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टीकरी बॉर्डर पर एक कैंप में रोटियां सेक रहीं शांति अब अपनी सुरक्षा और सहूलियत को लेकर निश्चिंत हैं। अब वे जिस कैंप में हैं उसमें पक्का टॉयलेट, गीजर लगा बाथरूम, CCTV कैमरा और सबमर्सिबल पंप है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को अब तक ढाई महीने से अधिक वक्त बीत चुका है। न सरकार पीछे हटने को तैयार है और न ही आंदोलनकारी किसान। दोनों के बीच रस्साकशी चल रही है। इन सबके बीच बॉर्डरों पर अब किसानों के पक्के निर्माण दिखने लगे हैं, जिनमें घर की तमाम सुविधाएं मौजूद हैं।
शांति कहती हैं, 'पहले हमें वॉशरूम जाने में परेशानी होती थी, हम दिन भर पानी नहीं पीते थे ताकि टॉयलेट न जाना पड़े। अब हमारे लिए पक्का टॉयलेट बन गया है, अब हमें कोई टेंशन नहीं है।' इस कैंप की व्यवस्था संभाल रहे जगरूप सिंह बताते हैं, 'हमने लेडीज के रुकने के लिए शेड भी बनाया है। वॉशरूम की सुविधा होने से महिलाएं बेझिझक रुक सकेंगी।' इस कैंप में पानी के लिए सबमर्सिबल पंप भी लगाया गया है और टॉयलेट के लिए पक्के गटर बनाए गए हैं। बिजली पास के ही ट्रांसफार्मर से ली जा रही है।
कैंप संचालक मनजोत सिंह बताते हैं, 'पंप और टॉयलेट पर करीब एक लाख रुपए खर्च हुए हैं। आती हुई गर्मियों को देखते हुए हम टीन शेड लगाने और कूलर लगाने की भी व्यवस्था कर रहे हैं। तीन से चार लाख रुपए का खर्च और आ सकता है।' मनजोत कहते हैं, 'हमने CCTV कैमरे भी लगवाए हैं जिनकी मोबाइल से मॉनिटरिंग होती है। यदि कभी पुलिस आती है तो हमारे पास वीडियो उपलब्ध रहेंगे। हम बैकअप भी सेव कर रहे हैं।'
जगरूप के मुताबिक, एक लॉन भी विकसित किया जा रहा है, ताकि किसान आराम से बैठ सकें। इसके अलावा पानी को साफ करने के लिए फिल्टर भी लगाए जा रहे हैं। जगरूप कहते हैं, 'हम यहां लंबा टिकने की तैयारी कर रहे हैं। हमारे पास बैठे रहने के अलावा अब कोई और रास्ता नहीं है। हम पीछे नहीं हटेंगे, भले ही कई साल यहां बैठना पड़े। इस्तेमाल किए गए पानी के लिए पास ही बीस फिट गहरा गड्ढा भी खोदा जा रहा है। जल्द ही ऐसे पक्के टॉयलेट और भी बनाए जाएंगे।'
लेकिन, इसके लिए पैसा कहां से आ रहा है? इस सवाल पर किसान नेताओं का कहना है कि हमने अभी किसी योजना के तहत ऐसे पक्के निर्माण नहीं कराए हैं। इन नेताओं का कहना है कि संयुक्त मोर्चे में शामिल अलग-अलग संगठन अपने स्तर पर कुछ पक्के निर्माण करवा रहे हैं। कुछ लोग निजी तौर पर मदद कर रहे हैं। टीकरी के अलावा सिंघु बॉर्डर पर भी इस तरह के पक्के मोर्चे बन रहे हैं, लेकिन अभी इनकी संख्या कम है और ज्यादातर किसी न किसी के निजी प्रयास से बने हैं।
हम यहीं रहेंगे, चाहे जब तक रहना हो
पास ही चाय का लंगर चलाने वाले सतपाल सिंह के समूह ने भी अब टीन डाल ली है और सीमेंट की ईंटों से दीवार खड़ी कर ली है। वे कहते हैं, 'बारिश में लंगर का सामान भीग गया था तो लोगों के सहयोग से हमने ये पक्का निर्माण कर लिया। सर्दियां तो बीत गईं, अब हम गर्मियों की तैयारी कर रहे हैं। गर्मी-बरसात सब यहीं कटेगा।' वे कहते हैं, 'इस निर्माण पर हमारे एक लाख रुपए से अधिक खर्च हो गए हैं। ये पक्की ईंटें हमें दान में मिली हैं। हमें समाज का पूरा सहयोग मिल रहा है।' आंदोलन के लंबा खिंचने पर वो कहते हैं, 'हम यहां से निराश नहीं जाएंगे। सरकार सोच रही है कि फसल काटने का समय आ रहा है, किसान लौटेगा, लेकिन हम नहीं लौटेगे। हम यहीं रहेंगे, चाहे जब तक रहना पड़े।'
टीकरी बॉर्डर पर ट्रॉलियां अब पहले से अधिक व्यवस्थित हैं। यहां रोहतक बाइपास के किनारे खाली पड़ी जमीन पर अब किसान पार्क बना रहे हैं। जगह-जगह जमीन साफ करके मिट्टी डाल दी गई है। फूलदार पौधे, हरी घास और कुर्सियां लगा दी गई हैं। आरामदायक कुर्सियों पर बैठकर चर्चा कर रहे किसान कहते हैं, 'अब जब यहां रहना ही है तो अच्छे से रहेंगे। खाली जमीन पर सब्जियां और फूल उगाएंगे।'
मोगा से आए घोलिया खुर्द गांव के सरपंच ने टीकरी बॉर्डर पर जमीन साफ करके किसान हवेली बनाई है जो खूब चर्चित हो रही है। यहां सड़क किनारे सीढ़ियां बनाकर फूलदार पौधे गमलों में लगाए गए हैं। हरी घास का लॉन बनाया गया है और एडवेंचर टेंट भी लगाए गए हैं। आंदोलन में शामिल युवा यहां से तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं।
यहां भी पानी के लिए सबमर्सिबल पंप लगाया गया है और पश्चिमी शैली के टॉयलेट भी लगाए गए हैं। बड़ा पंडाल बनाया जा रहा है जिसमें गर्मियों में लोग आराम से रह सकें। साथ ही छोटे-छोटे कैंप भी बनाए जा रहे हैं।
गुरसेवक कहते हैं, 'जैसे-जैसे जरूरत होगी, सुविधाएं विकसित की जाएंगी। जरूरत ही आविष्कार की जननी होती है।' वे कहते हैं, 'किसान मिट्टी से सोना उगाने की शक्ति रखते हैं। अब हमें यहीं रहना है तो अच्छे से रहेंगे। हम पार्क बना रहे हैं। वॉलीबॉल कोर्ट भी बना रहे हैं।' वे कहते हैं, 'गर्मियों के लिए कपड़े वाले तंबू लगा रहे हैं। सौ-दो सौ लोग आते हैं तो उनके रहने की पूरी व्यवस्था है। जो भी सहूलियतें घर में होती हैं, वो सब किसान हवेली में मिलेंगी।'
आंदोलन कब तक चलेगा, इस सवाल पर वो कहते हैं, 'जब तक सरकार चाहेगी। हमारे पास यहां बैठने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। सच की जीत के लिए हमें शांति और सब्र से बैठे रहना होगा। हम बस यहीं बैठे रहेंगे। हमें किसी भी हालत में निराश नहीं होना है। यहां रहने की व्यवस्था अच्छी होगी तो लोग खुश रहेंगे।'
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