संडे जज्बातभगवान ऐसी औलाद किसी को मत देना:बेटा-बेटी ने जमीनें हड़पीं, मार-पीट कर घर से निकाला, पति मरे तो मुखाग्नि भी नहीं दी

2 महीने पहलेलेखक: मंजीत कौर
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पापा आर्मी ऑफिसर थे। सात-भाई बहनों में सबसे छोटी। खूब-प्यार दुलार मिला। रईस परिवार में शादी हुई। 25 एकड़ जमीन, 100 भैंसें, अपना घर, गाड़ी… सबकुछ था मेरे पास, लेकिन आज एक रुपया भी नहीं है। जमीन-जायदाद सब कुछ बच्चों ने हड़प लिए और मुझे घर से निकाल दिया।

मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि अपने बच्चे ऐसा कैसे कर सकते हैं। वो भी अपनी मां के साथ, लेकिन यही हकीकत है। वृद्धाश्रम में रहती हूं। गुड्डे-गुड्डियों के साथ मन बहलाती हूं। ये ही मेरी औलाद हैं। कम से कम इन पर इतना भरोसा तो है कि ये कभी मेरा साथ नहीं छोड़ेंगे।

अच्छा नहीं लगता है बैठकर खाना इसलिए वृद्धाश्रम में सिलाई-बुनाई करती हूं।
अच्छा नहीं लगता है बैठकर खाना इसलिए वृद्धाश्रम में सिलाई-बुनाई करती हूं।

मैं मंजीत कौर, पंजाब के चमकौर साहिब की रहने वाली हूं। पापा आर्मी में डॉक्टर थे। हर दिन दर्जनों लोग मेरे घर आते थे और खाना खाते थे। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। भाइयों की भी नौकरी लग गई थी।

परिवार में छोटी होने की वजह से मुझे सबका प्यार मिला। जिस चीज की डिमांड की वो मिला। हर शौक पूरा किया। तब गांव की लड़कियां पढ़ने नहीं जाती थीं, लेकिन मुझे बाहर भेजकर ग्रेजुएशन कराया।

इसके बाद मेरी शादी हो गई। पापा ने अपनी तरह ही रईस परिवार में शादी की। पति के पास बहुत जमीनें थीं। खूब खेती-बाड़ी होती। बहुत सारी फसलें होतीं। मैं भी हंसी-खुशी पति का साथ देती। खेतों पर भी जाती। मजदूरों से काम कराती।

कुछ साल बाद बेटी हुई, फिर बेटा हुआ। मुझे लगा और क्या चाहिए। दुनिया की हर खुशी तो है मेरे पास। बहुत प्यार-दुलार से बेटा-बेटी को पाला। उन्हें पढ़ाया-लिखाया। बेटी की अच्छी जॉब भी लग गई। इसके बाद बेटी की शादी कर दी। लड़का अमेरिका में जॉब करता था। उसके ससुराल के लोग भी अमेरिका रहते थे।

बेटी की शादी के कुछ साल बाद मैंने सोचा कि अब बेटे की शादी भी कर देनी चाहिए। वक्त रहते अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दूं। एक अच्छे घर की पढ़ी-लिखी लड़की से बेटे की शादी करा दी। सोचा इतनी सारी संपत्ति है। आगे की जिंदगी आराम से कटेगी।

शुरुआत में बहू घर के काम नहीं करती थी। मैंने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैं अकेले ही सारे काम करती रही। सुबह उठकर झाड़ू-पोंछा करना, नाश्ता बनाना, मवेशियों को चारा डालना, खेत पर जाना और घर लौटकर फिर खाना-पीना बनाना।

मुझे लगता था कि नई-नई बहू है। धीरे-धीरे काम सीख जाएगी। मुझे उससे कुछ कहना नहीं पड़ेगा।

कुछ महीने बाद मुझे लगा कि बहू से काम के लिए बोलना चाहिए। सब कुछ अकेले मुझसे नहीं हो पा रहा था। एक दिन मैंने बहू से कहा कि वह रसोई के काम में थोड़ी मदद कर दे। उसने साफ-साफ मना कर दिया। उसका कहना था कि वह घर में कोई काम नहीं करेगी। आपको करना है तो करिए, नहीं तो नौकर लगा लीजिए।

मुझे लगा कि बहू से लड़ना ठीक नहीं है। घर में कलह मचेगी, लोगों के बीच अपनी ही बदनामी होगी। सब मेरी बहू को उल्टा-सीधा बोलेंगे। मैं चुप रह गई। पति का भी कहना था कि बहू से कुछ मत कहो। जितना हो सके हम दोनों मिलकर करेंगे।

कुछ महीने बाद बहू रुपए मांगने लगी। मना करने पर आत्महत्या की धमकी देने लगती। मैं और पति डर जाते थे और उसे रुपए दे देते थे। धीरे-धीरे उसकी यह रोज की आदत हो गई। हर दिन उसे कुछ न कुछ रुपए चाहिए होते। लड़ाई-झगड़े की वजह से मैं भी मना नहीं करती।

एक दिन मैंने बेटे से कहा तो उसने भी यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि वो बीच में नहीं आएगा। मैं अपनी पत्नी से लड़ाई नहीं कर सकता। मेरे पति का भी कहना था कि जो कुछ है इन बच्चों का ही तो है। दे दो इन्हें। कुछ बोलोगे तो घर का माहौल खराब होगा।

कुछ महीने बाद पैसे खत्म हो गए। पति ने कहा तुम कुछ मत बोलो। वे जमीनें बेचकर बहू को पैसा देने लगे। मुझे भी लगा कि चलो कम से कम घर में शांति तो रहेगी, लेकिन मैं गलत थी।

