घर, ऑफिस, पढ़ाई-लिखाई, काम-धंधा… इतने सारे वर्क प्रेशर होते हैं कि हम, हमारे बच्चे तनाव महसूस करने लगते हैं! कई बार आपको भी ऐसा लगता होगा कि वीकेंड पर या किसी दिन पूरी फैमिली के साथ कहीं मस्ती, एन्जॉय करने के लिए जाएं, लेकिन छोटे शहरों में इस तरह की जगहें बहुत कम ही होती हैं।
इसी के सॉल्यूशन पर काम कर रहे कपल नेहा अग्रवाल और पंकज अग्रवाल से मिलने मैं जयपुर पहुंचा। नेहा और पंकज ‘PUNO’ नाम से ट्रैम्पोलिन पार्क (जहां इनडोर बहुत सारे गेम्स होते हैं) चलाते हैं। इन दोनों का FUN के साथ-साथ कारोबार भी जबरदस्त है। अभी इनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 12 करोड़ है।
शाम के करीब 7 बज रहे हैं। वीकेंड है, इसलिए 'PUNO' में अच्छी-खासी भीड़ है। लोग घंटों एन्जॉय करने के बाद बाहर निकल रहे हैं और सेल्फी क्लिक कर रहे हैं। नेहा के साथ मैं उनके पार्क में एंटर करता हूं, जहां एडल्ट्स और किड्स के लिए गेम्स के अलग-अलग सेक्शन बने हुए हैं। लोगों को एंटरटेन करने के लिए दर्जनों ट्रेनर्स हैं।
कोई रस्सी से छलांग लगा रहा है, तो कोई साइकिल से एक सर्कल में चक्कर लगा रहा है। नेहा कहती हैं, ‘हर उम्र के लोग चाहते हैं कि वो कुछ टाइम अपनी फैमिली, दोस्तों के साथ बिताएं, मौज-मस्ती करें। देख रहे हैं इन लोगों की हंसी। यहां आने के बाद 65 साल का बूढ़ा व्यक्ति भी खुद को बच्चा फील करता है।’
जितना इस पार्क में चहल-पहल, हंसी-ठिठोली है। नेहा और पंकज की जर्नी इससे बिल्कुल उलट है। नेहा बताती हैं, ‘हम दोनों पति-पत्नी इससे पहले पटाखे का कारोबार करते थे। एक रोज की बात है, पटाखे के वेयरहाउस में आग लग गई।
उसके बाद कई दिक्कतें लगातार सामने आने लगी, तब हमने सोचा कि किसी दूसरी इंडस्ट्री में अपनी किस्मत को आजमाया जाए।’
नेहा मुझे ट्रैम्पोलिन पार्क की शुरुआत को लेकर बताती हैं। वो कहती हैं, ‘हम लोग हमेशा से फॉरेन ट्रिप पर जाते रहे हैं। इन देशों में देखते हैं कि वहां लोग हर वीकेंड पर मूड को फ्रेश करने के लिए पार्क, एडवेंचर… इन जगहों पर फैमिली, दोस्तों के साथ जाते हैं, लेकिन इंडिया में एक मिडिल क्लास फैमिली के लिए ये सारी चीजें कोसो दूर हैं।
जब पटाखे का कारोबार ठप हो गया, तो कई तरह की दिक्कतें होने लगी। तब हमें लगा कि क्यों न जयपुर में कुछ नया किया जाए। जयपुर टूरिस्ट का बड़ा डेस्टिनेशन हब भी है। इसी के बाद हमने 2020 में ट्रैम्पोलिन पार्क के आइडिया पर वर्क करना शुरू किया।'
नेहा कहती हैं, ‘हमारा इस इंडस्ट्री से कोई लेना देना नहीं था। पंकज और मैं, दोनों ने इंटरनेट खंगालना शुरू कर दिया, लेकिन खुद को एक्सप्लोर कर पाते, उससे पहले ही कोरोना ने दस्तक दे दी। हमें लगा कि अब तो सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन जहां एक तरफ लोग अलग-अलग तरह की नई-नई डिशेज, खाने-पीने को लेकर एक्सपेरिमेंट, नई स्किल्स सीख रहे थे।
