प्लास्टिक वेस्ट से हमारी सेहत के साथ-साथ पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचता है। पिछले कुछ सालों में प्लास्टिक वेस्ट को लेकर अवेयरनेस बढ़ी है। सरकार के साथ-साथ स्टार्टअप और इंडिविजुअल लेवल पर भी प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काम हो रहा है, लेकिन अभी भी इसकी रफ्तार काफी धीमी है। देश में एक चौथाई प्लास्टिक वेस्ट ही रीसाइकिल्ड हो पाता है। इससे आप समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी चुनौती है।
प्लास्टिक वेस्ट को कम करने का एक तरीका यह भी है कि हम डेली लाइफ में ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें। पुणे में रहने वाले सूरज सैद ने ऐसी ही एक पहल की है। वे देश भर में ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग कर रहे हैं। हर महीने उन्हें 250 से 300 ऑर्डर मिल रहे हैं। उनकी कंपनी का टर्नओवर 10 लाख रुपए है।
26 साल के सूरज एक मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने 2015 में इंजीनियरिंग और 2017 में UK से बिजनेस मैनेजमेंट में मास्टर्स की पढ़ाई की है। यानी टेक्निकल फील्ड के साथ मार्केटिंग में भी उनकी अच्छी समझ है।
UK से लौटने के बाद सूरज भारत में वेस्ट मैनेजमेंट पर काम करने वाली एक कंपनी के साथ जुड़ गए। यहां करीब एक साल तक उन्होंने काम किया। इस दौरान कई शहरों में उन्होंने विजिट की और वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काफी कुछ उन्हें सीखने को मिला।
सूरज बताते हैं कि प्लास्टिक वेस्ट हम सबके लिए बड़ी चुनौती है, ये बात तो हमने किताबों में और रिसर्च पेपर्स में पढ़ी थी, लेकिन असल स्थिति तो ग्राउंड पर काम करने के दौरान ही मालूम हुई। शायद ही कोई शहर होगा जहां वेस्ट का ढेर न लगा हो, पहाड़ न बना हो।
स्टार्टअप से पहले अवेयरनेस की शुरुआत
सूरज कहते हैं कि अलग-अलग शहरों में घूमने के दौरान हमें पता चला कि वेस्ट प्रोडक्ट के पीछे लोगों में अवेयरनेस की कमी भी बड़ी वजह है। सड़कों पर या सार्वजनिक जगहों पर लोग चाय के कप, प्लास्टिक प्लेट या चिप्स-कुरकुरे के पैकेट्स फेंक देते हैं। ज्यादातर दुकानों के पास डस्टबिन भी नहीं होता। इस वजह से वेस्ट इधर से उधर पड़े रहते हैं या नालियों से होकर नदी या तालाबों में मिल जाते हैं। इससे वाटर पॉल्यूशन भी बढ़ता है।
वे कहते हैं, 'अलग-अलग जगहों पर जाने के बाद हमें रियलाइज हुआ कि लोगों को जागरूक किए बिना इस परेशानी को कम करना मुमकिन नहीं है। सरकार चाहे कितना भी पैसा खर्च कर दें या फैसिलिटी दे दें, जब तक लोग खुद पहल नहीं करते तब तक कुछ नहीं हो सकता।'
इसके बाद सूरज और उनके दोस्तों ने एक टोली बनाई। वे लोग अलग-अलग जगहों पर जाकर लोगों को वेस्ट प्रोडक्ट को लेकर जागरूक करने लगे। उन्होंने ठेले लगाने वालों को डस्टबिन प्रोवाइड किए। सोशल मीडिया पर ग्रुप बनाकर वीडियो-फोटो शेयर किए। नदियों और तालाबों की सफाई शुरू की। कई वॉलेंटियर्स अपने साथ जोड़े और ऑफिस के बाद जो भी वक्त मिलता, उसे जागरूकता फैलाने में लगाने लगे।
कई लोग जागरूक थे, लेकिन उनके पास विकल्प की कमी थी
भास्कर से बात करते हुए सूरज बताते हैं कि अवेयरनेस कैंपेन के दौरान हमें पता चला कि कई लोग ऐसे हैं जो जागरूक हैं। प्लास्टिक वेस्ट के नुकसान के बारे में वे जानते हैं, लेकिन उनके पास विकल्प नहीं हैं कि अपनी डेली लाइफ में उसे रिप्लेस कर सकें। कुछ जगहों पर विकल्प उपलब्ध भी हैं तो वो आम आदमी की पहुंच से दूर हैं। इस वजह से भी लोग इस मुहिम से पिछड़ जा रहे हैं।
