एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया। इस बार बजट में ग्रीन ग्रोथ पर जोर दिया गया है। ग्रीन ग्रोथ यानी इकोनॉमिक डेवलपमेंट के साथ ही एनवायरमेंट का भी विकास। आप सोच रहे होंगे कि पॉजिटिव स्टोरी में हम ग्रीन ग्रोथ की बात क्यों कर रहे हैं।
दरअसल, इसी की एक बानगी देखने के लिए मैं जयपुर के ‘बाइस गोदाम’ एरिया पहुंचा, जहां मेरी मुलाकात 30 साल के कपिल मेंघरानी से होती है, जो ग्रीन बिल्डिंग बनाने वाली कंपनी 'Econaur' के फाउंडर हैं। 4 साल में इन्होंने 50 लाख का बिजनेस खड़ा कर लिया है। 73 कंपनियों को अब तक 50 करोड़ का बिजनेस दे चुके हैं।
सुबह के करीब 11 बज रहे हैं। कपिल अपनी टीम के साथ मीटिंग कर रहे हैं, उन्हें ग्रीन प्रोजेक्ट के बारे में कुछ समझा रहे हैं।
कपिल के ऑफिस में तीन व्हाइट बोर्ड लगे हुए हैं, जिन पर ग्रीन बिल्डिंग के कॉन्सेप्ट लिखे हुए हैं। उनकी टीम के कुछ मेंबर इससे रिलेटेड प्रोडक्ट को वेबसाइट पर फिल्टर कर रहे हैं, जबकि कुछ मेंबर नए क्लाइंट्स के साथ मीटिंग में बिजी हैं।
कपिल से जब मेरी बातचीत का सिलसिला शुरू होता है, तो उनका पहला वाक्य यही होता है कि लोगों को ग्रीन बिल्डिंग का मतलब यही लगता है कि हरे रंग से पेंट किया हुआ मकान, बिल्डिंग, फ्लैट।
मेरी और उनकी, दोनों की हंसी एक साथ छूट जाती है। कपिल हंसते हुए कहते हैं, ‘सच कह रहा हूं न… जयपुर नगर निगम की एक मीटिंग थी। इसमें ग्रीन बिल्डिंग प्रोजेक्ट को प्रेजेंट कर रहा था। इसी दौरान एक पार्षद तपाक से बोल पड़ा। सर, ग्रीन बिल्डिंग मतलब वही न जिस बिल्डिंग की रंगाई-पोताई हरे रंग से की जाती है।’
कपिल बताते हैं कि ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट का सीधा सा मतलब है कि आप जो मकान, बिल्डिंग, मॉल, कॉर्पोरेट हाउस बना रहे हैं उसमें बिजली से लेकर वेस्ट मैनेजमेंट तक का सिस्टम इको फ्रेंडली हो। आप खुद से बिजली जनरेट करें। घर की डिजाइन ऐसी हो, जिसमें बिजली का कम-से-कम या न के बराबर इस्तेमाल हो। दिन में तो बिल्कुल भी नहीं। न AC का झंझट, न गर्मी का।
बिजनेस की शुरुआत को लेकर कपिल बताते हैं, ‘2014 में इंजीनियरिंग कंप्लीट करने के बाद मेरा सिलेक्शन हरियाणा सरकार में हो गया था। इस दौरान मुझे ग्रीन बिल्डिंग के कई प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका मिला। कुछ साल बाद मैंने एक-दो प्राइवेट कंपनी में भी काम किया, जहां बॉस से थोड़ी अनबन हो गई।
करीब 4 साल तक ये सब चलता रहा। जॉब के दौरान मैंने देखा कि सरकार ग्रीन बिल्डिंग बनाने पर जोर तो दे रही है, लेकिन इससे रिलेटेड प्रोडक्ट आसानी से मार्केट में उपलब्ध नहीं है। लोगों को इसके बारे में पता ही नहीं है। जिसके बाद लगा कि कुछ करना चाहिए।
मैं जॉब छोड़कर जयपुर आ गया। अब यहां दिक्कत थी कि कोई इसके बारे में जानता ही नहीं था। आज भी लोगों को ग्रीन बिल्डिंग क्या होता है, मालूम नहीं है।’
कपिल के ऑफिस में अभी चार लोग हैं, जो अलग-अलग प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। अंकित उन्हें गाइड कर रहे हैं। वो मुझे ग्रीन बिल्डिंग के कॉन्सेप्ट को सीखने के तरीके को लेकर दिलचस्प किस्सा बताते हैं।
कपिल कहते हैं, ‘जब मैंने 2018-19 में कंपनी की शुरुआत की थी, तो जो कंपनी या बड़े क्लाइंट शहर में कंस्ट्रक्शन का काम करते थे, मैं उनके पास चला जाता था। जब उनसे कहता कि आप अपने बिल्डिंग को ग्रीन बिल्डिंग बनाइए। इससे आपको पानी से लेकर बिजली तक की बचत होगी। वातावरण के लिए अच्छा होगा।
लेकिन लोग मुझे सुनना भी नहीं चाहते थे, भगा देते थे। कहते थे- ग्रीन बिल्डिंग बनाने से क्या हो जाएगा? इसमें खर्च भी ज्यादा होगा और मजबूती भी नहीं।’
आगे बढ़ने से पहले कपिल मुझे पहले ग्रीन बिल्डिंग के बारे में बताते हैं...
