ख़रीद को एक दंडनीय अपराध बनाना चाहिए। हम यही तो मांग कर रहे हैं, सरकार हमारी मांग मान ले तो हम आंदोलन तुरंत वापस ले लेंगे।’
‘हमने कोई रेल नहीं रोकी, पर सरकार सुन नहीं रही’
इन्हीं मांगों को लेकर किसान पिछले दो महीनों से आंदोलन कर रहे हैं और सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर अब दिल्ली में प्रदर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। दोआब किसान संघर्ष समिति, जालंधर के उपाध्यक्ष मुकेश चंद्र कहते हैं, ‘हम लोग पिछले दो महीने से शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं। हमने रेल तक रोकी लेकिन कहीं कोई हिंसा नहीं हुई। लेकिन सरकार हमारी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं हुई। 13 नवंबर को जो मीटिंग केंद्र सरकार के साथ हुई मैं भी उसमें शामिल था। हमने अपना पूरा पक्ष वहां रखा लेकिन उसका भी कोई जवाब अब तक नहीं आया। ऐसे में हमारे पास दिल्ली कूच का ही आखिरी विकल्प था।’
एक तरफ़ पंजाब और हरियाणा के इन हजारों किसानों को पूरा विश्वास है कि वे किसी भी तरह दिल्ली पहुंच कर अपनी बात रखेंगे तो दूसरी तरफ पुलिसकर्मी और सुरक्षा बलों के जवान हैं जो मान रहे हैं कि इतनी भारी तैयारी के चलते किसान दिल्ली की सीमा में किसी भी सूरत में दाखिल नहीं हो सकेंगे। नाम न छापने की शर्त पर दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर तैनात एक अधिकारी कहते हैं, ‘मेरी दशकों की नौकरी में मैंने पहले कभी ऐसा नहीं देखा कि पुलिस ने ही सड़क खोद दी हो। ये इसलिए ही किया गया है कि किसान किसी भी हाल में दिल्ली में दाखिल न हो सकें।
फिर कई-कई किलोमीटर लंबा जो जाम सड़क पर लग रहा है, वह भी एक बफर बैरिकेड ही है। लोहे के बैरिकेड तो किसान तोड़ देंगे लेकिन जाम में फंसे जो लोग अपने-आप में बैरिकेड का काम करेंगे उसका किसान क्या करेंगे। अब ये सही हो या गलत, हमें यही आदेश हैं। किसानों को वापस लौटना ही होगा।’ इन अधिकारी की बात से उलट रोहतक के किसान हरवीर सिंह कहते हैं, ‘सरकार गोली मारने से ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकती। हम गोली खाने को भी तैयार हैं क्योंकि ये काले क़ानून भी हमारे लिए मौत के फंदे जैसे ही हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान आज कंधे से कंधा मिलकर एक-दूसरे के साथ खड़े हैं। अब चाहे जो हो, सरकार सड़क खोदे या पूरी फौज उतार दे, हम दिल्ली पहुंच के रहेंगे और अपनी बात मनवा के ही लौटेंगे।’
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