कई लोगों ने सूरज को सुझाव दिया कि अवेयरनेस के साथ डेली लाइफ में यूज होने वाले प्रोडक्ट भी उपलब्ध कराइए, ताकि लोग उसका इस्तेमाल कर सकें। सूरज को भी यह सुझाव अच्छा लगा। उन्होंने रियलाइज किया कि कॉमर्शियल लेवल पर अगर इस काम को किया जाए तो अच्छा रिस्पॉन्स मिलेगा, ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट्स की डिमांड है।
2018 में दोस्तों के साथ मिलकर शुरू किया स्टार्टअप
इसके बाद सूरज और उनके दोस्तों ने ऐसे वेस्ट प्रोडक्ट की लिस्ट तैयार करनी शुरू की जिनका बड़े लेवल पर लोग इस्तेमाल करते हैं। फिर मार्केट एनालिसिस और रिसर्च के बाद सितंबर 2018 में सूरज ने EcoBuddy नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की। सबसे पहले उन्होंने कुछ लोकल कारीगरों से डील की जो ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट बनाते थे। इसके बाद सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उन प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग शुरू की।
सूरज कहते हैं कि हमने बांस से बने ब्रश, टंग क्लीनर, कॉटन बैग जैसे प्रोडक्ट के साथ मार्केटिंग शुरू की। पहले महीने में ही हमारा प्रयास सफल रहा और हम कई शहरों में लोगों तक पहुंचने में कामयाब रहे। पहले साल करीब 15 लाख रुपए का बिजनेस हमने किया था।
बिजनेस की रफ्तार बढ़ी तो कोरोना ने ब्रेक लगा दिया
साल 2020 की शुरुआत तक सूरज का काम जम गया। उन्होंने प्रोडक्ट की संख्या भी बढ़ा दी। अलग-अलग राज्यों में कारीगरों से उनका टाइअप भी हो गया, लेकिन इसी बीच कोरोना की एंट्री हो गई। लॉकडाउन लगा और कारीगरों का काम बंद हो गया। इस वजह से सूरज का भी काम प्रभावित हुआ। उन्हें ऑर्डर्स मिल रहे थे, लेकिन उनके पास प्रोडक्ट की कमी थी।
हालांकि इस दौरान भी उन्होंने अवेयरनेस कैंपेनिंग जारी रखी। सोशल मीडिया पर लगातार कैम्पेन करते रहे। जिसका उन्हें फायदा भी हुआ। अब उनका बिजनेस फिर से रफ्तार पकड़ रहा है। हर महीने 250 से 300 तक ऑर्डर्स उन्हें मिल रहे हैं।
कैसे करते हैं काम, क्या है मार्केटिंग मॉडल?
सूरज कहते हैं कि फिलहाल हमारे पास जो भी प्रोडक्ट हैं, वे हम खुद बनाने की बजाय आउटसोर्सिंग करते हैं। देश के अलग-अलग राज्यों में हमने स्थानीय कारीगरों से डील की है। जो हमारे लिए हमारी डिमांड के मुताबिक प्रोडक्ट बनाते हैं। इनमें साउथ, नॉर्थ, ईस्ट हर जगह के कारीगर शामिल हैं। इसके बाद हम सभी प्रोडक्ट को अपने यहां लाते हैं। उनकी क्वालिटी टेस्ट करते हैं। फिर कस्टमर्स की डिमांड के मुताबिक उनकी डिलीवरी की जाती है।
फिलहाल सूरज बांस से बने टूथ ब्रश, टंग क्लीनर, कॉटन बैग, कॉफी मग सहित दर्जन-भर ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट की ऑनलाइन मार्केटिंग कर रहे हैं। हालांकि उनका खुद का ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म नहीं है। वे फ्लिपकार्ट, अमेजन सहित दर्जन भर प्लेटफॉर्म से अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर रहे हैं। अभी 7 कारीगरों के ग्रुप से उनका टाइअप है, जिससे 2 हजार से ज्यादा कारीगर जुड़े हैं। इस स्टार्टअप के जरिए उनकी भी अच्छी खासी कमाई हो जाती है।
अगर आप भी इस तरह के स्टार्टअप की प्लानिंग कर रहे हैं तो यह स्टोरी आपके काम की है
दो दोस्त रेनाता और श्रेया ने ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट को लेकर एक पहल की है। दोनों ने अपने स्टार्टअप के जरिये ईकोफ्रेंडली बॉक्स लॉन्च किया है। इसमें आप अपनी जरूरत की बहुत सारी चीजें अपनी पसंद से ऐड कर सकते हैं। यानी एक ही बॉक्स में आप अपनी जरूरत की चीजें घर मंगा सकते हैं। पिछले एक साल में उन्होंने इससे 80 लाख का बिजनेस किया है। (पढ़िए पूरी खबर)
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.