तो किसी ग्रीन बिल्डिंग को बनाने में कितने का खर्च आता है?
कपिल मुझे कुछ प्रोडक्ट दिखाते हैं, जो ग्रीन बिल्डिंग बनाने में इस्तेमाल होता है। वो कहते हैं, ‘यदि कोई नॉर्मल बिल्डिंग को बनाने में 50 लाख का खर्च आता है, तो ग्रीन बिल्डिंग बनाने में ज्यादा से ज्यादा 60 लाख का खर्च आता है।
मुझे भी इसके बारे में पहले से समझ तो थी नहीं। हालांकि, मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद कंस्ट्रक्शन में इंटरेस्ट ज्यादा हो चला था। जब मैंने इस स्टार्टअप की शुरुआत की, तो मुझे कई महीनों तक रिसर्च करना पड़ा।
अलग-अलग देशों में ग्रीन बिल्डिंग पर हो रहे कामों को जाना। इंडिया में इसकी पॉलिसी क्या है, इसकी स्टडी की। उसके बाद मैंने कंपनी की शुरुआत की।'
हमारी बातचीत के बीच ही कपिल के एक क्लाइंट का फोन आता है, जहां उन्हें पेमेंट लेने के लिए जाना है। कपिल हल्की मुस्कान में कहते हैं, ‘एक वो भी वक्त था जब मैंने अपनी LIC (लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन) की मैच्योरिटी से मिले 2 लाख रुपए से बिजनेस की शुरुआत की थी।
दरअसल, मैं 25 साल का हो चुका था। जयपुर लौटने के बाद जब पापा को बताया, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। वो चाहते थे कि मैं जॉब ही करूं। उन्हें भरोसा नहीं था कि मैं इस सेक्टर में ग्रोथ कर पाऊंगा। मुझे याद है कि पापा से जब मैंने स्टार्टअप शुरू करने के बारे में बताया था तो वो नाराज भी हुए थे। उनका कहना था कि छोटे शहरों में इसका कोई स्कोप नहीं है।
लेकिन मुझे पता था कि जिस तरह से ग्रामीण आबादी शहर की तरफ शिफ्ट हो रही है। आने वाले वक्त में हर कोई ग्रीन बिल्डिंग की तरफ रूख करेगा। इसे एडॉप्ट करना पड़ेगा। सरकार की भी पॉलिसी कुछ इसी तरह की है।’
कपिल जब इंटरनेट पर ग्रीन बिल्डिंग प्रोजेक्ट से रिलेटेड कोई भी की-वर्ड्स टाइप करते हैं, तो सबसे पहले उनकी वेबसाइट ‘Econaur’ आता है। कई सारे आर्टिकल्स के लिंक भी दिखते हैं, जिसमें ग्रीन बिल्डिंग बनाने से रिलेटेड नॉलेज लिखे हुए हैं।
कपिल मेरी तरफ देखते हुए कहते हैं, ‘इन 4 सालों में हमने मार्केटिंग पर सबसे ज्यादा फोकस इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए किया है। आप ही देखिए न! आज का दौर इंटरनेट का है। किसी को कोई भी क्वेरी होती है, वो सबसे पहले गूगल ही करता है।
शुरुआत में तो हम शहर में होने वाले एक-एक कंस्ट्रक्शन साइट पर जाकर लोगों को बताते थे कि ग्रीन बिल्डिंग क्या होता है और कोई कैसे बनवा सकते हैं।'
वो कहते हैं, जब लोगों ने दुत्कारना शुरू किया, तो मेरी फैमिली सपोर्ट में आ गई। पत्नी ने भी साथ दिया। इसके बाद मैंने फिर से फील्ड पर जाकर लोगों को अवेयर करना शुरू किया। कई लोगों ने सराहना की।
मार्केट की ये भी सबसे बड़ी दिक्कत है कि जो कंपनियां ग्रीन बिल्डिंग से रिलेटेड प्रोडक्ट बनाती हैं, उनके बारे में कोई नहीं जानता है। मैंने इन कंपनियों से कॉन्टैक्ट करना शुरू किया।
उन्हें जब क्लाइंट्स के साथ लाइन-अप कराना शुरू किया, तो उनका मार्केट भी ग्रोथ होने लगा और इसके बदले हमने एक फिक्स कमीशन तय कर दिया। हम इसको लेकर कंपनियों और ग्रीन बिल्डिंग बनाने वाले लोगों को गाइड करते हैं, उन्हें कंसल्टेंसी देते हैं।'
