आज कल शहरों में घर के सामने या छत पर गार्डनिंग और प्लांटिंग का क्रेज बढ़ा है। अब तो गांवों में भी लोग अपने घर की खूबसूरती के लिए गार्डनिंग कर रहे हैं। हालांकि कुछ साल पहले तक लोग या तो बड़े प्लांट लगाते थे या फिर सजावट के लिहाज से फ्लॉवर और शो प्लांट्स लगाते थे। जिन्हें गमले में आसानी से सर्वाइव किया जा सकता था, लेकिन अब ट्रेंड बदल रहा है। अब आप एक छोटे गमले में भी वर्षों पुराने पीपल या बरगद के प्लांट को लगा सकते हैं। इस तरह के प्लांट्स को बोनसाई प्लांट कहते हैं।
मार्केट में भी इस तरह के प्लांट्स की डिमांड बढ़ रही है। जिसको देखते हुए रायपुर में रहने वाली पूर्णिमा जोशी ने बोनसाई प्लांट का स्टार्टअप शुरू किया है। वे देशभर में ऐसे प्लांट्स की डिलीवरी करती हैं। उनके पास फिलहाल 500 से ज्यादा अलग-अलग वैराइटी के प्लांट हैं। इससे सालाना 6-7 लाख रुपए उनका बिजनेस हो जाता है।
बचपन से प्लांटिंग और गार्डनिंग में दिलचस्पी रही
32 साल की पूर्णिमा मूल रूप से मध्य प्रदेश के सागर की रहने वाली हैं। शादी के बाद अब रायपुर शिफ्ट हो गई हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और कुछ सालों तक नौकरी भी की है। पूर्णिमा कहती हैं कि मेरा बचपन से लगाव प्लांटिंग को लेकर था। मेरे पिता जी गार्डनिंग और प्लांटिंग करते थे। वे बोनसाई प्लांट भी डेवलप करते थे। उनसे ही मैंने बहुत कुछ सीखा था। इसलिए यह तो पहले से तय था कि आगे इसी फील्ड में काम करना है, लेकिन इतना जल्दी काम शुरू करने का प्लान नहीं था।
वे कहती हैं कि शादी के बाद 2012 में मैं रायपुर आ गई। यहां एक हाई स्कूल में मैंने पढ़ाना शुरू कर दिया और साथ में घर पर प्लांटिंग भी करती रही। हम जहां भी घूमने जाते थे वहां से कुछ न कुछ प्लांट लाते थे और फिर उसे बोनसाई के रूप में डेवलप करना शुरू कर देते थे। साल 2017-2018 में मैंने रियलाइज किया कि हमारे पास अच्छी संख्या में प्लांट डेवलप हो गए हैं। ऐसे में हमें प्रोफेशनल लेवल पर काम करना चाहिए।
2018 में घर से ही की स्टार्टअप की शुरुआत
साल 2018 में पूर्णिमा ने बोनसाई हाट नाम से खुद का स्टार्टअप लॉन्च किया। इसकी मार्केटिंग के लिए उन्होंने सोशल मीडिया की मदद ली। यहां उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स मिला। कुछ समय बाद उन्होंने bonsaihaat.in नाम से खुद की वेबसाइट डेवलप करवाई और देशभर में ऑनलाइन मार्केटिंग करने लगीं।
वे बताती हैं कि माउथ पब्लिसिटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए जैसे-जैसे लोगों को हमारे बारे में पता चला, हमारा काम आगे बढ़ता गया। दिन-पर-दिन ऑर्डर्स की संख्या भी बढ़ती गई। इसके बाद मैंने नौकरी भी छोड़ दी और पूरी तरह से अपने स्टार्टअप के लिए काम करने लगी।
बोनसाई प्लांट के लिए तैयार की खास मिट्टी
पूर्णिमा कहती हैं कि रायपुर का मौसम थोड़ा अलग है। यहां गर्मी ज्यादा पड़ती है और लंबे समय तक इसका असर रहता है। इस लिहाज से बोनसाई प्लांट को तैयार करने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। यहां मिट्टी कम वक्त में ही सूख जाती है। इस वजह से ज्यादातर प्लांट बोनसाई के रूप में कन्वर्ट नहीं हो पाते। इसको लेकर मैंने अलग-अलग सोर्सेज से जानकारी जुटानी शुरू की, स्टडी और रिसर्च की।