एक दिन बहू ने हद कर दी। उसने मेरे ऊपर हाथ उठा लिया। ऊपर से धमकी भी देने लगी कि चुपचाप रहो नहीं तो पुलिस से शिकायत करके जेल भेजवा दूंगी। बेटे से यह बात बताई तो उसने मुंह फेर लिया।

पति ने कहा कि अब हमारा यहां रहना ठीक नहीं है। हम इतनी बेइज्जती नहीं सह सकते। यह बात जब बेटी को पता चली तो एक दिन दामाद घर आया। उन्होंने कहा कि पंचकुला में हमारा घर खाली पड़ा है। आप लोग वहीं चलिए।

पति बेटी के घर चले गए, लेकिन मैं नहीं गई। मैं इतना कुछ होने के बाद भी बेटे-बहू को नहीं छोड़ना चाहती थी। कुछ दिनों बाद बहू ने साफ-साफ कह दिया कि आप भी यहां से चले जाओ। वर्ना जबरन घर से निकाल दूंगी।

मजबूरन मैं भी बेटी के घर चली गई। हम दोनों पति-पत्नी वहां अच्छे से रहने लगे। बेटी ने हमारा खूब ख्याल रखा। दामाद भी हमारी देखभाल करता था। उधर पति की तबीयत बिगड़ने लगी। बहू और बेटे के व्यवहार से उन्हें गहरा सदमा लगा था। वे उससे उबर नहीं पा रहे थे। कुछ ही महीने में वे दिल के मरीज हो गए।

एक दिन बेटी बोली कि अब वो यहां नहीं रहेगी। उसे अपने परिवार के पास अमेरिका जाना है। मैंने कहा- ठीक है चली जाओ। बेटी और दामाद दोनों अमेरिका चले गए। हम पति-पत्नी अकेले हो गए। कुछ समय बाद मुझे फिर से बेटे की याद आने लगी। मां हूं न… मुझे लगा अब बेटा-बहू मान गए होंगे। मुझे उनके पास लौट जाना चाहिए।

एक दिन मैं बेटे के घर गई। बहू ने मुझे देखते ही दरवाजा बंद कर दिया। मैं काफी देर तक आवाज देती रही, रोती रही, लेकिन उसका दिल नहीं पसीजा। रो-रोकर मैं वापस पति के पास लौट आई।

यहां पति की हालत यह थी कि उन्हें पेसमेकर लगा था। कुछ समय बाद हम दोनों को लगने लगा कि हम यहां अकेले नहीं रह सकते।

पति ने कहा कि अकेले रहने से अच्छा है हम बेटी के ससुराल में जाकर रह लेते हैं। मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कहां जाएं। हम अपनी जमीन बेच चुके थे। बची हुई जमीन बेटी को दे चुके थे।

मैं वृद्धाश्रम में दो से तीन दिन में एक स्वेटर तैयार कर देती हूं। खाना बनाने में भी मदद करती हूं।
मैं वृद्धाश्रम में दो से तीन दिन में एक स्वेटर तैयार कर देती हूं। खाना बनाने में भी मदद करती हूं।

मैंने पति से कहा कि पहले आप जाओ। कुछ दिन वहां रहो। सब कुछ ठीक होगा तो मैं भी वहां आऊंगी। वे बेटी के ससुराल चले गए। एक महीने बाद उनकी खबर मिलनी बंद हो गई। जब मैंने कुछ लोगों से पता कराया तो पता चला कि पति को उन लोगों ने वृद्धाश्रम भेज दिया है।

मैं भी उसी वृद्धाश्रम में चली गई। पति के साथ रहने लगी। कुछ दिनों बाद पति का पेसमेकर खराब हो गया। मैंने इधर-उधर मदद के लिए गुहार लगाई, लेकिन किसी ने साथ नहीं दिया। 2017 में पति की मौत हो गई। पति की मौत के बाद मैं एकदम अकेली हो गई। ना ठीक से खा पाती, ना सो पाती। दिन-रात रोते रहती।

न तो कभी बेटे का फोन आया ना बेटी का। ना उनके बच्चों का। बेटे और बेटी ने सारी जमीनें लेकर हमें लावारिस छोड़ दिया। पति की मौत के बाद भी बेटा-बेटी नहीं आए। उन्हें मुखाग्नि तक नहीं दी। आज मेरे हालात ऐसे हैं कि बच्चे मुझे लेने भी आएंगे, तो मैं उनके साथ नहीं जाऊंगी।

जिसके पापा आर्मी में डॉक्टर थे। पति के पास ढेर सारी जमीनें थीं। आज वो इस हालत में है। भगवान ऐसी औलाद किसी को मत देना।
जिसके पापा आर्मी में डॉक्टर थे। पति के पास ढेर सारी जमीनें थीं। आज वो इस हालत में है। भगवान ऐसी औलाद किसी को मत देना।

मैं यहीं रहूंगी। कम से कम यहां शांति और प्यार तो है। अभी कुछ दिन पहले मेरा ऑपरेशन हुआ था। बेटा-बेटी या भाई-बहन कोई देखने-पूछने नहीं आया। क्या मतलब है ऐसी औलाद होने का। अब तो लगता है औलाद होने से बेहतर है, औलाद का नहीं होना।

यहां मैं कैरम पर हाथ चला लेती हूं, बुनाई भी कर लेती हूं, कॉपी में कुछ फूल पत्तियां बनाकर उनमें रंग भरने लगती हूं। ताकि जिंदगी कुछ तो रंगीन सी लगे। नहीं तो दूर-दूर तक अंधेरा है।

मंजीत कौर ने ये सारी बातें भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की है...

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