कपिल कहते हैं, धीरे-धीरे आज हमारी कंपनी के साथ 73 कंपनियां काम कर रही हैं। इनके साथ हमारा टाइअप है। इन कंपनियों के प्रोडक्ट्स हमारी वेबसाइट पर लिस्टेड हैं। अधिकतर क्वेरी वेबसाइट के जरिए ही आती है। इसके लिए हमारी एक टीम काम करती है, जो इन्हें ट्रैक करती है।
कोरोना के दौरान कपिल को बड़ा नुकसान हुआ था। उनके लाखों रुपए डूब गए थे। जिन क्लाइंट्स के साथ उन्होंने डील की थी, वो कैंसल हो गई। कई लोगों ने उनसे काम करवाने के बावजूद पैसे नहीं दिए।
कपिल उन दिनों के बारे में बताते हैं। कहते हैं, करीब 15 लाख का नुकसान कोरोना के दौरान हो गया था। लोगों ने काम करवाकर भी पैसे नहीं दिए। टीम को सैलरी देना मुश्किल हो गया था। हालांकि, धीरे-धीरे हमने मार्केट में फिर से पकड़ बनानी शुरू की। आज कंपनी का सालाना टर्नओवर 50 लाख है। अब हम भी मार्केट में ग्रीन बिल्डिंग से रिलेटेड प्रोडक्ट लॉन्च करने जा रहे हैं।
अब पॉजिटिव स्टोरी की तीन और ऐसी ही कहानियां पढ़ सकते हैं...
1. 17 की उम्र में दो दोस्तों ने ज्वेलरी कंपनी बनाई:लोग कहते थे- बच्चे हैं, टाइम पास कर रहे; शार्क टैंक से मिले एक करोड़
आपसे कहूं कि किसी बिजनेस या स्टार्टअप को शुरू करने की सही उम्र क्या होती है? 20 साल… 22 साल… 25 साल… अपनी पूरी स्टडी कम्प्लीट करने के बाद…या मेच्योर होने के बाद, मार्केट समझने के बाद? लेकिन यदि मैं कहूं कि बिजनेस शुरू करने की कोई उम्र ही नहीं होती है। इंडिया में वोटर बनने की ऐज से पहले भी आप करोड़ों का बिजनेस खड़ा कर सकते हैं। फिर...?
पिछले दिनों जब ‘शार्क टैंक इंडिया सीजन-2’ में 19 साल के दो दोस्त- आदित्य फतेहपुरिया और राघव गोयल टीवी पर अपने रैपर्स ज्वेलरी प्रोडक्ट्स के साथ दिखे, तो सभी दंग रह गए। जज से लेकर व्यूअर तक…। जहां बड़े-बड़े बिजनेसमैन फंड नहीं ले पाते हैं, वहां इन दोनों को एक करोड़ का फंड मिला। दोनों ज्वेलरी बनाने वाली कंपनी जिल्लिओनैरे (zillionaire) के को-फाउंडर हैं। (पढ़िए पूरी खबर)
2. 6 हजार से बनाई 5 करोड़ की सोलर कंपनी:जहां नौकरी करता था, उस कंपनी के मालिक इसे 10 लाख में खरीदना चाहते थे
2015 का साल था, मुंबई में एक कंपनी में जॉब कर रहा था। नई-नई शादी हुई थी, मां-पापा भोपाल में रहते थे। मैंने घरवालों को कुछ दिनों के लिए मुंबई बुला लिया। इसी दौरान मां को बहुत ज्यादा खांसी आने लगी और फिर उन्हें कैंसर का पता चला। पूरे परिवार के पैरों तले जमीन खिसक गई।
परिवार भोपाल लौट गया, मां का इलाज एम्स में चलने लगा। मैं मुंबई में अकेला रह गया। फैमिली और जॉब, दोनों को एक साथ संभालना मुश्किल हो रहा था। मैं नौकरी छोड़कर भोपाल लौट गया। दो साल तक जॉब के लिए इधर-उधर भागता रहा, लेकिन ज्यादा पैकेज होने की वजह से काम नहीं मिला। (पढ़िए पूरी खबर)
3. भांग से बनाता हूं पिज्जा-बर्गर:कैंसर से पापा की मौत हुई तो रिसर्च के दौरान आइडिया मिला, 25 लाख टर्नओवर
भांग… ये पढ़ने-सुनने-देखने के बाद सबसे पहले आपके दिमाग में क्या आता है? भांग, मतलब नशा। खा लिया तो, होशो-हवास खो बैठेंगे। किसी ने देख लिया, तो कानूनी पंगा। बचपन से आपको यही पता होगा कि ये जानलेवा भी है! है न…? (पढ़िए पूरी खबर)
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