इसके बाद पूर्णिमा ने बोनसाई प्लांट के लिए अलग से एक सॉएल (मिट्टी) तैयार करने का प्लान किया। उन्होंने कई सारे ट्रायल और एक्सपेरिमेंट के बाद एक ऐसी सॉएल डेवलप की जिसमें किसी भी क्लाइमेट में बोनसाई प्लांट लगाया जा सकता है और लंबे वक्त तक सर्वाइव भी किया जा सकता है। इस काम में उनके पति आदित्य जोशी का काफी सपोर्ट मिला।
50 साल से भी ज्यादा उम्र के हैं प्लांट
फिलहाल पूर्णिमा के पास 500 प्लांट हैं। इसमें 200 बोनसाई प्लांट तैयार हैं। जबकि 300 प्लांट प्री बोनसाई हैं यानी अभी वे डेवलपिंग स्टेज में हैं। इसमें पीपल, बरगद, आम, अमरूद, नीम, यूकेलिप्टस सहित 40 से ज्यादा वैराइटी के प्लांट हैं। ज्यादातर प्लांट की एज 10 साल से ज्यादा की है। कई प्लांट तो 50 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। इनकी साइज को लेकर वे बताती हैं कि अभी उनके पास 3 इंच से लेकर 70 इंच तक के प्लांट हैं। अगर कीमत की बात की जाए तो 500 रुपए से इसकी शुरुआत होती है। जबकि कई प्लांट्स की कीमत हजारों में भी है। यह प्लांट की वैराइटी, उसकी एज और साइज पर डिपेंड करता है।
पूर्णिमा कहती हैं कि मैं देशभर में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बोनसाई मॉडल पहुंचाना चाहती हूं। इसके लिए जल्द ही ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड में ट्रेंनिग शुरू करने वाली हूं। साथ ही आगे एक बोनसाई फार्म भी डेवलप करना है, जिसमें हजारों की संख्या में बोनसाई हों। ताकि बड़े लेवल पर इसकी मार्केटिंग की जा सके और लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा सके।
बोनसाई प्लांट कैसे तैयार करें, इसकी प्रोसेस क्या है?
पूर्णिमा जोशी बताती हैं कि बोनसाई प्लांट डेवलप करना एक आर्ट वर्क है। इसके लिए वक्त और धैर्य दोनों की जरूरत होती है। एक प्लांट को तैयार करने में कम से कम 3 से 4 साल का वक्त लगता है। कुछ प्लांट तो 7 साल में भी तैयार होते हैं। बोनसाई डेवलप करने के लिए सबसे पहले हमें एक स्वस्थ प्लांट की जरूरत होती है। फिर प्लांट की टैप रूट यानी मोटी और बड़ी रूट की कटिंग करते हैं। फिर उसकी छोटी रूट की डेवलप करते हैं। उसके बाद हम उस प्लांट की प्राइमरी और सेकेंडरी ब्रांचेज डेवलप करते हैं।
इसके बाद प्लांट को विकसित होने के लिए एक से दो साल तक गमले में छोड़ दिया जाता है। बीच में थोड़े दिन की अंतराल पर उसकी ब्रांचेज की ट्रिमिंग और कटिंग की जाती है। प्लांट को मनमुताबिक आकृति में ढालने के लिए उसकी ब्रांच में वायरिंग की जाती है। इसमें कुल तीन से चार साल तक का वक्त लगता है। इसलिए इसकी रेगुलर मॉनिटरिंग जरूरी होती है। अगर प्लांट की रूट्स बड़ी हो रही हो तो उसे गमले से वापस निकालकर फिर से कटिंग की जाती है।
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