उसी दौरान हम दोनों पति-पत्नी रात-रातभर बैठकर ट्रैम्पोलिन पार्क पर रिसर्च कर रहे थे। दूसरे देशों में किस तरह के ट्रैम्पोलिन पार्क बनाए गए हैं, वहां के रूल-रेगुलेशन क्या-क्या हैं? इन सारी चीजों के बारे में हमने स्टडी की।
हमें सबसे ज्यादा इसकी सेफ्टी को लेकर डर था कि कैसे हम कस्टमर को सही-सलामत एंटरटेन कर पाएंगे, क्योंकि इसमें कई सारे गेम्स बेहद खतरनाक होते हैं। थोड़ी सी चूक किसी की जान भी ले सकती है। वहीं, इंडिया में इसका मार्केट कितना बड़ा है? यदि हम इस बिजनेस की शुरुआत करते हैं, तो इसमें कितना बड़ा रिस्क फैक्टर है।
उसके बाद हमने दूसरे देशों के ट्रैम्पोलिन पार्क के कोच से कॉन्टैक्ट किया। उनसे पहले खुद ट्रेनिंग ली, फिर उन्हें बुलाकर टीम को ट्रेनिंग दिलवाई।’
पूरा पार्क कलरफुल, रंग-बिरंगा दिख रहा है। मेरी इधर-उधर घूम रही नजरों के बीच नेहा कहती हैं, ‘इसके गेमिंग पार्ट्स बहुत महंगे होते हैं, जिसे विदेशों से इम्पोर्ट करना पड़ता है।
पटाखे का कारोबार चौपट होने के बाद हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि हम खुद की बदौलत 'PUNO' को सेटअप कर पाएं। हालांकि, हमारी फैमिली बैकग्राउंड का एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट, पटाखे और वेडिंग इंडस्ट्री का बिजनेस रहा है। इसलिए बैकअप था।
हमें फैमिली, दोस्तों, रिश्तेदारों और बैंक से कर्ज लेना पड़ा। करीब 5 करोड़ का इन्वेस्ट किया था। जयपुर सिटी में 20 हजार स्क्वायर फीट जमीन लीज पर ली। इसके गेमिंग पार्ट को चीन और यूरोप से इम्पोर्ट किया।'
धीरे-धीरे रात हो रही है। लोग फैमिली, बच्चों के साथ एन्जॉय करने के बाद अब 'PUNO' से निकल रहे हैं। नेहा बताती हैं कि जब उन्होंने इस पार्क की शुरुआत की थी, तो रोजाना एक-दो कस्टमर ही आते थे, लेकिन आज हर रोज 300 से ज्यादा कस्टमर आते हैं। वीकेंड पर ये संख्या और अधिक होती है।
नेहा कहती हैं, ‘5 करोड़ कितनी बड़ी रकम है, आप समझ सकते हैं। हमने जिनसे पैसे लिए थे, उन्हें देना भी था। जयपुर टीयर-2 में आता है, इसलिए यहां पर इसका इतना क्रेज भी नहीं था। हमने पार्क के लुक पर फोकस करना शुरू किया। जो लोग यहां FUN के लिए आते थे, हमने उनकी फोटो सोशल मीडिया, इंस्टाग्राम पर डालना शुरू किया।'
जिन कस्टमर्स को यहां टाइम स्पेंट करना अच्छा लगता था, वो खुद भी पोस्ट करते थे। कुछ कस्टमर्स से तो ये भी पता चला कि जब वो 'PUNO' की अपनी फोटोज सोशल मीडिया पर शेयर करते थे, तो उनके दोस्तों ने पूछना शुरू कर दिया कि ये कहां की फोटो है? और इस तरह से फिर उनके जानने वाले यहां आने लगे। माउथ-टू-माउथ पब्लिसिटी होती चली गई।
आज यदि कोई जयपुर में ट्रैम्पोलिन पार्क को लेकर गूगल करता है, तो 'PUNO' टॉप पर आता है। सिर्फ जयपुर ही नहीं, अजमेर, जोधपुर, अलवर, कोटा समेत कई जिलों से लोग वीकेंड पर आते हैं।’
नेहा का अब रायपुर में भी एक ट्रैम्पोलिन पार्क है। अभी पंकज वहीं पर हैं। नेहा बताती हैं, ‘एक वो भी दिन था जब मेरी दोस्त मुझे कहती थी कि ये तो अपनी लाइफ में कुछ भी नहीं कर पाएगी। दरअसल, मैं पढ़ने में थोड़ी कमजोर थी।
राजस्थान की एक रूढ़िवादी फैमिली से आती हूं। यहां लड़कियों को बाहर-भीतर जाने की मनाही होती है। बिजनेस करना तो दूर की बात, लेकिन मैं चाहती थी कि खुद का अपना कुछ करूं। जब 2005 में हमारी शादी हुई, तो उसके बाद से मैं और पंकज ने बिजनेस करना शुरू कर दिया।
शुरुआत तो हमने वेडिंग प्लानर के तौर पर की थी। हम लोग शादी में वरमाला कंसेप्ट पर काम करते थे। हर दुल्हन की एक ख्वाइश होती है कि वो वरमाला के टाइम अपने होने वाले दुल्हे के सामने अलग-अलग तरीके से आए।
लेकिन कुछ समय बाद हमारे सामने कई चैलेंजेज आने लगे। एक तो हम दोनों लेट नाइट घर लौटते थे। फैमिली में थोड़ी दिक्कत होने लगी कि बहू होकर रात-रातभर घर से बाहर रहती है। उस वक्त मेरा बेटा गोद में था।'
नेहा आगे कहती हैं, 'कई-कई दिनों तक मैं घर पर होते हुए भी बेटे से नहीं मिल पाती थी। दरअसल, रात में जब हम लौटते थे, तो वो सो चुका होता था और मॉर्निंग हम क्लाइंट से मिलने के लिए या नए प्रोजेक्ट के लिए जल्दी निकल जाते थे।
मां का दिल, कई बार बहुत टीस होता था कि अपने बेटे को मां का प्यार नहीं दे पा रही हूं। आज देखिए कि बेटे ने ही 'PUNO' नाम सजेस्ट किया था। यह एक यूनिक वर्ड भी है। PUNO एक स्पेनिश वर्ड है, जिसका अर्थ मुठ्ठी होता है। हिंदी में पूर्णिमा कहते हैं।’
आपने वेडिंग इंडस्ट्री के बिजनेस को क्यों छोड़ दिया?
नेहा कहती हैं, ‘धीरे-धीरे वेडिंग इंडस्ट्री में बहुत कॉम्पिटिशन हो गया। हमें अपने पैसे लेने के लिए महीनों क्लाइंट्स के घर के चक्कर लगाने पड़ते थे। इसी के बाद हमने पटाखे का बिजनेस शुरू किया, क्योंकि पहले से पंकज के पापा इस इंडस्ट्री में थे। लेकिन इस बिजनेस में भी बहुत सारी चुनौतियां आने लगीं।’
नेहा बताती हैं, ‘पिछले दो सालों में ही हमने ट्रैम्पोलिन मार्केट में एक पहचान बना ली है। लोग जब एन्जॉय करते हैं, बूढ़े भी खुद को बच्चा फील करते हैं, तब हमें बहुत खुशी होती है। बिजनेस ग्रोथ ऐसा है कि आज हमारा हर महीने एक करोड़ के करीब का टर्नओवर है। सालाना 12 करोड़ का कारोबार है। हम इस साल 3 और नए शहरों में 'PUNO' को लॉन्च करने जा रहे हैं।'
अब इस ग्राफिक्स के जरिए ट्रैम्पोलिन पार्क के मार्केट को भी समझ लीजिए...
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